मानव रक्त, इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें तथा विभिन्न रक्त समूह (Blood Group in Hindi)

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हम जानते हैं कि कोशिकाएं हमारे शरीर की क्रियात्मक एवं संरचनात्मक इकाई हैं, हमारा सम्पूर्ण शरीर इन्हीं अरबों-खरबों छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर बना है। ये कोशिकाएं समूह में मिलकर ऊतकों का निर्माण करती हैं और इन्हीं ऊतकों में सबसे महत्वपूर्ण ऊतक है तरल संयोजी ऊतक अथवा जिसे हम रक्त या खून के नाम से भी जानते हैं। आज इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे रक्त के बारे में, देखेंगे इसके विभिन्न घटकों, कार्यों तथा अलग अलग रक्त समूहों को और अंत में चर्चा करेंगे रक्त से संबंधित कुछ प्रमुख बीमारियों की।

रक्त (Blood) क्या है?

तरल संयोजी ऊतक या रक्त हमारे शरीर का तरल भाग होता है, जो एक सामान्य स्वस्थ शरीर में लगभग 5.5 लीटर या मनुष्य के कुल भार का 7 से 8 फीसद होता है। यह हमारे शरीर में मौजूद परिसंचरण तंत्र के माध्यम से सभी अंगों तक संचारित होता है। इसके pH मान की बात करें तो यह 7.4 है, जो इसके हल्के क्षारीय गुण को प्रदर्शित करता है। रक्त हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, यह पूरे शरीर अथवा सभी अंगों तक संचारित होकर उन अंगों तक ऑक्सीजन, पोषक तत्वों, हार्मोन्स आदि का प्रवाह करता है।

pH मान एक पैमाना है जो किसी विलयन के अम्लीय अथवा क्षारीय गुण को प्रदर्शित करता है। इसके अनुसार प्रत्येक विलयन को उसकी अम्लीय एवं क्षारीय प्रकृति के आधार पर 1 से 14 तक अंक दिए जाते हैं, जहाँ 1 विलयन के अत्यधिक अम्लीय, 7 उसके उदासीन तथा 14 मान अत्यधिक क्षारीय गुण को दर्शाता है। शुद्ध जल का pH मान 7 होता है।

रक्त के विभिन्न घटक (Composition Of Blood)

रक्त मुख्यतः तीन अलग अलग कोशिकाओं तथा प्लाज्मा से मिलकर बना होता है। इन कोशिकाओं में लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं एवं प्लेटलेट्स शामिल हैं, जबकि प्लाज्मा जो रक्त का 55 फीसदी हिस्सा होता है में 93% पानी, 6% प्रोटीन, तथा 1% अन्य तत्व जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, यूरिया, खनिज, ग्लूकोज, अमीनो अमल आदि होते हैं।

लाल रक्त कोशिकाएं (Red Blood Cells)

लाल रक्त कोशिकाएं बोन मेरो अथवा अस्थि मज़्ज़ा में निर्मित होती हैं। हमारे शरीर में इनके घनत्व को देखें तो यह तकरीबन 5.5 मिलियन प्रति घन मिलीमीटर है। ये कोशिकाएं बनती एवं नष्ट होती रहती हैं, एक लाल रक्त कोशिका की औसत आयु 120 दिन की होती है। इसके पश्चात ये मृत हो जाती हैं, जिन्हें प्लीहा नामक अंग द्वारा रक्त से हटा दिया जाता है और अंततः हमारा लिवर इन मृत कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।

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लाल रक्त कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) नामक रंजक पाया जाता है, जिसके कारण खून का रंग लाल दिखाई देता है। हीमोग्लोबिन ही फेफड़ों से शरीर के प्रत्येक अंग तक ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड को वापस फेफड़ों तक ले जाता है। हीमोग्लोबिन शब्द हेम (रक्त) तथा ग्लोबिन (रक्त में पाया जाने वाला एक प्रोटीन) से मिलकर बना है। मानव समेत सभी स्तनधारियों में लाल रक्त कोशिकाओं में केन्द्रक अनुपस्थिति रहता है, हालांकि ऊँट एवं लामा इसके अपवाद हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं (White Blood Cells)

