विज्ञापन

Genetically Modified Crops: आनुवंशिक रूप से संशोधित करी गई फसलें या GM क्रॉप क्या हैं और इनके क्या फायदे हैं?

आर्टिकल शेयर करें

GM क्रॉप क्या हैं?

आनुवांशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने में जीन (Gene) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ये डीऑक्सी राइबोन्यूक्लिक एसिड यानी DNA से मिलकर बने होते हैं। जीन ही जीवों में उनके प्रत्येक विशिष्ट लक्षणों जैसे रंग-रूप, आकार इत्यादि के लिए उत्तरदायी होते हैं और यही कारण है कि इन्हें आनुवंशिकता की इकाई भी कहा जाता है।

चूँकि ये किसी जीव में विभिन्न विशिष्ट लक्षणों के लिए जिम्मेदार होते हैं, लिहाजा इनमें यदि बदलाव किया जा सके तो हम किसी जीव में कुछ नए लक्षणों को प्राप्त कर सकते हैं या पुराने कुछ लक्षणों जैसे लंबे समय से चली आ रही बीमारियों को खत्म कर सकते हैं। जीनोम संशोधन की ये तकनीक मनुष्यों के साथ-साथ अब फसलों पर भी अपनाई जा रही है और इस प्रकार की फसलों को ही आनुवंशिक रूप से संशोधित करी गई फसलें या GM क्रॉप कहा जाता है।

मनुष्यों के संबंध में जीनोम संशोधन की एक महत्वपूर्ण तकनीक CRISPR/CAS-9 के बारे में हमनें एक अन्य लेख में विस्तार से समझाया है, जिसे आप यहाँ दी गई लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं।

कैसे तैयार होती हैं GM क्रॉप

फसलों को जीन अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) के द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है। जीन अभियांत्रिकी एक ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से किसी जीव के एक विशिष्ट लक्षण में सुधार लाने के लिए उस विशिष्ट लक्षण को नियंत्रित करने वाले जीन में कृत्रिम तरीकों से बदलाव किया जाता है। आइए इसे एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं

विज्ञापन

माना किसी पौधे A को कोई खास किस्म की कीट अत्यधिक नुकसान पहुँचाता है, जबकि अन्य पौधे B को उस कीट से कोई नुकसान नहीं होता। इसका कारण यह है कि, पौधे B के जीनोम में एक खास किस्म का जीन है, जो उस कीट के लिए एक विषाक्त प्रोटीन का निर्माण करता है, जिसके चलते पौधा B उस कीट से सुरक्षित रहता है।

अब यदि पौधे B के उस जीन की पहचान कर उसे पौधे A के जीनोम में प्रत्यारोपित कर दिया जाए तो पौधे A में भी उस विषाक्त प्रोटीन का निर्माण होने लगेगा और उसे कीट द्वारा होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा।

जीन अभियांत्रिकी के अनुप्रयोगों की बात करें तो असाध्य आनुवांशिक रोगों का इलाज, आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलें, उन्नत किस्म के पशुओं का विकास आदि प्रमुख हैं। इस लेख में हम केवल आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों की बात करेंगे जिसमें उत्पादन में वृद्धि, कीट प्रतिरोधक क्षमता का विकास, पोषण स्तर में सुधार अथवा नए फसल उत्पादों की प्राप्ति आदि शामिल है, जीन अभियांत्रिकी की सहायता से फसलों में इन सब उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है।

विज्ञापन

कीट प्रतिरोधक क्षमता का विकास

कीट प्रतिरोधक क्षमता के विकास का सबसे सफल उदाहरण BT कपास है। आनुवांशिक रूप से संशोधित इस फसल का आविष्कार अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसेंटो द्वारा किया गया है। इसमें मिट्टी में पाए जाने वाले एक जीवाणु Bacillus Thuringiensis (BT) के Cry 1AC नामक जीन को कपास के जीनोम में प्रत्यारोपित किया गया है।

