ताजमहल का इतिहास एवं इसकी विशेषताएं (History of Taj Mahal in Hindi)

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मध्यकालीन भारत में निर्मित वास्तुकला के नायाब नमूनों में एक ताजमहल सबसे अनूठा है। मोहब्बत की निशानी समझी जाने वाली यह इमारत पूरी दुनियां में अपनी सुंदरता के लिए मशहूर है, जिसका देश विदेश के तकरीबन 70 से 80 लाख सैलानी प्रतिवर्ष दीदार करने आते हैं। ताजमहल (History of Taj Mahal in Hindi) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में यमुना नदी के तट पर मौजूद है, इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की याद में करवाया।

वास्तुकला में भारत की समृद्धि को प्रदर्शित करती यह खूबसूरत इमारत वर्ष 1983 से यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में शामिल है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2007 में इसे विश्व के सात नए अजूबों की श्रेणी में भी पहला स्थान दिया गया है। नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विभिन्न विषयों से संबंधित महत्वपूर्ण तथा रोचक जानकारी आप तक आसान शब्दों में साझा करते हैं। आज इस लेख में हम ऐतिहासिक महत्व की इस धरोहर तथा इसके इतिहास को विस्तार से समझेंगे।

ताजमहल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 1632 में अपनी बेगम मुमताज़ महल के देहांत के बाद शुरू किया, जो 1653 में पूरा हुआ। यह इमारत मुमताज़ महल का मकबरा है। इतिहासकार मानते हैं कि, मकबरे का निर्माण 1643 में पूर्ण हो चुका था, जबकि महल के अन्य कार्य अगले दस वर्षों तक जारी रहे और अंततः एक बेहद खूबसूरत इमारत का निर्माण हुआ। माना जाता है कि, ताजमहल परिसर 1653 में लगभग 32 मिलियन रूपये की अनुमानित लागत से पूरी तरह निर्मित हुआ था, जिसकी वर्तमान कीमत लगभग 70 बिलियन रुपये (यूएस $956 मिलियन) होगी।

शाहजहाँ के बारे में

भारत में मुगलों का आगमन 1526 ईस्वी में पानीपत के प्रथम युद्ध जो बाबर एवं इब्राहीम लोदी के मध्य लड़ा गया से हुई। शाहजहाँ मुगल साम्राज्य का ही पाँचवां शासक था। इसके पूर्ववर्ती शासकों में शाहजहाँ के पिता जहाँगीर, अकबर, हुमायूँ तथा बाबर शामिल थे। शाहजहाँ का जन्म सन 1592 में लाहौर में हुआ, उसके बचपन का नाम खुर्रम था। उसकी माँ जोधपुर के शासक उदयसिंह की पुत्री जगत गुसाई थी, जिसका बाद में नाम जोधाबाई हुआ।

शाहजहाँ की कला, साहित्य खासकर वास्तुकला में बेहद रुचि थी, यही कारण है कि, शाहजहाँ के शासन काल में वास्तुकला अपने चरमोत्कर्ष पर रही। शाहजहाँ ने 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ की पुत्री ‘आरज़ुमन्द बानो‘ से 1612 ईस्वी में निकाह किया, जो बाद में मुमताज़ महल के नाम से जानी गई। नूरजहाँ मुमताज़ की बुआ थी, जिसकी शादी शाहजहाँ के पिता जहाँगीर से हुई थी।

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शाहजहाँ तथा मुमताज़ की सगाई शादी से पाँच वर्ष पूर्व हो चुकी थी और इन पाँच वर्षों के दौरान शाहजहाँ को राजनैतिक कारणों के चलते फारस की राजकुमारी क्वानदरी बेगम से भी शादी करनी पड़ी। किन्तु वह मुमताज़ को ही सर्वाधिक प्रेम करता था। मुमताज़ महल शाहजहाँ के राजकीय कार्यों में भी सहायता करती थी। शाहजहाँ हमेशा मुमताज़ के साथ ही रहते थे। किसी दौरे या जंग में भी मुमताज़ महल शाहजहाँ के साथ होती थी। शाहजहाँ एवं मुमताज़ के 13 बच्चे हुए तथा सन 1631 में अपने 14 वें बच्चे के जन्म के दौरान अत्यधिक प्रसव पीड़ा के चलते मुमताज़ का देहांत हो गया। मुमताज़ की मौत से शाहजहाँ अत्यधिक दुःखी हुआ।