श्वेत रक्त कोशिकाओं का निर्माण भी अस्थि मज़्ज़ा (Bone Marrow) में होता है। सफेद रंग की ये कोशिकाएं हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली के सैनिकों के तौर पर जाना जाता है। श्वेत रक्त कोशिकाओं का घनत्व लाल रक्त कोशिकाओं की तुलना में बहुत कम 5 से 10 हज़ार प्रति घन मिलीमीटर होता है, हालाँकि किसी संक्रमण की स्थिति में ये कई गुना तक बढ़ जाते हैं। लाल रक्त कोशिकाओं के विपरीत इनका जीवन काल भी बहुत कम होता है, ये मात्र 4 से 5 दिनों तक ही जीवित रहती हैं। श्वेत रक्त कोशिकाएं पाँच प्रकार की होती हैं।

न्यूट्रोफिल (Neutrophil) : श्वेत रक्त कोशिकाओं में इसकी मात्रा सबसे अधिक तकरीबन 66 से 70 फीसदी तह होती हैं। ये संक्रमण वाले स्थान पर सबसे पहले जाने वाली कोशिकाएं हैं, न्यूट्रोफिल सूक्ष्मजीवों को मारने वाले एंजाइमों को मुक्त करके बाहरी सूक्ष्मजीवों को अवरुद्ध, अक्षम एवं उनका भक्षण कर हमारे शरीर में संक्रमण को रोकने में मदद करते हैं।

इयोसिनोफिल (Eosinophils) : ये ग्रैनुलोसाइट कोशिकाएं हैं अर्थात इनके कोशिका द्रव्य में विभिन्न प्रकार की कणिकाएं पाई जाती हैं, जिनमें अलग अलग उद्देश्यों के लिए एंजाइम मौजूद होते हैं। इसके मुख्य कार्यों में किसी परजीवी, बैक्टीरिया या वायरस जैसे हमलावर कीटाणुओं को मारना तथा सूजन अथवा जलन पैदा करना है। यह प्रक्रिया शरीर को किसी बीमारी या एलर्जी की प्रतिक्रिया को पहचानने और उसे नियंत्रित करने में मदद करती है।

बेसोफिल (Basophils) : श्वेत रक्त कोशिकाओं में इनकी संख्या सबसे कम होती है, ये हानिकारक बैक्टीरिया और कीटाणुओं से लड़ने में सहायक हैं। न्यूट्रोफिल और ईोसिनोफिल के समान ये भी ग्रैन्यूलोसाइट्स कोशिकाएं हैं। ये तीनों कोशिकाएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में अलग-अलग उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न एंजाइम स्रावित करती हैं। बेसोफिल द्वारा Histamine (यह संक्रमण के निकट रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करता है, जिससे संक्रमण वाले स्थान पर अधिक रक्त प्रवाह हो सके) तथा Heparin (यह रक्त को पतला अथवा उसका थक्का बनने को रोकता है) एंजाइम छोड़ा जाता है।

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मोनोसाइट (Monocyte) : ये रोगाणु भक्षण कोशिकाएं हैं जो संक्रमण की स्थिति में सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं तथा शरीर में प्रवेश करने वाले कीटाणुओं और जीवाणुओं पर हमला करने और उन्हें तोड़ने के लिए उत्तरदाई हैं मोनोसाइट्स फागोसाइटिक कोशिकाएं हैं अर्थात ये बाहरी रोगाणुओं को तोड़कर पचा देते हैं।

लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) : यह विशिष्ट प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं, जो रोगाणुओं को पहचान कर उन्हें नष्ट करने तथा उनके खिलाफ विशिष्ट एंटीबॉडी का निर्माण करती हैं, ताकि भविष्य में पुनः ऐसे रोगाणुओं से संक्रमित होने पर उनकी तुरंत पहचान कर उन्हें नष्ट किया जा सके। ये दो अलग अलग कोशिकाओं T-Lymphocytes तथा B-Lymphocytes में विभाजित होते हैं। T सेल सामान्यतः रोगाणुओं को नष्ट करने का कार्य करती हैं, वे शरीर की उन कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं, जिन पर किसी रोगाणु द्वारा कब्जा कर लिया गया है।

रोगाणुओं को नष्ट कर ये कोशिकाएं उनके कुछ अवशेष जिन्हें एंटीजन कहा जाता है, को B सेल को स्थानांतरित करती हैं। B कोशिकाओं का काम एंटीबॉडी बनाना है। प्रत्येक B सेल एक विशिष्ट एंटीबॉडी बनाने में सक्षम होती है। प्रत्येक एंटीबॉडी एक विशिष्ट एंटीजन से संबंधित होती है।

