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क्या है दूरसंचार (Telecommunication)?
दोस्तो जैसा कि, इसके नाम से स्पष्ट है संचार या कम्युनिकेशन का मतलब किन्हीं दो लोगों द्वारा एक दूसरे से संवाद करना या किसी सूचना का आदान प्रदान करना है तथा संचार में दूर जुड़ जाने से यह दूरसंचार बन जाता है, जो अधिक दूरी पर स्थित किन्हीं दो लोगों द्वारा सूचना के आदान प्रदान को प्रदर्शित करता है।
कैसे संभव हो पाता है दूरसंचार?
अधिक दूरी में स्थित दो व्यक्तियों के लिए सूचनाओं का आदान प्रदान करना दो तरीकों से संभव है, जिनमें पहला तरीका है तारों के द्वारा किन्ही दो उपकरणों को जोड़ दिया जाए, ताकि सूचनाएं एक दूसरे को प्रेषित की जा सकें। हमारे घरों तथा कार्यालयों में उपयोग होने वाले लैंडलाइन फोन इसके उदाहरण हैं। दूसरा तरीका आधुनिक हैं, जिसमें तारों का इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि सूचनाओं को हमारे आस-पास लगे मोबाइल टावरों के द्वारा रेडियो तरंगों के माध्यम से एक उपकरण से दूसरे में भेजा जाता है।
अपने इस लेख में हम इसी तरीके की बात करेंगे तथा आपको बताएंगे अक्सर सुनाई देने वाले 2G, 3G, 4G तथा 5G क्या हैं एवं इनका क्या महत्व है। यहाँ G का मतलब Generation या पीढ़ी से है तथा पीढ़ी का मतलब दूरसंचार प्रौद्योगिकी में समय के साथ हुए विकास से। जिससे मानव जीवन को बहुत हद तक आसान बनाया जा सके। आइये अब शुरुआत से समझते हैं बिना तारों के दूरसंचार की अलग-अलग पीढ़ियों को
- 1G
- 2G
- 3G
- 4G
- 5G
First Generation (1G)
यह बिना तारों के संचार की पहली अवस्था थी, जिसकी शुरुआत सन 1980 में हुई। इसके द्वारा केवल वॉइस कॉल कर पाना संभव था, जिसको एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए ऐनलॉग सिग्नल (Analog Signals) का प्रयोग किया जाता था। ऐनलॉग सिग्नल का प्रयोग होने के कारण इस Generation में कई खामियाँ थी, जैसे अधिक दूरी तक कम्यूनिकेशन कर पाना संभव नहीं था,आवाज की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी तथा दो लोगों के मध्य होने वाली बात को सुन पाना आसान था, जो सुरक्षा या गोपनीयता के लिहाज से सही नहीं था।
Second Generation (2G)
दूरसंचार की अगली अवस्था 2G थी, इसकी शुरुआत 1990 से हुई। यह पहली पीढ़ी के मुकाबले काफी हद तक विकसित थी और इसका मुख्य कारण संचार के लिए प्रयोग होने वाले डिजिटल सिंग्नल (Digital Signal) थे। ऐनलॉग के बजाए डिजिटल सिग्नल का प्रयोग करने से सिग्नलों को अधिक दूरी तक भेजना संभव हो पाया, सूचना को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने के कारण संचार पहले की तुलना में सुरक्षित हो गया, इसके अतिरिक्त 2G में डिजिटल सिग्नलों का इस्तेमाल होने के कारण वॉइस कॉल करने के अतिरिक्त लिखित संदेश (SMS) भेज पाना भी संभव हो गया।
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चूँकि पहली पीढ़ी (1G) में संचार के लिए किसी वैश्विक प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं किया जाता था, जिस कारण अंतर्राष्ट्रीय संचार कर पाना असंभव था। इसी को ध्यान में रखते हुए दूरसंचार की इस पीढ़ी में संचार के लिए एक वैश्विक प्रौद्योगिकी ग्लोबल सिस्टम फ़ॉर मोबाइल कम्युनिकेशन अथवा GSM को अपनाया गया।
दूरसंचार प्रौद्योगिकी के इस विकसित रूप में अलग-अलग चरण आए, जिनके कारण पहली बार हमें अवसर मिला एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक किसी मीडिया (फोटो, वीडियो, औडियो) जिसे MMS (Multi Media Message) कहा गया को भेजने का और साथ-साथ इंटरनेट जैसी तकनीक का उपयोग करने का। दूसरी अवस्था में निम्न चरण आए
2.5G (GPRS)
इस चरण में पहली बार पहचान में आया GPRS, जिसे जनरल पैकेट रेडियो सर्विस (General Packet Radio Service) कहा जाता है। इसके द्वारा हमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक डेटा भेजने या इंटरनेट इस्तेमाल करने की सुविधा मिली, जिसकी स्पीड लगभग 56 से 64 किलो बाइट प्रति सेकंड होती थी।
