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पिछले कुछ समय से अनुच्छेद 370 काफ़ी चर्चाओं में रहा है। वर्ष 2019 अगस्त में इस अनुच्छेद को संविधान से हटा दिया गया तथा इसके सभी प्रावधानों को अमान्य घोषित कर दिया गया। आइये समझते हैं क्या था अनुच्छेद 370 और क्यों पड़ी इसे संविधान से हटाने की आवश्यकता?
कश्मीर का इतिहास
अनुच्छेद 370 को समझने के लिए इतिहास में चलते हैं। देश की ग़ुलामी के अंतिम समय में जब हिंदुस्तान आज़ाद होने जा रहा था मुस्लिम लीग नें अलग देश पाकिस्तान की माँग की तत्पश्चात अगस्त 1947 में हिंदुस्तान भारत एवं पाकिस्तान दो राष्ट्रों में विभाजित हो गया। किन्तु जो भारत आज़ाद हुआ वह आज के भारत जैसा एक राष्ट्र नहीं था यह ब्रिटिश हुकूमत वाले कुछ क्षेत्रों तथा सैकड़ों छोटे छोटे राजाओं की अलग अलग रियासतों से बना भारत था। आज़ादी मिलने के बाद ब्रिटिश शासन वाले क्षेत्र भारत सरकार के शासन में आ गए तथा अन्य देशी रियासतों में कुछ भारत में विलय करने के लिए सहमत हुए तथा कुछ रियासतों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की सोची।
कश्मीर पर आक्रमण
कश्मीर के राजा हरि सिंह भी कश्मीर को भारत एवं पाकिस्तान दोनों से स्वतंत्र रखना चाहते थे, किन्तु मुस्लिम बहुल होने के कारण जिन्ना की कश्मीर पर नजर थी। इसी के चलते 20 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान समर्थित आज़ाद कश्मीर सेना जिसमें पाकिस्तानी सैनिक, कबायली जनजातीय लोग शामिल थे, ने कश्मीर के अग्र भाग पर आक्रमण कर दिया। इस परिस्थिति को देखते हुए राजा हरि सिंह ने भारत से सैन्य सहायता की माँग की परंतु तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटेन इस बात पर अड़े रहे की बिना कश्मीर के भारत में विलय हुए भारतीय सेना कश्मीर में प्रवेश नहीं कर सकती।
उधर कबायली बारामुला तक पहुँच चुके थे, जो राजधानी श्रीनगर से मात्र 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। बारामुला पहुँचने के बाद कबायलियों नें श्रीनगर की तरफ बड़ने के बजाए बारामुला में लुटपाट, बलात्कार तथा हत्याएं करना शुरू कर दिया और दो दिन तक यह नरसंहार चलता रहा, कहा जाता है की बारामुला की दो तिहाई जनता को कबायलियों द्वारा मार डाला गया था।
भारत में विलय
अब हरीसिंह के पास भारत में विलय होने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा और राजा नें आनन फानन में भारत में विलय होने का निर्णय लिया। 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के विलय पत्र पर पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा महाराजा हरीसिंह ने हस्ताक्षर किए इस विलय पत्र के अनुसार भारत को जम्मू कश्मीर के केवल तीन विषयों (रक्षा, विदेश नीति तथा संचार) के संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया गया।
विलय पत्र पर दस्तखत होने के बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया तथा माउंटबेटेन नें भारतीय सेना को कश्मीर में भेजने की अनुमति दे दी किन्तु उन्होंने यह सुझाव दिया की कश्मीर में शांति कायम हो जाने के बाद कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जाए।
जिन्ना तथा माउंटबेटेन की मुलाकात
कश्मीर के भारत में विलय तथा भारतीय सेना के कश्मीर पहुँचने की खबर सुनकर जिन्ना बौखला उठा तथा उसने अपने सेनाध्यक्ष से कश्मीर में पाकिस्तानी सेना को भेजने की बात कही किन्तु सेनाध्यक्ष ने यह कहकर मना कर दिया की कश्मीर अब भारत का हिस्सा है और वहाँ सेना भेजना अंतर्राष्ट्रीय युद्ध करने जैसा होगा।
