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राष्ट्रीय हरित अधिकरण : कार्य एवं शक्तियाँ (NGT in Hindi)

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बीसवीं सदी के बाद से जैसे-जैसे औद्योगीकरण में वृद्धि हुई है, पर्यावरणीय समस्याएं भी दुनियाँ के सामने एक नई चुनौती बनकर उभरी हैं। दिन-प्रतिदिन बढ़ता प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का एक सीमा से अधिक दोहन, कार्बन डाइऑक्साइड का अत्यधिक उत्सर्जन मानव अस्तित्व समेत पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए वैश्विक स्तर पर इस दिशा में कई कदम भी उठाए गए हैं। हालाँकि आज इस लेख में हम पर्यावरणीय समस्याओं हेतु किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून के बारे में नहीं, बल्कि भारत में इस संबंध में बने एक महत्वपूर्ण निकाय राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT in Hindi)की चर्चा करने जा रहे हैं, जानेंगे यह क्या है? तथा पर्यावरणीय सुरक्षा के क्षेत्र में किस प्रकार कार्य करता है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal)

राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट, 2010 के तहत 18 अक्टूबर 2010 को की गई। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण (वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण) से संबंधित मामलों का प्रभावी एवं तत्काल निपटान करना है। इन मामलों में पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार को लागू करना अथवा किसी कार्य विशेष को कानून से राहत देना आदि शामिल हैं।

भारत पर्यावरणीय मामलों के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनियाँ का तीसरा देश है। भारत के अतिरिक्त केवल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में ही इस प्रकार के किसी निकाय की व्यवस्था की गई है। पर्यावरण के क्षेत्र में एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण की स्थापन 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन तथा 1992 के रियो डी जेनेरियो में आयोजित पर्यावरण से संबंधित सम्मेलन के आदर्शों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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अधिकरण की संरचना की बात करें, तो इसमें एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य एवं कुछ विशेष सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के पश्चात की जाती है, जबकि अन्य सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति के माध्यम से होती है। अध्यक्ष समेत सभी सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है, जिनकी पुनः नियुक्ति नहीं की जा सकती। वर्तमान में अधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल हैं, जिन्हें 2018 में इस पद पर नियुक्त किया गया।

अध्यक्ष एवं सदस्यों के लिए अर्हता एवं सेवा शर्तें

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) का अध्यक्ष तथा न्यायिक सदस्य केवल सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अथवा किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ही बन सकते हैं, जबकि विशेष सदस्यों को विभिन्न क्षेत्रों जैसे भौतिक विज्ञान अथवा जीव विज्ञान में डॉक्टरेट उपाधि तथा संबंधित क्षेत्रों में 15 वर्षों का अनुभव, पर्यावरण तथा वन क्षेत्र में 5 वर्षों का अनुभव आदि में विशेष अनुभव के आधार पर नियुक्त किया जाता है।

अध्यक्ष एवं सभी सदस्य नियुक्ति से पाँच वर्षों की अवधि तक पद पर रहते हैं, हालाँकि कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श पर अध्यक्ष या सदस्यों को पद से हटा सकती है। इन विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति का दिवालिया हो जाना, नैतिक भ्रष्टता से जुड़े किसी अपराध में संलिप्त होना, शारीरिक अथवा मानसिक रूप से अक्षम होना आदि शामिल है।

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अधिकरण के कार्य एवं शक्तियाँ

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT in Hindi) एक अर्ध-न्यायिक निकाय के तौर पर कार्य करता है तथा पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई करता है। यह पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सभी कानूनों के तहत सुनवाई कर सकता है। इसके गठन के पीछे सरकार का उद्देश्य उच्चतर न्यायालयों में पर्यावरणीय मामलों के अतिरिक्त बोझ को कम करना था, ताकि ऐसे मुद्दों का स्वतंत्र रूप से तथा कम समय के भीतर निस्तारण किया जा सके। अधिकरण में दायर मामलों का 6 माह के भीतर निस्तारण किया जाता है।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की अनुसूची I में उल्लेखित कानूनों में शामिल विषयों से संबंधित पर्यावरणीय क्षति के लिए राहत और मुआवजे की माँग करने वाला कोई भी व्यक्ति अधिकरण (NGT in Hindi) से संपर्क कर सकता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के पास प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजे और हर्जाने के रूप में राहत देने की शक्ति भी है।

