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Deep Fake Explained in Hindi: डीपफेक क्या है और क्यों खतरनाक है?

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पिछले कुछ वर्षों में जैसे-जैसे इंटरनेट की पहुँच लोगों तक बढ़ी है स्वास्थ्य, शिक्षा, हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों के साथ-साथ हमारे दैनिक जीवन के प्रत्येक हिस्से में आमूलचूल बदलाव देखने को मिले हैं। सकारात्मक दिशा में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से जहाँ मानव जीवन हर रोज बेहतर होता जा रहा है वहीं इसका दुरुपयोग देश और दुनियाँ के लिए बहुत बड़ा खतरा भी बन रहा है।

हालिया समय में बड़ी समस्या बनता जा रहा फेक न्यूज़ अर्थात इंटरनेट के जरिए झूठी खबरों को फैलाना टेक्नोलॉजी का एक महत्वपूर्ण दुरुपयोग है। झूठी खबरें आमतौर पर लोगों को गुमराह करने, किसी व्यक्ति / संस्था की छवि खराब करने, सांप्रदायिक मतभेद पैदा करने आदि उद्देश्यों से फैलाई जाती हैं और फेसबूक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म इन खबरों को फैलाने में उत्प्रेरक की भूमिका अदा करते हैं।

इसमें कोई शक नहीं है कि, फेक न्यूज़ समाज और सरकारों के लिए एक बेहद चिंताजनक विषय हैं किन्तु वर्तमान में फेक न्यूज़ से भी बड़ी समस्या इसका अधिक उन्नत रूप “डीप फेक” बन चुका है, जिसके बारे में आज हम यहाँ चर्चा करने जा रहे हैं। इस लेख में आगे विस्तार से जानेंगे डीप फेक क्या है, यह कैसे काम करता है और देश तथा दुनियाँ के लिए क्यों खतरनाक है?

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डीप फेक (Deep Fake) क्या है?

डीप फेक झूठी खबरों का कहीं अधिक विकसित और खतरनाक रूप है, यह दुष्प्रचार, अफवाहों को तेज़ी से फैलाने का नया विकल्प बनकर उभरा है। डीप फेक ‘डीप लर्निंग’ और ‘फेक’ का सम्मिश्रण है जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) का इस्तेमाल कर किसी मीडिया फ़ाइल जैसे फ़ोटो, ऑडियो या वीडियो की नकली प्रति तैयार करी जाती है।

यह नकली प्रति वास्तविक फ़ाइल की तरह ही दिखती और आवाज करती है। जहाँ सामान्य झूठी खबरों को कई तरीके से जाँचा जा सकता है वहीं डीप फेक की पहचान कर पाना किसी आम इंसान के लिए बेहद मुश्किल है।

कैसे काम करती है डीप फेक तकनीक?

कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी AI का प्रयोग कर किसी व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्दों, उसके शरीर की गतिविधि या अभिव्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर स्थानांतरित किया जाता है। Generative Adversarial Networks (GAN) का इस्तेमाल कर इसे और ‘विश्वसनीय’ बनाया जा सकता है। अधिकांश स्थितियों में यह पता करना बहुत ही कठिन हो जाता है कि दिखाया गया मीडिया असली है अथवा नकली। सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट ओपन सोर्स कम्युनिटी GitHub पर भारी मात्रा में ऐसे सॉफ्टवेयर्स उपलब्ध हैं जो डीपफेक बना सकने में सक्षम हैं। 

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डीप फेक से नुकसान

किसी भी तकनीक का गलत इस्तेमाल विनाशकारी साबित हो सकता है और डीपफेक इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इससे किसी व्यक्ति का राजनतिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन बर्बाद किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर नीचे दिखाए गए पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के एक डीपफेक वीडियो से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्हें पहचान पाना कितना मुश्किल है तथा यह किसी समाज या देश के लिए कितना घातक साबित हो सकता है।

