उपनिवेशवाद से हम सभी वाकिफ हैं, भारत स्वयं लगभग दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा है। दुनियाँ में उपनिवेशवादी ताकतों के पनपने के साथ-साथ राष्ट्रवाद की भावना को भी बल मिला। लोगों में पैदा हुई राष्ट्रवाद एवं स्वाधीनता की इस भावना का इस्तेमाल कर दुनियाँ के कई तानाशाह नेताओं ने अपने-अपने मुल्कों में क्रांतिकारी आंदोलन किये और सत्ता प्राप्त करने में सफलता हासिल करी। रूस में स्टालिन, इटली में मुसोलिनी, चीन में माओ आदि ऐसे तानाशाह नेताओं के उदाहरण हैं।
इन्हीं तानाशाहों (Dictators) में एक महत्वपूर्ण नाम जर्मनी के एडोल्फ़ हिटलर का भी है, जिसके सम्पूर्ण जीवन पर हम इस लेख के माध्यम से प्रकाश डालेंगे और देखेंगे कि वे कौन-कौन से कारण थे, जिनके चलते हिटलर समूचे जर्मनी को प्रभावित कर सत्ता हासिल करने में सफल हुआ और अंततः इतिहास के सबसे क्रूर तानाशाहों में शामिल हुआ।
एडोल्फ़ हिटलर का शुरुआती जीवन
एडोल्फ़ हिटलर का जन्म 20 अप्रैल, 1889 को ऑस्ट्रो-जर्मन सीमा के पास स्थित एक छोटे से ऑस्ट्रियाई शहर Braunau am Inn में हुआ। हिटलर एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता था, उसके पिता एलोइस हिटलर एक सिविल सेवक थे, जबकि माता क्लारा ग्रहणी थी। एडोल्फ़ का अधिकांश बचपन ऊपरी ऑस्ट्रिया की राजधानी लिंज़ में बीता।
उसके पिता एलोइस ने तीन शादियाँ की, 1884 में एलोइस की दूसरी पत्नी फ्रांज़िस्का मत्ज़ेल्सबर्गर की मृत्यु के बाद एलोइस और क्लारा ने 7 जनवरी 1884 को Braunau am Inn में शादी की। एलोइस तथा क्लारा के छः बच्चे हुए, जिनमें एडोल्फ़ हिटलर उनकी चौथी संतान थी। उसके तीन भाई-बहनों Gustav, Ida, तथा Otto की बाल्यकाल में ही मृत्यु हो गई।
इसके अतिरिक्त एलोइस की दूसरी पत्नी से भी दो बच्चे Alois Jr. तथा Angela थे। जून 1894 में एलोइस की सेवानिवृत्ति के पश्चात उनका परिवार लियोन्डिंग में बस गया। एडोल्फ़ हिटलर ने यहीं मौजूद एक प्राथमिक विद्यालय वोक्सशूले में दाखिला लिया। बाल्यकाल में एडोल्फ़ हिटलर की रुचि कला यथा चित्रकला एवं संगीत में थी। वो इन्हीं क्षेत्रों को अपनी आजीविका का साधन बनाना चाहता था, किन्तु उसके पिता इसके बिल्कुल खिलाफ थे। वे एडोल्फ़ को एक सिविल सेवक के रूप में देखना चाहते थे।
एडोल्फ़ को सिविल सेवा में कोई रुचि नहीं थी, जिसके चलते पिता-पुत्र दोनों में हमेशा संघर्ष की स्थिति बनी रही। एडोल्फ़ अपनी माँ के प्रति अत्यधिक समर्पित था। जब वह 11 वर्ष का था तब उसके छोटे भाई एडमंड की खसरे के कारण मृत्यु हो गई, जिससे वह खासा प्रभावित हुआ। 1903 में हिटलर के पिता की मृत्यु हुई, पिता की मृत्यु के बाद परिवार क्लारा के साथ लियोन्डिंग से पुनः लिंज आ गया। चार साल बाद 1907 में उसकी माँ का भी केंसर से देहांत हो गया। पिता की मृत्यु के बाद हिटलर ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, हालाँकि हिटलर की शिक्षा में कभी खास रुचि भी नहीं रही।