प्लेटलेट्स (Platelets)

अन्य रक्त कोशिकाओं की भांति ये भी अस्थि मज़्ज़ा में निर्मित होती हैं, जिनका जीवन काल 1 से 2 सप्ताह का होता है। इनका मुख्य कार्य रक्त का थक्का जमाना है, ताकि किसी आंतरिक अथवा बाहरी चोट की स्थिति में अनावश्यक रक्त प्रवाह को रोका जा सके। चूँकि यह खून के बहने को रोकता है इसके कारण ही विभिन्न प्रकार की शल्य चिकित्सा जैसे अंग प्रत्यारोपण आदि संभव हो पता है।

खून में प्लेटलेट्स की संतुलित मात्रा का होना बेहद आवश्यक है। इसकी मात्रा अधिक होने पर रक्त के वाहिकाओं में जमने की संभावना रहती है, जो जानलेवा हो सकता है। वहीं प्लेटलेट्स की कमी के कारण आंतरिक रक्त स्राव हो सकता है।

ब्लड ग्रुप या ABO व्यवस्था (Blood group in Hindi)

यहाँ तक हमनें रक्त की विभिन्न कोशिकाओं तथा उनके कार्यों को समझा। आइये अब एक नज़र रक्त समूह अथवा Blood Group पर डालते हैं। समझते हैं आखिर रक्त के अलग अलग समूह क्या प्रदर्शित करते हैं, क्यों रक्त दान के दौरान इसे ध्यान पूर्वक जाँचा जाता है तथा माता पिता के रक्त समूह (Blood Group in Hindi) से संतान के किस समूह की संभावना रहती है।

ABO व्यवस्था के अंतर्गत रक्त समूह का निर्धारण लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood cells) में पाए जाने वाले एन्टीजन के आधार पर किया जाता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर मौजूद होता है। किसी व्यक्ति के RBCs में मौजूद एंटीजन के आधार पर ही विभिन्न रक्त समूह जैसे A, B, O, तथा AB निर्धारित किए जाते हैं।

A एंटीजन युक्त RBCs वाले रक्त के सीरम (द्रव) में B एंटीजन युक्त RBCs के खिलाफ एंटीबॉडी मौजूद होती है। रक्तदान के दौरान यदि A एंटीजन रक्त वाले व्यक्तियों में B एंटीजन युक्त रक्त चढ़ाया जाता है, तो व्यक्ति के रक्त में मौजूद एंटीबॉडी द्वारा B एंटीजन युक्त रक्त को नष्ट कर दिया जाता है। इसी प्रकार यदि B एंटीजन रक्त वाले व्यक्तियों में A एंटीजन युक्त रक्त चढ़ाया जाता है, तो व्यक्ति के रक्त में मौजूद एंटीबॉडी द्वारा A एंटीजन वाला रक्त नष्ट हो जाता है।

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आपको ज्ञात होगा रक्तदान के समय दाम करने वाले तथा रक्त ग्रहण करने वाले दोनों लोगों के ग्रुप को जाँच जाता है। कोई एक रक्त समूह का व्यक्ति किसी खास रक्त समूह वाले व्यक्ति को ही रक्त दान अथवा रक्त ग्रहण कर सकता है। रक्त दान देते समय रक्त समूह की जाँच यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है, कि रक्त देने वाले का एंटीजन तथा ग्रहण करने वाले व्यक्ति की एंटीबॉडी समान न हो। यदि ऐसा होता है तो समान एन्टीज एवं एंटीबॉडी के मध्य अभिक्रिया के चलते रक्त वाहिकाओं में जाम जाता है, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

Rh Factor

Rh एक एंटीजन है जो रक्त में उपस्थित अथवा अनुपस्थिति हो सकता है। जिस व्यक्ति के रक्त में यह पाया जाता है वह सामान्यतः Rh+ तथा जिसमें यह अनुपस्थित होता है उसे Rh- समूह से दर्शाया जाता है। सामान्यतः इसे रक्त समूह की ABO व्यवस्था के साथ ही प्रदर्शित किया जाता है। यही कारण है कि विभिन्न रक्त समूह के साथ + तथा – का निशान दिखाई देता है।

