आज से तकरीबन 3.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी पर एककोशकीय जीवों के रूप में जीवन की शुरुआत हुई और समय के एक लंबे दौर से गुजरने के बाद जीवन विभिन्न रूपों में विकसित होता गया। हमारे पूर्वज समझे जाने वाले वानर (Ardipithecus) तकरीबन 6 मिलियन वर्ष पहले भोजन की तलाश में पेड़ों से जमीन पर उतरे और दो पैरों पर चलना शुरू किया, उसी का नतीजा है कि, हम आज चाँद पर अपने कदम रखने में सफल हुए हैं।
मानव सभ्यताओं के विकास के परिणामस्वरूप मनुष्य पृथ्वी से भले ही बहुत हद तक रू-ब-रू हो चुका हो, किन्तु अंतरिक्ष मनुष्य के लिए बहुत लंबे समय तक दैवीय अथवा रहस्यमयी बना रहा। समय के साथ हुए शोधों ने धरती समेत अंतरिक्ष के विषय में हमारी धारणा को बदला है और आज हम अंतरिक्ष को बहुत हद तक समझने में सफल हुए हैं, हालाँकि वर्तमान में भी इसके कई अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने के लिए दुनियाँ भर के देश प्रयासरत हैं।
इन्हीं अंतरिक्ष मिशनों में शामिल है, नासा एवं कुछ अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों का जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) मिशन, जिसे आज इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे। जानेंगे जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप क्या है, जिसे टाइम मशीन की संज्ञा दी जा रही है, यह किस उद्देश्य के लिए विकसित किया गया है तथा क्यों दुनियाँ भर के वैज्ञानिकों की निगाहें इसके सफल परीक्षण पर टिकी हुई है।
क्या है जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप?
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को सही से समझने के लिए आवश्यक है कि, पहले स्पेस टेलीस्कोप तथा उसके कार्यों पर एक नजर डाली जाए। टेलीस्कोप (Telescope) से हम सभी अच्छे से वाकिफ है, यह हमें दूर की वस्तुओं को देखने में मदद करता है, क्योंकि मानव नेत्र एक सीमा तक ही देख सकने में सक्षम हैं। स्पेस टेलीस्कोप भी किसी सामान्य टेलीस्कोप की भांति ही है, जिसे पृथ्वी के बजाए अंतरिक्ष में स्थापित किया जाता है, ताकि अंतरिक्ष में मौजूद विभिन्न तारों, ग्रहों, आकाशगंगाओं आदि का अध्ययन किया जा सके।
ऐसा ही एक स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) बीते शनिवार अर्थात 25 दिसंबर को सुबह 07:20 बजे (EST) दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तट स्थित फ्रेंच गुयाना अंतरिक्ष केंद्र से फ्रांसीसी स्पेस कंपनी Arianespace द्वारा निर्मित रॉकेट Ariane-5 की मदद से प्रक्षेपित किया गया। यह टेलीस्कोप अपने पूर्ववर्ती हबल स्पेस टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी समझा जा रहा है, जो उससे तकरीबन सौ गुना अधिक शक्तिशाली है।
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जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) खगोल विज्ञान के क्षेत्र में व्यापक जाँच करने में सक्षम है, नासा के अनुसार यह अगले दशक की एक प्रमुख वेधशाला होगी, जो दुनियाँ भर के खगोलविदों को ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा इसके कई पहलुओं को समझने में मदद करेगी। यह टेलीस्कोप ब्रह्मांड के विकास के प्रत्येक चरण का अध्ययन करेगा, जिसमें बिग-बैंग के बाद पहले चमकदार प्रकाश से लेकर शुरुआती तारों, आकाशगंगाओं तथा पृथ्वी जैसे ग्रहों के निर्माण का अध्ययन शामिल हैं।