आपको बता दें उस वक्त भारत तथा पाकिस्तान दोनों के सेनाध्यक्ष अंग्रेज थे तथा इन दोनों के ऊपर जनरल औकिनलेक आते थे। इसके अतिरिक्त सेना में कई अंग्रेज़ सिपाही भी शामिल थे। अतः वे कभी नहीं चाहते थे की भारत पाकिस्तान के कारण ब्रिटिश सैनिक आमने सामने हों। इससे जिन्ना और अधिक निराश हुआ तथा उसने अंततः माउंट बेटेन, पटेल तथा नेहरू को कश्मीर पर बात करने के लिए लाहौर आमंत्रित किया।
पटेल इस मुलाकात के विरोध में थे तथा नेहरू खराब स्वास्थ्य के चलते नहीं जा सके अंत में 1 नवंबर 1947 को माउंटबेटेन लाहौर पहुँचे। दोनों के मध्य वार्ता हुई किन्तु उसका कोई नतीजा सामनें नहीं आया। वहीं 2 नवंबर 1947 को दिल्ली में नेहरू नें रेडियो पर दिए एक भाषण के जरिए यह ऐलान कर दिया की कश्मीर में शांति व्यवस्थ कायम हो जाने के बाद राष्ट्र संघ के नेत्रत्व में एक जनमत संग्रह कराया जाएगा। इसके चलते भारत ने 31 दिसंबर 1947 को पाकिस्तान के खिलाफ राष्ट्र संघ में शिकायत दर्ज कराई। नेहरू की उम्मीदों के विपरीत राष्ट्र संघ में ब्रिटेन तथा अमेरिका ने भारत के विरोध में तर्क दिए।
राष्ट्र संघ का संकल्प पत्र तथा युद्ध विराम की घोषणा
अप्रैल 1948 में राष्ट्र संघ का एक संकल्प पत्र आया जिसके तहत युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई, ये 31 दिसंबर 1948 को लागू हुआ तथा 1 जनवरी 1949 से युद्ध समाप्त हो गया। इस वक्त जहाँ दोनों देशों की सेनाएं थी उसे सीमा रेखा मान लिया गया। हाँलकी युद्ध विराम लागू होने तक भारतीय सेना नें कबायलियों को पश्चिम में पुंछ तथा उत्तर में कारगिल से पीछे खदेड़ दिया था किन्तु अब भी कश्मीर का बहुत बड़ा हिस्सा कबायलियों के कब्जे में था।
पाकिस्तान नें राष्ट्र संघ में माना की युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान नें की थी तथा आक्रमणकारियों में पाकिस्तानी सैनिक भी शामिल थे, अतः राष्ट्र संघ नें संकल्प पत्र में यह भी प्रावधान किया की पहले पाकिस्तान अपने सैनिक तथा पाकिस्तानी कबायलियों को कश्मीर से वापस बुलाए तत्पश्चात भारतीय सेना कश्मीर से पीछे हटेगी और उसके बाद ही कश्मीर में एक जनमत संग्रह कराया जाएगा। किन्तु पाकिस्तान ने कभी अपनी सेना कश्मीर से वापस नहीं बुलाई और कश्मीर का वो हिस्सा आज हम पाकिस्तान अधिग्रहित कश्मीर PoK के नाम से जानते हैं।
भारतीय संविधान में कश्मीर
शेख अब्दुल्ला जो की कश्मीरी नेता और नैशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक थे नें युद्ध में भारतीय सेना का साथ दिया तथा हर संभव मदद मुहैया कराई। वे राजशाही के खिलाफ थे तथा इसके खिलाफ उन्होंने जन आंदोलन भी किये जिसके चलते कश्मीर में उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई। युद्ध विराम के बाद हरि सिंह नें उन्हें कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
अभी तक भारत का संविधान निर्माणाधीन था और कश्मीर भी भारत का हिस्सा बन चुका था अतः संविधान में कश्मीर को स्थान देने की बात आई, इसके लिए संविधान सभा में चार अतिरिक्त कश्मीरी सदस्यों को स्थान दिया गया। तथा कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 के तहत प्रावधान किये गए जिन्हें तत्कालीन संविधान सभा नें एकमत से स्वीकार किया।
प्रावधान
अनुच्छेद 370 के तीन भाग हैं जिनके बारे में हम विस्तार से समझेंगे।
Article 370(1)
370(1) के पुनः चार भाग हैं।
- अनुच्छेद 370(1) के पहले भाग के अनुसार संविधान का अनुच्छेद 238 कश्मीर पर लागू नहीं होगा। गौरतलब है की यह अनुच्छेद सातवें संविधान संशोधन 1955 द्वारा हटा दिया गया है।