सिविल कोर्ट के रूप में कार्य

राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 19 इसे अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति देती है। इसके अतिरिक्त ट्रिब्यूनल, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 या भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। हालांकि इसे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के द्वारा, अपने कार्यों के निर्वहन के लिए एक दीवानी अदालत या सिविल कोर्ट का दर्जा दिया गया है, जिसके तहत अधिकरण के पास निम्नलिखित अधिकार हैं

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  • किसी व्यक्ति के खिलाफ समन जारी करना तथा उसकी उपस्थिति को बाध्यकारी बनाना।
  • दस्तावेजों की खोज अथवा उन्हें उत्पन्न करना।
  • अपने निर्णयों की समीक्षा करना।
  • गवाहों तथा दस्तावेजों का परीक्षण करना।
  • हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करना।

अधिकरण के आदेश बाध्यकारी अथवा लागू कराने योग्य हैं, क्योंकि अधिकरण में निहित शक्तियाँ सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत एक सिविल कोर्ट के समान हैं। हालाँकि इसके निर्णयों को नब्बे दिनों के भीतर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।

NGT अधिनियम की धारा 14 में प्रावधान है, कि अधिकरण के पास उन सभी सिविल मामलों पर सुनवाई का अधिकार होगा, जहाँ किसी कानून में पर्यावरण से संबंधित कोई महत्वपूर्ण प्रश्न है। हालाँकि इस धारा के तहत विवाद के न्यायनिर्णयन के लिए किसी भी आवेदन पर अधिकरण द्वारा केवल उस स्थिति में ही विचार किया जाता है, जब ऐसे किसी विवाद को छः माह के भीतर अधिकरण के समक्ष लाया गया हो।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण के कार्यभार को कम करने के उद्देश्य से नई-दिल्ली स्थित इसके मुख्यालय समेत चार अन्य स्थानों यथा भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं। नई दिल्ली अधिकारण की बैठक का प्रमुख स्थान है। अधिकरण पर्यावरण से संबंधित 7 कानूनों के तहत आने वाले सभी मामलों की सुनवाई कर सकता है। इन क्षेत्रों से संबंधित सरकार की किसी भी योजना या निर्णय को अधिकरण में चुनौती दी जा सकती है।

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1. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974

2. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977

3. वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980

4. वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981

5. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

6. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

7. जैव-विविधता अधिनियम, 2002

अधिकरण के फैसलों की अवमानना करने पर दंड

राष्ट्रीय हरित अधिकरण को जिस उद्देश्य के चलते स्थापित किया गया है, उसकी पूर्ति लिए आवश्यक है की अधिकरण के पास उसके आदेशों की अवमानना करने वाले लोगों, निजी निकायों, प्राधिकरणों आदि को दंडित करने की शक्ति प्राप्त हो। चूँकि NGT को एक सिविल न्यायालय की शक्तियां प्राप्त हैं, अतः उसमें दंडात्मक कार्यवाही करने की शक्ति भी निहित है।

यदि कोई परियोजना प्रस्तावक अथवा कोई प्राधिकरण राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश में निहित निर्देशों का पालन नहीं करता है, तो उसे तीन साल तक की कैद या 10 करोड़ तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त भविष्य में पुनः उल्लंघन करने पर ऐसे व्यक्तियों या प्राधिकरण पर प्रतिदिन पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।

NGT द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसले

हरित अधिकरण (NGT in Hindi) ने पर्यावरण संरक्षण के संबंध में समय समय पर कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। आइए जानते हैं अधिकरण द्वारा सुनाए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय-

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में : 2012 में एक मामले में अधिकरण ने खुले में कचरा जलाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया। यह निर्णय देश में ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन की समस्या से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण निर्णय था।

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पुराने वाहनों पर रोक : अप्रैल, 2015 में हरित अधिकरण ने एक आदेश देते हुए 10 साल से अधिक पुराने सभी डीजल वाहनों के दिल्ली-एनसीआर में चलने पर रोक लगा दी। इससे पूर्व भी 26 नवंबर, 2014 को अधिकरण ने 15 साल से अधिक पुराने सभी डीजल या पेट्रोल वाहनों के चलने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

