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द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व का विश्व
हमने प्रथम विश्वयुद्ध वाले लेख में बताया था, किस तरह उस युद्ध में जर्मनी को हार का सामना करना पड़ा एवं मित्र राष्ट्रों द्वारा किस प्रकार 1919 में अपमानजनक सन्धियाँ जर्मनी पर थोप दी गयी। उस वक़्त जर्मनी की स्थिति कमज़ोर थी अतः उसके पास मित्र राष्ट्रों द्वारा आरोपित संधि शर्तों को मानने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं था। किंतु वक्त बीतने के साथ-साथ जर्मनी ने संधि की शर्तों का धीरे-धीरे उल्लंघन करना शुरू कर दिया।
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1933 में जर्मन राजनीति में हिटलर का प्रवेश हुआ, तत्पश्चात उसकी आक्रामकता के कारण संधि की शर्तों को तोड़ना जर्मनी के लिए मामूली बात हो गयी। हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी ने संधि की शर्तों के विपरीत सैन्य शक्ति बढ़ाने और जर्मनी को मजबूत करने का कार्य किया। इस प्रकार जर्मनी अपनी स्थिति मजबूत करने में लगा रहा तथा अन्य देशों ने हिटलर का विरोध करने की हिम्मत नहीं दिखाई, जिसका नतीजा द्वितीय विश्वयुद्ध (Second World War in Hindi) के रूप में सबके सामने आया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण (Second World War in Hindi)
द्वितीय विश्वयुद्ध का मुख्य कारण वर्साय संधि के माध्यम से जर्मनी पर थोपी गयी शर्तें ही थीं, किन्तु वक्त के साथ हिटलर की बढ़ती आक्रामकता ने इस आग में घी का काम किया। युद्ध के कुछ अन्य कारण भी इन्हीं संधियों द्वारा जनित थे। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्न हैं
(A) जर्मनी हार एवं अपमान की आग में सुलग रहा था और इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए हिटलर जर्मन राजनीति में आया, उसने जर्मनी को अपमान का बदला लेने के लिए तैयार किया तथा जल्द ही सत्ता अपने हाथों में ले ली। इसके बाद जर्मनी पेरिस शांति सम्मेलन की सभी शर्तों को तोड़ता हुआ अपनी स्थिति को मजबूत करने लगा और धीरे-धीरे संधि के तहत अपने हारे हुए क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने लगा। 1935 में उसने राइनलैंड, जिसे संधि के तहत राष्ट्रसंघ के नियंत्रण में रखा गया था में अपनी सेना स्थापित कर वहाँ पुनः अधिकार कर लिया तथा किलेबन्दी शुरू की।
(B) हाँलाकि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई थी, किन्तु यह अपनी भूमिका निभाने में पूर्णतः विफल रहा और इस विफलता के चलते एक बार पुनः विश्वयुद्ध (Second World War in Hindi) की स्थिति बनी। राष्ट्रसंघ की विफलता के निम्न कारण थे
- इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला देश अमेरिका स्वयं इसका सदस्य नहीं बना था।
- बड़ी शक्तियाँ इस संगठन का मनमाने ढंग से इस्तेमाल करती थी
- राष्ट्रसंघ के पास अपनी कोई सेना नहीं थी जो उसके फैसलों को लागू करा सके अतः राष्ट्रसंघ के आदेशों का पालन करना कोई देश आवश्यक नहीं समझता था।
- अपनी मनमानी करने के लिए देश राष्ट्रसंघ से खुद को अलग कर लेते थे इस स्थिति में राष्ट्रसंघ कुछ नहीं कर सकता था।
युद्ध की शुरुआत (Starting of Second World War in Hindi)
