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कोर्ट मार्शल
आपने कोर्ट मार्शल का नाम अवश्य सुना होगा, किन्तु अधिकांश लोगों को इस विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती। बता दें कि कोर्ट मार्शल उन न्यायालयों को कहा जाता है जो सैनिकों से जुड़े आपराधिक मामलों की सुनवाई करते हैं। इनमें सेना से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी ही न्यायाधीश की भूमिका में होते हैं। इन अदालतों को प्रायः बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाता है जिससे अनुशासन के साथ ही त्वरित न्याय भी सुनिश्चित किया जा सके।
केवल किसी गैर सैनिक की हत्या एवं बलात्कार के मामलों को छोड़कर सामान्यतः सैनिकों के शेष सभी आपराधिक कृत्यों की सुनवाई कोर्ट मार्शल ही करता है। यदि कोई सैनिक आपराधिक कृत्य करते हुए पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाए तो भी उसे सेना को सौंप दिया जाता है। भारत में कोर्ट मार्शल की व्यवस्था सेना अधिनियम 1950, वायु सेना अधिनियम 1950, एवं नौसेना अधिनियम 1957 द्वारा विनियमित होती है।
कोर्ट मार्शल के निर्णयों के विरुद्ध अपील
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 136 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशेष अनुमति की अपीलें (Special Leave Appeals) कोर्ट मार्शल के निर्णयों के विरुद्ध नहीं सुनी जा सकती एवं अनुच्छेद 227 के अनुसार उच्च न्यायालय को भी कोर्ट मार्शल के निर्णयों पर अपील की सुनवाई का अधिकार प्राप्त नहीं है। किन्तु अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय एवं अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों की न्यायदेश जारी करनें की अधिकारिता के अंतर्गत कोर्ट मार्शल के निर्णयों के विरुद्ध अपील की जा सकती है।
वर्तमान में कोर्ट मार्शल के निर्णयों के विरुद्ध अपील के लिए सरकार ने सशस्त्र सेना अधिकरण अधिनियम 2007 के अंतर्गत एक अधिकरण (Tribunal) की स्थापना की है, जिसकी प्रधान पीठ दिल्ली में है एवं अन्य आठ स्थानीय पीठ चंडीगढ़, लखनऊ, कलकत्ता, गुवाहाटी, चेन्नई, कोच्चि, मुंबई तथा जयपुर में स्थित हैं।
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