संविधान में आपातकाल हेतु प्रावधान (Emergency Provision in Constitution)

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क्या है आपातकाल?

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है आपातकाल से आशय देश या देश के किसी भू-भाग में आने वाले किसी संकट से है। ऐसी कोई परिस्थिति उत्पन्न हो जाने पर राष्ट्रपति आपातकाल (Emergency Provision in Indian Constitution) की घोषणा करता हैं। इस दौरान सामान्य तौर पर लागू होने वाले नियमों में बदलाव कर दिया जाता है तथा समस्त शक्तियाँ केंद्र सरकार में निहित हो जाती हैं।

संविधान में उल्लेख

संविधान में अनुछेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधान उल्लेखित हैं। ये प्रावधान भारत सरकार को किसी भी असामान्य परिस्थिति से निपटने में सहायता करते हैं। इन प्रावधानों का मुख्य उद्देश्य देश की संप्रभुता, अखण्डता तथा राजनीतिक व्यवस्था को बनाए रखना एवं देश के संविधान की सुरक्षा करना है।

आपातकाल के प्रकार

संविधान में उल्लेखित आपात प्रावधानों के तहत देश या देश के किसी भू-भाग में निम्न तीन प्रकार से आपातकाल घोषित किया जा सकता है।

  • राष्ट्रीय आपातकाल
  • राष्ट्रपति शासन
  • वित्तीय आपातकाल

राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency)

संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का उल्लेख है। यदि भारत अथवा इसके किस भाग की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण या सशत्र विद्रोह द्वारा खतरा उत्पन्न हो जाए तब राष्ट्रपति द्वारा इस अनुच्छेद का प्रयोग कर आपातकाल घोषित किया जाता है। किन्तु राष्ट्रपति ऐसी घोषणा मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश के आधार पर ही कर सकता है। राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा किये जाने के 1 माह के भीतर यह उद्घोषणा संसद के दोनों सदनों से अनुमोदित होनी आवश्यक है।

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किन्तु यदि किसी कारणवश लोकसभा का विघटन हो गया हो तब आपातकाल की उद्घोषणा राज्यसभा द्वारा अनुमोदित या पारित की जानी चाहिए तथा लोकसभा द्वारा उसके पुनः प्रभावी होने के 1 माह के भीतर ऐसी घोषणा का अनुमोदन होना चाहिए।

आपको बता दें 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आंतरिक अशान्ति को आधार बनाकर बिना मंत्रिमंडल की सलाह लिए राष्ट्रपति को आपातकाल घोषित करने की सलाह दी। तत्पश्चात 1978 में 44 वें संविधान संशोधन के द्वारा आंतरिक अशांति के आधार पर आपातकाल लगाए जाने को सशस्त्र विद्रोह में परिवर्तित कर दिया गया तथा यह भी प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति बिना मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश के आपातकाल की घोषणा नहीं करेगा।

आइये अब जानते हैं आपातकाल की समाप्ति से संबंधित प्रावधानों को संकट काल टल जाने की स्थिति में राष्ट्रपति कभी भी आपातकाल की समाप्ति की घोषणा कर सकते हैं अथवा संसद भी पूर्व में अनुमोदित की गयी घोषणा को निरस्त कर आपातकाल समाप्त कर सकती है।

राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव

राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में देश अथवा जिस भाग में आपातकाल लागू है उसमें निम्न प्रभाव पड़ते हैं।

  • पूरे देश या उस भाग का पूर्ण नियंत्रण केंद्र की संसद के पास चला जाता है। यद्यपि राज्य सरकारें निलंबित नहीं होती तथापि केंद्र किसी भी विषय में राज्य को कार्यकारी निर्देश दे सकता है।
  • आपातकाल की स्थिति में संसद को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह किसी भी राज्य के लिए किसी भी विषय पर कानून बना सके। ऐसे कानून आपातकाल समाप्त होने के 6 माह तक ही लागू रह सकते हैं।
  • राष्ट्रपति केंद्र द्वारा राज्यों को दिए जाने वाले धन को कम या पूर्णतः रोक सकता है।
  • राष्ट्रीय आपातकाल लागू होने की स्थिति में अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाले सभी मूल अधिकार तुरंत प्रभाव से निलंबित हो जाते हैं। मूल अधिकारों को विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
  • राष्ट्रीय आपातकाल की दशा में मूल अधिकारों को लागू कराने के लिए न्यायालय जाने का अधिकार भी निलंबित हो जाता है।
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अभी तक राष्ट्रीय आपात की घोषणा तीन बार की जा चुकी है। 1962 भारत चीन युद्ध के समय, 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के समय तथा 1975 में आंतरिक अशांति के कारण।

