भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार (Fundamental Rights) तथा इनका इतिहास

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किसी भी समाज या राष्ट्र की प्रगति के लिए में एक शासन प्रणाली की आवश्यकता होती है और इस शासन प्रणाली के रूप में दुनियाँ की सबसे पुरानी व्यवस्था राजतन्त्र सदियों तक चलन में रहा है, जिसमें कोई एक व्यक्ति राष्ट्र पर शासन करता है तथा शासन की यह व्यवस्था वंश के आधार पर जारी रहती है। समय के साथ सभ्यता के विकास के चलते शासन की एक नई व्यवस्था विकसित हुई, जिसे लोकतंत्र अर्थात जनता के शासन के तौर पर जाना जाता है।

विभिन्न शासन प्रणालियों को देखें तो इनमें एक मुख्य अंतर नागरिकों को मिलने वाले अधिकार ही हैं। उदाहरण के तौर पर किसी लोकतान्त्रिक प्रणाली में नागरिकों को मिलने वाले अधिकार किसी राजतन्त्र के विपरीत कहीं अधिक हैं और इन अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार राष्ट्र के शासक का चुनाव है।

इन्हीं अधिकारों में नागरिकों को दिए जाने वाले मूल अधिकार भी शामिल हैं, जो किसी नागरिक को किसी राष्ट्र में एक गरिमामयी रूप से जीवन जीने का अधिकार देते हैं। आज इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे मूल अधिकार (Fundamental Rights in Hindi) क्या होते हैं, कैसे अन्य अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण हैं तथा भारतीय नागरिकों को कौन-कौन से मूल अधिकार प्राप्त हैं।

नागरिकों के मूल अधिकार (Fundamental Rights)

मूल अधिकार देश के नागरिकों को दिए जाने वाले वे मूलभूत अधिकार हैं, जिनका प्रयोग कर कोई व्यक्ति किसी देश में शांतिपूर्ण तथा गरिमामयी जीवन व्यतीत कर सकता है, राज्य (भारत का क्षेत्र) द्वारा उपलब्ध कराए गए अवसरों का सामान रूप लाभ ले सकता है एवं किसी भी कानून का सामान संरक्षण प्राप्त कर सकता है। हालाँकि नागरिकों को कई अन्य अधिकार भी प्रदान किये जाते हैं, किन्तु मूल अधिकार जैसा कि, नाम से स्पष्ट है कुछ ऐसे चुनिंदा अधिकार हैं, जिनको लागू कराने के लिए नागरिकों के पास सीधे न्यायपालिका के पास जाने का अधिकार होता है।

नागरिक अधिकारों का इतिहास

नागरिक अधिकारों के इतिहास को देखें तो, इसकी शुरुआत 1215 में ब्रिटेन में लागू हुए एक चार्टर से मानी जा सकती है। 1215 में तत्कालीन तानाशाह राजा जॉन से परेशान हो कर कुलीन वर्ग की निम्नतम श्रेणी (बैरन) ने राजा को बंदी बना लिया तथा राजा से कुछ लिखित आश्वासन अधिकारों के तौर पर प्राप्त किये, जिसे Magna Carta कहा जाता है।

इन अधिकारों में चर्च को राजशाही से स्वतंत्रता, अनावश्यक करों से सुरक्षा, सभी स्वतंत्र नागरिकों को न्याय एवं निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार इत्यादि शामिल थे। हालाँकि यह अधिक व्यापक नहीं था क्योंकि यह केवल स्वतंत्र नागरिकों पर लागू होता था, जबकि कई किसान तथा निचले वर्गों के लोग स्वतंत्र नहीं थे।

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समान रूप से नागरिक अधिकारों की शुरुआत सन 1688 में मानी जाती है, जब इंग्लैंड में हुई क्रांति के चलते तात्कालीन राजा जेम्स द्वितीय देश छोड़कर भाग गया तथा राजा की बेटी मैरी और उनके पति विलियम को उत्तराधिकारी घोषित किया गया, किन्तु इससे पहले कि, विलियम एवं मैरी को राजा और रानी घोषित किया जाए, उन्हें बिल ऑफ राइट्स (Bill of Rights) को स्वीकार करने के लिए सहमत होना पड़ा।

