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जानें कैसी है पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Internal Structure of the Earth in Hindi)

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नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों से महत्वपूर्ण तथा रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। आज इस लेख के माध्यम से हम बात करेंगे पृथ्वी तथा इसकी आंतरिक संरचना (Internal Structure of the Earth in Hindi) एवं बनावट के बारे में।

पृथ्वी की संरचना

हम सभी जानते हैं हमारी पृथ्वी गोल है। यह किसी फुटबॉल के समान है, जिसकी बाहरी सतह में हम रहते हैं। किंतु किसी फुटबॉल के समान पृथ्वी भीतर से खोखली नहीं है, बल्कि यह किसी प्याज की भाँति विभिन्न प्रकार की परतों से बनी हुई है। भूकंपीय तरंगों का प्रयोग कर पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में पता लगाया जाता है। ये तरंगे पृथ्वी के भीतर जाकर उसकी संरचना तथा बनावट के बारे में जानकारी देती हैं।

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पृथ्वी के भीतर इन तरंगों की गति के अनुसार किसी स्थान विशेष की भौतिक अवस्था जैसे ठोस या द्रव का भी पता लगाया जाता है। पृथ्वी की भीतरी संरचना को भौतिक गुणों के आधार पर तीन परतों में विभाजित किया गया है। इन परतों की गहराई में जानें पर तापमान, दबाव तथा घनत्व में वृद्धि होती है। तापमान का उदाहरण लें तो पृथ्वी के आंतरिक कोर में यह लगभग 5200 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। 

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  1. क्रस्ट
  2. मेन्टल
  3. कोर

भू-पर्पटी या क्रस्ट

क्रस्ट अथवा भू-पर्पटी पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है। यह परत मुख्यतः सिलिका, ऑक्सीजन, एल्युमिनियम तथा मैग्नीशियम आदि से बनी है। यह पृथ्वी की सबसे पतली परत है इस प्रकार यह पृथ्वी के कुल आयतन का मात्र 1 फीसदी हिस्सा ही है। क्रस्ट की मोटाई भू-भाग से लगभग 40 किलोमीटर तथा समुद्र तल से 7 किलोमीटर तक होती है। इसके अतिरिक्त पर्वत श्रंखलाओं में क्रस्ट की मोटाई तकरीबन 70 किलोमीटर तक होती है। महाद्वीपीय क्रस्ट मुख्यतः दो भागों में पाई जाती है ऊपरी भाग मुख्यतः सिलिका तथा एल्युमिनियम से बना होता है, जबकि निचला भाग सिलिका तथा मैग्नीशियम से बना होता है। 

मेंटल

क्रस्ट के बाद पृथ्वी की अगली परत को मेंटल कहा जाता है। इसकी गहराई लगभग 2900 किलोमीटर तक है। यह पुनः दो भागों ऊपरी मेंटल तथा निचले मेंटल के रूप में विभाजित होती है। इन दोनों की सीमा करीब 700 किलोमीटर पर स्थित है। ऊपरी मेंटल की रचना मुख्यतः अल्ट्राबेसिक चट्टानों से हुई है यह भाग एस्थेनोस्फेयर कहलाता है। इस परत में चट्टानें अर्ध तरल अवस्था में पाई जाती हैं। ये पिघली हुई चट्टानें, जिसे मैग्मा कहा जाता है, ज्वालामुखी फटने की स्थिति में लावा के रूप में पृथ्वी की सतह से बाहर आता है।

कोर

जैसा कि, नाम से स्पष्ट है यह हमारी पृथ्वी का सबसे अंदरूनी अथवा केंद्रीय भाग है। कोर की गहराई 2900 से 6370 किलोमीटर अर्थात पृथ्वी के केंद्र तक है तथा यह मुख्यतः लोहे, निकिल तथा अन्य धातुओं से मिलकर बना है। यह परत भी पुनः दो भागों बाहरी कोर तथा आंतरिक कोर में विभाजित होती है, जिनकी सीमा 5150 किलोमीटर पर है। बाहरी कोर का दाब तथा ताप मेंटल से कहीं अधिक होता है परिणामस्वरूप यहाँ स्थित धातुएं पिघल कर द्रव अवस्था में विद्यमान रहती हैं।

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आंतरिक कोर पृथ्वी का सबसे अंदरूनी भाग है। यहाँ ताप तथा दाब सबसे अधिक होता है। अत्यधिक दबाव होने के कारण यहाँ उपस्थित लोहा, निकिल, अन्य धातुएं द्रव अवस्था में परिवर्तित नहीं हो पाती अर्थात ठोस अवस्था में ही विद्यमान रहती हैं।

पृथ्वी की विभिन्न परतें

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