क्या आप भी हो रहें हैं साइबर बुलिंग के शिकार तो ऐसे लें कानून की मदद, जानें क्या हैं प्रावधान

Cyberbullying क्या है?

साइबर बुलिंग (Cyberbullying) से आशय किसी व्यक्ति को इंटरनेट के माध्यम से प्रताड़ित करना है। यह प्रताड़ना किसी को धमकाने, टॉर्चर करने, अश्लील सामग्री जैसे टैक्स्ट, फ़ोटो, वीडियो अथवा ऑडिओ भेजने, किसी व्यक्ति के खिलाफ़ झूठी अफवाह फैलाने या उसे आर्थिक अथवा सामाजिक किसी भी तरीके से नुकसान पहुँचाने के रूप में हो सकती है।

वर्तमान दौर में सोशल मीडिया जैसे फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि के बिना जीवन की कल्पना करना बेहद मुश्किल है। इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से बाहर किसी व्यक्ति के सामाजिक होने पर भी संदेह किया जाता है। हालाँकि इनके अपने फायदे भी हैं लेकिन इनका एक सही समझ के साथ इस्तेमाल न करना अधिकांश यूजर्स खासकर किशोरों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है।

हाल ही में हुए एक सर्वे में पाया गया कि, तकरीबन 70 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों को कुछ नया सीखने तथा उनके बच्चे दुनियाँ के साथ कदम मिल कर चल सकें इस उम्मीद में इंटरनेट एवं सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं, जबकि इनमें से 58 फीसदी बच्चे इंटरनेट पर उनके द्वारा की गई प्रत्येक गतिविधि को अपने अभिभावकों से छिपाते हैं।

कितनी खतरनाक है Cyberbullying?

साइबर बुलिंग किसी भी इंसान के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है और जब बात किशोरों या युवाओं की हो तो उन पर इसका गहरा असर पड़ता है। ऐसे कई शोध भी सामने आए हैं, जिनमें बताया गया है कि साइबर बुलिंग का शिकार होने वाले युवाओं खासकर किशोरों में खुद को नुकसान पहुँचाने या आत्महत्या करने की प्रवृत्ति विकसित होने की अधिक संभावना बनी रहती है, हालाँकि इसका प्रभाव बुलिंग की प्रकृति पर भी निर्भर करता है।

साइबर बुलिंग से बचने के कानूनी उपाय

देश में साइबर बुलिंग के संबंध में कोई डेडीकेटेड कानून नहीं है, किन्तु ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता 1860, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 तथा सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) कानून 2008, कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून के साथ-साथ आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी कार्यवाही की जा सकती है। आइए इन कानूनों में मौजूद कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों को देखते हैं।

पहचान चोरी करना अथवा गोपनीयता भंग करना

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में किसी व्यक्ति की नकली प्रोफ़ाइल बनाकर उससे आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करना साइबर बुलिंग का एक आम तरीका है। किसी व्यक्ति की पहचान चोरी करने की स्थिति में सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43, धारा 66(C), 66(E) भारतीय दंड संहिता की धारा 419 के तहत कार्यवाही की जा सकती है, जिसके लिए 3 साल तक की जेल तथा 1 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है।

यौन उत्पीड़न एवं पोर्नोग्राफ़ी

पोर्नोग्राफ़ी, महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न भी साइबर बुलिंग का एक अन्य तरीका है। इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 तथा 67, दंड संहिता की धारा 292, 293, 294, 500, और 509 के तहत कार्यवाही की जा सकती है, जिसके अनुसार जुर्म की गंभीरता को देखते हुए 5 साल तक की सजा अथवा 10 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

साइबर-स्टॉकिंग

IPC की धारा 354D भौतिक और साइबर दोनों प्रकार से पीछा करने (Stalking) का वर्णन और इसके लिए दंड देता है। यदि किसी महिला पर इलेक्ट्रॉनिक संचार, इंटरनेट, या ई-मेल के माध्यम से निगरानी की जा रही है या किसी व्यक्ति द्वारा उसकी इच्छा के बावजूद बात करने या संपर्क करने के लिए परेशान किया जा रहा है, तो यह साइबर-स्टॉकिंग की श्रेणी में आता है। इसके लिए पहली बार 3 साल और दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 5 साल तक के कारावास का प्रावधान है।

किसी व्यक्ति को धमकाना

भारतीय दंड संहिता की धारा 506 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य को जान से मारने या आग से किसी संपत्ति को नष्ट करने की धमकी देता है अथवा इस प्रकार की कोई भी धमकी देता है, जिस अपराध के लिए 7 वर्ष तक की सजा है तब आरोपी को 7 वर्ष तक का कारावास हो सकता है।

ब्लैकमेलिंग

ब्लैकमेलिंग आपराधिक धमकी का एक अन्य रूप है, जिसे भारतीय दंड संहिता की धारा 503 में परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर, रेप्यूटेशन या सम्पत्ति को, अथवा किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर, रेप्यूटेशन या सम्पत्ति को, जिससे कि वह व्यक्ति हितबद्ध है किसी भी प्रकार से नुकसान पहुँचाने की धमकी देता है, उसे 2 साल तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

सार-संक्षेप

टेक्नोलॉजी हालिया समय में हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है और इसके बगैर जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। किसी भी टेक्नोलॉजी के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं ,किन्तु इसके नुकसानों से बचते हुए केवल सकारात्मक रूप से इसे अपनाने की जरूरत है, जिसमें टेक्नोलॉजी के प्रति जागरूकता, जिम्मेदारी इत्यादि मुख्य रूप से शामिल हैं।

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