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UPSC क्या है एवं इसके क्या कार्य हैं (Full Form of UPSC in Hindi)

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किसी भी देश की सरकार को चलाने के लिए नौकरशाही अथवा ब्यूरोक्रेसी की आवश्यकता होती है, जो सरकार तथा जनता के मध्य एक कड़ी का कार्य करती है। ब्यूरोक्रेसी विभिन्न क्षेत्रों में नीति निर्माण में सरकार का सहयोग करने से लेकर उन नीतियों का सुचारू रूप से क्रियान्वयन भी सुनिश्चित करती है। अतः इस बात में कोई दो राय नहीं है की सिविल सेवक शासन व्यवस्था की रीड़ हैं। आज इस लेख के माध्यम से हम चर्चा करने जा रहे हैं देश में सिविल सेवा के इतिहास तथा ब्यूरोक्रेसी अथवा लोक सेवाओं में भर्तियां करवाने वाले निकाय यूपीएससी (Full Form of UPSC in Hindi) की।

क्या है यूपीएससी?

यूपीएससी जिसका पूरा नाम संघ लोक सेवा आयोग या Union Public Service Commission है, केंद्र सरकार के लोक सेवकों (Civil Servants) की नियुक्ति के लिए देश का प्रमुख केंद्रीय निकाय है। यह अखिल भारतीय सेवाओं के अतिरिक्त अन्य केन्द्रीय सेवाओं जैसे केंद्र सरकार के रक्षा सेवा संवर्ग आदि के तहत समूह A और समूह B के पदों की, प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से नियुक्तियाँ सुनिश्चित करता है। संघ लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जिसका उल्लेख संविधान के 14वें भाग में अनुच्छेद 315 से 323 तक किया गया है।

भारत में सिविल सेवा का इतिहास

भारत में सिविल सेवा के इतिहास को देखें तो इसकी जड़ें प्राचीन काल में दिखाई देती हैं। भारतीय सिविल सेवा सबसे पुरानी प्रशासनिक व्यवस्थाओं में एक है। हालाँकि पूर्व में भी कबीलों आदि में शासन चलाने के अपने तौर तरीके थे किन्तु एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत प्राचीन भारत के मौर्य काल में प्रारंभ हुई। मौर्य शासन ने अध्यक्षों और राजुकों के नाम पर सिविल सेवकों को नियुक्त किया।

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कौटिल्य का ग्रंथ अर्थशास्त्र उस दौर में सिविल सेवा के विकसित होने का प्रमाण देता है। अर्थशास्त्र में सिविल सेवकों के चयन एवं पदोन्नति के सिद्धांतों, सिविल सेवा में नियुक्ति के लिए वफादारी की शर्तों तथा सिविल सेवकों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के तरीके और उनकी आचार संहिता के बारे में बताया गया है। इसके बाद से यह व्यवस्था चलन में रही और प्रशासन के तरीके समय के साथ साथ उन्नत होते गए।

सन् 1600 में अंग्रेज सर्वप्रथम भारत में व्यापार के उद्देश्य से आए और धीरे धीरे उन्होंने वाणिज्य के अलावा देश की शासन व्यवस्था पर भी नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया। भारत लगभग दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा, जैसे जैसे अंग्रेज भारत के विभिन्न क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में लेते गए उन्हें सरकारी कामकाज चलाने के लिए श्रमशक्ति की आवश्यकता महसूस हुई। इसी क्रम में 1833 के एक चार्टर के माध्यम से भारतीयों को सिविल सेवा में प्रवेश का अवसर मिला।

योग्यता के आधार पर सिविल सेवकों की भर्ती

देश में योग्यता के आधार पर सिविल सेवा की अवधारणा सर्वप्रथम 1853 में लॉर्ड मैकाले ने अपनी एक रिपोर्ट के द्वारा पेश की। रिपोर्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी की संरक्षण आधारित प्रणाली को समाप्त कर उसे एक स्थायी सिविल सेवा द्वारा प्रतिस्थापित करने की सिफारिश की, जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम अथवा योग्यता के आधार पर सिविल सेवकों का चयन किया जाए।

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सिफारिशों के अनुसार 1854 में, लंदन में एक सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गई और 1855 में प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू की गईं। हालाँकि प्रारंभ में भारतीय सिविल सेवा की परीक्षाएं केवल लंदन में आयोजित की जाती थीं और आयु सीमा 18 वर्ष से 23 वर्ष के बीच निर्धारित की गई थी। पाठ्यक्रम को भी बहुत हद तक ब्रिटिश लोगों के पक्ष में ढाला गया, जिससे भारतीयों के लिए परीक्षा में सफल होना मुश्किल हो गया। इसके बावजूद 1864 में सत्येंद्रनाथ टैगोर इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले प्रथम भारतीय बने।

यह भी पढ़ें : जानिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारियों को मिलने वाला वेतन तथा अन्य सुविधाएं

