Biography of Alfred Nobel – in Hindi | अल्फ्रेड नोबेल की जीवनी

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नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे अनेक क्षेत्रों से महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। हाल ही में साल 2020 के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गयी है। किंतु इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं तथा उनके विशिष्ट कार्यों को जानने से पहले समझते हैं आखिर नोबेल पुरस्कार क्यों दिए जाते हैं? लेख के पहले भाग में आज हम चर्चा करेंगे महान वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की (Biography of Alfred Nobel – in Hindi) तथा जानेंगे नोबेल पुरस्कार देने के पीछे की कहानी को। लेख के दूसरे भाग में हम इस साल अर्थात 2020 के नोबेल विजेताओं तथा उनके कार्यों को विस्तार से समझेंगे।

अल्फ्रेड नोबेल का प्रारंभिक जीवन

अल्फ्रेड नोबेल जिनका पूरा नाम अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल था का जन्म 21 अक्टूबर 1833 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ। अल्फ्रेड के पिता इमैन्युअल नोबेल एक इंजीनियर तथा अविष्कारक थे। हमारे घरों, दफ्तरों आदि में इस्तेमाल होने वाली प्लाइवुड का आविष्कार उन्होनें ही किया। अल्फ्रेड के जन्म के समय उनके पिता का व्यवसाय घाटे में चल रहा था तथा वे कर्ज़ में डूब चुके थे। इसी के चलते उन्होंने अपने कारोबार को किसी अन्य देश में शुरू करने पर विचार किया। परिणामस्वरूप वह रूस के शहर सेंट पीटर्सबर्ग चले गए तथा अल्फ्रेड अपनी माँ तथा भाइयों के साथ स्टॉकहोम ही रहे।

स्टॉकहोम से सेंट पीटर्सबर्ग आने के बाद इमैन्युअल ने एक मैकेनिकल वर्कशॉप खोली जिसमें उन्होंने रूसी सेना को सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करने का कार्य किया इसके अतिरिक्त उन्होंने रूसी ज़ार (सम्राट) तथा सेनाध्यक्ष को समुद्री खदानों में विस्फोटक लगाने का सुझाव दिया जिसके प्रयोग से दुश्मन जहाजों को सेंट पीटर्सबर्ग आने से रोका जा सकता था।

दोनों को यह सुझाव पसंद आया लिहाजा रूस में उनका कारोबार बढ़ने लगा तथा आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। इसी बीच 1842 में उन्होंने अपने परिवार को भी स्टॉकहोम से सेंट पीटर्सबर्ग बुला लिया। आर्थिक स्थिति सुधरने के कारण इमैन्युअल ने अल्फ्रेड तथा अन्य बच्चों के लिए निजी अध्यापक नियुक्त किये परिणामस्वरूप अल्फ्रेड 16 वर्ष की आयु में रसायन विज्ञान समेत अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच तथा जर्मन भाषाओं में निपुण हो गए।  

अल्फ्रेड की विदेश यात्रा

अल्फ्रेड को कैमिकल इंजीनियर बनाने के उद्देश्य से उनके पिता इमैन्युअल नें उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया वे कुछ समय अमेरिका में रहे तथा 1850 में पेरिस चले आए वहाँ उनकी मुलाकात इटली के एक वैज्ञानिक एस्कानियो सोब्रेरो (Ascanio Sobrero) से हुई जिन्होंने तीन वर्ष पहले एक विस्फोटक नाइट्रोग्लिसरीन की खोज की थी। यह अब तक प्रयोग किए जाने वाले गन पाउडर की तुलना में बहुत शक्तिशाली विस्फोटक था। किंतु इसके साथ सबसे बड़ी समस्या यह थी कि यह बहुत ही अस्थिर था इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना या नियंत्रित करना संभव नहीं था।

विदेश से वापसी

पेरिस से अल्फ्रेड पुनः रूस चले आए तथा अपने पिता की फैक्ट्री में कार्य करने लगे उनकी रुचि नाइट्रोग्लिसरीन के उत्पादन तथा उसे नियंत्रित कर उसका सकारात्मक कार्यों में इस्तेमाल करने में थी। चूँकि अब तक क्रीमिया युद्ध (1853 से 1856) खत्म हो चुका था अतः उनके पिता की फैक्ट्री धीरे धीरे काम कम होने के चलते बंद होने की कगार पर आ गयी। तत्पश्चात अल्फ्रेड अपने पिता तथा भाई एमिल के साथ 1863 में पुनः स्टॉकहोम चले आए जबकि उनकी माँ एवं अन्य दो भाई सेंट पीटर्सबर्ग में अपने बचे खुचे कारोबार को देखने के लिए रुक गए।

स्टॉकहोम में उन्होंने अपनी प्रयोगशाला स्थापित की तथा नाइट्रोग्लिसरीन के उत्पादन पर कार्य करने लगे। इसी दौरान हुए एक हादसे में उनके भाई एमिल समेत 5 लोगों की जान चली गयी। इस हादसे के बाद स्वीडिश सरकार ने नाइट्रोग्लिसरीन के किसी भी प्रकार के प्रयोग पर रोक लगा दी तथा उन्हें अपने प्रयोगों को बंद करना पड़ा।