वेब टेलीस्कोप को पहले “नेक्स्ट जेनरेशन स्पेस टेलीस्कोप” (NGST) के रूप में जाना जाता था, जिसका नाम सितंबर 2002 में नासा के पूर्व प्रशासक जेम्स वेब के नाम पर बदल दिया गया। जेम्स वेब ने अपोलो कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
$10 बिलियन अमेरिकी डॉलर (तकरीबन 75,000 करोड़ रुपये) की लागत से बना जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप नासा का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली अंतरिक्ष टेलीस्कोप एवं इसकी महान वेधशालाओं में से एक है। यह टेलीस्कोप नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के बीच एक प्रभावशाली अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का उत्पाद है।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की एतिहासिक पृष्ठभूमि
इसकी शुरुआत आज से तकरीबन 32 वर्ष पूर्व सितंबर 1989 में हुई, जब स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट (Space Telescope Science Institute) तथा नासा (National Aeronautics and Space Administration) ने एक नई पीढ़ी के स्पेस टेलीस्कोप वर्कशॉप की सह-मेजबानी करी। वर्कशॉप का उद्देश्य एक ऐसे स्पेस टेलीस्कोप का निर्माण करना था, जो भविष्य में हबल स्पेस टेलीस्कोप को प्रतिस्थापित कर सके।
साल 2004 में वेब टेलीस्कोप का निर्माण कार्य शुरू हुआ और अगले वर्ष फ्रेंच गुयाना में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सेंटर Centre Spatial Guyanais (CSG) को लॉन्च साइट तथा एरियन-5 रॉकेट को लॉन्च वाहन के रूप में चुना गया। 2011 तक इसके सभी 18 दर्पण खंड निर्मित कर लिए गए तथा 2012 एवं 2013 के बीच विभिन्न स्थानों में निर्मित टेलीस्कोप के अलग-अलग हिस्सों को नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में स्थानांतरित किया गया।
एक लंबे परीक्षण के बाद साल 2020 में इसे अंतिम रूप से एसेम्बल किया गया और 2021 में प्रक्षेपण के लिए Guiana Space Centre स्थानांतरित किया गया, जहाँ से टेलीस्कोप को 25 दिसंबर की सुबह 7:20 बजे (EST) एरियन-5 रॉकेट की मदद से लॉन्च किया गया है।
टेलीस्कोप अंतरिक्ष में क्यों स्थापित किये जाते हैं?
किसी टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में स्थापित करना एक बेहद जटिल कार्य है, जिसमें लागत तथा प्रबंधन जैसी अनेक चुनौतियाँ आती हैं, किन्तु इसके बावज़ूद विभिन्न टेलीस्कोपों को अंतरिक्ष में स्थापित किया जाता है। ऐसा करने के पीछे मुख्य उद्देश्य पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकालना है। गौरतलब है कि, हमारा वायुमंडल पृथ्वी पर जीवन के लिए एक आदर्श स्थिति बनाता है, किन्तु अंतरिक्ष अथवा ब्रह्मांड की उत्पत्ति समेत इसके कई अनसुलझे रहस्यों को समझने की राह में वायुमंडल एक बाधक का कार्य करता है।
स्पेस टेलीस्कोप दृश्य प्रकाश के अतिरिक्त अन्य विद्युतचुम्बकीय तरंगों का भी अध्ययन करते हैं, जो अंतरिक्ष में मौजूद विभिन्न पिंडों द्वारा उत्सर्जित की जाती हैं। इनमें से कई प्रकार की तरंगों (जैसे एक्स-किरणें, गामा-किरणें, अधिकांश पराबैंगनी और अवरक्त किरणें) का अध्ययन केवल अंतरिक्ष से ही किया जा सकता है, क्योंकि ये हमारे वायुमंडल द्वारा रोक ली जाती हैं।
क्या जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप एक टाइम मशीन है?
