समय के साथ जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकसित हुई है हमारे जीवन जीने के तौर तरीकों में भी उसका असर दिखाई दिया है, दूसरे शब्दों में मानव जीवनशैली ने एक सभ्य समाज की परिकल्पना को बहुत हद तक साकार किया है। इन्हीं बदलते तौर तरीकों में समाज में होने वाले विभिन्न अपराधों की पहचान एवं उनके संबंध में उचित दंड व्यवस्था भी शामिल है। अपराधों को किसी भी समाज से पूर्णतः अलग नहीं किया जा सकता अतः ऐसे में विभिन्न अपराधों के संबंध में उचित दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे समाज में एक न्याय व्यवस्था स्थापित की जा सके।
एक सुरक्षित एवं भयमुक्त वातावरण स्थापित करने के लिए विधि का शासन होना बेहद आवश्यक है तथा ऐसा वातावरण सुनिश्चित करना किसी भी क्षेत्र विशेष की सरकारों का दायित्व है। इसी आशय से अलग-अलग देशों में आपराधिक विधि निर्मित की जाती है। आपराधिक विधि अर्थात विभिन्न नियमों की एक ऐसी संहिता, जिसमें किसी समाज में रह रहे लोगों के लिए किए जा सकने अथवा न किए जा सकने वाले कार्यों, क्रियाकलापों आदि का वर्णन किया जाता है।
ये नियम किसी भी देश की सरकारों द्वारा बनाए एवं लागू करवाए जाते हैं तथा सभी नागरिकों से इन नियमों के पालन की अपेक्षा की जाती है। नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में आज इस लेख में हम चर्चा करेंगे देश में आपराधिक कानूनों की उक्त संहिता भारतीय दंड संहिता (IPC in Hindi) के बारे में तथा देखेंगे इसमें उल्लेखित कुछ महत्वपूर्ण अपराध एवं उनके संबंध में दंड का प्रावधान।
क्या है भारतीय दंड संहिता? (IPC)
भारत में विभिन्न आपराधिक कानूनों का संग्रह IPC या भारतीय दंड संहिता के नाम से जाना जाता है। इसमें किसी समाज में हो सकने वाले तथा समाज के लिए घातक सभी आपराधिक कृत्यों (मानव शरीर, संपत्ति, साजिश, राज्य के खिलाफ अपराध, धर्म से संबंधित अपराध या सार्वजनिक शांति से संबंधित अपराध) को परिभाषित किया गया है तथा उनके संबंध में उचित दंड की व्यवस्था की गई है।
इसकी एतिहासिक पृष्ठभूमि को देखें तो भारतीय दंड संहिता (IPC) का ड्राफ्ट सर्वप्रथम पहले विधि आयोग, जिसकी स्थापना 1834 में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में की गयी द्वारा तैयार किया गया। विधि आयोग एक ऐसा निकाय है, जिसकी स्थापना समय समय पर कानूनी सुधारों को लाने के लिए की जाती है। आयोग द्वारा तैयार किया गया ड्राफ्ट पहली बार सन 1837 में गवर्नर जनरल के समक्ष रखा गया तथा कई संशोधनों से गुजरने के पश्चात सन 1850 में अंतिम रूप से बनकर तैयार हुआ।
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ड्राफ्ट को 1856 में संसद में पेश किया गया और 1 जनवरी 1862 से यह प्रभाव में आया। हालांकि आजादी के बाद भी संहिता में कई संशोधन (लगभग 75 से अधिक बार) हो चुके हैं, किंतु इसका (IPC in Hindi) अधिकांश भाग अभी भी 1850 के ड्राफ्ट से मेल खाता है। वर्तमान संहिता में कुल 25 भाग हैं, जिनके अंतर्गत 512 धाराएं शामिल हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की कुछ महत्वपूर्ण धाराएं
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की प्रत्येक धारा को यहाँ समझा पाना संभव नहीं हैं अतः संहिता की कुछ महत्वपूर्ण धाराओं की चर्चा हम इस लेख में करने जा रहे हैं, जिनके विषय में एक नागरिक के तौर पर आपके लिए जानना महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त लेख के अंत में संहिता की मूल प्रति भी संलग्न की गई है, जिसे आप दंड संहिता के विस्तृत अध्ययन के लिए डाउनलोड कर सकते हैं।
इनका कोई भी कृत्य अपराध नहीं है
भारतीय दंड संहिता (IPC in Hindi) किसी विशेष मानसिक एवं शारीरिक स्थिति के व्यक्तियों अथवा किसी विशेष परिस्थिति में किए गए कृत्य को अपराध की श्रेणी से बाहर रखती है। आइए ऐसे ही कुछ स्थितियों को देखते हैं।