जर्मनी की बढ़ती सैन्य शक्ति एवं अन्य देशों के इसे नजरअंदाज करने के चलते जर्मनी को मनमानी करने की छूट मिल गयी। हालाँकि जर्मनी की आक्रामकता को अनदेखा करने के पीछे साम्राज्यवादी देशों का भी एक हित छिपा था, इस दौर में साम्यवाद का उदय हो रहा था, जिसका रूसी क्रांति एक बड़ा उदाहरण थी, वहीं दूसरी ओर जर्मनी एवं इटली क्रमशः हिटलर और मुसोलिनी जैसे फासीवादी नेताओं अथवा तानाशाहों के हाथों में थे।
अतः ब्रिटेन तथा फ्रांस जैसे साम्राज्यवादी देशों ने हिटलर की आक्रामकता का विरोध यह सोचकर नहीं किया कि फासीवाद एवं साम्यवाद एक दूसरे से लड़ कर खत्म हो जाएंगे तथा इसका फायदा उनके जैसे साम्राज्यवादी देशों को मिलेगा। मित्र राष्ट्रों की अनदेखी, अपना खोया आत्मसम्मान पुनः प्राप्त करने तथा विश्व में महाशक्ति के रूप उभरने के जुनून ने जर्मनी का रुख और आक्रामक बना दिया।
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राइनलैंड पर अधिकार करने के बाद के घटनाक्रम में 1938 में जर्मनी ने चेकोस्लोवाकिया से जर्मन अल्पसंख्यक समुदाय को स्वतंत्र करने के बहाने लगभग सम्पूर्ण चेकोस्लोवाकिया को अपने अधिकार में ले लिया। अगस्त 1939 में हिटलर ने रूस के साथ एक गुप्त संधि की, जिसके तहत पोलैंड, जिसकी स्थापना पेरिस शांति सम्मेलन में जर्मनी को विभाजित कर की गयी थी उसे युद्ध द्वारा जीतने तथा आपस में बाँट लेने की बात कही गयी।
इसी के चलते 1 सितंबर 1939 को जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण कर दिया गया। पोलैंड के संबंध में जब संधि का उल्लंघन हुआ तो मित्र राष्ट्रों से यह बर्दाश्त नहीं हो पाया, और अंततः 3 सितंबर को ब्रिटेन तथा फ्रांस द्वारा जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी गयी तथा विश्वयुद्ध के दूसरे चरण अथवा द्वितीय विश्वयुद्ध (Second World War in Hindi) की शुरूआत हुई।
युद्ध के मुख्य घटनाक्रम (Main events of Second World War in Hindi)
नॉर्वे, डेनमार्क एवं हॉलैंड, बेल्जियम, और लक्जेमबर्ग पर आक्रमण
जर्मनी ने 1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर आक्रमण किया गया, जिसे पोलैंड अधिक समय तक नहीं रोक सका और उसने 27 सितंबर को जर्मन सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया गया। संधि के अनुसार रूस और जर्मनी ने इसे आपस में बाँट लिया। जर्मनी का उद्देश्य फ्रांस तथा ब्रिटेन से अपने अपमान का बदला लेना था और इन देशों से युद्ध करने के लिए जर्मनी को अत्यधिक संसाधनों की आवश्यकता महसूस हुई।
इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जर्मनी ने 1940 में तठस्थ देश नॉर्वे तथा डेनमार्क पर आक्रमण किया और वहाँ अपनी सत्ता काबिज़ की। इसके उपरांत जर्मनी ने ब्रिटेन तथा फ्रांस की सहायता करने का आरोप लगाते हुए तीन अन्य तठस्थ देशों हॉलैंड, बेल्जियम, तथा लक्जेमबर्ग पर आक्रमण कर उन्हें भी जीत लिया।
फ्रांस पर आक्रमण
अपनी मजबूत स्थिति को देखते हुए जर्मनी ने इटली के साथ मिलकर जून 1940 में फ्रांस पर आक्रमण कर दिया दोनों देशों की संयुक्त सेना को देखते हुए फ्रांस ने आत्मसमर्पण कर दिया। फ्रांस के आत्मसमर्पण से जर्मनी की स्थिति और मजबूत हुई। जर्मनी ने फ्रांसीसी सेनाओं का निशस्त्रीकरण कर युद्ध सामग्री पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। फ्रांस के समर्पण के बाद जर्मनी ने ब्रिटेन पर चढ़ाई करने की सोची तत्पश्चात जुलाई 1940 में जर्मनी ने ब्रिटेन पर आक्रमण कर दिया। हालाँकि ब्रिटेन के प्रबल विरोध के चलते जर्मनी ने ब्रिटेन से पहले पूर्वी यूरोप पर नियंत्रण प्राप्त करना उचित समझा।