बिल ऑफ राइट्स एक ऐसा दस्तावेज था, जिसनें नागरिक अधिकारों के साथ-साथ शासन की लोकतान्त्रिक व्यवस्था अथवा संसदीय प्रणाली को मजबूत करने का काम किया। इस बिल नें राजशाही की शक्तियों को बहुत हद तक सीमित किया तथा ब्रिटिश नागरिकों के अधिकारों में वृद्धि करी। बिल के कुछ मुख्य प्रावधानों को देखें तो इसके तहत राजा द्वारा बिना संसद की स्वीकृति के किसी कर को लगाने पर रोक लगा दी गई, संसद में जन प्रतिनिधियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा शासन व्यवस्था में पार्लियामेंट की महत्वपूर्ण भूमिका तय की गई।

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25 सितंबर 1789 को संयुक्त राज्य अमेरिका की पहली कांग्रेस ने संविधान में 12 संशोधनों का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत अमेरिका ने भी अपने संविधान में नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार प्रदान किये। इन अधिकारों में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता, धार्मिक आचरण की स्वतंत्रता, विधि की समानता जैसे अधिकार शामिल थे।

इसी दौरान फ्रांस में हुई क्रांति के चलते वहाँ बनी संविधान सभा ने भी “प्राकृतिक अधिकारों” के सिद्धांत को मानते हुए नागरिकों के अधिकारों का एक घोषणा पत्र जारी किया, जो The Declaration of the Rights of Man and of the Citizen के नाम से जाना जाता है। उक्त तीनों घटनाक्रमों ने मानवाधिकारों की शुरुआत में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

भारत में मूल अधिकारों (Fundamental Rights) की शुरुआत

हालाँकि हमें विभिन्न मूल अधिकार संविधान लागू होने के बाद प्राप्त हुए, किन्तु इनकी मांग ब्रिटिश काल से ही की जाती रही। मौलिक अधिकारों के मांग की आवाज सर्वप्रथम 1895 में “भारत का संविधान विधेयक” अथवा “स्वराज विधेयक” के रूप में आई। यह भारतीय राष्ट्रवाद के उदय और स्वशासन के लिए भारतीयों द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता के अधिकार, मतदान के अधिकार आदि के बारे में बात करी गई।

आजादी के बाद संविधान निर्माताओं नें संविधान के निर्माण के लिए विभिन्न देशों के संविधानों से भी अलग-अलग तत्वों को लिया तथा उन्हें भारतीय परिप्रेक्ष्य में संपादित किया गया। इसी प्रकार भारतीय संविधान में मूल अधिकारों की अवधारणा अमेरिकी संविधान से ली गयी है, जिसकी शुरुआत को हमनें ऊपर जाना। संविधान में मूल अधिकारों की चर्चा भाग तीन में अनुच्छेद 12 से 32 तक की गयी है। आइये विस्तार से जानते हैं भारत का संविधान अपने नागरिकों को कौन-कौन से मूल अधिकार प्रदान करता है।

संविधान में उल्लेखित मूल अधिकार (Fundamental Rights in Hindi)

  • समानता का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
  • संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार
  • संविधानिक उपचारों का अधिकार

(1) समानता का अधिकार (Right to Equality)

अनुच्छेद 14 के अनुसार सभी नागरिकों को कानून का सामान संरक्षण प्राप्त होगा, अर्थात कोई भी व्यक्ति विधि या कानून से ऊपर नहीं है। सभी नागरिकों पर कानून समान रूप से लागू होगा।

अनुच्छेद 15 के अनुसार किसी नागरिक के साथ धर्म, मूल, वंश, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश करने से नहीं रोका जाएगा। इसके अलावा अनुच्छेद 15 के तहत राज्य महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष उपबंध कर सकता है, जिसे भेदभाव नहीं समझा जाएगा। महिलाओं के लिये आरक्षण अथवा बच्चों के लिये मुफ्त शिक्षा इसी उपबंध के तहत आते हैं।

अनुच्छेद 16 नागरिकों को लोक नियोजन या सरकारी नौकरियों के विषय में समानता का अधिकार देता है, किंतु इसके कुछ अपवाद भी हैं। सरकार किसी पद के लिए ऐसे समुदाय, जिनका उस पद में प्रतिनिधित्व नहीं है या अन्य रूप से किसी पिछड़े समुदाय के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है।

अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता (Untouchability) अथवा किसी को अछूत समझने की सोच का अंत करता है अतः किसी भी रूप में इसका आचरण निषिद्ध (Prohibited) है।

अनुच्छेद 18 उपाधियों का अंत करता है, इसके अनुसार-

(1) राज्य सेना या विद्या संबंधी सम्मान के अलावा कोई अन्य उपाधि प्रदान नहीं करेगा। (2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से उपाधि ग्रहण नहीं करेगा। (3) कोई विदेशी नागरिक भारत में किसी लाभ या विश्वास के किसी पद पर बने रहते हुए किसी अन्य विदेशी राज्य से, बिना राष्ट्रपति की सहमति के कोई उपाधि ग्रहण नहीं करेगा। (4) कोई भी भारतीय नागरिक राज्य के अधीन किसी लाभ या विश्वास के पद पर रहते हुए किसी विदेशी राज्य से किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना ग्रहण नहीं करेगा।