- संहिता की धारा 82 के तहत सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा किया गया कोई भी कृत्य अपराध नहीं समझा जाएगा।
- संहिता की धारा 83 के अनुसार सात वर्ष की आयु से बड़ा तथा बारह वर्ष की आयु से छोटा कोई शिशु, जिसकी समझ अभी परिपक्व नहीं हुई है अथवा जो उस कृत्य विशेष की प्रकृति को समझने में असमर्थ हैं के द्वारा किया गया कोई कार्य भी अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
- धारा 84 के अनुसार किसी विकृतिचित्त व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कार्य, जो उस कार्य की प्रकृति अथवा उसके दोषपूर्ण एवं विधि के विरुद्ध होने के बारे में जानने में असमर्थ हो अपराध नहीं समझा जाएगा।
- धारा 85 के अनुसार ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी दोषपूर्ण कार्य को अपराध नहीं माना जाएगा, जिसे करने के दौरान व्यक्ति (पूर्णतः अपनी इच्छा के विरुद्ध) नशे की हालत में हो तथा यह जानने में असमर्थ हो की उसके द्वारा किया गया कार्य दोषपूर्ण अथवा कानून के विरुद्ध है।
निजी प्रतिरक्षा (Self Defense) के संबंध में प्रावधान
कानून प्रत्येक व्यक्ति को किसी प्रतिकूल परिस्थिति में अपनी प्रतिरक्षा का अधिकार देता है। आइए जानते हैं भारतीय दंड संहिता में इस बारे में क्या प्रावधान हैं तथा प्रतिरक्षा की स्थिति में कौन-कौन से कृत्य किए जा सकते हैं। दंड संहिता की धारा 96 के अनुसार निजी प्रतिरक्षा में किया गया कोई भी कार्य अपराध नहीं होगा। संहिता की धारा 97 के तहत (धारा 99 में उल्लेखित निर्बंधों के अधीन रहते हुए) प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह-
पहला : मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी कृत्य के विरुद्ध अपने या किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे।
दूसरा : किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट या आपराधिक अतिचार (Criminal Trespassing) की परिभाषा में आने वाला अपराध है या जो उक्त अपराधों को करने का प्रयत्न है अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की चल एवं अचल संपत्ति की प्रतिरक्षा करे।
हमनें ऊपर धारा 99 का जिक्र किया, गौरतलब है की कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हैं, जिनके दौरान व्यक्ति के पास निजी प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर किसी लोक सेवक द्वारा अपने पद पर कार्य करते हुए सद्भावना पूर्वक स्वयं कोई कार्य किया गया हो अथवा किसी अन्य व्यक्ति को ऐसे किसी कार्य का आदेश दिया गया हो (जिसमें मृत्यु अथवा घोर उपहती (चोट) की संभावना नहीं है) ऐसे कार्य के विरुद्ध प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं होगा भले ही वह कार्य विधि अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो।
आपराधिक षड्यन्त्र (Criminal Conspiracy)
आईपीसी की धारा 120क में आपराधिक षड्यन्त्र या Criminal Conspiracy को परिभाषित किया गया है, जबकि धारा 120ख आपराधिक षड्यन्त्र हेतु दंड की व्याख्या करता है। आपराधिक षड्यन्त्र अर्थात ऐसी स्थिति जब दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई अवैध कार्य करने अथवा करवाने हेतु सहमत होते हैं अथवा कोई ऐसा कार्य जो अवैध नहीं है, किन्तु अवैध साधनों से किया जाना है ऐसे कार्य को करने अथवा करवाने के लिए सहमत होते हैं तो इसे आपराधिक षड्यन्त्र कहा जाता है तथा यह दंडनीय अपराध है।
गौरतलब है, कि किसी अपराध को करने के लिए सहमत होना अथवा षड्यन्त्र करना ही अपने आप में एक अपराध है, इस स्थिति में यह मायने नहीं रखता की अंततः अपराध किया गया अथवा नहीं। इसके अतिरिक्त कोई अन्य सहमति अथवा षड्यन्त्र अपराधिक षड्यन्त्र तब तक नहीं समझा जाएगा जब तक एक या अधिक पक्षकारों के द्वारा ऐसे षड्यन्त्र के अनुसरण में कोई कृत्य न किया हो।