वह एक कलाकार बनना चाहता था। माँ के देहावसान के बाद हिटलर कला में अपना करियर बनाने के लिए वियना चला गया, किन्तु विएना एकेडमी ऑफ आर्ट और स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर दोनों के लिए किए गए उसके आवेदन खारिज कर दिए गए। इसके पश्चात हिटलर ने कुछ वर्षों के लिए अकेला जीवन बिताया। इस दौरान हिटलर की राजनीति में दिलचस्पी बढ़ने लगी, जो आगे चलकर नाजी विचारधारा को जन्म देने वाली थी।
हिटलर से पूर्व पश्चिम के महत्वपूर्ण घटनाक्रम
एडोल्फ़ हिटलर की राजनीतिक विचारधारा को समझने से पहले उसके जन्म के पूर्व पश्चिम की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति पर एक नजर डालना आवश्यक है, जिसने कला के क्षेत्र में रुचि रखने वाले एक सामान्य बालक को 20वीं सदी का सबसे बड़ा तानाशाह बनाने में मदद करी।
हिटलर के जन्म से पूर्व 19वीं सदी के मध्य की कुछ मुख्य घटनाओं में इटली एवं जर्मनी का एकीकरण शामिल है। इटली 1870 के पूर्व तक लगभग 1 दर्जन स्वतंत्र राज्यों में विभाजित था, जहाँ विभिन्न शासक राज्य करते थे। ये सभी शासक इटली के एक राष्ट्र बनने के कभी पक्ष में नहीं रहे। मेजिनी, कावूर तथा गैरीबाल्डी जैसे लोगों ने इटली के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इटली के समान जर्मनी भी कई स्वतंत्र राज्यों में बँटा हुआ था। इसके भौगोलिक विस्तार को देखें तो उत्तरी भाग में प्रशा, हनोवर, फ्रैंकफ़र्ट आदि थे। मध्यवर्ती भाग में राइनलैंड का महत्वपूर्ण क्षेत्र तथा दक्षिणी भाग में बवेरिया, प्लैटिनेट आदि शामिल थे। इन सब में राजनीतिक दृष्टि से प्रशा सबसे खास था। जर्मनी के एकीकरण में तीन अग अलग नीतियों यथा कोयला और लोहा (औद्योगीक विकास), स्याही और कागज (दार्शनिकों का योगदान) एवं रक्त और लौह (युद्ध एवं कूटनीति) की भूमिका रही।
जर्मनी को एक राष्ट्र की सकल देने में बिस्मार्क ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। चूँकि प्रशा सबसे मजबूत जर्मन राज्य था अतः बिस्मार्क प्रशा के नेत्रत्व में ही जर्मनी को एक करना चाहता था। बिस्मार्क का मानना था कि जर्मन एकीकरण बौद्धिक भाषणों या बहुमत के निर्णयों से नहीं अपितु रक्त और लौह की नीति अर्थात युद्ध एवं कूटनीति द्वारा ही हो सकता है। इस कार्य के लिए उसने कई युद्ध लड़े तथा कई विदेशी शक्तियों से समझौते भी किए और अंततः एक जर्मनी की स्थापना की, जिस पर आगे चलकर एक क्रूर तानाशाह राज करने वाला था।
प्रथम विश्व युद्ध एवं हिटलर
हालाँकि यूरोपीय देश हमेशा उपनिवेशवादी धारणा से ग्रसित रहे, किन्तु 20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में उपनिवेशवादी प्रतिद्वंद्विता अपने चरम पर पहुँचने लगी। जर्मनी तथा इटली के एकीकरण के पश्चात इन देशों ने भी अपने साम्राज्य को फैलाने की सोची। इसके अतिरिक्त पूर्व में जापान भी एक शक्तिशाली राज्य बनकर उभरा, जो उपनिवेशों की भूख से ग्रसित था। इन नए देशों के आ जाने से साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि आई तथा अपने अपने उपनिवेश स्थापित करने की होड़ लग गई।