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को टाइम मशीन की संज्ञा दी जा रही है। हालाँकि यह फिल्मों में दिखाई देने वाली टाइम मशीन के समान नहीं है, किन्तु इसकी सहायता से हमें ब्रह्मांड के शुरुआती समय तथा उसके विकास की यात्रा को समझने में बहुत हद तक मदद मिल सकती है, दूसरे शब्दों में हम अतीत में झाँक कर ब्रह्मांड का शुरुआती रूप देख सकते हैं। आइए जानते हैं यह टेलीस्कोप कैसे एक टाइम मशीन है।
हमें कोई भी वस्तु दिखाई देती है, क्योंकि प्रकाश उस वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आँखों तक पहुँचता है और जैसा कि, हम जानते हैं प्रकाश एक स्थान से दूसरे स्थान तक एक निश्चित गति (लगभग 3 लाख किलोमीटर/घंटा) से चलता है अतः हमारे द्वारा देखी जाने वाली वस्तुओं की छवि असल में उस क्षण की होती है, जब कि हमारी आँखों पर पड़ने वाला प्रकाश उस वस्तु से परावर्तित हुआ था।
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चूँकि हमारे आस-पास अथवा पृथ्वी पर मौजूद वस्तुएं प्रकाश की गति की तुलना में हमसे बहुत नजदीक हैं दूसरे शब्दों में प्रकाश किरण के वस्तु से परावर्तित होने तथा हमारी आँखों तक पहुँचने के मध्य का समय नगण्य होता है अतः हमें, हमारे द्वारा देखी जाने वाली वस्तुएं वर्तमान की प्रतीत होती है। इसके विपरीत अधिक दूरी वाली वस्तुओं जैसे आकाशीय पिंडों, तारों आदि की स्थिति में उनसे परावर्तित प्रकाश हम तक एक लंबे समायान्तराल के बाद पहुँचता है अतः ऐसी वस्तुओं की हमें दिखाई देने वाली छवि वास्तव में भूतकाल की होती है।
आइए इसे कुछ उदाहरणों की सहायता से समझने का प्रयास करते हैं। सूर्य से हमारी दूरी लगभग 14.7 करोड़ किलोमीटर है तथा उससे आने वाले प्रकाश को हम तक पहुँचने में तकरीबन 8 मिनट 20 सेकेंड का समय लगता है अतः हमें सूर्य की, जो छवि किसी क्षण दिखाई देती है वह वास्तव में 8 मिनट 20 सेकेंड पूर्व की होती है।
ऐसे ही यदि कोई तारा पृथ्वी से सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हो तो उसकी, जो छवि हमें आज दिखाई देती है वो वास्तव में उस तारे की आज से सौ वर्ष पूर्व की छवि है, उस तारे की वर्तमान स्थिति हमें सौ वर्ष पश्चात दिखाई देगी, क्योंकि उस तारे से निकले प्रकाश को हम तक पहुँचने में 100 वर्षों का समय लगेगा।
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चूँकि हमारी आँखें एक सीमा तक ही देखने में सक्षम हैं अतः यदि हम ऐसा कोई उपकरण बना सकें, जो पृथ्वी से 1000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर मौजूद किसी गृह को देख सकने में सक्षम हो, तो हम ऐसे उपकरण की मदद से हज़ार साल पहले उस गृह की स्थिति के बारे में अध्ययन कर सकते हैं। स्पेस टेलीस्कोप ऐसे ही उपकरण हैं, जो ब्रह्मांड के शुरुआती स्वरूप को देख सकने तथा उसे समझने में खगोल वैज्ञानिकों की मदद करते हैं।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के विभिन्न भाग
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) मुख्य रूप से चार विभिन्न भागों से मिलकर बना है, जिन्हें नीचे चित्र में भी दर्शाया गया है। आइए इन सभी भागों को संक्षिप्त में समझते हैं-
Optical Telescope Element (OTE) : यह टेलीस्कोप के दर्पण तथा विभिन्न दर्पणों को जोड़े रखने वाले एक ढाँचे, बैकप्लेन से मिलकर बना है। इसे टेलीस्कोप की आँख समझा जा सकता है, यह भाग अंतरिक्ष से आने वाली इन्फ्रारेड रोशनी को एकत्र करता है तथा इसे एक अन्य हिस्से (ISIM) में स्थित उपकरणों को भेजता है।
Integrated Science Instrument Module (ISIM) : यह जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का दिल है, जिसे मुख्य पेलोड कहा जाता है। इसमें चार महत्वपूर्ण उपकरण (Near-Infrared Camera, Near-Infrared Spectrograph, Mid-Infrared Instrument, Fine Guidance Sensor) हैं, जो दूर के तारों और आकाशगंगाओं से आने वाले प्रकाश तथा अन्य तारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों का पता लगाएंगे।
