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इलेक्ट्रिक वाहनों का इतिहास एवं भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Cars in India)

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वर्तमान में पूरा विश्व पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहा है। दुनियाँ भर के देश विकास के इस दौर में पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरा पैदा कर रहे है, फिर चाहे वह अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन हो या जंगलों का अंधाधुंध कटान हो। जैसे-जैसे कार्बन उत्सर्जन एवं प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है वैसे-वैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के रूप में कई कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। इसी क्रम में इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Cars in Hindi) के इस्तेमाल की तरफ भी ध्यान दिया जा रहा है तथा भारत जैसे विकासशील देशों में इनकी माँग में साल दर साल वृद्धि हो रही है।

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नमस्कार दोस्तो! स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में यहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों से महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। आज इस लेख में हम चर्चा करेंगे इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric cars in Hindi) के इतिहास की, देखेंगे इस क्षेत्र में भारत की स्थिति एवं सरकार द्वारा इसके प्रोत्साहन के लिए बनाई गई विभिन्न नीतियों को। 

इलेक्ट्रिक वाहनों की शुरुआत

इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बारे में विचार करने पर दिमाग में केवल अमेरिकी कंपनी “टेस्ला” का ही नाम आता है, किन्तु इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इतिहास टेस्ला से कई पुराना है यहाँ तक की Combustion Engine से भी पुराना। हालाँकि किसी अन्य आविष्कार की भाँति इसका श्रेय किसी एक इंसान को नहीं जाता क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण एवं विकास में कई लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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इसकी शुरुआत 1828 में हुई जब हंगेरियन भौतिक विज्ञानी Nyos Jedlik ने एक इलेक्ट्रिक मोटर का आविष्कार किया और अपनी नई मोटर द्वारा संचालित एक छोटी मॉडल कार बनाई। अधिक इलेक्ट्रिक कार के निर्माण की कहानी 1830 के दशक से शुरू हुई, जब एक स्कॉटिश व्यक्ति रॉबर्ट एंडरसन ने सर्वप्रथम मोटर द्वारा चलने वाली छोटी मालगाड़ी/ बग्घी का निर्माण किया। इस समय इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ एक मुख्य समस्या बैटरी का पुनः चार्ज न होना था, अतः इस कारण ऐसे वाहनों का व्यवसायिक इस्तेमाल शुरू नहीं हो सका।

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1834 में अमेरिका के Vermont शहर में रहने वाले लोहार थॉमस डेवनपोर्ट ने डायरेक्ट करेंट (DC) आधारित एक मोटर बनाई तथा इसकी सहायता से एक इलेक्ट्रिक गाड़ी का निर्माण किया, जो किसी छोटे, गोलाकार, विद्युतीकृत ट्रैक पर संचालित हो सकती थी। एक अन्य स्कॉटिश व्यक्ति रॉबर्ट डेविडसन नें 1937 में एक इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव का निर्माण किया। अमेरिका में पहली सफल इलेक्ट्रिक कार 1890 के दशक में निर्मित हुई, जिसका श्रेय एक रसायन विज्ञानी विलियम मॉरिसन को दिया जाता है।

1859 आते आते पुनः चार्ज की जा सकने वाली बैटरी का आविष्कार हो चुका था, जिसने इलेक्ट्रिक वाहनों की कल्पना को एक मजबूत आधार प्रदान किया। इसके पश्चात समय के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों के कई विकसित रूप सामने आए तथा ये वाहन व्यावसायिक रूप से भी इस्तेमाल किये जाने लगे। आंकड़ों के मुताबिक 1900 में तकरीबन 40% वाहन इलेक्ट्रिक थे।

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इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल में कमी

1970 के दशक में Combustion Engine का आविष्कार हुआ, जिसनें इलेक्ट्रिक वाहनों के बाज़ार को बहुत हद तक प्रभावित किया। चूँकि इस दौर में जैव ईंधन अधिक मात्रा में उपलब्ध था तथा इलेक्ट्रिक गाडियाँ पेट्रोल तथा डीजल इंजन द्वारा चलने वाली गाड़ियों की तुलना में बहुत कम दक्ष थी, अतः धीरे-धीरे जैव ईंधन युक्त गाड़ियों का बाज़ार बढ़ने लगा। फोर्ड, फॉक्सवेगन, GM मोटर्स जैसी कंपनियों के उत्पाद बाज़ार में आने लगे तथा इलेक्ट्रिक वाहनों का बाज़ार बनने से पहले ही समाप्त हो गया।