डायनामाइट का आविष्कार

अल्फ्रेड ने हार नहीं मानी तथा स्टॉकहोम के बाहर Lake Mälaren में एक नाव में अपनी प्रयोगशाला स्थापित की और साल 1864 तक वे नाइट्रोग्लिसरीन का उत्पादन करने में सफल रहे। किन्तु नाइट्रोग्लिसरीन को नियंत्रित कर उसे उपयोग करनें लायक बनाना अभी बाकी था। अंततः साल 1866 में उन्होंने नाइट्रोग्लिसरीन को स्थिर करनें तथा उसे प्रयोग लायक बनाने का तरीका खोज निकाला। अपने एक प्रयोग में उन्होंने पाया कि महीन रेत का एक प्रकार जिसे Kieselguhr कहा जाता है नाइट्रोग्लिसरीन को अवशोषित कर रहा है तथा यह मिश्रण नाइट्रोग्लिसरीन की तुलना में बहुत स्थिर है।

इस मिश्रण का नाम उन्होनें डायनामाइट रखा तथा एक वर्ष बाद 1867 में इसका पेटेंट अपने नाम करवाया। इस आविष्कार के फलस्वरूप नाइट्रोग्लिसरीन को पेस्ट रूप में परिवर्तित कर उसकी रॉड बना पाना तथा खदानों, भवन निर्माण आदि में विस्फोटक के रूप में इसका प्रयोग करना संभव हो गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने डेटोनेटर का भी अविष्कार किया जिसकी मदद से सावधानीपूर्वक डायनामाइट का प्रयोग किया जा सकता था।

डायनामाइट आविष्कार के विश्व पर प्रभाव

डायनामाइट के आविष्कार के बाद विभिन्न क्षेत्रों सुरंग निर्माण, पुल निर्माण, सड़क एवं रेल मार्गों के निर्माण आदि में इसकी माँग बढ़ने लगी फलस्वरूप अल्फ्रेड ने 20 देशों में लगभग 90 फैक्ट्रियां स्थापित कर ली। साल 1896 में उनकी मृत्यु तक कुल 365 आविष्कारों के पेटेंट उनके नाम पर हो चुके थे। इस सब के चलते उनकी संपत्ति में अथाह वृध्दि हुई और उन्हें “Europe’s richest vagabond.” (यूरोप का सबसे अमीर घुमक्कड़) कहा जाने लगा।

किन्तु उनके मुख्य आविष्कार डायनामाइट के चलते निर्माण कार्यों में कई हादसे भी होते रहे, इसके अतिरिक्त युद्धों में भी विस्फोटक के रूप में डायनामाइट का प्रयोग होने लगा हाँलाकि अल्फ्रेड की अपने अविष्कार के पीछे सकारात्मक सोच ही थी किन्तु लोग डायनामाइट से हुए हादसों के लिए उन्हीं को जिम्मेदार ठहराने लगे तथा उन्हें मौत का सौदागर नाम दिया गया। लोगों के उनके प्रति इस रुख से वे काफी आहत हुए तथा उन्होंने तय किया कि वे समाज कल्याण के लिए ऐसा कार्य करेंगे जिससे भविष्य में उनकी पहचान मौत के सौदागर के रूप में न हो। 

नोबेल पुरुस्कार की शुरुआत

इसी के चलते उन्होंने अपनी वसीयत में सम्पूर्ण संपत्ति से एक ट्रस्ट स्थापित करने का फैसला किया तथा यह घोषणा की, कि उनकी संपत्ति का प्रयोग भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, शांति तथा साहित्य के क्षेत्रों में मानवता के लिए विशिष्ट कार्य करने वाले लोगों को पुरस्कार देने में किया जाए। अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु 10 दिसंबर 1896 को इटली में हुई। इस प्रकार पहले नोबेल पुरस्कार साल 1901 में दिए गए तथा तब से प्रतिवर्ष उनकी पुण्यतिथि को यह पुरस्कार उक्त क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों को दिए जाते है।

Biography of Alfred Nobel - in Hindi
नोबेल पुरस्कार

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में पुरस्कार की शुरुआत

जैसा की हमनें ऊपर बताया अल्फ्रेड नोबेल द्वारा पाँच क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य करने वाले लोगों को पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई किन्तु वर्तमान में कुल छः क्षेत्रों में यह पुरस्कार दिए जाते हैं। छटे विषय अर्थशास्त्र की शुरुआत 1968 में स्वीडन के केन्द्रीय बैंक द्वारा अल्फ्रेड नोबेल की याद में की गई तथा 1969 में पहली बार इस क्षेत्र में भी नोबेल पुरस्कार दिए गए, तब से प्रतिवर्ष अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करनें वाले लोगों को यह पुरस्कार दिया जाता है। 

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