2.75G (EDGE)
यह पिछले चरण का और विकसित रूप था, जिसमें हमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक डेटा भेजने में और अधिक सहूलियत हुई इस चरण में सामने आया GPRS का विकसित रूप जिसे EDGE (Enhanced Data Rates for GSM Evolution) कहा जाता है। इस तकनीक के कारण लगभग 170 kbps की स्पीड से डेटा का हस्तांतरण कर पाना संभव हो पाया।
Third Generation (3G)
दूरसंचार प्रौद्योगिकी की तीसरी अवस्था 3G थी, चूँकि अधिक दूरी तक वॉइस कॉल करने की सुविधा हमें GSM के द्वारा मिल चुकी थी इसलिए अब शोधकर्ताओं का मुख्य उद्देश्य डेटा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक कम से कम समय में भेजना था। इस अवस्था में भी कई अलग-अलग चरण आए तीसरी अवस्था के पहले चरण में EDGE का और विकसित रूप यूनिवर्सल मोबाइल टेलिकम्युनिकेशन सिस्टम (UMPS) सामने आया।
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इसकी सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक डेटा भेजना पूर्व की तुलना में और आसान हो गया, जिसकी स्पीड लगभग 384kbps हो गयी, जो पहले उपयोग होने वाली तकनीक की तुलना में दोगुने से भी अधिक थी। इसके अतिरिक्त दूरसंचार की इसी पीढ़ी में पहली बार हमें वीडियो कॉल तथा इंटरनेट का उपयोग करके ऑनलाइन वीडियो देखने (Online Video Streaming) की सुविधा मिली। आइये अब तीसरी अवस्था के अलग-अलग चरणों के बारे में समझते हैं।
3.5G
चूँकि अब इंटरनेट का अधिक मात्रा में उपयोग किया जाने लगा तथा इंटरनेट उपयोग करने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के चलते इस बात पर ध्यान दिया जाने लगा कि, डाउनलोड तथा अपलोड की स्पीड को बेहतर किया जाए, ताकि इन्टरनेट उपयोगकर्ताओं को एक बेहतर अनुभव प्रदान किया जा सके। तीसरी पीढ़ी के इस चरण में UMPS का और विकसित रूप HSPA (High Speed Packet Access) सामने आया। अब डेटा ट्रांसफर की गति लगभग 2mbps तक हो गयी।
3.75G
HSPA के बाद HSPA+ के रूप में इसका और विकसित रूप इस चरण में आया, जिससे डेटा हस्तांतरण पहले की तुलना में और सुगम हो गया तथा डेटा हस्तांतरण की गति 21mbps तक हो गई।
Fourth Generation (4G)
दूरसंचार प्रौद्योगिकी की चौथी अवस्था को हम 4G के नाम से जानते हैं, जिसका वर्तमान में हम उपयोग कर रहे हैं। यह LTE या लॉन्ग टर्म एवोल्यूशन तकनीक पर आधारित है। इस पीढ़ी में डेटा हस्तांतरण के लिए कुछ मानक निर्धारित किए गए हैं, जिसमें किसी उपयोगकर्ता को गति अवस्था में 100mbps तथा स्थिर अवस्था में 1gbps की इंटरनेट स्पीड मिलनी चाहिए। अतः सामान्यतः जिस 4G का हम इस्तेमाल करते हैं वह असल में 4G तकनीक नहीं हैं बल्कि तीसरी पीढ़ी से चौथी पीढ़ी के मध्य की अवस्था है।
Fifth Generation (5G)
दूरसंचार की यह पीढ़ी मानव जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने में सक्षम होगी। इसमें सूचना के हस्तांतरण की गति बहुत अधिक (लगभग 5gbps) होगी, जिससे किसी सूचना को भेजने तथा उसे प्राप्त करने के मध्य विलंब नगण्य होगा। हाँलकी यह तकनीक अभी विकासशील अवस्था में है। कई देश इस तकनीक के परीक्षण पर कार्य कर रहे हैं, जबकि कुछ देश इसका सफल परीक्षण कर चुके हैं, इनमें दक्षिण कोरिया, अमेरिका, चीन आदि देश शामिल हैं।
दूरसंचार की यह पीढ़ी मुख्यतः इंटरनेट ऑफ थिंग्स तकनीक के लिए आधारभूत संरचना का कार्य करेगी। इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) एक एसी तकनीक है, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा उपयोग किए जाने वाले अधिकतर उपकरण इंटरनेट की सहायता से आपस में जुड़े होंगे तथा अपने उपयोगकर्ता के संबंध में सूचनाओं का आदान-प्रदान कर आवश्यक निर्णय ले सकेंगे। इंटरनेट ऑफ थिंग्स के विषय में नीचे दी गई लिंक द्वारा विस्तार से समझा जा सकता है।
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