इस होड़ का नतीजा यह हुआ कि देश अन्य देशों के साथ गुप्त संधियाँ तथा गुटबाजी करने लगे, जो आगे चलकर प्रथम विश्व युद्ध का कारण बनी। इसके अतिरिक्त युद्ध के कुछ अन्य कारण जिन्होंने आग में घी का काम किया वे लोगों में उग्र राष्ट्रवाद की भवना का उदय, सैन्यीकरण में वृद्धि, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का आभाव, बाल्कन क्षेत्र की जटिलता आदि थे।
जून 1914 में बाल्कन क्षेत्र में हुई ऑस्ट्रियाई राजकुमार की हत्या ने प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत की, जिसके बाद सभी देश अपने अपने मित्र देशों की तरफ से युद्ध में कूद पड़े। इंग्लैंड, फ्रांस तथा रूस ने सर्बिया का साथ दिया, जबकि ऑस्ट्रिया की ओर से जर्मनी, तुर्की तथा हंगरी ने युद्ध में भाग लिया।
एडोल्फ़ हिटलर 1913 में वियना से म्यूनिख (जर्मनी) आ गया। यहाँ उसने जर्मन सेना में भर्ती होने के लिए आवेदन किया, जिसे अगस्त 1914 में स्वीकार कर लिया गया। लगभग 2 महीने के प्रशिक्षण के बाद, हिटलर को अक्टूबर 1914 में जर्मनी की ओर से बेल्जियम में तैनात किया गया, जहाँ उसने Ypres की पहली लड़ाई में भाग लिया। अगले दो सालों तक हिटलर ने कई मोर्चों जिनमें Somme, Neu Chapel आदि शामिल हैं पर जर्मनी का प्रतिनिधित्व किया।
अक्टूबर 1918 में ब्रिटेन द्वारा किए गए एक मस्टर्ड गैस हमले में हिटलर समेत कई सिपाही अस्थाई रूप से अंधे हो गए। प्रारंभिक उपचार के बाद हिटलर को Pasewalk के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। युद्ध के दौरान एडोल्फ़ हिटलर की बहादुरी को देखते हुए दिसंबर 1914 में उसे आयरन क्रॉस (द्वितीय श्रेणी) तथा अगस्त 1918 में आयरन क्रॉस (प्रथम श्रेणी) से सम्मानित किया गया।
युद्ध में जर्मनी की पराजय हुई तथा कई अपमानजनक संधियाँ जर्मनी पर थोप दी गई। जर्मन समर्पण तथा संधि की खबर जब हिटलर ने सुनी तो वह अत्यधिक क्रोधित हुआ। उसने उसी क्षण प्रण लिया की जर्मन राजनीति में प्रवेश कर देश का उद्धार करना उसका एकमात्र लक्ष्य होगा। जर्मनी की हार तथा उस पर थोपी गई संधियों के लिए हिटलर नेताओं को जिम्मेदार मानता था।
जर्मन राजनीति में हिटलर और नाजीवाद का उदय
युद्ध के पश्चात, हिटलर म्यूनिख लौट आया और उसने जर्मन सेना में काम करना जारी रखा। इस दौरान हिटलर की जर्मन वर्कर्स पार्टी (जर्मन नाम: Deutsche Arbeiterpartei या DAP) से नजदीकियाँ बढ़ने लगी। वह पार्टी के संस्थापक Anton Drexler द्वारा दिए गए यहूदी-विरोधी, राष्ट्रवादी तथा मार्क्सवाद-विरोधी विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुआ। सितंबर 1919 में हिटलर DAP में शामिल हो गया, जिसने बाद में अपना नाम बदलकर (NSDAP) कर लिया। NSDAP को ही नाजी पार्टी के रूप में जाना जाता है।