20वीं शताब्दी के मध्य के बाद से जब तेल के दाम आसमान छूने लगे तथा पर्यावरणीय प्रदूषण दुनियाँ के लिए एक नई चुनौती के रूप में सामने आया तो पुनः इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ ध्यान गया। इसी क्रम में सबसे पहली कमर्शियल इलेक्ट्रिक कार जापान आधारित कंपनी टोयोटा ने साल 1980 में लॉन्च की, जो काफी लोकप्रिय हुई तथा इसकी एक साल के भीतर ही 10,000 कारें बेची गई। वर्तमान में इलेक्ट्रिक कारों के लिए जानी जाने वाली कंपनी टेस्ला ने अपनी पहली इलेक्ट्रिक कार 2008 में निकाली तथा अब लगभग सभी बड़ी कार निर्माता कंपनियाँ इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण की तरफ ध्यान दे रही हैं।

इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता

जैसा की हमनें शुरुआत में बताया वर्तमान समय में पूरा विश्व पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहा है। कार्बन उत्सर्जन दुनियाँ के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। बढ़ता कार्बन उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं को जन्म दे रहा है, जो पारिस्थितिकी तंत्र एवं मानव जीवन के लिए किसी खतरे से कम नहीं है।

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भारत की बात करें तो पूरी दुनियाँ में सबसे प्रदूषित 10 शहरों में 6 शहर केवल भारत के हैं, जबकि प्रदूषण के मामले में भारत दुनियाँ में पांचवें स्थान पर है। चूँकि वायु प्रदूषण एवं कार्बन उत्सर्जन में वाहनों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है अतः ऐसे में पारंपरिक वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों से बदलना समय की माँग है। इसके अतिरिक्त धरती पर जैव ईंधन की सीमित मात्रा भी इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल करने की दिशा में एक संकेत है।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का इतिहास

हालाँकि वर्तमान समय में भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (Electric cars in India) अन्य विकसित देशों की तुलना में चलन में कम हैं। किन्तु देश में भी इलेक्ट्रिक वाहनों का इतिहास बहुत पुराना है। भारत में सर्वप्रथम Eddy Electric कंपनी ने जापान की Yaskawa electric कंपनी के सहयोग द्वारा 1993 में Lovebird नाम से देश की पहली इलेक्ट्रिक कार को लॉन्च किया।

इस वाहन को दिल्ली में आयोजित ऑटो एक्सपो में प्रदर्शित किया गया था, जिसे इस कार्यक्रम में कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए। कम बिक्री के कारण निर्माता ने भारत में इस कार के उत्पादन को बंद कर दिया। Lovebird एक बार चार्ज करने पर लगभग 60 किमी की यात्रा करने में सक्षम थी।

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इसके पश्चात भारत का सबसे पहला तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहन 1996 स्कूटर इंडिया लिमिटेड द्वारा निर्मित किया गया, जिसका नाम विक्रम था। पुनः साल 1999 में देश की जानी मानी कार निर्माता कंपनी महिंद्रा ने भी एक इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहन को बाज़ार में उतारा जिसे कुछ समय बाद कम माँग के चलते बंद करना पड़ा। 

इसके बाद से ही धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक वाहनों को बनाने पर जोर दिया जाने लगा। भारत की अर्थव्यवस्था को देखते हुए इलेक्ट्रिक दुपहिया एवं तिपहिया वाहन बाज़ार में आने लगे। 2007 में दुपहिया वाहन निर्माता हीरो ने UK आधारित एक कंपनी अल्ट्रा मोटर्स के साथ मिलकर दुपहिये वाहनों को भारतीय बाजारों में उतारा। 

देश की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को देखा जाए तो अधिकांश आबादी सार्वजनिक परिवहन (Public Transport) पर निर्भर है। इसी कारण पिछले कुछ वर्षों में देश में इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहन या ई -रिक्शा की माँग में भारी वृद्धि हुई है। वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने तथा लोगों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से सरकारें भी इस प्रकार के वाहनों की खरीद को प्रोत्साहित करती हैं। 

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देश में बिकने वाले अधिकाश इलेक्ट्रिक वाहनों में एक बहुत बड़ा हिस्सा ऐसे ही वाहनों का है, किन्तु अब धीरे-धीरे आम लोग भी इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर विचार कर रहे हैं तथा कई राज्य सरकारें इसे आर्थिक रूप से प्रोत्साहित भी कर रही हैं जिन्हें हम आगे जानेंगे।

