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International Space Station (ISS)
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station) अंतरिक्ष में मानव द्वारा बनाई गई अब तक की सबसे बड़ी एकल संरचना है, यह एक बहुराष्ट्रीय परियोजना है। स्पेस स्टेशन की शुरुआत 1984 से हुई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति Ronald Reagan ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (National Aeronautics and Space Administration) को अगले 10 वर्षों के भीतर एक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का निर्देश दिया।
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तत्पश्चात इसे 1998 से 2000 के मध्य पूरा किया गया तथा 2000 में पहली बार तीन अंतरिक्ष यात्री लंबी अवधि तक स्टेशन में रहे। हालांकि स्टेशन लगातार नए मिशनों और प्रयोगों के लिए विकसित होता रहा है तथा विभिन्न सहयोगी देशों ने समय के साथ स्टेशन में अपनी अपनी प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं। स्पेस स्टेशन अलग-अलग हिस्सों को अंतरिक्ष में जोड़कर बनाया गया है, जिन्हें यात्रियों द्वारा अंतरिक्ष में ले जाया गया।
यह लगभग 250 मील की औसत ऊँचाई पर 17,500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा करता है। दूसरे शब्दों में यह प्रत्येक 90 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूर्ण करता है। नासा के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (International Space Station) पाँच बेड रूम वाले घर या दो बोइंग 747 जितना विशाल है। यह छः लोगों के चालक दल और आगंतुकों के रुकने हेतु पर्याप्त है। इसके भार की बात करें तो पृथ्वी पर अंतरिक्ष स्टेशन का वजन लगभग एक मिलियन पाउंड होगा।
अंतरिक्ष की यात्रा
नवंबर 2020 तक 19 देशों के 242 व्यक्तियों ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का दौरा किया है, जिनमें शीर्ष देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका (152 लोग) और रूस (49 लोग) शामिल हैं। जैसा कि, हमनें ऊपर बताया ISS एक बहुराष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसमें 15 देशों का आर्थिक योगदान शामिल हैं। गौरतलब है कि, इन 15 देशों में भारत शामिल नहीं है।
आर्थिक सहयोग करने वाले प्रमुख देशों में नासा (संयुक्त राज्य अमेरिका), रॉसकॉसमॉस (रूस) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त अनुदान देने वाले देशों में जापानी एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी और कनाडाई स्पेस एजेंसी शमिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) के कार्य
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station in Hindi) एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला है, जो मनुष्यों को अंतरिक्ष में रहने के तरीकों को जानने, ब्रह्मांड की उत्पत्ति और भविष्य को समझने, सौर मंडल में गति करने वाले उच्चतम-ऊर्जा कणों पर शोध करने आदि के उद्देश्य से बनाई गई है। इसके अतिरिक्त स्पेस स्टेशन (ISS) मानव स्वास्थ्य के लिए भी शोध का एक मंच है।
मानव शरीर माइक्रोग्रैविटी में परिवर्तन दिखाता है, जिसमें मांसपेशियों, हड्डियों, हृदय प्रणाली और आंखों में परिवर्तन शामिल हैं। इस विषय पर कई वैज्ञानिक जाँच की जा रही हैं कि, ये परिवर्तन कितने गंभीर हैं और इन्हें किस प्रकार बदला जा सकता है। इन परिवर्तनों में आंखों की समस्याएं मुख्य हैं, कई अंतरिक्ष यात्रियों के पृथ्वी पर लौटने के बाद उनकी दृष्टि में स्थायी बदलाव भी देखे गए हैं।
भारत की अंतरिक्ष यात्रा
भारत ने 1960 के दशक में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत करी। इसी उद्देश्य से 1962 में विक्रम साराभाई तथा रामनाथन के नेतृत्व में एक भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया गया। विक्रम साराभाई के दिशा निर्देशन में केरल में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना की गई, जिसका नाम उनके निधन के बाद विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया।
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अंतरिक्ष में मानव मिशन की बात करें तो अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय राकेश शर्मा थे, जिन्होंने 3 अप्रैल 1984 को दो रूसी सह यात्रियों Yury Malyshev तथा Gennadi Strekalov के साथ Soyuz T-11 यान में अंतरिक्ष की यात्रा की। राकेश शर्मा 7 दिनों तक सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन Salyut में रहे, जहाँ उन्होंने रिमोट सेंसिंग तथा भार हीनता से जुड़े 45 प्रयोग किये। यात्रा के बाद उन्हें अन्य दो रूसी यात्रियों के साथ अशोक चक्र तथा रूस द्वारा “हीरो ऑफ़ थे सोवियत यूनियन” सम्मान से भी नवाजा गया।
भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम
विकासशील देश होने के वावजूद भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से विकसित किया है। इसी क्रम में 15 अगस्त 2018 को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की घोषणा की तथा इसके लिए 10 हज़ार करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई।
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इस मिशन को गगनयान मिशन नाम दिया गया है। इसके तहत साल 2022 तक 4 लोगों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना है। अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले यात्रियों का चयन 2020 में कर लिया गया है। इन्हें दो वर्षों तक रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस मिशन में सहयोग के लिए सरकार ने रूस तथा फ्रांस से समझौता किया है।
मिशन की सफलता देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी तथा भारत USA, रूस तथा चीन के बाद अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा। गगनयान मिशन के अतिरिक्त 2022 में चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण का कार्य भी प्रगति में है। केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि, चंद्रयान-3 को 2022 की तीसरी तिमाही के दौरान लॉन्च किए जाने की संभावना है।
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