कोई भी समाज उसमें रहने वाले लोगों द्वारा निर्मित होता है तथा लोगों की एक दूसरे से भिन्न परिस्थितियाँ उन्हें मानसिक तौर पर भी एक दूसरे से पृथक करती हैं। इसी भिन्न मानसिक परिस्थिति का एक उत्पाद समाज में होने वाले विभिन्न अपराध भी हैं अतः अपराधों को किसी भी समाज से पूर्णतः अलग नहीं किया जा सकता। मनोविज्ञान की मानें तो अपराध किसी मनुष्य की मानसिक उलझनों का परिणाम है, जो किसी व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार से उत्पन्न हो सकती हैं।
ऐसे में सरकारों को चाहिए कि, वे विधि के शासन द्वारा एक सुरक्षित एवं भयमुक्त वातावरण सुनिश्चित करें। नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका जानकारी जोन में, एक ऐसा मंच जहाँ हम विभिन्न विषयों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी आप तक साझा करते हैं। चूँकि बात अपराधों की हो रही है अतः आज इस लेख में हम चर्चा करने जा रहे हैं कुछ ऐसे महत्वपूर्ण अपराधों की, जो सुनने में एक समान (Theft, Extortion, Robbery and Dacoity in Hindi) प्रतीत होते हैं, किन्तु कानून में इनको अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया गया है तथा प्रत्येक के लिए दंड की भी भिन्न व्यवस्था है।
चोरी (Theft)
भारत में विभिन्न अपराधों जैसे संपत्ति से संबंधित अपराध, मानव शरीर से संबंधित अपराध, राज्य के विरुद्ध अपराध आदि को भारतीय दंड संहिता अथवा आईपीसी में परिभाषित किया गया है तथा प्रत्येक अपराध के लिए उचित दंड की व्यवस्था भी की गई है।
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भारतीय दंड संहिता की धारा 378 में चोरी को परिभाषित किया गया है इसके अनुसार, जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे अथवा अधिकार में से उस व्यक्ति की रजामंदी के बिना कोई चल सम्पत्ति बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हुए वह सम्पत्ति ऐसे लेने के लिए हटाता है इस धारा के अनुसार वह चोरी करता है यह कहा जाता है। संहिता की धारा 379 में चोरी के लिए दंड की व्यवस्था है, इसके अनुसार जो कोई व्यक्ति चोरी करेगा वह तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे में संपत्ति की चोरी – किसी सेवक अथवा लिपिक (क्लर्क) द्वारा चोरी किए जाने के संबंध में भिन्न प्रावधान है। धारा 381 के अनुसार, जो कोई लिपिक अथवा सेवक होते हुए या लिपिक अथवा सेवक की हैसियत में नियोजित होते हुए अपने मालिक या नियोक्ता के कब्जे की किसी संपत्ति की चोरी करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
उद्दापन (Extortion)
धारा 383 उद्दापन या Extortion के विषय में है इसके अनुसार, जो कोई किसी व्यक्ति को या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति को किसी प्रकार की क्षति पहुँचाने के भय में डालता है और तद्द्वारा इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति या हस्ताक्षरित या मुद्रांकित कोई चीज, जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, किसी व्यक्ति को परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित (Induced) करता है वह “ उद्दापन या Extortion” करता है। धारा 384 में उद्दापन के लिए दंड की व्यवस्था की गई है इसके अनुसार कोई व्यक्ति, जो उद्दापन करेगा वह तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
किसी व्यक्ति को मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालकर उद्दापन – जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु अथवा घोर उपहति (Grievous Hurt) के भय में डालकर उद्दापन (Extortion) करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
लूट (Robbery)
दंड संहिता की धारा 390 में लूट को परिभाषित किया गया है, इसके तहत सब प्रकार की लूट में या तो चोरी या उद्दापन होता है। संहिता में चोरी तथा उद्दापन किस परिस्थिति में लूट की श्रेणी में आते हैं बताया गया है।
चोरी कब लूट है – चोरी लूट है, यदि उस चोरी को करने के लिए या उस चोरी के करने में या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने में अपराधी स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति (Hurt) या उसका सदोष अवरोध (Wrongful Restraint) या तत्काल मृत्यु का या तत्काल उपहति का या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित करता या कारित करने का प्रयत्न करता है।
उदाहरण : क, य को दबोच लेता है और य के कपड़े में से य का घन और आभूषण य की सम्मति के बिना कपटपूर्वक निकाल लेता है । यहाँ क ने चोरी की है और वह चोरी करने के लिए स्वेच्छया य का सदोष अवरोध कारित करता है, इसलिए क ने लूट की है।
उद्दापन कब लूट है – उद्दापन लूट है, यदि अपराधी वह उद्दापन (Extortion) करते समय भय में डाले गए व्यक्ति की उपस्थिति में है और उस व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की तत्काल मृत्यु या तत्काल उपहति या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालकर उद्दापन करता है एवं भय में डाले गए व्यक्ति से उद्दापन की जाने वाली वस्तु उसी समय और वहाँ ही परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है।
उदाहरण : क, य को राजमार्ग पर मिलता है, एक पिस्तौल दिखलाता है और य की थैली माँगता है। परिणामस्वरूप य अपनी थैली दे देता है। यहाँ क ने य को तत्काल मृत्यु या तत्काल उपहति का भय दिखलाकर थैली उद्दापित की है और उद्दापन करते समय वह उसकी उपस्थिति में हैं अतः क ने लूट की है।
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धारा 392 लूट के विषय में दंड का प्रावधान करती है, जो कोई लूट करेगा वह कठिन कारावास, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा और यदि लूट राजमार्ग पर सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच की जाए तो कारावास चौदह वर्ष तक का हो सकेगा। इसके अतिरिक्त, जो कोई लूट करने का प्रयत्न करेगा (धारा 393), वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
डैकैती (Dacoity)
संहिता की धारा 391 डकैती के विषय में है। इसके अनुसार, जब पाँच या उससे अधिक व्यक्ति संयुक्त होकर लूट करते हैं या करने का प्रयत्न करते हैं अथवा जहाँ कि वे व्यक्ति, जो संयुक्त होकर लूट करते हैं या करने का प्रयत्न करते हैं या ऐसी लूट के किए जाने या ऐसे प्रयत्न में मदद करते हैं, कुल मिलाकर पाँच या अधिक हैं, तब हर व्यक्ति जो इस प्रकार लूट करता है या उसका प्रयत्न करता है या उसमें मदद करता है कहा जाता है कि, वह डकैती करता है।
धारा 395 डकैती के लिए दण्ड की व्यवस्था करती है, जो कोई डकैती करेगा वह आजीवन कारावास से या कठिन कारावास, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 396 के अनुसार यदि ऐसे पाँच या अधिक व्यक्तियों में से जो संयुक्त होकर डकैती कर रहे हों कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा, तो उन व्यक्तियों में से हर व्यक्ति मृत्यु दंड से या आजीवन कारावास से या कठिन कारावास, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। इसके अतिरिक्त यदि लूट या डकैती का प्रयत्न करने के दौरान कोई अपराधी किसी घातक आयुध से सज्जित होगा तो वह कम से कम सात वर्ष के कारावास (धारा 398) से दंडित किया जाएगा।
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