भारतीय बाजारों में इलेक्ट्रिक वाहन

भारतीय बाजारों में उपलब्ध इलेक्ट्रिक वाहनों की बात करें तो 2020 में दिल्ली में आयोजित हुए ऑटो एक्सपो में महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपनी मिनी एसयूवी eKUV 100 का एक इलेक्ट्रिक संस्करण लॉन्च किया, जिसकी क़ीमत लगभग 8 लाख 25 हज़ार रुपए रखी गई है। निजी गाड़ियों के ख़रीदारों के लिए भारत में उपलब्ध ये सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक कार है। इसके अतिरिक्त टाटा मोटर्स की Nexon EV एक अन्य इलेक्ट्रिक कार है, नेक्सॉन के इलेक्ट्रिक मॉडल की क़ीमत तकरीबन 14 लाख रुपए है। अन्य प्रमुख गाड़ियों में Tata Tigor EV, Mahindra e-Verito, आदि शामिल हैं।

TATA Nexon EV / Electric cars in Hindi
TATA Nexon EV

भारतीय कंपनियों के अलावा कोरियाई ऑटोमोबाइल कंपनी हुंडई और चीन आधारित एमजी मोटर्स ने भी हाल ही में अपनी इलेक्ट्रिक एसयूवी को भारत के बाज़ार में उतारा है, जिनकी क़ीमत क़रीब 25 लाख है। वहीं दुपहियाँ वाहनों में हीरो मोटर्स, बजाज ऑटो और टीवीएस ने भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बाज़ार में क़दम बढ़ाए हैं। 

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इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति सरकार का रुख

केंद्र तथा कई राज्य सरकारों ने समय के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन हेतु कई नीतियाँ बनाई हैं। 2013 में भारत सरकार ने नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (NEMMP) 2020 लॉन्च किया। इसके तहत 2020 तक साल दर साल हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों की 6-7 मिलियन बिक्री हासिल करने का लक्ष्य था।

इसके अलावा केंद्र सरकार ने 2015 में Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and EV (FAME) योजना की शुरुआत की, जिसके तहत 8.9 अरब रुपयों की धनराशि स्वीकृत की गई इसका उद्देश्य मुख्यतः दुपहिया, तिपहिया, हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक कार तथा बसों की खरीद को प्रोत्साहित करना था। पिछले साल केंद्र सरकार ने Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and EV (FAME2) योजना के दूसरे फ़ेज की घोषणा की है तथा 2019-2022 के दौरान इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आवंटित राशि को भी दस गुना बढ़ा कर दस हज़ार करोड़ कर दिया।

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हाल में ही केंद्र सरकार ने FAME 2 में संशोधन करके बसों के अतिरिक्त अन्य इलेक्ट्रिक वाहनों पर दी जाने वाली सब्सिडी को प्रति KWh 10,000 से बढ़ाकर 15,000 कर दिया है। नवीनतम संशोधन में, भारी उद्योग विभाग ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिए प्रोत्साहन राशि को वाहनों की कुल लागत का 40 फीसदी तक कर दिया है जो पहले केवल 20 फीसदी थी।

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राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कदम

राज्य सरकारों द्वारा बनाई गई नीतियों की बात करें तो पिछले साल दिल्ली सरकार ने भी राज्य में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति जारी की है, केजरीवाल सरकार के अनुसार दिल्ली इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2020 का प्राथमिक उद्देश्य दिल्ली को भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (Electric cars in Hindi) युक्त राजधानी के रूप में स्थापित करना है। नई नीति बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने का प्रयास करेगी, ताकि 2024 तक सभी नए वाहन पंजीकरण में ऐसे वाहनों का 25 फीसदी का योगदान सुनिश्चित किया जा सके।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ऐलान किया कि, दिल्ली सरकार इलेक्ट्रिक वाहन नीति के तहत इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वाले लोगों को आर्थिक मदद देगी। इसके लिए 2 व्हीलर पर ₹30,000, कारों पर 1.5 लाख, ऑटो रिक्शा और ई-रिक्शा पर 30,000 तक की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इसके अतिरिक्त ई-वाहनों के लिए पंजीकरण शुल्क, रोड टैक्स में छूट तथा वाहनों की खरीद पर कम ब्याज ऋण जैसी सुविधा भी मुहैया कारवाई जाएंगी।

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अन्य राज्यों की बात करें तो 2018 में, उत्तराखंड सरकार ने EV के उत्पादन एवं उपयोग को बढ़ावा देने हेतु मदद करने के लिए एक नई योजना शुरू की। इसके तहत इलेक्ट्रिक वाहन तथा चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए कंपनियों को 10 करोड़ रुपये से 50 करोड़ रुपये के बीच ऋण प्रदान किया जाएगा। यह योजना EV के पहले एक लाख ग्राहकों को पाँच साल के मोटर टैक्स में भी छूट देती है। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने EVs को रोड टैक्स में छूट देने तथा राज्य में पंजीकृत पहले एक लाख वाहनों को 15 फीसदी सब्सिडी प्रदान करने का प्रस्ताव पारित करके राज्य में ऐसे वाहनों के उपयोग को बढ़ाने पर जोर दिया है।