गंगा के पुनर्जीवन के संबंध में : अधिकरण ने जुलाई 2017 में गंगा को पुनः जीवंत एवं स्वच्छ करने हेतु कई दिशा-निर्देश जारी किए, जिसके तहत हरिद्वार-उन्नाव खंड के किनारे से 100 मीटर के क्षेत्र को ‘नो-डेवलपमेंट जोन’ घोषित किया गया और 500 मीटर के भीतर कचरे को डंप करने पर भी रोक लगा दी।

यमुना के संबंध में : जनवरी 2015 में, अधिकरण ने यमुना कायाकल्प योजना को सार्थक करने के उद्देश्य से नदी में कचरा या धार्मिक वस्तुओं को फेंकने वाले लोगों पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाने सहित कई अन्य निर्देश पारित किए। अधिकरण ने निर्माण सामग्री को भी नदी में फेंकने पर प्रतिबंध लगा दिया और उल्लंघन करने वालों पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने के आदेश दिए।

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प्लास्टिक थैलों पर प्रतिबंध : अगस्त 2017 में अधिकरण ने दिल्ली में 50 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक थैलों पर प्रतिबंध लगा दिया, ये प्लास्टिक थैले जानवरों द्वारा खाए जाने पर उनकी मौत तथा सीवर ब्लॉकेज का कारण बन रहे थे और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे थे।

फसलों के अवशेष जलाने पर रोक : दिसंबर 2015 में, एनजीटी ने दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसी भी हिस्से में कृषि अवशेषों को जलाने पर रोक लगा दी और राज्यों को निर्देश दिया कि वे कृषि अवशेषों को निकालने के लिए किसानों को मौद्रिक और तकनीकी सहायता प्रदान करें जिनका उपयोग औद्योगिक ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

तीर्थयात्रियों पर रोक : अधिकरण ने 12 नवंबर 2017 को जम्मू-कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर जाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या को 50,000 तक सीमित कर दिया था। यदि वह संख्या पार हो जाती है, तो उन्हें अर्धकुमारी या कटरा में रोका जा सकता है।

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हालाँकि अधिकरण की स्थापन पर्यावरणीय संरक्षण के क्षेत्र में काफी हद तक सफल रही है तथा उच्च न्यायालयों पर भी इन मुद्दों को निपटने का भार कम हुआ है, किन्तु इसके बावजूद अधिकरण अपनी पूर्ण शक्ति के साथ कार्य नहीं कर पा रहा है। मानव शक्ति तथा अन्य संसाधनों की कमी अधिकरण के कार्य में बाधा बनती है। चूँकि भारत एक विकासशील देश है अतः विकास एवं पर्यावरण संरक्षण दोनों का एक संतुलन होना आवश्यक है, जिसमें अधिकरण के फैसले कई बार विकास की राह में बाधा बनते हैं।

न्यायालय एवं अधिकरण में अंतर

हालाँकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) एक न्यायिक निकाय है, किन्तु किसी अधिकरण तथा न्यायालय में कई अंतर हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकरण के संबंध में कहा है, “सभी अधिकरण न्यायालय होते हैं, किन्तु सभी न्यायालय अधिकरण नहीं होते” अदालतें और न्यायाधिकरण दोनों सरकार द्वारा स्थापित किए जाते हैं, जिनके पास न्यायिक शक्तियां होती हैं और जिनके पास एक सतत उत्तराधिकार भी होता है। अधिकरण किसी क्षेत्र विशेष के मामलों को निपटाने के उद्देश्य से स्थापित किए जाते हैं, जबकि न्यायालय का क्षेत्राधिकार बहुत वृहद है, यहाँ सभी मामलों को निपटाया जाता है, जिस पर न्यायाधीश अपना फैसला सुनाते हैं।

यह भी पढ़ें : क्या हैं भारत में यातायात (Traffic Rules) से संबंधित नियम एवं कानून

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बाहरी स्रोत : राष्ट्रीय हरित अधिकरण

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