(2) स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)

स्वतंत्रता के अधिकारों की चर्चा अनुच्छेद 19 से 22 तक की गयी है, इसमें निम्नलिखित अधिकार नागरिकों को दिए गए हैं।

अनुच्छेद 19 नागरिकों को अभिव्यक्ति, देशभर में स्वतंत्र संचरण तथा रोजगार की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसके अनुसार-

(1) बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अर्थात किसी नगरिक को प्रत्येक रूप से अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार होगा। जैसे को मत देने का अधिकार, अपने विचारों को प्रेषित करने का अधिकार, व्यावसायिक विज्ञपनों का अधिकार, फोन टेपिंग के विरुद्ध अधिकार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस्तेमाल का अधिकार, सरकारी गतिविधियों की जानकारी का अधिकार, प्रदर्शन एवं विरोध का अधिकार इत्यादि।

(2) शांतिपूर्ण तथा निरायुध सम्मेलन करने की स्वतंत्रता, जिसमें शांतिपूर्ण प्रदर्शन, विरोध, सार्वजनिक बैठक आदि शामिल हैं। (3) कोई संघ या सहकारी समितियाँ बनाने की स्वतंत्रता अर्थात कोई भी व्यक्ति राजनीतिक दल, कोई कंपनी, सांझा फर्म, समितियाँ, क्लब, संगठन आदि बनाने का अधिकार रख सकेगा। (4) भारत के राज्य क्षेत्र में कहीं भी आ जा सकने की स्वतंत्रता। (5) भारत के किसी भी क्षेत्र में बस जाने की स्वतंत्रता। (6) कोई भी रोजगार, कारोबार करने की स्वतंत्रता

गौरतलब है कि, राज्य ऊपर दिए गए अधिकारों पर उचित प्रतिबंध भी लगा सकता है, जैसे-

🚫 देश की एकता, अखण्डता, सार्वजनिक आदेश तथा यातायात व्यवस्था बाधित होने की स्थिति में सार्वजनिक सभा या सम्मेलनों तथा ऐसे किसी संगठन बनाने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

🚫 किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनजातियों की संस्कृति की रक्षा के लिए उस क्षेत्र में संचरण एवं बसने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

🚫 किसी व्यवसाय के लिए आवश्यक निगमों की स्थापना करके अन्य नागरिकों के उस व्यवसाय को करने पर प्रतिबंध अथवा किसी रोजगार के लिए कोई विशेष योग्यता ज़रूरी कर उस योग्यता को न रखने वाले नागरिकों को उस रोजगार से वंचित रखा जा सकता है।

अनुच्छेद 20 किसी भी दोषी करार व्यक्ति को, उसके खिलाफ मनमाने तथा अतिरिक्त दंड से संरक्षण प्रदान करता है। इसके अनुसार-

(1) कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जो कार्य उसके करने से पूर्व तक अपराध की श्रेणी में न आता हो। (2) किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए केवल उतनी ही सज़ा दी जाएगी, जितनी उस अपराध को करने पर तय की गई है। (3) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक दंडित नहीं किया जाएगा। (4) किसी अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को अपने विरूद्ध साक्षी होने के लिए नहीं कहा जाएगा, यह अधिकार किसी व्यक्ति का पॉलिग्राफ टेस्ट करने को निषिद्ध करता है।

अनुच्छेद 21 किसी व्यक्ति को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसके तहत निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं-

  • मानवीय प्रतिष्ठा से जीने का अधिकार
  • जीवन रक्षा का अधिकार
  • निजता का अधिकार
  • आश्रय का अधिकार
  • स्वास्थ्य का अधिकार
  • निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
  • हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार
  • अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अधिकार
  • विदेश यात्रा करने का अधिकार
  • सूचना का अधिकार
  • बिजली का अधिकार
  • अनुच्छेद 21क के तहत शिक्षा का अधिकार

अनुच्छेद 22 के तहत नागरिकों को निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त है। अनुच्छेद 22 के दो भाग हैं पहला भाग साधारण कानूनी गिरफ्तारी के सम्बंध में है तथा दूसरा भाग निवारक हिरासत या नज़रबंद करने के सम्बंध में नागरिकों को अधिकार प्रदान करता है।

