नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे अनेक क्षेत्रों से महत्वपूर्ण तथा रोचक जानकारी आप तक लेकर आते है। भारतीय विधायिका से संबंधित पिछले लेख में हमने देश की संसद तथा उसकी संरचना के बारे में विस्तार से समझाया था, जिसे आप नीचे दी गई लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं। आज हम चर्चा करेंगे संसद के कामकाज या संसद की कार्यप्रणाली (Working of Indian Parliament) के बारे में तथा जानेंगे संसद की कार्यवाही से जुड़ी तमाम महत्वपूर्ण बातें।
संसद एवं इसके पीठासीन अधिकारी
किसी भी देश में कानूनों के निर्माण अथवा बने कानूनों में बदलाव एवं देश के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बनाई गई सभा अथवा पंचायत पार्लियामेंट कहलाती है। अलग-अलग देशों में इसे अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है, उदाहरण के तौर पर भारत में संसद, अमेरिका में कॉंग्रेस, रूस में ड्यूमा, जापान में डायट, नेपाल में राष्ट्रीय पंचायत आदि।
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भारतीय संसद के पीठासीन अधिकारी संसद की कार्यवाही में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे संसद की समस्त कार्यवाहियों का सुचारू रूप से संचालन करते हैं। संसद के दोनों सदनों में पीठासीन अधिकारी के रूप में लोकसभा में अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा में सभापति एवं उपसभापति होते हैं।
लोकसभा अध्यक्ष (Speaker of the Lok Sabha)
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सदन की पहली बैठक के पश्चात उपस्थित सदस्यों (Members of the Parliament) के बीच से किया जाता है। अध्यक्ष की पदावधि लोकसभा के जीवनकाल तक होती है, किंतु इससे पूर्व भी वह उपाध्यक्ष को स्तीफा सौंप सकता है। अध्यक्ष लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करने के लिए नियम व कानूनों का निर्वहन करता है। वह लोकसभा एवं उसके प्रतिनिधियों का मुखिया होता है तथा सभी संसदीय मामलों में उसी का निर्णय अंतिम होता है।
राज्यसभा सभापति (Chairman of Rajya Sabha)
राज्यसभा का पीठासीन अधिकारी इसका सभापति (Chairman) कहलाता है। गौरतलब है कि, भारत का उपराष्ट्रपति (Vice-President) ही राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। लोकसभा अध्यक्ष के विपरीत सभापति सदन का सदस्य नहीं होता। राज्यसभा के सभापति के कार्य भी लोकसभा अध्यक्ष की तरह ही हैं, वह अपने सदन की सभी कार्यवाहियों का संचालन करता है।
संसद के सत्र
ऐसा काल जब संसद की कार्यवाही चलाई जाती है, उसे संसद का सत्र कहा जाता है। सत्र की शुरुआत तथा अंत राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। संसद के दो सत्रों के मध्य छः माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए अर्थात संसद का सत्र वर्ष में दो बार अवश्य चलाया जाना चाहिए। वर्तमान में संसद के तीन सत्र होते हैं।
- बजट सत्र (फरवरी से मई)
- मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर)
- शीतकालीन सत्र (नवंबर से दिसंबर)
किसी सत्र के दौरान ही संसद के सभी कार्यों को किया जाता है। किसी सत्र में अनेक बैठकें होती हैं, जिसमें किसी बैठक को लोकसभा में अध्यक्ष एवं राज्यसभा में सभापित के आदेश पर उस दिन या अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जा सकता है, किंतु सत्र को समाप्त करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास ही होता है। एक सत्र के समापन एवं अगले सत्र की शुरुआत तक का समय अवकाश कहलाता है।
संसद की विधायी प्रक्रिया
आइये अब चर्चा करते हैं संसद का महत्वपूर्ण कार्य अर्थात संसद की विधायी प्रक्रिया की, जिसके अंतर्गत किसी विधेयक को पारित कर उसे कानून का रूप देने का कार्य किया जाता है। संसद में प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयक या जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में बिल कहते हैं तीन तरीके के होते हैं जो निम्नलिखित हैं।
- साधारण विधेयक
- वित्त विधेयक
- संविधान संशोधन विधेयक
साधारण विधेयक (Ordinary Bill)
वित्तीय या धन संबंधित किसी विधेयक के अलावा अन्य कोई भी विधेयक साधारण विधेयक (Ordinary Bill) कहलाता है। साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में, मंत्री या किसी भी दल के सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। गौरतलब है कि, किसी सदस्य द्वारा विधेयक प्रस्तुत करने की स्थिति में अग्रिम सूचना सदन को देना अनिवार्य होता है।
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विधेयक प्रस्तुत होने के बाद इस पर अलग-अलग चरणों में चर्चा होती है और यदि आवश्यक हो तो विधेयक में संशोधन भी किया जाता है। इसके उपरांत जिस सदन में विधेयक प्रस्तुत किया गया है विधेयक के पक्ष एवं विपक्ष में मतदान किया जाता है, यदि विधेयक उस सदन से पारित हो जाए तो यही प्रक्रिया दूसरे सदन में भी अपनाई जाती है। दूसरे सदन से विधेयक के पारित हो जाने के बाद इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तथा राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून अथवा अधिनियम का रूप ले लेता है।