लोकतंत्र के लिए खतरा

डीपफेक के इस्तेमाल से लोकतंत्र को अत्यधिक क्षति पहुँचाई जा सकती है। कल्पना कीजिए किसी चुनाव के दौरान उम्मीदवार का वीडियो जारी होता है जिसमें वो नफ़रती भाषण, नस्लीय टिप्पणी अथवा अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ कोई गलत बयान दे रहा हो, इस प्रकार चुनाव प्रक्रिया को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त डीप फेक का प्रयोग चुनाव परिणामों की अस्वीकार्यता या अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के लिये भी किया जा सकता है, जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये बड़ी चुनौती साबित होगा।

महिला सुरक्षा

डीपफेक का इस्तेमाल पोर्नोग्राफ़ी में कई समय से किया जा रहा है, जिसमें पोर्नस्टार्स के चेहरों को बड़ी हस्तियों के चेहरों से बदलकर उनकी छवि को खराब किया जाता है। डीपफेक वीडियो बनाकर अधिकतर स्थितियों में महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। ऐसी वीडियो का इस्तेमाल किसी व्यक्ति को मानसिक तथा सामाजिक तौर पर क्षति पहुँचाने के उद्देश्य से किया जाता है। इसके अतिरिक्त इनका उपयोग किसी व्यक्ति को डराने-धमकाने आदि के लिए भी किया जाता है। 

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राष्ट्रीय सुरक्षा

डीपफेक जैसी तकनीक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरे से कम नहीं है। इसके माध्यम से सांप्रदायिक दंगे, जातिवाद जैसे मुद्दों को बढ़ावा दिया जा सकता है। अफवाहों के कारण होने वाली मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं समय समय पर देखने को मिलती रहती है। सोशल मीडिया की बढ़ती पहुँच तथा भारत में अशिक्षा के स्तर को देखा जाए तो डीपफेक जैसी तकनीक भारत के लिए किसी परमाणु हथियार से कम नहीं है।

अर्थव्यवस्था

डीपफेक का इस्तेमाल किसी कंपनी को आर्थिक रूप से क्षति पहुँचाने के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई कंपनी व्यवसाय में निवेश करने के उद्देश्य से रकम जुटाने की कोशिश कर रही हो तथा उसी दौरान कंपनी के किसी निदेशक या बोर्ड के किसी सदस्य का कोई ऑडियो अथवा वीडियो क्लिप सोशल मीडिया में वायरल हो जाए जिसमें वो अपनी कंपनी के उत्पाद के बारे में अपने डर को ज़ाहिर कर रहा हो तो ऐसे में कंपनी तथा अर्थव्यवस्था पर इसका बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अतिरिक्त बड़ी कंपनियों के प्रभावशाली लोगों की नकली ऑडिओ या वीडियो क्लिप शेयर बजार में भी अस्थिरता पैदा कर सकती है।

फेक न्यूज तथा डीप फेक को कैसे पहचानें?

किसी भी संदिग्ध स्रोत जैसे सोशल मीडिया, संदिग्ध वेबसाइट आदि में देखी गई सूचना पर तुरंत विश्वास न करें। आप ऐसी खबर को गूगल पर खोज कर उसकी पुष्टि कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त किसी भी संदिग्ध खबर को उसकी पुष्टि हो जाने तक सोशल मीडिया पर शेयर न करें। फॉटोशॉप के द्वारा भ्रामक तस्वीर बना कर झूठी खबरें फैलाना वर्तमान परिदृश्य में आम हो चुका है, अतः ऐसी किसी तस्वीर को गूगल इमेज सर्च का इस्तेमाल करते हुए जाँचा जा सकता है।

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वहीं यदि डीपफेक तकनीक की बात करें तो समय के साथ यह अत्यधिक विकसित हो रही है, जिससे किसी आम इंसान के लिए इसे पहचान पाना बेहद मुश्किल होगा। अतः ऐसे में सरकारों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि, वे इस क्षेत्र में कड़े नियमन की व्यवस्था करे, सामाजिक जागरूकता तथा डीपफेक मीडिया की पहचान करने हेतु आश्यक प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा दे।

गौरतलब है कि, इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर कुछ सराहनीय प्रयास भी किए जा रहे हैं, हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूसी बर्कले के शोधकर्त्ताओं ने एक प्रोग्राम तैयार किया है, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग कर डीप फेक वीडियो की पहचान करने में सक्षम है।

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