राष्ट्रपति शासन (President’s Rule)

संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति किसी राज्य में संविधानिक तंत्र के विफल हो जाने पर राष्ट्रपति शासन अथवा राज्यीय आपातकाल की घोषणा करता है। इसके द्वारा केंद्र किसी राज्य के शासन को अपने नियंत्रण में ले लेता है तथा उस राज्य से संबंधित कानून निर्माण का कार्य संसद द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति शासन को दो तरीके से लागू किया जा सकता है।

  • अनुच्छेद 356 के अनुसार जब किसी राज्य की सरकार को संविधान के प्रावधनों के तहत नहीं चलाया जा सकता तब राष्ट्रपति द्वारा उस राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा की जाती है।
  • अनुच्छेद 365 के अनुसार यदि कोई राज्य केंद्र सरकार के किन्हीं निर्देशों का पालन करने या उन्हें लागू करने में असमर्थ हो जाए तब राष्ट्रपति ऐसी परिस्थिति में राज्य के शासन को अपने नियंत्रण में ले लेता है।

ऐसी कोई घोषणा होने के 2 माह के भीतर उसका संसद द्वारा अनुमोदन करना अनिवार्य होता है। दोनों सदनों द्वारा उक्त घोषणा के अनुमोदित हो जाने के पश्चात ऐसी घोषणा 6 माह तक जारी रह सकती है जिसे अधिकतम 1 वर्ष तक जारी रखा जा सकता है। हालाँकि 1 वर्ष के बाद भी राष्ट्रपति शासन को अधिकतम 3 वर्षो तक बढ़ाया जा सकता है यदि वह निम्न शर्तों को पूरा करता हो।

  • यदि ऐसे किसी राज्य में या उसके किस भाग में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित हो
  • यदि चुनाव आयोग यह प्रमाणित करे कि संबंधित राज्य में चुनाव करवाना वर्तमान परिस्थितियों में संभव नहीं है।
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वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency)

संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा कर सकता है जबकि उसे यह विश्वास हो जाए कि भारत या उसके किसी क्षेत्र में वित्तीय संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। राष्ट्रपति शासन की तरह वित्तीय आपातकाल की घोषणा का भी संसद द्वारा 2 माह के भीतर अनुमोदित होना आवश्यक है। एक बार संसद के दोनों सदनों से घोषणा का अनुमोदन हो जाने के बाद यह अनिश्चित काल के लिए जारी रह सकता है इसे जारी रखने हेतु संसद की पुनः मंजूरी आवश्यक नहीं होती। अतः यह प्रवर्तन में रहती है जब तक की इसे वापस न लिया जाए।

वित्तीय आपातकाल के प्रभाव

आइये अब समझते हैं वित्तीय आपातकाल लागू होने की स्थिति में देश पर क्या प्रभाव पड़ता है।

  • राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य को वित्त संबंधी सिद्धांतों का पालन करने के निर्देश देना
  • ऐसे किसी निर्देश द्वारा निम्न प्रावधान किए जा सकते हैं।
    • राज्य की सेवा में किसी या सभी वर्गों के सेवकों के वेतन एवं भत्तों में कटौती
    • राज्य द्वारा पारित किसी धन अथवा वित्त विधेयक को आरक्षित रखना

अतः वित्तीय आपात की स्थिति में राज्य के सभी वित्तीय मामलों में केंद्र का नियंत्रण हो जाता है। अभी तक देश में वित्तीय आपातकाल लागू नहीं किया गया है।

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