इस जीन के प्रभाव में कपास की कोशिकाएं एक विषैले प्रोटीन का निर्माण करती हैं, जो Ball Worm नामक कीट जो कि, कपास को सर्वाधिक नुकसान पहुँचाता है, को मारकर कपास को सुरक्षा प्रदान करता है। इसी तर्ज पर BT के CPR2 जीन को प्रत्यारोपित कर BT बैगन का आविष्कार किया गया है, जो बैगन का Stem तथा Fruit Borer नामक कीट से बचाव करता है। 

पोषण स्तर में सुधार

पोषण स्तर में सुधार की बात करें तो इसका एक अच्छा उदाहरण गोल्डन राइस है। इसका विकास Swiss Federal Institute of Technology तथा Peter Boyle द्वारा किया गया है। इसमें सामान्य चावल के जीनोम में डेफोडिल से प्राप्त बीटा केरोटिन जीन को प्रत्यारोपित किया गया है, जिससे चावल सुनहरा पीला हो जाता है एवं उसमें सामान्य चावल की तुलना में अधिक विटामिन ए प्राप्त होता है।

विज्ञापन

बिल तथा मिलिंडा गेट फाउंडेशन के सहयोग से गोल्डन राइस की एक नई किस्म भी विकसित की गई है, जिसमे विटामिन ए के साथ ही विटामिन ई, जिंक, आयरन तथा प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ाई गयी है। जहाँ तक गोल्डन राइस के प्रयोग का विषय है अभी इन सभी किस्मों पर अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान मनीला में परीक्षण किया जा रहा है।

औषधीय गुणों का विकास

जीन अभियांत्रिकी से पादपों में औषधीय गुणों को बढ़ाया जा सकता है। इस तकनीक द्वारा अनेक खाद्य फसलों में किसी विशिष्ट एंटीजन को प्रत्यारोपित कर खाद्य वैक्सीन का विकास किया गया है। इन्हें खाने से शरीर मे एंटीबॉडी का निर्माण होता है तथा रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है। उदाहरणों की बात करें तो केले में Cholera का एंटीजन तथा आलू में Pertusis के एंटीजन का प्रत्यारोपण प्रमुख हैं।

भारत की स्थिति

भारत में आनुवांशिक रूप से संशोधित या GM फसलों के संदर्भ में परीक्षण, मूल्यांकन समेत अन्य सभी फैसले पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा गठित एक अस्थाई समिति Genetic Engineering Appraisal Committee (GEAC) द्वारा लिए जाते हैं।

भारत में GM फसलों की शुरुआत की बात करें तो 1994 में BT-Cotton का खेतों में परीक्षण शुरू किया गया। इसके मूल्यांकन के बाद 2002 में GEAC ने इसे वाणिज्यिक कृषि के लिए उपयुक्त बताया एवं खेतों में इसके प्रयोग की अनुमति दी। वर्तमान में देश भर में उगाए जाने वाले कुल कपास का लगभग 94% BT कपास है। संशोधित कपास की खेती से रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कम हुआ है तथा उत्पादकता में भी वृद्धि  हुई है।

विज्ञापन

यह भी पढ़ें : जानें क्या है कोरोना वायरस का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron Variant) तथा कितना खतरनाक है?

इसके अतिरिक्त 2007 में GEAC ने BT-बैगन की वाणिज्यिक खेती की बात कही, जिसका पूरे देश में विरोध हुआ, अंततः साल 2009 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा BT बैगन की खेती पर रोक लगा दी गयी।

वहीं 2017 में भारत में ही संशोधित एक अन्य फसल GM-सरसों को भी कृषि के लिए उपयुक्त बताया गया हालांकि इसका भी कई कारणों के चलते विरोध किया जा रहा है। आनुवांशिक रूप से संशोधित खाद्य फसलों की खेती के विरोध में दिए जाने वाले कुछ मुख्य तर्क निम्नलिखित हैं।

  1. इससे कृषि की लागत मूल्य में वृद्धि होगी।
  2. संशोधित फसलों में बनने वाले विषैले प्रोटीन एवं रसायन मानव स्वास्थ्य एवं मवेशियों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
  3. इससे आनुवंशिक प्रदूषण के खतरों की संभावना है जिसका जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *