दुनियाभर में लोग iPhone के नए वेरिएंट यानी iPhone 15 के लॉन्च होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और अब दिग्गज स्मार्टफोन निर्माता Apple ने iPhone के अपडेटेड वेरिएंट iPhone 15 को चार नए मॉडल (iPhone 15, iPhone 15 Pro, iPhone 15 Plus तथा iPhone 15 Pro Plus) के साथ लॉन्च कर दिया है, जो 15 सितंबर 2023 से प्री-ऑर्डर किये जा सकेंगे जबकि स्मार्टफोन की आधिकारिक बिक्री 22 सितंबर से शुरू होने वाली है।
गौरतलब है कि, Apple ने iPhone 15 को इसके पिछले वेरिएंट की तुलना में कई नए फीचर्स से लैस किया है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण भारतीय नौवहन प्रणाली या Indian Navigation System को शामिल करना है।
iPhone 15 यूजर्स खासकर भारतीय यूजर्स अब अमेरिकी नेविगेशन सिस्टम GPS के साथ-साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा निर्मित स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम NavIC या नाविक का इस्तेमाल कर पाएंगे। iPhone 15 के इस नए फीचर को इस्तेमाल करने से पहले आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम NavIC क्या है और कैसे काम करता है?
Navigation System क्या होता है?
Navigation System जिसे हिन्दी में नौवहन प्रणाली कहा जाता है, एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके माध्यम से पृथ्वी पर किसी व्यक्ति या वस्तु की भौगोलिक स्थिति का सटीकता से पता लगाया जा सकता है। ऐसा ही एक नेविगेशन सिस्टम GPS यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित किया गया है। दुनियाँ के अधिकांश देश आज Navigation के लिए अमेरिका के GPS का ही इस्तेमाल करते हैं।
गूगल मैप में किसी स्थान जैसे अस्पताल, रेस्टोरेंट, स्कूल, कॉलेज आदि का पता लगाना हो, ऑनलाइन ऑर्डर किए गए किसी समान को ट्रैक करना हो, Ola, Uber जैसी टैक्सी सर्विसेस की स्थिति को ट्रैक करना हो या सामान्य शब्दों में किसी भी व्यक्ति या वस्तु की लोकेशन का पता लगाना हो तो इसके लिए हम सभी GPS का ही इस्तेमाल करते हैं।
GPS (Global Positioning System) क्या है?
GPS की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेना द्वारा 1960 के दशक में परमाणु मिसाइलों को ले जाने वाली अमेरिकी पनडुब्बियों को ट्रैक करने के लिए की गई। 1970 के दशक की शुरुआत में, अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) को भी एक मजबूत और Stable उपग्रह नेविगेशन प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई।
नौसेना द्वारा पूर्व में विकसित तकनीक को अपनाते हुए, अमेरिकी रक्षा विभाग ने अपने प्रस्तावित नेविगेशन सिस्टम को उन्नत करने के लिए उपग्रहों का उपयोग करने का निर्णय लिया। DoD ने इसके बाद 1978 में टाइमिंग एंड रेंजिंग (NAVSTAR) उपग्रह के साथ अपना पहला नेविगेशन सिस्टम लॉन्च किया। यह 24 उपग्रह प्रणाली 1993 में पूरी तरह से चालू हो गई। वर्तमान में यह 32 उपग्रहों का एक नेटवर्क है जिसकी कवरेज़ पृथ्वी के कोने-कोने में है।
जीपीएस एक अंतरिक्ष-आधारित रेडियोनेविगेशन प्रणाली है जो पूर्णतः अमेरिकी सरकार के स्वामित्व में है और राष्ट्रीय सुरक्षा, वाणिज्यिक, सामाजिक एवं वैज्ञानिक जरूरतों को पूरा करने के लिए संयुक्त राज्य वायु सेना द्वारा इसे संचालित किया जाता है। जीपीएस वर्तमान में दो प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है, जिसमें आम लोगों को प्रदान की जाने वाली नेविगेशन सेवाएं तथा अमेरिकी सेना और सरकारी एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल करी जाने वाली प्रतिबंधित सेवाएं शामिल हैं।
GPS कैसे कार्य करता है?