हिटलर पार्टी कार्यकर्ता के रूप में काफ़ी उत्साहित था। उसने स्वयं नाजी पार्टी का बैनर तैयार किया, जिसमें लाल रंग की पृष्ठभूमि में एक सफेद गोले के भीतर स्वास्तिक का चिन्ह लगाया गया है। हिटलर के आने से नाजी पार्टी धीरे-धीरे लोकप्रियता के चरम पर पहुँचने लगी। उसने वर्साय की संधि, प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं, मार्क्सवादियों और यहूदियों के खिलाफ अपने कटु भाषणों के जरिए लोगों को एकजुट और प्रभावित किया।
चूँकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी आर्थिक रूप से तबाह हो चुका था, जर्मनी के कोयला समृद्ध क्षेत्र भी संधि के तहत फ्रांस के हवाले कर दिए गए और जर्मनी पर 5 अरब डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया। इन सबके चलते जर्मन जनता में काफी आक्रोश था। पार्टी तथा लोगों के बीच हिटलर (Biography of Hitler in Hindi) की बढ़ती लोकप्रियता के कारण 1921 में उसे नाजी पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
जर्मन सरकार के तख्तापलट की योजना
नवंबर 1923 में हिटलर नें Erich Ludendorff के साथ मिलकर जर्मनी की राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के उद्देश्य से सरकार का तख्तापलट करने की योजना बनाई, यह असफल रही। इसके बाद हिटलर को बंदी बना लिया गया तथा उसे 5 वर्षों की सजा सुनाई गई। हालाँकि हिटलर को केवल नौ महीने में ही रिहा कर दिया गया। जेल में रहने के दौरान उसने अपनी अपना राजनीतिक घोषणापत्र “मीन काम्फ” लिखा। इसे दो भागों में प्रकाशित किया गया। घोषणापत्रों के प्रकाशित होने के पहले वर्ष ही इसकी 9000 से अधिक प्रतियाँ बेची गई।
इसके पहले भाग में हिटलर ने प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम पर अपने विचारों के साथ-साथ, यहूदी-विरोधी एवं आर्य-समर्थक दृष्टिकोण को साझा किया। इसके अतिरिक्त इसमें फ्रांस से बदला लेने और पूर्व की ओर रूस तक विस्तार करने का भी आह्वान किया गया। मीन काम्फ के दूसरे खंड में जर्मनी के भीतर सत्ता हासिल करने और उसे बनाए रखने की योजना के बारे में बताया गया। हिटलर का घोषणापत्र मीन काम्फ काफी भड़काऊ तथा विध्वंसक था, इसने उन कई जर्मनों को अपनी ओर आकर्षित किया जो प्रथम विश्व युद्ध के अंत में विस्थापित और अपमानित महसूस कर रहे थे।
युद्ध के बाद जर्मनी में बेरोजगारी उच्च स्तर पर थी और देश मंदी से जूझ रहा था। इन परिस्थितियों ने हिटलर की राजनीतिक महत्वकांक्षा को एक मजबूत आधार प्रदान किया। हिटलर (Biography of Hitler in Hindi) तख्तापलट के माध्यम से सत्ता हासिल करने में असफल रहा था, इसलिए उसने चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से सत्ता हासिल करने पर विचार किया। उसने 1928 तथा 1930 में चुनाव लड़े तथा पराजित हुआ। अंततः साल 1933 में नाजी पार्टी सत्ता में आई तथा राष्ट्रपति हीनडेंबर्ग ने हिटलर को जर्मनी का चांसलर नियुक्त किया।
