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क्या होते हैं साइबर अपराध?
वर्तमान में हम अपने दैनिक जीवन के निजी कार्यों से लेकर दफ़्तर, स्कूल, कॉलेज आदि के कार्यों के लिए बहुत हद तक इंटरनेट पर निर्भर हो चुके हैं। हमारी महत्वपूर्ण जानकारियों (गोपनीय दस्तावेज, बैंक खातों संबंधित सूचना) का एक बहुत बड़ा हिस्सा इंटरनेट पर स्टोर है। प्रश्न उठता है क्या हमारा इतना महत्वपूर्ण डेटा इंटरनेट में सुरक्षित है? यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है।
हालाँकि समय-समय पर प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी में बदलाव एवं उन्हें विकसित करके लोगों के निजी डेटा को सुरक्षित बनाने के लिए प्रयास किये जाते हैं, फिर भी यह कह पाना की हमारा डेटा इंटरनेट में पूर्ण रूप से सुरक्षित है सही नहीं है। आज इस लेख के माध्यम से हम ऐसे ही तरीकों को समझेंगे, जिनका प्रयोग इंटरनेट की दुनियाँ में किसी व्यक्ति को किसी न किसी रूप में हानि पहुँचाने जैसे महत्वपूर्ण डेटा चुराने, गैरकानूनी रूप से किसी पर नज़र रखने आदि के उद्देश्य से किया जाता है।
मैलवेयर
यह एक दोषपूर्ण सॉफ्टवेयर (Malicious Software) होता है तथा मालवेयर इसी का संक्षिप्त नाम है। इसका प्रयोग किसी व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे कम्प्यूटर, स्मार्टफोन, टेबलेट आदि के कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करने या इन उपकरणों में स्टोर डेटा को चोरी करने के लिए किया जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं, जिनमें कुछ महत्वपूर्ण की चर्चा हम इस लेख में करेंगे।
वायरस
आपने किसी कंप्यूटर या स्मार्टफोन को उपयोग करने के संदर्भ में वायरस का नाम अवश्य सुना होगा। यह एक सामान्य प्रोग्राम होता है, जिसे गलत कार्यों को अंजाम देने के उद्देश्य से बनाया जाता है। इस प्रोग्राम की खासियत यह होती है कि, यह इससे प्रभावित या संक्रमित उपकरण के संपर्क में आने वाले अन्य उपकरणों को भी संक्रमित कर देता है।
जैसे किसी संक्रमित कम्प्यूटर से किसी स्मार्टफोन या हार्ड डिस्क को जोड़ने पर यह वायरस अपनी एक प्रति इन बाहरी उपकरणों में भी बना लेता है तथा उन्हें भी संक्रमित कर देता है। इसका इस्तेमाल संक्रमित उपकरण की दक्षता को प्रभावित करने या निजी जानकारी चुराने आदि के लिये होता है।
एडवेयर
यह विज्ञापन समर्थित सॉफ्टवेयर होता है, जो इससे संक्रमित कम्प्यूटर या स्मार्टफोन में अनचाहे विज्ञापनों को प्रदर्शित करता रहता है।
स्पाई वेयर
जैसा कि, नाम से ही स्पष्ट है इस प्रकार के सॉफ्टवेयर का उपयोग किसी व्यक्ति विशेष पर निगरानी रखने तथा उसका गोपनीय डेटा चुराने के लिए किया जाता है। इसमें इसका प्रयोग करने वाला व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के उपकरण का आंशिक या पूर्ण रूप से नियंत्रण प्राप्त कर लेता है तथा उस उपकरण का प्रयोग उपयोगकर्ता की निजी जानकारी चुराने या उसकी प्रत्येक गतिविधि जैसे फोन कॉल्स, ब्राऊज़िंग हिस्ट्री, सोशियल मीडिया एकाउंट्स की जानकारी आदि पर नज़र रखने के लिए करता है।
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हाल ही में इजराइल की एक कंपनी NSO द्वारा बनाया गया स्पाईवेयर पेगासस काफी चर्चा में रहा। इससे प्रभावित होने पर किसी व्यक्ति के स्मार्टफोन या कंप्यूटर का पूर्ण नियंत्रण इस मालवेयर का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति पर चला जाता है, जिससे वह डिवाइस में महत्वपूर्ण डेटा जैसे सोशियल मीडिया एकाउंट के पासवर्ड, ई-मेल एकाउंट्स, बैंक से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी आदि को चुराने के अलावा डिवाइड के कैमरे, माइक्रोफ़ोन, जैसे फीचर्स का कभी भी उपयोग कर सकता है और उपयोगकर्ता की प्रत्येक गतिविधि पर नज़र रख सकता है। इस मालवेयर से प्रभावित होने के बाद उपयोगकर्ता के पास अपने डिवाइस को बदलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह जाता।