लोक सेवा आयोग की स्थापना

भारत सरकार अधिनियम, 1919 के माध्यम से मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार लाए गए और भारतीयों द्वारा कई समय से चली आ रही माँग के चलते 1922 से सिविल सेवा परीक्षा भारत में भी होने लगी। सर्वप्रथम इसे इलाहाबाद तथा बाद में दिल्ली में आयोजित किया जाने लगा। अधिनियम में सिविल सेवकों की नियुक्ति के लिए एक आयोग की स्थापना करने की बात भी कही गई, जिसे अंततः 1 अक्टूबर, 1926 को स्थापित किया गया।

स्थापना के समय इसमें अध्यक्ष के अलावा चार अन्य सदस्य होते थे। ब्रिटेन की गृह सिविल सेवा के सदस्य सर रॉस बार्कर लोक सेवा आयोग के पहले अध्यक्ष बनाए गए। हालाँकि लंदन में भी सिविल सेवा आयोग द्वारा परीक्षा आयोजित की जाती रही।

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भारत सरकार अधिनियम, 1935 के द्वारा संघ के लिए एक अलग लोक सेवा आयोग (Federal Public Service Commission) और प्रत्येक प्रांत या प्रांतों के समूह के लिए प्रांतीय लोक सेवा आयोग की परिकल्पना की गई। परिणामस्वरूप 1 अप्रैल 1937 को अधिनियम के लागू होने के साथ लोक सेवा आयोग, संघीय लोक सेवा आयोग बन गया, जिसे देश की आजादी के बाद जनवरी 1950 में भारत के संविधान के लागू होने के साथ, फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन से यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) में परिवर्तित कर दिया गया।

संघ लोक सेवा आयोग की वर्तमान संरचना

संघ लोक सेवा आयोग की संरचना की बात करें तो आयोग (Full Form of UPSC in Hindi) में एक अध्यक्ष तथा कुछ अन्य लगभग 9 से 11 सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। गौरतलब है कि संविधान में आयोग की संरचना को नियत नहीं किया गया है, राष्ट्रपति आवश्यकता के अनुसार आयोग की संरचना का निर्धारण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की सेवा शर्तों को भी निर्धारित करते हैं।

अध्यक्ष समेत आयोग के सभी सदस्य पद ग्रहण करने की तारीख से 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो, अपना पद धारण करते हैं। हालाँकि आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य कभी भी राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकते हैं अथवा राष्ट्रपति भी संविधान में उल्लेखित प्रक्रिया जैसे 1) ऐसे किसी व्यक्ति के दिवालिया घोषित होने पर, 2) पदावधि के दौरान अपने कर्तव्यों के बाहर वेतन नियोजन में संलिप्त होने पर 3) मानसिक या शारीरिक अक्षमता के आधार पर इनके कार्यकाल से पहले इन्हें पद से हटा सकते हैं।

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संघ लोक सेवा आयोग के कार्य

संघ लोक सेवा आयोग (Full Form of UPSC in Hindi) का प्रमुख कार्य अखिल भारतीय सेवाओं (भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वन सेवा) तथा अन्य केन्द्रीय सेवाओं के पदों पर प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से नियुक्ति करना है। इसके अतिरिक्त आयोग के कुछ अन्य कार्य निम्नलिखित हैं।

(क) संघ लोक सेवा आयोग राज्य को किन्हीं ऐसी सेवाओं, जिनके लिए विशेष अर्हता वाले अभ्यर्थी अपेक्षित हैं, संयुक्त भर्ती की योजना अथवा प्रवर्तन में सहायता करता है।

(ख) आयोग किसी राज्य के राज्यपाल के अनुरोध पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के उपरांत किन्हीं विशेष मामलों में राज्य को सलाह दे सकता है।

(ग) आयोग कई मामलों जैसे सिविल सेवाओं में भर्ती की पद्धतियों से समबंधित, कार्मिक प्रबंधन आदि में सरकार को सलाह देने का कार्य भी करता है।

विधायिका से स्वतंत्रता

किसी भी संस्था के निष्पक्ष रूप से कार्य करने के लिए उसको विधायिका से कुछ हद तक स्वतंत्रता दी जानी आवश्यक है, इसी को ध्यान में रखते हुए संघ लोक सेवा आयोग को भी स्वतंत्रता दी गई है।

(क) संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्यों को संविधान में वर्णित कारणों के चलते केवल राष्ट्रपति हटा सकता है, यह उन्हें पदावधि की सुरक्षा प्रदान करता है।

(ख) अध्यक्ष तथा सदस्यों के सेवा की शर्तें राष्ट्रपति तय करता है, किन्तु इनमें कभी भी अलाभकारी परिवर्तन नहीं किए जा सकते।

(ग) आयोग का अध्यक्ष अपने कार्यकाल के बाद राज्य या केंद्र सरकार के अधीन किसी और नियोजन या नौकरी का पात्र नहीं होता। जबकि इसके अन्य सदस्य केवल संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा किसी राज्य लोक सेवा के अध्यक्ष पद के लिए ही पात्र होते हैं।