रूस पर आक्रमण
जैसा कि हमनें ऊपर चर्चा की जर्मनी और रूस के मध्य पोलैंड के संबंध में हुई संधि के चलते उनमें नज़दीकी बड़ी थी, परंतु हिटलर की मंशा रूस पर भी आक्रमण करने की थी इसका कारण था रूस में सत्तारूढ़ साम्यवादी सरकार, जबकि हिटलर एक फासीवादी नेता था। इसी के चलते जर्मनी ने इटली तथा जापान के साथ एक संधि की इस संधि के तहत इन तीनों देशों ने अपने अपने क्षेत्रों में एक दूसरे का प्रभुत्व स्वीकार करने का निर्णय लिया।
रूस हिटलर की इस मंशा को भली भाँति जनता था अतः उसने भी जापान से एक अनाक्रमण संधि कर ली। संशय की स्थिति में जर्मनी ने रूस पर आक्रमण कर दिया और इटली, चेकोस्लोवाकिया आदि देशों ने जर्मनी का साथ दिया। रूस ने इस आक्रमण का दृढ़ता से सामना किया। वहीं दूसरी ओर पूर्वी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में जापान ने अमेरिकी नौ सेना अड्डे (पर्ल हार्बर) पर आक्रमण कर कई अमेरीकी युद्ध पोतों को नष्ट कर दिया जिससे इन दोनों देशों के मध्य भी युद्ध की शुरुआत हो गयी।
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जब जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया तो स्टालिन के कहने पर मित्र राष्ट्रों ने पश्चिमी भाग से जर्मनी पर हमला कर दिया। गौरतलब है कि अब तक ब्रिटेन तथा अमेरिका के संयुक्त अभियान द्वारा फ्रांस से जर्मन सैनिकों को खदेड़ दिया गया था। पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों छोरों से घिर जाने के कारण अन्ततः जर्मनी ने 2 मई 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया।
जर्मनी के समर्पण के बाद 6 अगस्त और 9 अगस्त को अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों हिरोशिमा व नागासाकी में परमाणु बम गिराए गए। इस घटना के कारण जापान भी आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार हो गया और इसी के साथ 2 सितंबर 1945 को जापान के आत्मसमर्पण के बाद इस युद्ध का अंत हो गया।
युद्ध के परिणाम
- युद्ध में यूरोपीय देशों की अत्यधिक क्षति हुई तथा वे अमेरिका द्वारा दिये कर्ज़ के बोझ तले दब गए। जिस कारण विश्व में यूरोप का वर्चस्व पहले जितना नहीं रह।
- इस युद्ध में पहली बार परमाणु बम का इस्तेमाल किया गया जिससे जापान बुरी तरह तबाह हुआ। इसी कारण अमेरिका विश्व मानचित्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरा।
- चूँकि युद्ध मे सोवियत संघ की यूरोपीय देशों की तुलना में कम क्षति हुई थी अतः युद्ध के पश्चात सोवियत संघ ने योजनागत तरीके से विकास किया तथा वह भी एक महाशक्ति बनकर उभरा। इस प्रकार यूरोप के स्थान पर विश्व में अमेरिका और सोवियत संघ शक्तिशाली राष्ट्रों के रूप में उभरे।
भारत की भूमिका
युद्ध में भारत की भूमिका की बात करें तो भारत ने पुनः स्वाधीनता की उम्मीद में ब्रिटेन की तरफ से युद्ध में भाग लिया। युद्ध में लगभग 25 लाख भारतीय जवानों ने विश्व के अलग अलग हिस्सों यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया में जर्मनी, इटली तथा जापानी सेनाओं के खिलाफ़ युद्ध में भाग लिया, जिनमें से लगभग 87,000 जवान शहीद हुए तथा कई जवान घायल और बंदी बना लिए गए।
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