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टेस्ला का भारत में प्रवेश

जानी मानी इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला के भारतीय बाज़ार में आने का कई लोग इंतजार कर रहे हैं, जो अब लगभग पूरा होता दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने टेस्ला के 2021 के अंत तक भारतीय बाज़ार में आने की बात कही है। इससे पहले टेस्ला के सीईओ एलन मस्क भी कई बार ट्विटर पर भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने के संबंध में संकेत दे चुके हैं। टेस्ला ने भारत में पहले प्लांट के लिए कर्नाटक के बैंगलुरु को चुना है। कंपनी आधिकारिक रूप से टेस्ला मोटर्स एंड एनर्जी, इंडिया के नाम से पंजीकरण करवा चुकी है। राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा इसकी जानकारी दी गई।

Tesla model  3 in  India
Tesla Model 3

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टेस्ला अपनी कार के मॉडल 3 को ही भारतीय बाज़ार में लाने पर विचार कर रही है। इसमें 60Kwh की Lithium ion बैटरी का इस्तेमाल किया गया है। गाड़ी की टॉप स्पीड की बात करें तो यह तकरीबन 260 किमी प्रति घंटा है। कार की कीमत भारतीय बाज़ार में करीब 55 लाख से 75 लाख रुपये तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है। टेस्ला कंपनी की गाडियाँ अन्य कंपनियों की तुलना में अत्याधुनिक हैं जिनमें क्लाउड कम्प्यूटिंग जैसी तकनीक का विशेष इस्तेमाल किया गया है। गौरतलब है कि टेस्ला की गाडियाँ ऑटो-पाइलट फीचर के कारण भी काफी चर्चा में रहती हैं।

नीदरलैंड के रास्ते भारत में प्रवेश

अमेरिका आधारित कंपनी भारतीय बाजार में अमेरिका के बजाए नीदरलैंड के रास्ते प्रवेश कर रही है। भारत में पंजीकृत टेस्ला मोटर्स एंड एनर्जी, इंडिया की पेरन्ट कंपनी टेस्ला एम्सटर्डम है। बता दें कि नीदरलैंड टैक्स हैवन माने जाने वाले देशों में से एक है। टैक्स हैवन अर्थात ऐसे देश जहाँ प्रत्यक्ष करों की दरें बेहद कम या शून्य होती हैं। इसी कारण कई दिग्गज कंपनियाँ टैक्स बचाने के उद्देश्य से अपनी कंपनियों का पंजीकरण ऐसे देशों में कराती हैं।

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भारत ने कई देशों के साथ Double Taxation Avoidance Agreement (DTAA) समझौता किया है, जिसमें नीदरलैंड भी शामिल है। DTAA के तहत यदि कोई व्यक्ति या कंपनी किसी अन्य देश में निवेश करती है तो उसे पूँजी लाभ (Capital Gain) तथा लाभांश (Dividend) आदि पर दोनों देशों में टैक्स देने की आवश्यकता नहीं होती। 2016 तक इस श्रेणी में मॉरीशस तथा सिंगापुर जैसे देश भी शामिल थे, इसका लाभ उठाते हुए कई पूँजीपति लोगों ने इन देशों से भारत में निवेश करना शुरू किया यही कारण है की मॉरीशस तथा सिंगापुर जैसे देशों से सर्वाधिक विदेशी निवेश प्राप्त होता था।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के संबंध में चुनौतियाँ

देश में बढ़ते प्रदूषण की समस्या को देखा जाए तो भारत के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बेहद आवश्यक हो जाता है, किन्तु भारत के समक्ष इस संबंध में कई चुनौतियाँ भी हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में बैटरी का महत्वपूर्ण योगदान है, जबकि भारत लिथियम आयन बैटरी के निर्माण हेतु आवश्यक कोबाल्ट और लीथियम जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए अन्य देशों पर निर्भर है, इसके चलते किसी वाहन का लागत मूल्य बढ़ जाता है।

इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए देश भर में चार्जिंग स्टेशनों का एक विशाल नेटवर्क होना भी बहुत आवश्यक है। एक अन्य चुनौती में ऐसी गाड़ियों का महँगा होना भी है, हालांकि कई भारतीय तथा अन्य कंपनियाँ भारतीय बाज़ार को मद्देनजर रखते हुए गाडियाँ बाज़ार में उतार रहीं है किन्तु टेस्ला जैसी गाडियाँ अधिकांश आबादी के लिए अत्यधिक महँगी हैं।

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