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ध्रुवीय ज्योति (Aurora Borealis)
आपने अक्सर फिल्मों, चित्रों आदि में आसमान में उत्पन्न एक आश्चर्यजनक रंगीन प्रकाश को देखा होगा। ये प्रकाश पृथ्वी के दोनों ध्रुवों में दिखाई देता है। प्राचीनकाल में इसे धर्म एवं आस्था से जोड़कर देखा जाता था किंतु सन 1899 में नॉर्वे के वैज्ञानिक Kristian Birkeland ने इस घटना के पीछे के विज्ञान को समझाया। इस घटना को समझने से पहले आवश्यक है कि आप पृथ्वी तथा सूर्य के बारे में कुछ तथ्यों को जानें।
सूर्य
हमारी धरती पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। सूर्य से हम तक आने वाली ऊर्जा नाभिकीय अभिक्रिया (नाभिकीय संलयन) का परिणाम है। सूर्य में उपस्थित हाइड्रोजन नाभिक आपस मे संलयित होकर हीलियम का निर्माण करते हैं और इस प्रक्रिया में अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही ऊर्जा प्रकाश के रूप में हम तक भी पहुँचती है।
सूर्य की बाहरी सतह जिसे कोरोना कहा जाता है का तापमान अत्यधिक (1.1 मिलियन डिग्री सेल्सियस) होने के कारण यहाँ उपस्थित आवेशित कण मुख्यतः इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन अत्यधिक वेग (900 Km/s) के साथ सूर्य के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से मुक्त होकर सूर्य से बाहर अंतरिक्ष की ओर निकलने लगते हैं। सूर्य से निकलने वाले इन आवेशित कणों के तूफान को सोलर विंड कहा जाता है।
पृथ्वी का चुम्बकत्व
हमारी धरती मुख्यतः तीन अलग अलग परतों से बनी हुई है जिनमें कृष्ट (ऊपरी पतली परत), मेन्टल (बीच की परत) तथा कोर (पृथ्वी का केंद्र) शामिल हैं। पृथ्वी के केंद्र में अधिक मात्रा में लोहा तथा निकिल मौजूद है जिसे बाहरी तथा आंतरिक कोर दो भागों में विभाजित किया गया है। बाहरी कोर अत्यधिक ताप के कारण द्रव अवस्था में है जबकि आंतरिक कोर में दबाव का तापमान से अधिक होने के चलते यह ठोस अवस्था में स्थित है।
पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूर्णन करने के फलस्वरूप उसके बाहरी कोर में द्रव अवस्था में उपस्थित लोहे तथा निकिल में विद्युत धाराएं प्रवाहित होने लगती हैं जिसके चलते एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण होता है और सम्पूर्ण पृथ्वी किसी चुम्बक की भांति व्यवहार करने लगती है।
ध्रुवीय ज्योति का कारण
हमनें ऊपर बताया कि सूर्य की सतह से आवेशित कणों का तूफान अंतरिक्ष में अत्यधिक वेग के साथ गति करता रहता है। ये आवेशित कण गति कर पृथ्वी तक पहुँच जाते हैं। पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र इन आवेशित कणों के तूफान को धरती तक पहुँचने से रोकता है जिसके कारण हम इन कणों से होने वाले नुकसान से बच जाते हैं। किन्तु जैसा कि ऊपर चित्र में दिखाया गया है पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र प्रत्येक स्थान पर समान नहीं है यह मध्य में मजबूत जबकि ध्रुवों में कमज़ोर होता है अतः सूर्य से आने वाली सोलर विंड की कुछ मात्रा ध्रुवों से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाती है।
ये आवेशित कण वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन परमाणुओं से टकराते हैं तथा अपनी ऊर्जा इन परमाणुओं को हस्तांतरित कर देते हैं। बाहर से अतिरिक्त ऊर्जा मिलने पर इन गैसों के इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षाएं छोड़कर उच्च कक्षओं में चले जाते हैं तथा कुछ समय पश्चात पुनः अपनी कक्षा में आने पर प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।
इस प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाले प्रकाश (Aurora Borealis in Hindi) का रंग कई बातों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए ऑक्सीजन 60 मील की ऊँचाई तक पीले तथा हरे रंग का प्रकाश उत्पन्न करता है जबकि ऊँचाई बढ़ने (लगभग 200 मील) पर लाल रंग का प्रकाश उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त आयनित नाइट्रोजन नीला प्रकाश उत्पन्न करता है। यह प्रकाश दोनों ध्रुवों में दिखाई देता है। उत्तर में इसे नॉर्दन लाइट या ऑरोरा बोरिआलिस तथा दक्षिण में सदर्न लाइट या औरोरा ऑस्ट्रेलिस कहा जाता है। दुनियाँभर के पर्यटक कुदरत की इस खूबसूरती को देखने ध्रुवी देशों में जाते हैं।
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