शाहजहाँ के जीवन काल के आखिरी समय में उसके बेटों के मध्य उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हुआ, उसने अपने चार पुत्रों में दारा शिकोह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया किन्तु उसके अन्य पुत्र इससे सहमत न हुए। उत्तराधिकार के लिए पुत्रों में युद्ध हुए और औरंगजेब उत्तराधिकार प्राप्त करने में सफल हुआ। औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को आगरा के क़िले के शाहबुर्ज में बंदी बनाकर रखा तथा उसकी मृत्यु के पश्चात उसे भी मुमताज़ महल की कब्र के बगल में दफ़ना दिया गया।

ताज महल की संरचना

ताजमहल के बाहरी संरचना की बात करें तो यह तकरीबन 42 एकड़ के परिसर में फैला है जिसका मुख्य आकर्षण मुमताज़ महल का मकबरा या मुख्य इमारत है। मुख्य इमारत के अतिरिक्त परिसर का प्रवेश द्वार, अन्य इमारतें (ताजमहल मस्जिद, अतिथि गृह आदि) चार बाग, मीनारें, छतरियाँ सभी मिलकर इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं।

मुख्य इमारत / मकबरा

ताजमहल का मुख्य आकर्षण इसका मकबरा (History of Taj Mahal in Hindi) है जो एक 23 फिट ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है। यह एक सममितीय इमारत है जिसमें एक मेहराब रूपी मुख्य द्वार है। मुख्य मेहराब के ऊपर एक विशाल गुंबद मौजूद है। मुख्य मेहराब के दोनों ओर एक के ऊपर दूसरा शैली में दो-दो अतिरिक्त मेहराब निर्मित हैं। इसी शैली में कक्ष के चारों किनारों पर दो-दो मेहराब (एक के ऊपर दूसरा) बने हैं जो इस इमारत को एक समरूपता प्रदान करते हैं।

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इसके चारों कोनों पर एक-एक मीनार बनाई गई है, जो मुख्य ढाँचे को स्थिरता प्रदान करने का कार्य करती हैं। सभी मीनारें बाहर की ओर झुकी हुई हैं जिस कारण ये देखने पर सीधी दिखाई पड़ती हैं। इसके अलावा इन मीनारों का बाहर की ओर झुके होने का एक कारण यह भी है कि किसी आपदा जैसे भूकंप आदि की स्थिति में ये मीनारें मुख्य ढांचे में गिरकर उसे क्षतिग्रस्त न कर सकें।

प्रवेश द्वार

ताजमहल का मुख्य प्रवेश द्वार लगभग 93 फीट ऊँचा है। यह द्वार भी बारीक जड़ाई एवं नक्काशी का उत्कृष्ट नमूना है। गेट पर मौजूद लाल बलुआ पत्थर की सतह पर सफेद संगमरमर और कीमती पत्थरों की जड़ाई का कार्य बारीकी से किया गया है। द्वार के शीर्ष पर दो ऊँचे स्तंभों के बीच ग्यारह गुंबद हैं ताजमहल के प्रवेश द्वारा से ही ताजमहल परिसर के निर्माण में लगे वर्षों की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है।

दरवाजे के बाहरी भाग में कुरान की कुछ आयतें सफेद संगमरमर की सतह पर अच्छी तरह से अंकित हैं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार आगंतुकों को प्रकाशीय भ्रम भी प्रदान करता है, जैसे ही कोई व्यक्ति मुख्य द्वार से ताज (History of Taj Mahal in Hindi) के पास पहुंचता है मकबरा व्यक्ति से दूर जाता हुआ प्रतीत होता है जबकि मुख्य द्वार से बाहर की तरफ आने पर मकबरा बड़ा होता जाता है।

History of Taj Mahal in Hindi
ताजमहल का प्रवेश द्वार

मस्जिद एवं अतिथि गृह

परिसर में मकबरे के पश्चिम में मौजूद ताज मस्जिद इस परिसर की भव्यता को बढ़ाने का कार्य करती है। मस्जिद का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है जिसमें कुछ स्थानों पर सफेद आयताकार संगमरमर की जड़ाई की गई है। परिसर में मस्जिद का निर्माण मुस्लिम मान्यता के अनुसार किया गया है जिसके तहत प्रत्येक मकबरे के पास प्रार्थना स्थल होना अनिवार्य था।

History of Taj Mahal in Hindi
ताजमहल मस्जिद

मस्जिद जैसी एक अन्य इमारत का निर्माण मस्जिद के ठीक सामने की तरफ अथवा मकबरे (History of Taj Mahal in Hindi) के पूर्व की ओर किया गया है जो एक अतिथि गृह या मेहमान खाना है। ये दोनों लगभग एक समान दिखने वाली इमारतें पूरे ताजमहल परिसर की वास्तुकला को पूर्ण सममित संतुलन प्रदान करती हैं।