धारा 120ख में आपराधिक षड्यन्त्र हेतु दंड का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति ऐसे अपराध के षड्यन्त्र में शामिल होता है, जिसके लिए मृत्यु दंड, आजीवन कारावास अथवा दो वर्ष के कठोर कारावास की सजा का प्रावधान है, तब उसे इस प्रकार दंडित किया जाएगा मानो उसने इन अपराधों का दुष्प्रेषण किया हो अथवा किसी को उकसाया हो। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति पूर्व में उल्लेखित दंडनीय अपराध के अतिरिक्त किसी अन्य अपराध के षड्यन्त्र में शामिल होता है, तब वह अधिकतम छः माह के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित होगा।
राज्य के विरुद्ध अपराध
धारा 121 राज्य के विरुद्ध अपराध को परिभाषित एवं उसके लिए दंड का प्रावधान करता है। इसके अनुसार, जो कोई व्यक्ति भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा, युद्ध करने का प्रयन्त करेगा अथवा ऐसे युद्ध का दुष्प्रेषण करेगा वह मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास तथा जुर्माने से दंडित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त धारा 121क 121 के तहत वर्णित अपराधों के षड्यन्त्र के विषय में दंड का प्रावधान करता है।
जो कोई व्यक्ति भारत के भीतर अथवा बाहर ऐसे किसी अपराध को करने का षड्यन्त्र करेगा या आपराधिक बल द्वारा या बल के प्रदर्शन द्वारा भारत सरकार या किसी राज्य सरकार को आतंकित करने का षड्यन्त्र करेगा वह आजीवन कारावास अथवा कम से कम 10 वर्ष के कठोर कारावास तथा जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
लोक सेवकों के संबंध में अपराध
धारा 166 के अनुसार, जो कोई लोक सेवक किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुँचाने के उद्देश्य से विधि के किसी निर्देश को, जिसे एक लोक सेवक होने के नाते उसे आचरण करना है, की अवज्ञा करता है तो वह अधिकतम एक वर्ष के कारावास, या जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जा सकेगा।
कपटपूर्ण आशय से लोक सेवकों की पोशाक पहनना
दंड संहिता की धारा 171 के अनुसार, जो कोई व्यक्ति लोक सेवकों के किसी खास वर्ग का न होने के उपरांत इस आशय से की उसे लोक सेवकों के किसी वर्ग विशेष का समझा जाए, लोक सेवकों की पोशाक अथवा कोई टोकन धारण करेगा वह अधिकतम तीन माह के कारावास अथवा दो सौ रुपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
मिथ्या साक्ष्य अथवा लोक न्याय के विरुद्ध अपराध
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 191 मिथ्या साक्ष्य के संबंध में बात करती है। कोई भी व्यक्ति, जो सपथ अथवा सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए ऐसा कोई कथन करेगा, जो मिथ्या है और जिसके मिथ्या होने का उसे विश्वास है वह मिथ्या साक्ष्य देता है ऐसा माना जाएगा। यहाँ कथन के मौखिक अथवा लिखित दोनों रूप शामिल हैं।
धारा 193 में इस संबंध में दंड का प्रावधान है, जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में मिथ्या साक्ष्य देगा अथवा कोई मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा (धारा 192) वह अधिकतम सात वर्षों के कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त कोई व्यक्ति, जो न्यायिक प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी अन्य मामले में मिथ्या साक्ष्य देगा अथवा गढ़ेगा उसे अधिकतम तीन वर्ष का कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
तोलने के लिए खोटे उपकरणों का इस्तेमाल
कोई व्यक्ति, जो तोलने के लिए किसी ऐसे उपकरण का प्रयोग करता है, जिसका खोटा होना वह जनता है (धारा 264) अथवा किसी खोटे बाट अथवा लंबाई अथवा धारिता के किसी खोटे माप का कपटतापूर्वक उपयोग करता है (धारा 265) वह एक वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