हिटलर जैसे व्यक्ति का जर्मन सत्ता पर काबिज हो जाना पूरी दुनियाँ के लिए किसी बुरे संकेत से कम नहीं था। सत्ता में आने के बाद हिटलर ने देश में अपनी नीतियों को लागू करना शुरू कर दिया। 30 जनवरी को नाजी पार्टी द्वारा सत्ता हासिल करने के बाद नाजी सैनिकों ने कम्युनिस्ट पार्टी, वामपंथी, ट्रेड यूनियनिस्ट, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जर्मनी और सेंटर पार्टी के खिलाफ हिंसा का व्यापक अभियान चलाया।
हिटलर एवं यहूदी
प्रथम विश्वयुद्ध में हुई हार का जिम्मेदार हिटलर नेताओं की बुझदिली के साथ-साथ यहूदियों को भी मानता था। हालाँकि यहूदियों का जर्मनी की जनसंख्या में बहुत बड़ा हिस्सा नहीं था, इसके बावजूद व्यवसाय तथा राजनीति में उनकी अग्रणी भूमिका थी। यह वर्ग जर्मनी के वैभवशाली वर्ग में शामिल था। हिटलर समेत अन्य सामान्य जर्मन जनता का मानना था कि इस वर्ग ने अकूत धन संपदा होने के बावजूद जर्मन सैन्यीकरण तथा सुरक्षा को मजबूत करने में अपना योगदान नहीं दिया। इस कारण आम जर्मन के मन में यहूदियों के प्रति नफरत की भावना पनपने लगी जिसे हिटलर ने और भड़काया।
1933 से 1939 के मध्य द्वितीय युद्ध की शुरुआत से पहले, हिटलर और उसके नाजी शासन ने समाज में यहूदियों को प्रताड़ित और जर्मनी से बाहर करने के लिए कई कानूनों और विनियमों को लागू किया। ये यहूदी-विरोधी कानून सरकार के सभी स्तरों पर जारी किए गए थे। 1 अप्रैल, 1933 को हिटलर ने यहूदी व्यवसायों का राष्ट्रीय बहिष्कार किया। इसके बाद 7 अप्रैल, 1933 को “सिविल सेवा से संबंधित कानून” आया, जिसमें यहूदियों को राज्य सेवा से बाहर कर दिया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर नें मानव इतिहास के सबसे भयानक नरसंहार जिसे होलोकास्ट के नाम से जाना जाता है को अंजाम दिया। इस दौरान यूरोप में तकरीबन साठ लाख यहूदियों की हत्या कर दी गई, जो सम्पूर्ण यूरोप की यहूदी आबादी का दो तिहाई था। ऑपरेशन रेनहार्ड (1942-1943) होलोकास्ट का सबसे बड़ा एकल नरसंहार अभियान था, जिसके दौरान जर्मन कब्जे वाले पोलैंड में लगभग 17 लाख यहूदियों की नाजियों द्वारा हत्या कर दी गई थी। इन हत्याओं को मुख्यतः सामूहिक गोलीबारी, शिविरों में अत्यधिक श्रम तथा गैस चैम्बरों आदि के माध्यम से अंजाम दिया गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत
इसमें कोई दो राय नहीं हैं, कि जर्मन राजनीति में हिटलर का उदय तथा द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत में पेरिस शांति समझौते ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जैसे-जैसे समय बीतता गया हिटलर के नेत्रत्व में जर्मनी ने वर्साय संधि की शर्तों का उल्लंघन करना शुरू कर दिया। उसने जर्मनी की सैन्य शक्ति को पुनः मजबूत करना शुरू किया, जो वर्साय की संधि का उल्लंघन था। चूँकि हिटलर साम्यवाद की धारणा का प्रबल विरोधी था, जो इंग्लैंड, फ्रांस जैसे देशों के लिए उपनिवेशवाद के बने रहने में सहायक हो सकता था इसलिए इन देशों ने भी हिटलर की आक्रामकता को अनदेखा कर दिया।
