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मानव शरीर
मानव शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कोशिका होती है। एक प्रकार की कोशिकाएं मिलकर उत्तक का निर्माण करती हैं तथा ऊत्तकों से विभिन्न अंगों का निर्माण होता है। ये अंग एक तंत्र का निर्माण करते हैं तथा विभिन्न शारीरिक तंत्र मिलकर सम्पूर्ण मानव शरीर की रचना करते हैं। शरीर की बाहरी संरचना की बात करें तो इसके मुख्य भागों में एक सिर, गर्दन, पेट, दो हाथ एवं दो पाँव शामिल हैं।
206 हड्डियों से बना एक ढांचा पूरे शरीर को एकरूपता प्रदान करता है। शरीर का प्रत्येक अंग शारीरिक क्रियाओं में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइये अब नज़र डालते हैं शरीर के विभिन्न तंत्रों पर और देखते हैं कौन सा अंग शरीर के किस तंत्र का हिस्सा है।
शरीर के विभिन्न तंत्र
मानव शरीर मुख्यतः दस महत्वपूर्ण तंत्रों से मिलकर बना होता है।
- कंकाल तंत्र
- मांशपेशी तंत्र
- परिसंचरण तंत्र
- तांत्रिका तंत्र
- अंतः स्रावी तंत्र
- लसिका तंत्र
- श्वसन तंत्र
- पाचन तंत्र
- उत्सर्जन तंत्र
- प्रजनन तंत्र
कंकाल तंत्र (Skeletal System)
जैसा कि हमनें ऊपर बताया कंकाल शरीर को ढांचा अथवा एक संरचना प्रदान करता है। यह सभी अंगों को आपस में जोड़े रखता है तथा कुछ संवेदनशील अंगों जैसे दिमाग को सुरक्षा भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त कंकाल तंत्र रक्त कोशिकाओं का निर्माण तथा कैल्शियम संरक्षण करने का कार्य भी करता है। एक वयस्क मनुष्य में यह ढांचा 206 हड्डियों से मिलकर बना होता है वहीं किसी नवजात में यह ढांचा 300 हड्डियों का होता है।
मांसपेशी तंत्र (Muscular System)
मांसपेशियों का तंत्र तकरीबन 650 मांसपेशियों से मिलकर बना होता है जो शरीर को गति, रक्त प्रवाह तथा कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में मदद करता है। शरीर में मुख्यतः तीन प्रकार की मांशपेशियाँ पाई जाती हैं। कंकाल की मांशपेशियाँ जो शरीर को गति करने में मदद करती हैं, कोमल मांशपेशियाँ जो शरीर के विभिन्न अंगों जैसे फेफड़े, यकृत आदि में पाई जाती है तथा ह्रदय संबंधित मांशपेशियाँ जो ह्रदय में पाई जाती हैं तथा रक्त को पम्प करने का कार्य करती हैं।
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परिसंचरण तंत्र (Cardiovascular System)
परिसंचरण तंत्र पूरे शरीर में फैली किसी पाइपलाइन के समान है। ह्रदय, धमनियाँ, केशिकाएं तथा शिराएं मिलकर इस तंत्र का निर्माण करते हैं जिसमें ह्रदय केन्द्रीय भूमिका में होता है तथा केशिकाएं धमनियों और शिराओं के बीच मध्यस्थ का कार्य करती हैं। फेफड़ों द्वारा ऑक्सीजन युक्त रक्त ह्रदय को भेजा जाता है जहाँ से ह्रदय इसे धमनियों के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर को भेजता है।
केशिकाएं धमनियों से प्राप्त रक्त से ऑक्सीजन तथा अन्य पोषक तत्वों को ऊत्तकों तक पहुँचाती है तथा ऊत्तकों से कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर अशुद्ध रक्त शिराओं के माध्यम से फेफड़ों को भेजती हैं। यह चक्र जीवन पर्यंत चलता रहता है। परिसंचरण तंत्र रक्त के अलावा अन्य महत्वपूर्ण सामग्री जैसे विभिन्न हार्मोन भी शरीर के प्रत्येक अंगों तक पहुँचाने का कार्य करता है।
तंत्रिका तंत्र (Nervous System)
तंत्रिका तंत्र शरीर का महत्वपूर्ण तंत्र है। यह ऐच्छिक तथा अनैच्छिक दोनों प्रकार की गतिविधियों को नियंत्रित करता है। यह तंत्र विशेष प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है जिन्हें न्यूरॉन्स कहते हैं। न्यूरॉन्स शरीर की सबसे बड़ी कोशिका होती है। हमें महसूस होने वाले किसी भी प्रकार के एहसास जैसे भूख लगना, गुस्सा आना, प्यास लगना, दर्द का अनुभव होना, ठंडे गर्म का अनुभव आदि के लिए तंत्रिका तंत्र ही जिम्मेदार है। इस तंत्र के अंतर्गत हमारा दिमाग, रीढ़ की हड्डी तथा तंत्रिका कोशिकाओं का एक जाल शामिल है। किसी गर्म वस्तु को अचानक छू लेने पर हम तुरंत अपना हाथ ऐसी वस्तु से हटा लेते हैं यह तंत्रिका तंत्र के कारण ही होता है।
अन्तः स्रावी तंत्र (Endocrine System)