(घ) अध्यक्ष तथा सदस्यों का वेतन, पेंशन तथा अन्य भत्ते भारत की संचित निधि से दिए जाते हैं अतः इनमें संसद में मतदान नहीं होता।

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली कुछ प्रमुख परीक्षाएं

  • Civil Service Examination
  • Indian Forest Service Examination
  • Combined Defense Services Examination
  • Engineering Services Examination
  • National Defense Academy Examination
  • Naval Academy Examination
  • Combined Medical Services Examination
  • Special Class Railway Apprentice
  • Indian Economic Service/Indian Statistical Service Examination
  • Combined Geoscientist and Geologist Examination
  • Central Armed Police Forces (Assistant Commandant)

सिविल सेवा परीक्षा के बारे में (Civil Service Examination)

हालाँकि संघ लोक सेवा आयोग कई प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता है, जिनकी हमनें ऊपर चर्चा की, किन्तु इन सब में सिविल सेवा परीक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। इस परीक्षा के माध्यम से ही महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियाँ की जाती है। सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय डाक सेवा समेत 20 से अधिक कई महत्वपूर्ण सेवाओं में भर्तियाँ की जाती हैं।

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सिविल सेवा परीक्षा के लिए आवश्यक शैक्षिक योग्यता स्नातक (Graduation) है। यह परीक्षा तीन चरणों में आयोजित की जाती है, जिनमें प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा तथा साक्षात्कार शामिल हैं। हर साल फरवरी से मार्च माह के मध्य परीक्षा की विज्ञप्ति जारी की जाती है, जिसमें लगभग 10 लाख से अधिक लोग आवेदन करते हैं। जबकि केवल 800 से 1000 (पदों के अनुरूप) अभ्यर्थी ही परीक्षा में सफल हो पाते हैं। इन चयनित अभ्यर्थियों को इनकी रैंक के अनुसार सेवाएं वितरित की जाती है। उदाहरणतः प्रथम 80 से 100 उम्मीदवार सबसे उत्कृष्ट सेवा आईएएस (IAS) के लिए चयनित होते हैं।

सिविल सेवा परीक्षा पाठ्यक्रम 2021 (UPSC Civil service Examination Syllabus 2021)

सिविल सेवा परीक्षा का संक्षिप्त पाठ्यक्रम निम्नलिखित हैं।

प्रारंभिक परीक्षा पाठ्यक्रम

सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में दो प्रश्नपत्र क्रमशः “सामान्य अध्ययन” तथा “सिविल सेवा अभिवृत्ति परीक्षा” या (CSAT) शामिल हैं। सामान्य अध्ययन में भारत का इतिहास, भारत एवं विश्व का भूगोल, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समसामयिक घटनाएं, भारतीय राजव्यवस्था, आर्थिक एवं सामाजिक विकास, सामान्य विज्ञान, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी आदि विषयों से संबंधित 100 प्रश्न (प्रत्येक 2 अंक) पूछे जाते हैं। वहीं दूसरा प्रश्नपत्र (CSAT) क्वालीफाइंग प्रकृति का होता है, जिसमें सामान्य गणित, तार्किक शक्ति, डिसीजन मेकिंग, डेटा इंटरप्रिटेशन आदि विषयों से 80 प्रश्न (प्रत्येक 2.5 अंक) पूछे जाते हैं तथा उमीदवार को 33 फीसदी अंक प्राप्त करना अनिवार्य होता है।

मुख्य परीक्षा पाठ्यक्रम

मुख्य परीक्षा में कुल नौ प्रश्नपत्र (7 प्रश्नपत्र अनिवार्य तथा 2 प्रश्नपत्र किसी एक वैकल्पिक विषय से संबंधित) होते हैं। वैकल्पिक विषय का चयन उम्मीदवार विज्ञप्ति में दिये गए विषयों में से कर सकता है। वहीं अनिवार्य प्रश्नपत्र निम्नलिखित हैं।

प्रश्नपत्र-1निबंध
प्रश्नपत्र-2सामान्य अध्ययन-1: (भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल तथा समाज)
प्रश्नपत्र-3सामान्य अध्ययन-2: (शासन व्यवस्था, संविधान, राजव्यवस्था, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
प्रश्नपत्र-4सामान्य अध्ययन-3: (प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा- प्रबंधन)
प्रश्नपत्र-5सामान्य अध्ययन-4: (नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिवृत्ति)
प्रश्नपत्र-‘क’क्वालिफाइंग-1  अंग्रेज़ी भाषा
प्रश्नपत्र-‘ख’क्वालिफाइंग-2 हिंदी या संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कोई एक भाषा

परीक्षा के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम तथा आवश्यक योग्यताओं के लिए पीडीएफ़ डाउनलोड करें


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