Sunshield : सनशील्ड Kapton नामक पदार्थ की पाँच विभिन्न परतों से मिलकर बना है, जिनमें प्रत्येक परत पर एल्यूमीनियम की कोटिंग की गई है। आकार में ये परतें किसी टेनिस कोर्ट के समान हैं। यह वेधशाला को दो भागों में विभाजित करता है। इनमें एक भाग सूर्य की ओर (स्पेसक्राफ्ट बस) तथा दूसरा भाग सूर्य के विपरीत (OTE तथा ISIM) मौजूद होता है। सनशील्ड सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा तथा स्पेसक्राफ्ट बस की गर्मी को टेलीस्कोप के अन्य भागों OTE और ISIM से दूर रखता है।
Spacecraft Bus : स्पेसक्राफ्ट बस वेधशाला के संचालन के लिए सहायता प्रदान करती है। बस में अंतरिक्ष यान को संचालित करने के लिए आवश्यक छः प्रमुख उप प्रणालियाँ Electrical Power Subsystem, Attitude Control Subsystem, Communication Subsystem, Command and Data Handling Subsystem, Propulsion Subsystem एवं Thermal Control Subsystem मौजूद हैं।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का प्रक्षेपण एवं विभिन्न पड़ाव
नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को दक्षिण अमेरिका के फ्रेंच गुयाना से 25 दिसंबर को प्रक्षेपित किया गया। टेलीस्कोप के सफलता पूर्वक अपने निर्धारित स्थान पर प्रतिस्थापित होने में तकरीबन 30 दिनों का समय लगेगा, इस दौरान जेम्स वेब टेलीस्कोप विभिन्न पढ़ावों पर निर्धारित कार्यों को अंजाम देगा।
उदाहरण के तौर पर लॉन्च के एक दिन पश्चात टेलीस्कोप के Gimbaled Antenna Assembly (GAA) में मौजूद महत्वपूर्ण डिश एंटेना डिप्लॉय होगा, जो वेधशाला से लगभग 28.6 गीगाबाइट का महत्वपूर्ण डेटा दिन में दो बार पृथ्वी तक भेजेगा। लॉन्च के पाँचवें दिन सनशील्ड में मौजूद सुरक्षा कवर हटाया जाएगा तथा सातवें दिन सनशील्ड को पूरी तरह डिप्लॉय कर दिया जाएगा।
नासा के अनुसार लॉन्च के 30वें दिन टेलीस्कोप के समस्त डिप्लॉयमेंट कार्य पूर्ण हो चुके होंगे तथा वेब टेलीस्कोप L2 की परिक्रमा करना शुरू करेगा। स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट के अनुसार, JWST से सबसे अच्छी छवियां लॉन्च के लगभग छः महीने बाद दिखाई देने लगेंगी।
टेलीस्कोप की अंतरिक्ष में स्थिति
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को अपने अंतिम स्थान द्वितीय लैग्रेंज बिन्दु (L2) तक, जो पृथ्वी से लगभग पंद्रह लाख किलोमीटर की दूरी पर है पहुँचने में लगभग 30 दिनों का समय लगेगा। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) दूसरे लैग्रेंज बिंदु (L2) पर सूर्य की परिक्रमा करेगा। द्वितीय लैग्रेंज बिन्दु या L2 पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष में एक स्थान है, जो पृथ्वी के उस हिस्से के विपरीत मौजूद है, जिस हिस्से में सूर्य की रोशनी पड़ती है। यह कक्षा टेलीस्कोप को हमेशा पृथ्वी की सीध में रहने देगी, क्योंकि यह सूर्य की परिक्रमा करती है।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के लिए यह स्थान बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाँच लैग्रेंज बिंदुओं में केवल L2 ही वह स्थान है, जहाँ सूर्य की गर्मी से बचा जा सकता है। यहाँ यह प्रश्न उठना लाज़मी है कि, गर्मी का टेलीस्कोप से क्या संबंध है? ब्रह्मांड के शुरुआती तारों तथा आकाशगंगाओं के निर्माण के पश्चात उन्होंने, जो दृश्य प्रकाश उत्सर्जित किया वह समय के एक लंबे दौर के बाद विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के दृश्य प्रकाश से इन्फ्रारेड भाग में स्थानांतरित हो गया है।