अतिथि गृह को “नक्कर खाना” या “जवाब” के रूप में भी जाना जाता है। इसे मुख्यतः मुमताज महल की मृत्यु की वर्षगांठ पर मेहमानों के लिए एक विश्राम गृह के रूप में उपयोग किया जाता था। यह उन लोगों के लिए एक सभा स्थल के रूप में भी काम करता था जो मस्जिद में या सीधे मृतक की कब्र पर प्रार्थना करने आते थे।

ताजमहल का निर्माण

अपनी खूबसूरती से सबको मंत्रमुग्ध कर देने वाली इस इमारत का निर्माण 1632 से शुरू हुआ तथा लगभग 22 वर्षों के समय के बाद 1653 में यह बनकर तैयार हो पाया। 22 वर्षों तक चले इस निर्माण कार्य में पूरे मध्य एशिया और उसके बाहर के 20 हज़ार से अधिक मज़दूरों तथा कारीगरों ने काम किया। ताजमहल को मुगल वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है, जो भारतीय, फारसी और इस्लामी शैलियों का मिश्रण है।

कहा जाता है कि निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए 1,000 से अधिक हाथियों का उपयोग किया गया था। सफेद संगमरमर में जड़े कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों में चीन से जेड और क्रिस्टल, तिब्बत से फ़िरोज़ा, अफगानिस्तान से लैपिज़ लाजुली, श्रीलंका से नीलम और अरब से कार्नेलियन समेत कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमरमर में जड़ाए गए थे।

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इमारत को बनाने में मुख्य वास्तुकार की भूमिका में उस्ताद अहमद लाहौरी थे। इसके निर्माण में उज्बेकिस्तान के बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर, कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले कारीगरों समेत सत्ताईस कारीगर शामिल थे, जिन्होंने इस भव्य इमारत को बनाने एवं तराशने में अपना योगदान दिया। इन सभी कारीगरों के दिशानिर्देशन में तकरीबन 20 हज़ार से अधिक मज़दूरों ने कार्य किया।

ताजमहल को बनवाने में वास्तुशास्त्र का भी विशेष ध्यान रखा गया। इसे मुगलों की प्रमुख चार बाग शैली पर बनाया गया है जिसका उल्लेख मुगल बादशाह बाबर की जीवनी में भी मिलता है। देखने मे यह इमारत संगमरमर की बनी मालूम होती है किंतु इसका निर्माण ईंटों द्वारा किया गया है तथा इन ईंटों के बाहरी भाग में संगमरमर को लगाया गया है।

चार बाग शैली उद्यान या बगीचे का एक प्रकार है जिसमें किसी बाग को चार भागों में चार पैदल मार्गों या चार छोटे हिस्सों में बहने वाले पानी से विभाजित किया जाता है। इसकी कल्पना कुरान में वर्णित जन्नत के चार बागों के आधार पर की गई है। अपनी आत्मकथा बाबरनामा में बाबर ने औपचारिक बागों  की योजनाओं एवं उनके बनाने में अपनी रूचि का वर्णन किया है।चार समान हिस्सों में बटे होने के कारण ये चारबाग कहलाते  थे। ताजमहल समेत अधिकांश मुगलकालीन इमरते इसी शैली में बनाई गई हैं।

ताजमहल उस दौर में आधुनिक वास्तुकला का एक नायाब उदाहरण है। यमुना नदी के तट पर स्थित होने के कारण इतने विशाल इमारत की नींव रखना किसी चुनौती से कम नहीं थी। रेतीली तथा ढीली जमीन होने के चलते नींव के लिए खोदे गए गड्ढे बेहद कम समय मे पुनः भर जाते थे। इससे निपटने के लिए वास्तुकारों ने एक अनोखा तरीका अपनाया जिसका इस्तेमाल आज भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में किया जाता है। वास्तुकारों ने ठोस जमीन प्राप्त होने तक लगभग 15 से 20 फुट गहरे गड्ढे खोदे तथा इन गड्ढों को पत्थरों द्वारा भर दिया गया इस प्रकार भवन के प्रारंभिक चरण में एक मजबूत आधार का निर्माण हुआ।

ताजमहल पर समय का प्रभाव

सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में बना ताजमहल समय के प्रभाव से अछूता नहीं रहा है। सदियों तक ताजमहल की उपेक्षा की गई और उसे जीर्ण-शीर्ण होने दिया गया। 1857 के भारतीय विद्रोह के समय ब्रिटिश सैनिकों और सरकारी अधिकारियों ने इसकी दीवारों से कई कीमती पत्थरों तथा रत्नों को निकाल लिया। इसके अतिरिक्त मौसम, प्रदूषण तथा अत्यधिक आवाजाही से भी इसकी सुंदरता प्रभावित हुई है। प्रदूषण आदि के चलते हुई अम्ल वर्षा के कारण मकबरे का संगमरमर पीला पड़ने लगा है।