जीपीएस पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले 30 से अधिक नेविगेशन उपग्रहों की एक प्रणाली है। प्रत्येक उपग्रह रेडियो तरंगों के माध्यम से पृथ्वी में मौजूद जीपीएस उपकरण से संपर्क स्थापित करता है। जीपीएस की कार्यप्रणाली के विभिन्न चरणों को नीचे दिखाया गया है।
चरण 1: GPS उपग्रह रेडियो तरंगों को प्रसारित करता है, जिसमें उपग्रह की लोकेशन, स्थिति, परमाणु घड़ी से प्राप्त प्रसारण के सटीक समय (t1) की सूचना होती है। ये सिग्नल प्रकाश की चाल (लगभग 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड) से गति करते हैं।
चरण 2: धरती पर मौजूद GPS उपकरण जैसे आपका स्मार्टफोन इन संकेतों को प्राप्त करता है तथा प्राप्त होने के समय (t2) के आधार पर Receiver तथा उपग्रह के मध्य की दूरी ज्ञात करता है।
चरण 3: जब GPS उपकरण चार उपग्रहों से अपनी स्थिति की गणना कर लेता है तो ज्यामिति के माध्यम से अपनी भौगोलिक स्थिति या लोकेशन की गणना कर पाता है।
चरण 4: प्राप्त आंकड़ों जैसे अक्षांश, देशान्तर, ऊँचाई को उपकरण डिजिटल नक्शे जैसे गूगल मैप में दर्शाता रहता है, जिससे हमें अपनी भौगोलिक स्थिति का रियल टाइम में पता चलता है।
बेहतर नेविगेशन सिस्टम में समय का महत्वपूर्ण योगदान है। उपग्रहों से आने वाले संकेत में 1 मिली सेकेंड की भी त्रुटि सैकड़ों किलोमीटर का अंतर पैदा कर सकती है। अतः समय की इसी त्रुटि को दूर करने के लिए इन उपग्रहों में परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है जो एक सेकेंड के 10 करोड़वें हिस्से की गणना करने की क्षमता रखती है।
सैटेलाइट नेविगेशन की यह तकनीक 3D Trilateration कहलाती है। पृथ्वी पर किसी वस्तु जो GPS तरंगों को रिसीव करने में सक्षम है की लोकेशन का पता लगाने के लिए उसका कम से कम 4 उपग्रहों से संपर्क स्थापित होना चाहिए। इनमें से तीन सैटेलाइट पृथ्वी पर उस वस्तु की स्थिति निर्धारित करने के लिए जबकि एक अन्य सैटेलाइट समय की गणना करने के लिए काम में लाया जाता है।
NavIC: भारत की अपनी नौवहन तकनीक
नौवहन प्रणाली इस दौर में हमारे डिजिटल जीवन का एक अभिन्न अंग है, किन्तु हम इस तकनीक के लिए बहुत हद तक अमेरिका के GPS पर निर्भर हैं। इसी निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से भारत ने स्वदेशी नेविगेशन कार्यक्रम की शुरुआत करी, साल 1999 में कारगिल घुसपैठ के दौरान भारत के पास Satellite Navigation System मौजूद नहीं होने के कारण सीमापार से होने वाली घुसपैठ का समय रहते पता नहीं लगाया जा सका।
हालाँकि भारत ने अमेरिका से GPS के माध्यम से सहायता करने का अनुरोध किया लेकिन अमेरिका ने मदद करने से मना कर दिया। उसके बाद से ही GPS की तरह ही स्वदेशी नेविगेशन सेटेलाइट नेटवर्क के विकास पर ज़ोर दिया गया और इस पर ISRO के वैज्ञानिकों ने काम करना शुरू किया, जो अब पूरा हो चुका है और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इसकी सेवा भारत के लोगों को मिलने लगेगी।
2000 के दशक में शुरू हुए भारत के महत्वाकांक्षी स्वदेशी नेविगेशन कार्यक्रम Indian Regional Navigation Satellite System (IRNSS) को Navigation with Indian Constellation (NavIC) नाम दिया गया है। इस कार्यक्रम के तहत इसरो ने कुल 7 उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए हैं, जिनमें 3 उपग्रह भू-स्थिर कक्षा में तथा अन्य 4 भू-समकालिक कक्षा में मौजूद हैं।
इस श्रृंखला में पहले उपग्रह IRNSS-1A का प्रक्षेपण जुलाई 2013 में किया गया, जबकि अंतिम उपग्रह IRNSS-1I साल 2018 में प्रक्षेपित किया गया। इन 7 उपग्रहों को भारत समेत देश की सीमा के बाहर 1500 कि.मी. के दायरे में आनेवाले सभी क्षेत्रों में सटीक स्थिति संबंधित सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए डिजाइन किया गया है।
NavIC का उपयोग कहाँ किया जाएगा?
