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रडार एवं इसके उपयोग
RADAR Radio Detection And Ranging का संशिप्त नाम है। रडार का प्रयोग मुख्यतः आसमान में किसी वस्तु का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस तकनीक द्वारा किसी उपकरण की मदद से रेडियो तरंगों जो कि, वैद्युत तरंगों का एक प्रकार है को उत्सर्जित किया जाता है तथा ये रेडियो तरंगे आसमान में उपस्थित वस्तु से टकराकर पुनः उपकरण तक पहुँचती हैं। इस प्रकार किसी वस्तु के आकार उसकी वर्तमान स्थिति एवं गति का सटीकता से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
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इसका उपयोग मुख्यतः रक्षा क्षेत्र में, वैज्ञानिक अनुसंधानों जैसे मौसम की भविष्यवाणी, भू-वैज्ञानिकों द्वारा धरती के कृष्ट का पता लगाने, विमानन आदि क्षेत्रों में किया जाता है। भारत में रडार तकनीक पर विकास कार्य रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा किया जाता है।
सोनार एवं इसके उपयोग
SONAR Sound Navigation and Ranging का संशिप्त नाम है। इसकी कार्यप्रणाली भी राडार के समान ही है, किंतु जहाँ रडार में रेडियो तरंगों का प्रयोग किया जाता है वहीं सोनार के लिए काम में लिया जाता है ध्वनि तरंगों को। चूँकि रेडियो तरंगें द्रव में उतनी दक्षता के साथ काम नहीं कर पाती अतः पानी में या समुद्र के अंदर किसी वस्तु का पता लगाने के लिए सोनार का प्रयोग किया जाता है।
इसमें उपयोग होने वाले उपकरण द्वारा उच्च अव्रत्ति की ध्वनि तरंगों, जिन्हें सामान्य मनुष्य नहीं सुन सकता को उत्सर्जित किया जाता है तथा किसी वस्तु से टकराने के बाद ये तरंगे पुनः गूँज या “Echo” के रूप में उपकरण तक वापस लौट आती हैं। जिससे किसी वस्तु की सटीक स्थिति, उसकी गति एवं आकर का पता लगाया जा सकता है। इसका उपयोग समुद्र की गहराई नापने, समुद्र की माप, किस दुर्घटनाग्रस्त विमान का पता लगाने तथा नौसेना आदि में किया जाता है।
सोनार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं, सक्रिय तथा अक्रिय सोनार, जहाँ सक्रिय सोनार ध्वनि तरंगों को उत्सर्जित तथा ग्रहण दोनों करने में सक्षम होता है, वहीं अक्रिय सोनार केवल ध्वनि तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता रखता है। इसके द्वारा ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन नहीं किया जाता है। इसकी इसी खासियत के कारण इसका उपयोग सैन्य जहाज़ों तथा वैज्ञानिक शोध कार्यों में किया जाता है।
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