रैनसमवेयर
यह भी एक प्रकार का मालवेयर है इसमें इसका प्रयोग करने वाला कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के कंप्यूटर में मौजूद महत्वपूर्ण डेटा को लॉक कर देता है तथा उस डेटा को वापस करने के बदले फिरौती (Ransom) की माँग करता है। इसी प्रकार के एक रैनसमवेयर “WannaCry” का हमला साल 2017 में विश्वभर के कई अलग अलग देशों के कम्प्यूटरों पर हुआ, जिनके महत्वपूर्ण डेटा को लॉक कर दिया गया, तथा डेटा को वापस करने के बदले बिटकॉइन में फिरौती माँगी गई।
कम्प्यूटर हैकिंग
किसी व्यक्ति द्वार किसी नेटवर्क के कंप्यूटर पर पूरी तरह अधिकार प्राप्त करके उस कम्प्यूटर के डेटा को चोरी कर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना या उस डेटा को आंशिक या पूर्ण रूप से नष्ट करना हैकिंग कहलाता है। हैकिंग दो प्रकार की होती है ब्लैक हैट तथा वाइट हैट हैकिंग। जहाँ ब्लैक हैट हैकिंग का उद्देश्य किसी के निजी डेटा के साथ छेड़छाड़ कर उसे हानि पहुँचाना होता है, वहीं वाइट हैट हैकिंग का उपयोग आपराधिक गतिविधियों से जुड़े मामलों की जाँच में या किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की सुरक्षा में किसी ख़ामी का पता लगाने के लिए किया जाता है।
फिशिंग
इंटरनेट की सहायता से किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के तरीकों में एक अन्य तरीका है फिशिंग, जैसा कि नाम से स्पष्ट है इसमें किसी व्यक्ति को जाल में फसाने की कोशिश की जाती है। फिशिंग में अक्सर ऐसे ई-मेल या SMS भेजे जाते हैं, जो किसी बैंक द्वारा या किसी अन्य संस्थान, जिससे वह व्यक्ति जुड़ा हुआ है भेजे गए प्रतीत होते हैं। इन्ही ई-मेल या SMS के द्वारा एक लिंक दी जाती है, जिसे खोलने पर कोई मालवेयर स्वतः व्यक्ति के डिवाइस में इन्सटॉल हो जाता है अथवा ऐसी लिंक को खोलने के पश्चात व्यक्ति से उसकी बैंक या अन्य कोई महत्वपूर्ण जानकारी माँग कर उसे चुरा लिया जाता है।
साइबर आतंकवाद
इंटरनेट की सहायता से किसी व्यक्ति, राजनीतिक पार्टी या संस्था के द्वारा गलत या झूठी खबरों को अपने निजी लाभ के लिए फैलाना, किसी धर्म या समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काना आदि इस श्रेणी में आता है।
साइबर अपराधों से बचाव के उपाय
हालाँकि साइबर अपराधों (Cyber Crime) को कम करने एवं अपने ग्राहकों की निजता की सुरक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने वाली कम्पनियों जैसे बैंक, सोशियल मीडिया प्लेटफॉर्म आदि में कार्य करने वाले लोग शोध करते रहते हैं, किंतु इंटरनेट का उपयोग करते हुए कुछ सावधानियों का पालन करने से आप इस सुरक्षा को और मजबूत कर सकते हैं।
- संदिग्ध वेबसाइट में अपनी बैंक या अन्य महत्वपूर्ण जानकारी न दें।
- किसी भी वेबसाइट में अपनी जानकारी दर्ज करने से पहले यह सुनिश्चित कर ले कि उस वेबसाइट में SSL सर्टिफिकेट सक्रिय है। इसकी पुष्टि https:// या उस वेबसाइट के बगल में बने ताले के निशान से हो जाएगी।
- किसी संदिग्ध ऑफर या छूट देने वाले विज्ञपनों से दूर रहें।
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