साधारण कानूनी गिरफ़्तारी की स्थिति में अधिकार

  • गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार
  • किसी वकील से परामर्श या प्रतिरक्षा कराने का अधिकार
  • मजिस्ट्रेट के सम्मुख 24 घण्टे में पेश होने का अधिकार
  • मजिस्ट्रेट द्वारा बिना हिरासत बढ़ाए 24 घण्टे में रिहा होने का अधिकार

नजरबंद किये जाने की स्थिति में अधिकार

  • व्यक्ति की हिरासत तीन माह से अधिक नहीं बड़ाई जाएगी, जब तक की सलाहकार बोर्ड इस बारे में उचित कारण न दे। ऐसे सलाहकार बोर्ड में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश शामिल होंगे।
  • नज़रबंद किये व्यक्ति को यह अधिकार है कि, वह नज़रबंद किये जाने के आदेश के खिलाफ अपना प्रतिवेदन दे।

(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against exploitation)

अनुच्छेद 23 बलात श्रम, मानव दुर्व्यापार, वेश्यावृत्ति, दास बनाना, बेगार या बिना पारिश्रमिक के कार्य करने आदि को प्रतिबंधित करता है तथा इसके लिए दंड की व्यवस्था भी है।

अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बाल श्रम या 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के कार्य करने पर रोक लगता है।

(4) धर्म कि स्वतंत्रता (Right to freedom of religion)

अनुच्छेद 25 के तहत किसी भी धर्म को अबाध रूप से मानने, उसका आचरण करने एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। गौरतलब है कि, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर सरकार धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है।

✅ संविधान का अनुच्छेद 26 प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को धार्मिक और मूर्त प्रयोजनों के लिये संस्थानों की स्थापना और उनके रख-रखाव तथा धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता देता है।

अनुच्छेद 27 के तहत किसी धर्म विशेष की अभिवृद्धि या उसके रख-रखाव में व्यय करने के लिये नागरिकों को कर देने हेतु बाध्य नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 28 के अंतर्गत राज्य निधियों से पूर्णत: पोषित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। हालाँकि यह उन संस्थानों पर लागू नहीं होता, जिसका प्रशासन तो राज्य करता है, किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है, जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।

(5) संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and educational rights)

अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण करता है, इसके भारत के किसी भी क्षेत्र में रहने वाले अल्पसंख्यकों अथवा किसी भी अनुभाग को अपनी बोली, भाषा, लिपि एवं संस्कृति की सुरक्षा का अधिकार है। इसके अलावा किसी भी नागरिक को राज्य के अंतर्गत आने वाले संस्थान या उससे सहायता प्राप्त संस्थान में धर्म, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से नहीं रोका जा सकता।

अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों (धार्मिक, सांकृतिक अथवा भाषायी) को अपनी रुचि के शिक्षण संस्थानों की स्थापना एवं उनके प्रशासन का अधिकार देता है।

(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to constitutional remedies)

अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद माना जाता है, क्योंकि यही अधिकार उक्त अधिकारों को मूल अधिकार (Fundamental Rights in Hindi) बनाता है। इसके अनुसार मौलिक अधिकारों के संरक्षण का अधिकार स्वयं में एक मौलिक अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि, अनुच्छेद 32 में संविधान की मूल विशेषताएँ हैं अतः इसे संविधान संशोधन के तहत बदला नहीं जा सकता।

यह अनुच्छेद किसी ऐसे नागरिक, जिसके मूल अधिकारों का हनन हुआ है, उसे यह अधिकार देता है कि, वह इस अनुच्छेद के तहत सीधे सर्वोच्च न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय में याचिका के माध्यम से उनका प्रवर्तन करवा सके।

मूल अधिकारों का निलंबन

संविधान में उल्लेखित मूल अधिकारों पर युक्तियुक्त निर्बंध लगाए जा सकते हैं तथा लगाए गए निर्बंध युक्तियुक्त हैं अथवा नहीं यह न्यायालय सुनिश्चित करता है। गौरतलब है कि, अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) तथा अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रा) में प्रदत्त अधिकार किसी भी परिस्थिति में निलंबित नहीं किये जा सकते हैं।

संविधान का अनुच्छेद 358 तथा 359 आपात की स्थिति में मूल अधिकारों के निलंबन के संबंध में हैं। अनुच्छेद 358 के तहत आपातकाल की स्थिति में अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अधिकार स्वतः निलंबित हो जाते हैं, जबकि अनुच्छेद 359 अन्य अधिकारों को निलंबित करने के संबंध में बताता है, जिसके लिए राष्ट्रपति आदेश जारी करते हैं।

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