- 370(1) का दूसरा भाग जम्मू कश्मीर पर संसद की अधिकारिता के संबंध में है। इसके अनुसार संसद कश्मीर के संबंध में संघ सूची तथा समवर्ती सूची के केवल उन्हीं मामलों में कानून बना सकती है जिनका उल्लेख विलय पत्र में उल्लिखित तीन विषयों से है। यदि इन तीन विषयों के अतिरिक्त किसी अन्य विषय पर कानून बनाना हो तो जम्मू कश्मीर राज्य की सहमति के बाद राष्ट्रपति के आदेश द्वारा बनाया जा सकता है।
- तीसरे भाग के अनुसार जम्मू कश्मीर पर भारतीय संविधान के केवल दो अनुच्छेद 1 तथा 370 ही लागू होंगें।
- 370(1) के चौथे भाग में बताया गया है की उपरोक्त दो अनुच्छेदों (1 तथा 370)के अतिरिक्त कोई अनुच्छेद किस प्रकार लागू हो सकेगा। यदि संविधान का कोई अनुच्छेद विलय पत्र में उल्लिखित तीन विषयों से संबंधित है तब जम्मू कश्मीर की सरकार से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति इस संबंध में आदेश निकलेगा। किन्तु यदि संविधान का कोई अनुच्छेद विलय पत्र में उल्लिखित तीन विषयों के अतिरिक्त किसी अन्य विषय से संबंधित हो तो उसके लिए जम्मू कश्मीर राज्य की सहमति के बाद ही राष्ट्रपति आदेश के द्वारा वह जम्मू कश्मीर पर लागू हो सकेगा।
Article 370 (2)
चूँकि जम्मू कश्मीर के अलग संविधान पर सहमति बन चुकी थी अतःयह प्रावधान किया गया की जब तक राज्य का अलग संविधान नहीं बन जाता उस दौरान यदि जम्मू कश्मीर राज्य भारत को ऊपर लिखे किसी भी विषय में कानून बनाने या किसी अनुच्छेद को लागू करने की सहमति दे देती है तो उसे अंतिम रूप से तभी माना जाएगा जब जम्मू कश्मीर की संविधान सभा उसे पुनः सहमति प्रदान करेगी।
Article 370 (3)
इस भाग में बताया गया है की अनुच्छेद 370 को आंशिक या पूर्ण रूप से कैसे हटाया जा सकता है। इसके अनुसार जब जम्मू कश्मीर राज्य इस अनुच्छेद को हटाने की सिफारिश करे केवल तभी राष्ट्रपति के आदेश द्वारा इसे हटाया जा सकता है।
राष्ट्रपति आदेश
अनुच्छेद 370 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा तीन आदेश 1952, 53, तथा 54 में निकाले गए। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण 1954 का आदेश है जिसकी हम यहाँ चर्चा करेंगे। 1954 के आदेश में समय समय पर संशोधन होते रहे तथा अंततः भारतीय संविधान का बहुत बड़ा हिस्सा जम्मू कश्मीर पर लागू हो गया।
अनुच्छेद 35A
यह अनुच्छेद 1954 के राष्ट्रपति के आदेश द्वारा जोड़ा गया जो जम्मू कश्मीर के स्थायी नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार प्रदान करता था। अनुच्छेद 370 के साथ अगस्त 2019 में मोदी सरकार द्वारा इसे भी निरस्त कर दिया गया। इसके अनुसार निम्न प्रावधान थे
- राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करना
- स्थायी नागरिकों को निन्म क्षेत्रों में विशेषधिकार प्रदान करना एवं जम्मू कश्मीर से बाहर के लोगों को इन क्षेत्रों में प्रतिबंधित करना।
- राज्य सरकार में नौकरी
- अचल संपत्ति का अधिग्रहण
- राज्य में बसना
- राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली कोई छात्रवृत्ति या अन्य सहायता।
वर्तमान स्थिति
इन विशेष उपबन्धों तथा कुछ अलगाववादी नेताओं के चलते राज्य की जनता कई महत्वपूर्ण एवं लाभकारी कानूनों एवं नीतियों से वंचित रह जाती थी। अतः अगस्त 2019 में भारत सरकार ने इस अनुच्छेद को निरस्त कर दिया। हाँलाकि इस अनुच्छेद के तहत बिना राज्य विधानसभा की सहमति के इस अनुच्छेद को हटाना संभव नहीं था परंतु इस अनुच्छेद को निरस्त किये जाने के समय जम्मू कश्मीर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था अतः विधानसभा की शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित थी परिणामस्वरूप राष्ट्रपति के आदेश द्वारा इस अनुच्छेद को संविधान से हटा दिया गया।
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