20वीं शताब्दी की शुरुआत से भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन के निर्देशन में इमारत के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया तथा देश की आजादी के बाद विभिन्न सरकारों ने भी इसके संरक्षण की तरफ ध्यान दिया है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए ताजमहल के संगमरमर के रंग को संरक्षित करने के लिए तुरंत कदम उठाने की बात काही। यह समस्या एक कीड़े के हरे पदार्थ का स्राव करने के कारण हुई है, जो यमुना नदी के शैवाल द्वारा पनप रहे हैं। आसपास के शहरों में लगी फैक्ट्रियाँ, यमुना का प्रदूषण आदि इसकी खूबसूरती को कम कर रहे हैं जिनपर सरकारों को ध्यान देने की आवश्यकता है।

शाहजहाँ द्वारा निर्मित कुछ अन्य इमारतें

हालांकि सम्पूर्ण मुगल काल अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता है किन्तु वास्तुकला के प्रति अपनी रुचि के लिए शाहजहाँ पूरे मुगल वंश में अलग पहचान रखता था। इस मुगल बादशाह के युग को स्थापत्य कला का स्वर्णिम युग माना जाता है। शाहजहाँ ने अपने शासन के दौरान कई एतिहासिक महत्व की इमारतों का निर्माण किया जो भारत की समृद्ध स्थापत्य कला का परिचय देती हैं। शाहजहां द्वारा निर्मित कुछ अन्य प्रमुख इमारतों में दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद, आगरा किले का जीर्णोद्धार, आगरा मस्जिद, मोती मस्जिद, शालीमार बाग आदि शामिल हैं।

ताज को लेकर कहावतें

ताज महल को लेकर कई कहावतें भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि शाहजहाँ ने इस इमारत के निर्माण के बाद कारीगरों की उंगलियों को कटवा दिया था ताकि वे ऐसा नायाब नमूना फिर कहीं और न बना सकें। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि इस इमारत को शाहजहाँ द्वारा नहीं बनाया गया, लोग मानते हैं कि यह एक हिन्दू मंदिर था जिसे शाहजहाँ द्वारा मकबरे में परिवर्तित कर दिया गया। इतिहासकार पी एन ओक नें अपनी 1989 की एक किताब ताजमहल: द ट्रू स्टोरी में इस बात का उल्लेख किया है।

उनके अनुसार यह (History of Taj Mahal in Hindi) स्मारक भारत पर मुस्लिम आक्रमण के दशकों पहले 1155 में बनाया गया था, इसका नाम ताजमहल संस्कृत शब्द ‘तेजो महालय’ का बिगड़ा रूप है, जो एक शिव मंदिर को दर्शाता है। कुछ इतिहासकारों का मानना है की शाहजहाँ यमुना के दोनों किनारों पर एक एक ताजमहल बनवाना चाहता था, जिसमें दूसरा ताजमहल काले संगमरमर से निर्मित होता। चूँकि एक ताजमहल को बनने में अत्यधिक समय तथा धन लगा था ऐसी स्थिति में शाहजहाँ के लिए हूबहू एक दूसरा ताजमहल बनवाना असंभव हो गया।

कैसे पहुचें ताजमहल

आइए अब देखते हैं इस बेहद खूबसूरत इमारत तक किस प्रकार पहुँचा जा सकता है। यह उत्तरप्रदेश राज्य के अगर शहर में मौजूद है, यहाँ हवाई, रेल तथा सड़क तीनों मार्गों से पहुँच जा सकता है। ताजमहल (History of Taj Mahal in Hindi) से खेरिया अथवा आगरा हवाई अड्डे तक यात्रा करने में लगभग 12 मिनट लगते हैं। ताजमहल और हवाई अड्डे के बीच लगभग 10 किमी की दूरी है। आगरा को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली रेलगाड़ियों का भी एक अच्छा नेटवर्क है।

नजदीकी रेलवे स्टेशन आगरा छावनी है। दिल्ली के साथ आगरा को जोड़ने वाली मुख्य रेलगाड़ियां पैलेस ऑन व्हील्स, शताब्दी, राजधानी और ताज एक्सप्रेस हैं। वहीं सड़क परिवहन की बात करें तो आगरा से कई महत्वपूर्ण शहरों के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। नजदीकी बस अड्डा इदगाह और आईएसबीटी बस स्टैंड से दिल्ली, जयपुर, मथुरा, फतेहपुर-सीकरी आदि के लिए नियमित बसें चलती हैं।

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