1935 में उसने राइनलैंड, जिसे संधि के तहत राष्ट्रसंघ के नियंत्रण में रखा गया था को पुनः अपने अधिकार में ले लिया तथा 1938 में चेकोस्लोवाकिया से जर्मन अल्पसंख्यकों को स्वतंत्र कराने के बहाने सम्पूर्ण चेकोस्लोवाकिया में अपना नियंत्रण स्थापित किया। धीरे-धीरे हिटलर (Biography of Hitler in Hindi) अपनी मनमानी करता गया और अंततः उसने 1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। यह अन्य मित्र देशों के लिए सहन से परे था, परिणामस्वरूप 3 सितंबर को ब्रिटेन तथा फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और विश्वयुद्ध के द्वितीय संस्करण की शुरुआत हुई।
1940 में हिटलर ने नॉर्वे तथा डेनमार्क पर आक्रमण किया इन देशों पर आक्रमण करने के पीछे हिटलर का उद्देश्य इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करना था। इसके बाद जर्मनी ने हॉलैंड, बेल्जियम तथा लक्जेमबर्ग पर भी आक्रमण किया हिटलर के अनुसार ये देश ब्रिटेन तथा फ्रांस की सहायता कर रहे थे। पुनः जर्मनी ने इटली के साथ मिलकर फ्रांस पर आक्रमण किया और फ्रांस ने आत्मसमर्पण कर दिया। हिटलर ने ब्रिटेन पर भी आक्रमण का प्रयास किया, जिसे ब्रिटेन द्वारा रोक दिया गया। इसके पश्चात हिटलर ने ब्रिटेन से पहले पूर्वी मोर्चे पर नियंत्रण स्थापित करने का निर्णय लिया।
हालाँकि हिटलर नें पोलैंड पर हमले से पहले रूस के साथ एक गुप्त संधि की थी, जिसके तहत दोनों के मध्य पोलैंड को बाँट लेना तय हुआ था, किन्तु हिटलर कभी भी रूस से मित्रता नहीं करना चाहता था। इसका कारण रूस में काबिज कम्युनिस्ट सरकार थी, जिसका हिटलर प्रबल विरोधी था। 22 जून, 1941 को हिटलर ने जोसेफ स्टालिन के साथ 1939 के गैर-आक्रामकता समझौते का उल्लंघन करते हुए सोवियत संघ में जर्मन सैनिकों की एक विशाल सेना भेज दी।
द्वितीय विश्वयुद्ध एवं हिटलर का अंत
पूर्वी मोर्चे पर रूस ने जर्मनी का मजबूती से सामना किया। इसी दौरान स्टालिन के कहने पर मित्र देशों (ब्रिटेन, फ्रांस) की सेनाएं उत्तरी फ्रांस में उतरीं तथा फ्रांस से जर्मन सैनिकों को बाहर खदेड़ दिया। जर्मनी रूस तथा मित्र देशों द्वारा पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों मोर्चों पर घेर लिया गया और हिटलर को अपनी हार दिखाई देने लगी। 29 अप्रैल, 1945 की मध्यरात्रि में, हिटलर ने अपनी प्रेमिका ईवा ब्राउन से अपने भूमिगत बंकर में शादी की। इसी दौरान हिटलर को इतालवी तानाशाह मुसोलिनी की फाँसी की सूचना प्राप्त हुई। हिटलर को इस बात का भय था कि उसके साथ भी यही हो सकता है।
दुश्मन सैनिकों द्वारा पकड़े जाने के डर से हिटलर ने 30 अप्रैल, 1945 को आत्महत्या कर ली। हिटलर ने साइनाइड खाया और फिर खुद को सिर में गोली मार ली। मृत्यु के समय हिटलर 56 वर्ष का था। 2 मई, 1945 को बर्लिन सोवियत सैनिकों द्वारा नियंत्रण में ले लिया गया और पाँच दिन बाद, 7 मई, 1945 को जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध के साथ साथ दुनियाँ के एक क्रूर तानाशाह का भी अंत हो गया।