वित्त विधेयक (Finance Bill)
ऐसा विधेयक, जो वित्तीय मामलों जैसे राजस्व या व्यय से संबंधित हो वित्त विधेयक (Finance Bill) कहलाता है। इसमें आगामी वित्तीय वर्ष में नए कर लगाने तथा करों में संशोधन करने जैसे विषय शामिल होते हैं। वित्त विधेयक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
- धन विधेयक
- वित्त विधेयक 1
- वित्त विधेयक 2
धन विधेयक (Money Bill)
धन विधेयक की चर्चा संविधान के अनुच्छेद 110 में की गयी है। इसके अंतर्गत मुख्यतः 6 विषय रखे गए हैं, जो निम्न हैं-
- किसी कर का अधिरोपण, उत्सादान (Revocation) या उसमे परिवर्तन से संबंधित कानून
- केंद्र सरकार द्वारा उधार लिए धन का विनियमन
- भारत की संचित निधि तथा आकस्मिकता निधि से धन की निकासी या इनमें धन जमा करना
- भारत की संचित निधि से धन का विनियोग (Investment)
- किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित घोषित करना तथा किसी व्यय की रकम को बढ़ाना
- भारत की संचित निधि या लोक लेखों (Public Accounts) में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति, अभिरक्षा या व्यय तथा केंद्र या राज्य की निधियों का लेखा परीक्षण
- इन 6 विषयों से संबंधित कोई अन्य विषय, जिसे “लोकसभा अध्यक्ष” धन विधेयक की संज्ञा दें।
इन विषयों से संबंधित विधेयक धन विधेयक (Money Bill) कहलाते हैं। ऐसे विधेयक पारित करने से पूर्व राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक है। साधरण विधेयक के विपरीत धन विधेयक को केवल किसी मंत्री के द्वारा तथा लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, अतः ऐसे विधेयक में राज्यसभा को संशोधन करने या विधेयक को पारित न करने का अधिकार नहीं होता बल्कि राज्यसभा किसी धन विधेयक को पारित करने के लिए बाध्य होती है। इसके अतिरिक्त कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसमें अंतिम निर्णय लोकसभा अध्यक्ष का होता है।
वित्त विधेयक 1 (Finance Bill 1)
वित्त विधेयक का दूसरा प्रकार है वित्त विधेयक 1 ऐसा कोई विधेयक, जिसमें अनुच्छेद 110 या धन विधेयक में उल्लेखित किसी मामले के अतिरिक्त कोई अन्य मामला भी हो इस श्रेणी में आता है। धन विधेयक की तरह यह भी केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है तथा प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होती है, किंतु धन विधेयक के विपरीत इसे पारित करने के लिए राज्यसभा बाध्य नहीं होती अर्थात राज्यसभा ऐसे बिल को अस्वीकार कर सकती है।
वित्त विधेयक 2 (Finance Bill 2)
किसी वित्त विधेयक का अंतिम प्रकार होता है वित्त विधेयक 2, यह एक ऐसा विधेयक है, जिसमें भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के संबंध में प्रावधान होते हैं। किन्तु ये प्रावधान ऐसे होने चाहिए, जिनका जिक्र धन विधेयक या अनुच्छेद 110 में नहीं किया गया हो। इसे साधारण विधेयक की तरह प्रस्तुत किया जाता है अर्थात इसे प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की मंजूरी लेना आवश्यक नहीं है तथा ऐसे विधेयक को किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।
संविधान संशोधन विधेयक (Constitution Amendment Bill)
संविधान संशोधन विधेयक जैसा कि, इसके नाम से स्पष्ट है संविधान के उपबंधों को संशोधित करने के लिए प्रस्तुत किये जाते हैं। संविधान के भाग 20 में अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संसद को उसके किसी प्रावधान में संशोधन करने का अधिकार देता है। यहाँ संशोधन से आशय केवल बदलाव नहीं है, अपितु संसद किसी उपबंध का परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा निरसन कर सकती है।
ऐसे विधेयक किसी मंत्री या सदस्य द्वारा संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित करना अनिवार्य होता है। विशेष बहुमत से तात्पर्य सदन की कुल संख्या के आधे से अधिक तथा सदन में उपस्थित तथा मतदान करने वाले कुल सदस्यों का दो तिहाई होता है। दोनों सदनों से पारित होने के बाद विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है, राष्ट्रपति ऐसे विधेयक को पारित करने के लिए बाध्य हैं अतः न तो वे उसे रोक सकते हैं न ही पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकते हैं।
साधारण संशोधन की स्थिति में राज्यों की सहमति आवश्यक नहीं होती, किन्तु यदि संशोधन देश की संघीय व्यवस्था के मुद्दे पर हो तो दोनों सदनों में पारित होने के पश्चात विधेयक राज्यों की सहमति के लिए भेजा जाता है यदि आधे या उससे अधिक राज्यों के विधानमंडल विधेयक को पारित कर दें उसके बाद वह राष्ट्रपति के पास जाता है तथा राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून में परिवर्तित हो जाता है।
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