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अतः टेलीस्कोप द्वारा इन बहुत हल्की इन्फ्रारेड किरणों को डिटेक्ट करने के लिए आवश्यक है कि, उसका तापमान बेहद कम लगभग शून्य से 225 डिग्री सेल्सियस नीचे रहे तथा उसके सेंसर्स सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा आदि की ऊष्मा से प्रभावित न हों। इस उद्देश्य के लिए ही टेलीस्कोप में सनशील्ड का इस्तेमाल किया गया है, ताकि सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा तथा स्वयं टेलीस्कोप की ऊष्मा से उसके कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों (OTE तथा ISIM) को बचाया जा सके।
लैग्रेंज बिन्दु : 18वीं सदी के प्रसिद्ध गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज ने “Three-Body Problem” का समाधान खोजा। Three-Body Problem अर्थात् ऐसा विन्यास, जिसमें तीन पिंड अपने स्थान पर स्थिर रहते हुए एक दूसरे की परिक्रमा कर सकते हैं। लैग्रेंज नें किन्हीं दो पिंडों के मध्य पाँच ऐसे स्थान बताए, जहाँ कोई तीसरा पिंड स्थिर बने रह सकता था, इन्हें ही लैग्रेंज बिंदु कहा जाता है। लैग्रेंज बिंदुओं पर दो बड़े द्रव्यमानों का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव एक समान होता है। नीचे चित्र में पाँचों लैग्रेंज बिन्दु दर्शाए गए हैं।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के कार्य
नासा के अनुसार जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ब्रह्मांड तथा हमारी उत्पत्ति को समझने की हमारी खोज में एक बड़ी उपलब्धि साबित होगा। JWST बिग-बैंग के बाद उत्पन्न हुए पहले चमकदार प्रकाश से लेकर आकाशगंगाओं, तारों और ग्रहों के निर्माण तथा हमारे सौर मंडल के विकास समेत ब्रह्मांडीय इतिहास के प्रत्येक चरण को समझने में मदद करेगा।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप इन्फ्रारेड विजन के साथ एक शक्तिशाली टाइम मशीन है, जो ब्रह्मांड के पहले प्रकाश तथा शुरुआती तारों को देखने की क्षमता रखता है। यह शुरुआती तारों से आ रहे इन्फ्रारेड किरणों को डिटेक्ट कर उनकी एक छवि तैयार करेगा। JWST की अभूतपूर्व इन्फ्रारेड सेंसिटिविटी खगोलविदों को सबसे शुरुआती आकाशगंगाओं को समझने में सहायता करेगी, जिससे यह समझा जा सकेगा कि, आकाशगंगाएं अरबों वर्षों में किस प्रकार से परिवर्तित हुई हैं।
यह धूल के बड़े अपारदर्शी बादलों, जिनसे विभिन्न तारों तथा ग्रहों का जन्म हुआ है को देख सकने में भी सक्षम होगा, जो इसके पूर्ववर्ती हबल टेलीस्कोप के लिए संभव नहीं था। इसके अतिरिक्त यह विभिन्न ग्रहों के वायुमंडल के बारे में जानकारी देगा तथा ब्रह्मांड में कहीं और जीवन की संभावनाओं को भी तलाशेगा। अतः इसमें कोई दो राय नहीं है कि, यह टेलीस्कोप मानव सभ्यता के लिए ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा इसके विकास क्रम को पूर्ण रूप से समझने में अहम भूमिका निभाएगा।
टेलीस्कोप की राह में बाधाएं
जेम्स वेब स्पेस टीलीस्कोप मिशन का सफल होना समूचे मानव जाति के लिए ब्रह्मांड को ठीक से समझने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा, हालाँकि इस मिशन की राह में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। लॉन्च से 30 दिनों का समय इसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जिन्हें “30 Days of Terror” भी कहा जा रहा है।
इन 30 दिनों में विभिन्न चरणों में टेलीस्कोप के विभिन्न हिस्सों का डिप्लॉयमेंट होना है, इनमें किसी भी प्रकार की त्रुटि पूरे मिशन के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी से इसकी अत्यधिक दूरी के चलते पूर्ववर्ती हबल टेलीस्कोप के विपरीत इसमें किसी गड़बड़ी के होने की स्थिति में मानव मिशन भेजकर इसे सुधारा नहीं जा सकता।
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