इस तंत्र के तहत आठ विभिन्न ग्रंथियाँ शामिल हैं जो तांत्रिक तंत्र से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अलग अलग प्रकार के हार्मोन उत्सर्जित करते हैं। प्रत्येक ग्रंथि एक विशिष्ट हार्मोन का स्राव करती है जो किसी अंग विशेष को किसी विशेष शारीरिक क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है। हमारे शरीर में हाइपोथैलमस ग्रंथि, पिट्यूटरी ग्रंथि, थायराइड ग्रंथि, पैराथायराइड ग्रंथि, पीनियल ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि, अग्न्याशय ग्रंथि, वृषण (सिर्फ पुरुषों में) और अंडाशय (सिर्फ महिलाओं में) ग्रंथियाँ पाई जाती हैं। शारीरिक विकास, उपापचय (Metabolism), जनन आदि ऐसी क्रियाए हैं जो किसी हार्मोन विशेष के स्रावित होने से होती हैं।
लासिका तंत्र (Lymphatic System)
परिसंचरण तंत्र की तरह यह भी शरीर में एक पाइपलाइन के समान है। परिसंचरण तंत्र में मौजूद रक्त केशिकाओं (Blood capillaries) से रक्त का प्लाज़्मा तथा कुछ श्वेत रक्त कणिकाएं बाहर निकल जाती हैं। यह श्वेत रंग का एक तरल होता है जिसे लिम्फ़ कहा जाता है। इसमें प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो इस तरल से कोशिकाओं को प्राप्त होते हैं। अतिरिक्त बचा तरल लसीका तंत्र द्वारा पुनः रक्त शिराओं में मिला दिया जाता है। लसीका तंत्र शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण योगदान निभाता है। यह शरीर के क्षतिग्रस्त क्षेत्र की पहचान कर वहाँ श्वेत रक्त कणिकाओं की आपूर्ति करता है। इस तंत्र के अंतर्गत लिम्फ नोड, लिम्फ नलिकाएं आदि शामिल हैं।
उत्सर्जन तंत्र (Urinary System)
इस तंत्र द्वारा उत्सर्जन का कार्य किया जाता है। इस तंत्र में दो गुर्दे , दो मूत्र वाहिनियाँ, मूत्राशय तथा मूत्र नलिका शामिल है। इस तंत्र का मुख्य कार्य शरीर में पानी तथा खनिजों को नियंत्रित करना तथा रक्त में उपस्थित अशुध्दियों जैसे यूरिया को छानकर रक्त को शुद्ध करना होता है। रक्त से निकाली गयी अशुद्धियाँ मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं।
श्वसन तंत्र (Respiratory System)
शरीर के प्रत्येक तंत्र को कार्य करने के लिए उर्ज़ा की आवश्यकता होती है अतः शरीर को उर्ज़ा प्रदान करने में श्वसन तंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस तंत्र द्वारा भोजन के मुख्य घटकों प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का ऑक्सीजन द्वारा दहन कोशिका के माइटोकॉनड्रिया में होता है तथा शरीर को ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इस क्रिया में जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड भी निकलती है। श्वसन तंत्र के अंतर्गत नाक, श्वास नलिका, फेफड़े तथा डायफ्राम शामिल हैं। यह तंत्र शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति करता है तथा कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित हानिकारक कार्बन डाईऑक्साइड को बाहर निकलता है।
पाचन तंत्र (Digestive System)
जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह तंत्र हमारे शरीर की पाचन क्रियाओं को संचालित करता है दूसरे शब्दों में जो भी खाद्य या पेय पदार्थ ग्रहण करते हैं यह तंत्र उसका पाचन कर उससे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को अलग कर शरीर को प्रदान करता है जबकि बचे हुए अपशिष्ट को मल के रूप में शरीर से बाहर निकल दिया जाता है। इस तंत्र के अंतर्गत अंगों की एक श्रंखला शामिल है जिसमें मुह, आहारनाल, पेट, छोटी आंत, बड़ी आंत, यकृत, मलाशय तथा मल द्वार हैं। पाचन क्रिया में इन अंगों के अतिरिक्त कुछ ग्रंथियाँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जिनसे स्रावित होने वाले एंजाइम खाने को पचाने में सहायता करते हैं। मानव पाचन तंत्र से जुड़ी ग्रंथियां हैं– लार ग्रंथी, यकृत और अग्न्याशय।
प्रजनन तंत्र (Reproductive System)
यह तंत्र प्रजनन अर्थात संतान की उत्पात्ति के लिए आवश्यक है। पुरुषों में इस तंत्र के अंतर्गत एक लिंग तथा एक जोड़े अंडकोश पाए जाते हैं जो शुक्राणुओं का उत्पादन करते हैं जबकि महिलाओं में एक योनि, गर्भाशय तथा अंडनलिका पाई जाती है जो अंडाणुओं का उत्पादन करती है। शुक्राणु द्वारा किसी अंडाणु का निषेचन मादा प्रजनन अंग अंडनलिका में होता है जहाँ से इसे गर्भाशय में पहुँचा दिया जाता है तथा यहाँ भ्रूण की उत्पत्ति होती है।
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