चोरी (Theft)
चोरी के विषय में दंड संहिता की धारा 378 में बताया गया है। जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे में से उस व्यक्ति की सम्मति के बिना कोई चल संपत्ति (Movable Property) बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हुए लेने के लिए हटाता है वह चोरी करता है यह माना जाता है। ऐसे व्यक्ति को धारा 379 के तहत तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है।
किसी हानिकारक खाद्य वस्तु को बेचना
कोई व्यक्ति, जो जानते हुए किसी ऐसे खाद्य अथवा पेय पदार्थ को, जो हानिकारक हो अथवा खाने पीने के लिए उपयुक्त दशा में न हो बेचेगा, बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा वह छः माह तक के कारावास अथवा एक हजार रुपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
जीव जन्तु के संबंध में उपेक्षा (Ignorance) पूर्ण आचरण
संहिता (IPC in Hindi) की धारा 289 के अनुसार, जो कोई व्यक्ति अपने कब्जे में किसी जीव जन्तु के संबंध में जानबूझकर या अपेक्षापूर्वक ऐसी व्यवस्था करने में विफल रहता है, जिसके कारण ऐसा कोई जीव जन्तु मानव जीवन के लिए संकट का कारण बने वह छः माह तक के कारावास अथवा एक हजार रुपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
लॉटरी के संबंध में
संहिता की धारा 294क लॉटरी के संबंध में है, इसके तहत कोई व्यक्ति यदि राज्य लॉटरी अथवा राज्य द्वारा प्राधिकृत किसी लॉटरी के अतिरिक्त किसी अन्य लॉटरी को निकालने के प्रयोजन से कोई कार्यालय अथवा स्थान रखेगा वह छः माह तक के कारावास या जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति ऐसी लॉटरी के किसी टिकट, लॉट या नंबर आदि के संबंध में ऐसा कोई प्रस्ताव प्रकाशित करेगा, जिसके बदले कोई धनराशि, किसी उत्पाद के हस्तांतरण आदि की बात कही गई हो वह एक हजार रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
धर्म से संबंधित अपराध
यदि कोई व्यक्ति किसी वर्ग विशेष से संबंधित धार्मिक स्थान अथवा किसी धार्मिक वस्तु को किसी ऐसे वर्ग का अपमान करने के उद्देश्य से नष्ट, नुकसानग्रस्त अथवा अपवित्र करेगा (धारा 295) या वैध रूप से आयोजित हो रहे किसी धार्मिक जमाव में विघ्न उत्पन्न करेगा (धारा 296) वह दो वर्ष तक के कारावास या जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
मानव वध (Homicide) एवं हत्या (Murder)
दंड संहिता का अध्याय 16 मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों से संबंधित है। इसकी पहली धारा 299 आपराधिक मानव वध (Homicide) को परिभाषित करती है। इसके तहत जो कोई व्यक्ति मृत्यु कारित करने के उद्देश्य से किसी कार्य द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है। गौरतलब है कि, कोई व्यक्ति तभी मानव वध का दोषी होगा जब वह मृत्यु करने के उद्देश्य से मृत्यु कारित करेगा।
IPC की धारा 300 हत्या (Murder) को परिभाषित करती है, इसके अनुसार कुछ अपवादों को छोड़कर कोई भी आपराधिक मानव वध हत्या है यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु हुई है वह मृत्यु कारित करने के उद्देश्य से किया गया हो। धारा 302 जिसे हम आम तौर पर सुनते भी हैं में हत्या (Murder) के लिए सजा का प्रावधान है, जिसके तहत हत्या करने वाले व्यक्ति को मृत्यु अथवा आजीवन कारावास तथा जुर्माने से दंडित किया जाएगा
इसके अलावा ऐसा मानव वध, जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता उसके लिए धारा 304 में दंड का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत ऐसा व्यक्ति जो आपराधिक मानव वध का दोषी है वह आजीवन कारावास अथवा दस वर्ष तक के कारावास तथा जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
आपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है?