रक्त दान देने से पहले Rh फैक्टर को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। Rh एंटीजन उपस्थित अथवा Rh+ वाले व्यक्ति Rh+ तथा Rh- दोनों से रक्त ग्रहण कर सकते हैं, जबकि Rh- वाले व्यक्ति केवल समान एंटीजन (Rh-) वाले व्यक्ति से ही रक्त प्राप्त कर सकते हैं। यदि Rh- व्यक्ति को Rh+ का रक्त दिया जाए तो पहली बार रक्त दिए जाने के दौरान व्यक्ति के शरीर में Rh+ के खिलाफ एंटीबॉडी का निर्माण होता है और व्यक्ति को किसी प्रकार की समस्या नहीं आती है। किन्तु ऐसे व्यक्ति को पुनः Rh+ रक्त दे दिया जाए तो पहले से बनी एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। नीचे चित्र में दर्शाया गया है, कि किसी रक्त समूह (Blood Group in Hindi) का व्यक्ति किस समूह से रक्त ग्रहण कर सकता है।

Blood Group in Hindi
By: stanfordbloodcenter

किसी Rh+ पुरुष की शादी यदि Rh- महिला से हो जाती है तो बच्चों में Rh+ रक्त समूह पाए जाने की सर्वाधिक संभावना होती है। ऐसे दंपति की पहली संतान स्वस्थ जन्म लेती है, लेकिन पहली संतान के जन्म के समय बच्चे का रक्त माँ के रक्त से मिलता है और इस स्थिति में माँ के शरीर में के Rh+ के खिलाफ एंटीबॉडी बन जाती है। परिणामस्वरूप भविष्य में आने वाली प्रत्येक संतान की गर्भ में ही मृत्यु हो जाती है। यह स्थिति Erythroblastosis Fetalis कहलाती है।

कुछ अन्य रक्त समूह

बॉम्बे ब्लड ग्रुप : यह मूल रूप से o ब्लड ग्रुप है, जिसमें सामान्य एंटीजन H अनुपस्थित रहता है। H एंटीजन अन्य सभी रक्त समूहों में पाया जाता है। इस रक्त समूह का व्यक्ति अन्य सभी समूहों को रक्त दे सकता है, किंतु रक्त केवल o समूह के व्यक्तियों से ही प्राप्त कर सकता है।

INRA ब्लड ग्रुप : इस समूह की खोज 2016 में सूरत में कई गयी, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह समूह अत्यंत दुर्लभ है। ऐसा व्यक्ति न तो किसी से रक्त ग्रहण कर सकता है और न ही रक्त दान कर सकता है।

रक्त से संबंधित बीमारियाँ

आइए अब रक्त से जुड़ी कुछ प्रमुख बीमारियों के बारे में जानते हैं।

हीमोफीलिया (Hemophilia)

यह रक्त से संबंधित एक अनुवांशिक बीमारी है। इससे संक्रमित व्यक्ति में रक्त का थक्का नहीं जमता। इस रोग से प्रभावित लोग चोट लगने अथवा किसी प्रकार की सर्जरी के बाद लंबे समय तक रक्तस्राव अनुभव करते हैं। इससे केवल पुरुष प्रभावित होते हैं, जबकि महिलाएं इस रोग की वाहक होती हैं। हीमोफिलिया को शाही बीमारी अथवा “The Royal Disease” के रूप में भी जाना जाता है। इसने 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में इंग्लैंड, जर्मनी, रूस और स्पेन के शाही परिवारों को प्रभावित किया था। माना जाता है कि इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया हीमोफिलिया B की वाहक थीं।

एनीमिया (Anemia)

हमनें ऊपर जाना लाल रक्त कोशिकाओं में एक आयरन युक्त प्रोटीन (हीमोग्लोबिन) होता है, जो फेफड़ों से ऑक्सीजन को पूरे शरीर में सभी ऊतकों तक ले जाता है। एनीमिया ऐसी स्थिति है, जब किसी व्यक्ति के पास पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं नहीं होती हैं अथवा जब व्यक्ति कइ लाल रक्त कोशिकाएं सही ढंग से काम नहीं करती हैं।

ल्यूकीमिया (Leukemia)

ल्यूकीमिया केंसर (असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि) का एक प्रकार है, जो किसी व्यक्ति के रक्त अथवा अस्थि मज्जा में पाया जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति के शरीर में असामान्य रूप से श्वेत रक्त कोशिकाओं का उत्पादन होने लगता है। ये असामान्य श्वेत रक्त कोशिकाएं संक्रमण से लड़ने में सक्षम नहीं होती हैं तथा अस्थि मज्जा की लाल रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स के उत्पादन करने की क्षमता को कम करती हैं।

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