जिस प्रकार हम आज GPS का इस्तेमाल करते हैं NavIC का इस्तेमाल भी उसी प्रकार किया जा सकेगा, जिससे GPS पर हमारी निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही देश की सुरक्षा के लिहाज से भी यह नेविगेशन सिस्टम भारत के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, भारत के पास GPS जैसी नेविगेशन प्रणाली ना होने का खामियाजा हमें कारगिल युद्ध में देखने को मिला अतः स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली होने के चलते अब भारत भी अमेरिका की भांति उपग्रहों से देश की सीमाएं सुरक्षित कर सकेगा।
ISRO के मुताबिक यह प्रणाली भी GPS की भाँति 2 तरह से सुविधायें प्रदान करेगी। आम लोगों के लिए सामान्य Navigation & Location Services जबकि दूसरी प्रतिबंधित या सीमित सेवा जो मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी।
इसके संचालन व रख-रखाव के लिये भारत में लगभग 18 केन्द्र बनाये गये हैं। नाविक (NavIC) तंत्र द्वारा मूल सेवा क्षेत्र में 20 मीटर से भी बेहतर स्थिति परिशुद्धता अपेक्षित की जा रही है। स्वदेशी नौवहन तकनीक का इस्तेमाल निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाएगा।
- स्थलीय, हवाई, महासागरीय दिशानिर्देशन
- आपदा प्रबंधन
- राष्ट्रीय सुरक्षा
- सरकारी योजनाओं की रियल टाइम मैपिंग
- वाहन ट्रैकिंग तथा फ्लीट प्रबंधन
- मोबाइल फोन के साथ समाकलन
- मानचित्रण तथा भूगणतीय आंकड़ा अर्जन
- ट्रैकिंग तथा पर्यटन से जुड़े लोगों के लिए स्थलीय दिशानिर्देशन की सुविधा
- चालकों के लिए दृश्य व श्रव्य दिशानिर्देशन की सुविधा
स्वदेशी नेविगेशन तकनीक के फायदे
स्वदेशी नौवहन तकनीक के होने से हमारी अमेरिका के GPS पर निर्भरता कम होगी, जिसका जिक्र हम ऊपर भी कर चुके हैं इसके साथ ही किसी सैन्य तथा सरकारी क्रियाकलापों के लिए भी भारत को किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। डेटा की सुरक्षा वर्तमान में एक अहम मुद्दा है, अतः स्वदेशी तकनीक के इस्तेमाल से देश वासियों महत्वपूर्ण डेटा भी सुरक्षित रहेगा।
स्वदेशी तकनीक की राह में चुनौतियाँ
हालाँकि नाविक वर्तमान में पूर्ण रूप से कार्यरत है, किन्तु इसके बावजूद अधिकांश लोग नेविगेशन के लिए जीपीएस का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण नाविक समर्थित हार्डवेयर का उपलब्ध न होना है। स्वदेशी नौवहन प्रणाली NavIC विकसित होने के साथ-साथ हमें ऐसे उपकरणों की भी आवश्यकता है, जो नाविक समर्थित हों।
साल 2019 में मोबाइल प्रॉसेसर बनाने वाली कंपनी Qualcomm तथा इसरो (ISRO) के मध्य NavIC समर्थित प्रॉसेसर बनाने पर समझौता किया गया है, जिसके बाद अब Qualcomm द्वारा लॉन्च किए जाने वाले प्रॉसेसर NavIC समर्थित होंगे। इस प्रॉसेसर युक्त स्मार्टफोन यूजर NavIC सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं।
वर्तमान में Snapdragon 720G, 662 तथा 460 प्रॉसेसर NavIC सपोर्टेड हैं। इसके साथ ही Apple द्वारा हाल ही में लॉन्च किये गए आईफोन 15 के यूजर्स भी अब NavIC का इस्तेमाल कर सकेंगे।
GPS Vs NavIC: कौन है बेहतर?
अमेरिकी जीपीएस जैसा की नाम से स्पष्ट है एक वैश्विक नेविगेशन प्रणाली है, जो पृथ्वी की कक्षाओं में मौजूद 32 उपग्रहों की सहायता से पृथ्वी के चप्पे चप्पे पर नज़र रख सकती है। वहीं भारत द्वारा विकसित नाविक (NavIC) एक क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली (RPS) है, जिसमें 7 उपग्रहों का इस्तेमाल किया गया है और जो केवल भारत तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों को ही कवर करने में सक्षम हैं। अतः रेंज के मामले में जीपीएस नाविक से बेहतर है।
किन्तु कुछ मायनों में भारत द्वारा निर्मित नाविक को GPS से बेहतर माना जा रहा है। इसका कारण यह है कि नाविक S और L-बैंड की दोहरी आवृत्ति पर कार्य करता है, जबकि जीपीएस केवल L-बैंड पर ही काम करता है। सिंगल बैंड होने के चलते वायुमंडल में किसी अवरोध की स्थिति में जीपीएस के प्रभावित होने की संभावना रहती है, जबकि नाविक में दोहरी आवृत्ति (S और L बैंड) के बैंड होने के कारण यह जीपीएस से अधिक कार्यकुशल है।
गौरतलब है कि बैंड से आशय तरंगों की आवृत्ती से है। L-बैंड 15-30 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 1-2 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर काम करते हैं। L-बैंड का उपयोग ज्यादातर स्पष्ट वायु में किया जाता है। जबकि S-बैंड 8-15 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 2-4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर काम करते हैं। अधिक आवृत्ति के कारण, S-बैंड की तरंगें आसानी से प्रभावित नहीं होती हैं।
अपनी नेविगेशन प्रणाली वाले अन्य देश
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने भारत द्वारा निर्मित NavIC को अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा पाते हुए इसे एक क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम (RPS) के रूप में मान्यता प्रदान की है। इसी के साथ भारत इस तकनीक से लैस विश्व में चौथा देश बन गया है। भारत के अतिरिक्त वर्तमान में केवल 3 देशों तथा युरोपियन यूनियन के पास अपनी नेविगेशन तकनीक है। हालाँकि इनमें वैश्विक नौवहन प्रणालियाँ केवल अमेरिकी GPS तथा रूसी GLONASS ही हैं।
- अमेरिका : GPS
- रूस : GLONASS
- चीन : BEIDOU
- युरोपियन यूनियन : GALILEO
- भारत : NavIC
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