विषाणु (Virus) क्या हैं तथा कैसे हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं?

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हाल ही में चीन के एक शहर से उपजे वायरस, जिसे सामान्यतः कोरोना वायरस नाम दिया गया है, ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है। इससे विश्वभर में लगभग करोड़ों की संख्या में लोग संक्रमित हो चुके हैं, वहीं लाखों की संख्या में लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी है। इसकी तीव्रता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे वैश्विक महामारी घोषित किया गया है।

इस वायरस को समझने से पहले आपके लिए आवश्यक है, कि आप सामान्यतः वायरस के बारे में जानें तथा इसकी संरचना एवं व्यवहार को समझें। इसी को देखते हुए लेख के इस भाग में हम विषाणु के बारे में विस्तार से समझेंगे तथा अगले भाग में कोरोना वायरस तथा विश्व में उसके प्रभावों के बारे में चर्चा करेंगे।

क्या हैं विषाणु?

विषाणु है क्या? यह बिना कोशिकाओं वाले शूक्ष्म जीव हैं, जो मुख्यतः DNA या RNA तथा प्रोटीन से मिलकर बने होते हैं। हालाँकि सामान्य अवस्था में कोई विषाणु जीवित नहीं होता यह एक क्रिस्टल के रूप में होता है, किंतु किसी जीवित प्राणी के संपर्क में आते ही ये जीवित हो जाता है।

संरचना एवं कार्यप्रणाली

जैसा कि हमने बताया कोई भी वायरस जब तक किसी जीवित कोशिका के संपर्क में नहीं होता वह मृत अवस्था मे होता है और इस अवस्था मे कोई वायरस सैकड़ों वर्षों तक रह सकता है किंतु जीवित कोशिका के संपर्क में आते ही ये जीवित अथवा सक्रिय हो जाता है। अक्रिय या मृत अवस्था में ये अपना पुनरुत्पादन या अपने जैसे अन्य विषाणुओं को पैदा नहीं कर सकते हैं।

कोई भी जीवित शरीर उसकी कोशिकाओं में उपस्थित DNA में उपलब्ध सूचना या कोड के अनुसार कार्य करता है और इसी से प्राणी के शरीर की बनावट, रंग, रूप, उसके गुण-दोष आदि का निर्धारण होता है अतः शरीर की कार्यप्रणाली में इसका अहम योगदान है।

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किसी वायरस के शरीर मे प्रवेश करने की स्थिति में वह सर्वप्रथम प्राणी की कोशिका के DNA या RNA के कोड को अपने DNA या RNA के कोड से प्रतिस्थापित कर देता है। इस प्रकार प्राणी की वह कोशिका अपने सभी संसाधनों का प्रयोग विषाणु की इच्छा अनुसार करने लगती है। उसके जैसे अनेक विषाणुओं का उत्पादन करने लगती है तथा वे अन्य विषाणु पुनः अलग अलग कोशिकाओं में अपने DNA या RNA को कॉपी कर देते हैं। इस प्रकार प्राणी के शरीर में विषाणुओं की मात्रा बढ़ते रहती है तथा इसके बाद वह विषाणु अपनी प्रकृति के अनुसार शरीर को हानि पहुँचाता है।

विषाणु अनेक प्रकार के होते हैं जिनमें कुछ कम हानिकारक तथा कुछ HIV जैसे बेहद खतरनाक शामिल हैं। हालाँकि हमारे शरीर में भी बाह्य सूक्ष्मजीवों से लड़ने के लिए बहुत बड़ा तंत्र होता है, जिसके बारे में हम आगे समझेंगे यही कारण है कि अधिकतर विषाणुओं से हमारा शरीर स्वयं निपटने में सक्षम होता है।

मानव शरीर एवं विषाणु (How Virus affect the Human Body)

हमारे शरीर में भी बाहर से आने वाले सूक्ष्मजीवों जैसे विषाणु, जीवाणु आदि से लड़ने के लिए एक प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) होता है। हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र दो प्रकार का होता है।

  • जन्मजात प्रतिरक्षा या Innate Immune
  • प्राप्त प्रतिरक्षा या Acquired Immune

Innate Immunity

जन्मजात प्रतिरक्षा तंत्र भी दो चरणों में कार्य करता है। पहले चरण में किसी सूक्ष्मजीव को शरीर के अंदर प्रवेश करने से रोका जाता है और यह कार्य हमारी त्वचा, म्यूकस परतों, तथा कुछ एन्जाइमों द्वारा किया जाता है जो आँख, गले, नाक आदि में मौजूद रहते है।

किसी संक्रमण की स्थिति में इन एन्जाइमों का स्राव होने लगता है जिसका परिणाम हमें आँख तथा नाक से पानी, छींक, खाँसी आदि के रूप में दिखाई देता है। इसके बावजूद यदि कोई सूक्ष्मजीव बाहरी सुरक्षा तंत्र को भेदकर भीतर प्रवेश कर जाए तब अंदरूनी प्रतिरक्षा तंत्र कार्य करता है इसके अंतर्गत श्वेत रक्त कोशिकाएं (जिनके अनेक प्रकार अलग अलग कार्य करते हैं) तथा कुछ अन्य प्रोटीन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। श्वेत रक्त कोशिकाएं सामान्यतः बाहरी सूक्ष्मजीवों को मार देती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य प्रोटीन भी बाहरी जीवों से लड़ने का कार्य करते हैं।

Acquired immunity

जन्मजात प्रतिरक्षा तंत्र में हमनें श्वेत रक्त कोशिकाओं के बारे में बताया, श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार लिम्फोसाइट्स होते हैं, जो पुनः दो प्रकार (T लिम्फोसाइट तथा B लिम्फोसाइट) के होते हैं। T लिम्फोसाइट द्वारा किसी बाहरी सूक्ष्मजीव को नष्ट कर देने के बाद उस सूक्ष्मजीव के मरे हुए किसी हिस्से जिसे एंटीजन कहा जाता है, का B लिम्फोसाइट द्वारा अध्ययन किया जाता है तथा उस खास सूक्ष्मजीव के लिए एंटीबॉडी का निर्माण किया जाता है। अब भविष्य में कभी भी उस सूक्ष्मजीव के पुनः शरीर में प्रवेश करने की स्थिति में उसे नष्ट करना आसान हो जाता है। इसी प्रतिरक्षा तंत्र को acquired immunity कहते हैं।

गौरतलब है की हमें लगने वाले टीकों में भी किसी विषाणु के मरे हुए हिस्से अर्थात एंटीजन दिए जाते हैं ताकि B लिम्फोसाइट उसका अध्ययन करके उस विषाणु के खिलाफ एंटीबॉडी का निर्माण कर सके और भविष्य में उस विषाणु के हमारे शरीर में प्रवेश कर जाने के बाद उसे नष्ट किया जा सके।

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