साधारणतः आपराधिक मानव वध तथा हत्या दोनों एक समान ही प्रतीत होते हैं, किन्तु कुछ ऐसे अपवाद हैं, जिन परिस्थितियों में आपराधिक मानव वध हत्या नहीं समझी जाती है, इन अपवादों के अतिरिक्त सभी प्रकार के आपराधिक मानव वध हत्या की श्रेणी में आते हैं। आइए जानते हैं इन अपवादों को।
- यदि अपराधी उस समय, जबकि वह गंभीर और अचानक प्रकोपन (Sudden Provocation) से आत्म संयम खो बैठे और उस व्यक्ति की, जिसने वह प्रकोपन दिया है मृत्यु कारित कर दे अथवा किसी अन्य व्यक्ति की भूलवश मृत्यु कारित कर दे। हालाँकि प्रकोपन देने के संबंध में भी कुछ अपवाद हैं, जैसे प्रकोपन किसी ऐसी बात से न दिया गया हो, जो किसी लोक सेवक द्वारा सद्भावनपूर्वक अपनी शक्ति के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो या प्रकोपन ऐसी किसी बात से न दिया गया हो, जो निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण इस्तेमाल में की गई हो आदि।
- कोई आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी शरीर या संपत्ति की प्रतिरक्षा के अधिकार को सद्भावपूर्वक प्रयोग में लाते हुए उस अधिकार का अतिक्रमण कर दे।
- ऐसा आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि वह व्यक्ति, जिसकी हत्या कारित की जाए अठारह वर्ष से अधिक आयु का हो तथा अपनी इच्छा से मृत्यु होना स्वीकार करे।
- ऐसा आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी लोक सेवक होते हुए या लोक सेवक को मदद देते हुए, जो कि सद्भावनपूर्वक विधिपूर्ण तरीकों से अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा हो, विधि द्वारा दी गई शक्ति से आगे बढ़ जाए तथा किसी व्यक्ति की, जिसके प्रति उसके मन में वैमनस्य की कोई भावना नहीं है मृत्यु कारित कर दे।
- ऐसा आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि कोई व्यक्ति किसी पूर्व चिंतन के बिना अचानक हुई लड़ाई के आवेश में आकार किसी प्रकार का अनुचित लाभ उठाए बिना, क्रूरतापूर्ण या अप्रायिक रीति से कार्य किए बिना अचानक मृत्यु कारित कर दे।
दैवी अप्रसाद (Divine Displeasure) के भाजन के डर से कराया गया कार्य
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 508 के अनुसार, जो कोई किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करेगा या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, कि यदि वह अपराधी की किसी बात को न करेगा, जिसे उससे करवाना अपराधी का उद्देश्य हो या यदि वह उस कार्य को करेगा, जिसे न होने देना अपराधी का उद्देश्य हो तो वह अथवा कोई व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है अपराधी के किसी कार्य से दैवी अप्रसाद का भाजन हो जाएगा या बना दिया जाएगा।
इस प्रकार यदि अपराधी स्वेच्छया उस व्यक्ति से कोई ऐसी बात करवाएगा या करवाने का प्रयत्न करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या किसी ऐसे कार्य को करने देने से रोकेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हो तो वह एक वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
मानहानि (Defamation)
संहिता की धारा 499 मानहानि के विषय में व्याख्या करता है, जो कोई व्यक्ति या तो बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृष्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस उद्देश्य से लगाता या प्रकाशित करता है कि, ऐसे लांछन से व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए कुछ अपवादित दशाओं को छोड़कर उसके बारे में कहा जाता है कि, वह अन्य व्यक्ति की मानहानि करता है।
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धारा 500 में मानहानि के संबंध में दंड का प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार किसी व्यक्ति की मानहानि करने वाले व्यक्ति को दो वर्ष तक के कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जा सकेगा। हालाँकि मानहानि के विषय में कई अपवाद हैं, जिसका हमनें ऊपर जिक्र भी किया हैं। उदाहरण के तौर पर ऐसा कोई लांछन, जो सत्य बात के संबंध में हो, लोक सेवकों के आचरण के संबंध में हो, न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोर्ट के संबंध में हो अथवा किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर विधिपूर्ण प्राधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा कही गई कोई बात हो ये सभी मानहानि की श्रेणी में नहीं आएगी।
छल करना और संपत्ति परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करना
जो कोई किसी व्यक्ति के साथ छल करता है और ऐसे व्यक्ति को बेईमानी से उत्प्रेरित (Inducing Someone) करेगा कि वह कोई संपत्ति उसे अथवा किसी व्यक्ति को परिदत्त (Deliver) कर दे या किसी भी मूल्यवान वस्तु को, जो हस्ताक्षरित या मुद्रांकित हैं और जो मुल्यवान प्रतिभूति में संपरिवर्तित किए जाने योग्य है उसे पूर्णतः या अंशतः रच दे, परिवर्तित कर दे या नष्ट कर दे वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
आपने अक्सर आम बोलचाल में लोगों को किसी अन्य व्यक्ति के संबंध में 420 की टिप्पणी सुनी होगी, इसकी उत्पत्ति दंड संहिता की इसी धारा के चलते हुई है। सामान्य बोलचाल में छल एवं बेईमानी का आचरण रखने वाले व्यक्तियों को ही 420 कहा जाता है।
करेन्सी नोटों या बैंक नोटों का कूटकरण (Counterfeiting currency-notes or bank-notes)
IPC की धारा 489क के तहत जो कोई व्यक्ति किसी करेन्सी नोट अथवा बैंक नोट का कूटकरण (Counterfeiting) करेगा या जानते हुए करेन्सी नोट या बैंक नोट के कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को सम्पादित करेगा वह आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
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