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भौगोलिक स्थिति
आर्मेनिया तथा अज़रबैजान काकेशस के पश्चिम में स्थित दो देश हैं। अज़रबैजान जो कि कैस्पियन सागर के तट पर बसा है उत्तर में रूस, दक्षिण में ईरान तथा पश्चिम में आर्मेनिया से सीमा साझा करता है। वहीं आर्मेनिया उत्तर में जॉर्जिया, पश्चिम में तुर्की तथा दक्षिण में ईरान से लगा है। इतिहास की बात करें तो प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व ये दोनों एक ही देश ट्रांस काकेशस फेडरेशन का हिस्सा थे। विश्वयुद्ध के समाप्त हो जाने के बाद ट्रांस काकेशस फेडरेशन को तीन देशों जॉर्जिया, आर्मेनिया तथा अज़रबैजान में विभाजित कर दिया गया। तत्पश्चात 1920 के दशक में दोनों देश सोवियत यूनियन का हिस्सा बन गए।
1991 तक दोनों देश सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे तथा सोवियत संघ के टूटने के बाद दोनों देश स्वतंत्र रूप में स्थापित हुए। जनसंख्या की बात करें तो आर्मेनिया की जनसंख्या तकरीबन 30 लाख है जिसमें अधिकांश आबादी ईसाई धर्म का पालन करती है जबकि अज़रबैजान की आबादी लगभग 1 करोड़ है जिसमें मुस्लिम आबादी 90 फीसदी से अधिक है। बावजूद इसके ये दोनों देश धर्मनिरपेक्ष हैं।
दोनों देशों के संबंध
आर्मेनिया तथा अज़रबैजान के मध्य में 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला एक पहाड़ी भू-भाग नागोर्नो-कराबाख है इसकी वर्तमान जनसंख्या लगभग 1.5 लाख के करीब है। 1920 के दशक में सोवियत यूनियन से मिलने के बाद स्टालिन द्वारा इस क्षेत्र को अज़रबैजान को सौंप दिया गया। जबकि यहाँ निवास करने वाली 94 फीसदी आबादी अर्मेनियाई मूल की थी तथा आर्मेनिया इस क्षेत्र को अपना मानता रहा था।
यहीं से दोनों देशों के मध्य तनाव की स्थिति पैदा हुई। इस तनाव को देखते हुए स्टालिन ने नागोर्नो-कराबाख को स्वायत्त प्रान्त का दर्जा दिया हाँलाकि आधिकारिक रूप से यह क्षेत्र अज़रबैजान के हिस्से में ही था। चूँकि तब दोनों देश सोवियत यूनियन का हिस्सा थे अतः दोनों ने सोवियत सरकार के फैसले को माना तथा तनाव की स्थिति अधिक नहीं बड़ी।
1980 के दशक से सोवियत यूनियन कमज़ोर पड़ने लगा तथा इसके टूटने की खबरें चलने लगी। इसी को देखते हुए 1988 में नागोर्नो-कराबाख की विधायिका ने इस प्रान्त के स्वतंत्र होने का प्रस्ताव पारित कर दिया, जिसका अज़रबैजान तथा सोवियत यूनियन दोनों ने विरोध किया। धीरे धीरे दोनों देशों के मध्य तनाव पुनः बढ़ना शुरू हुआ और 1991 में सोवियत यूनियन के विघटन के बाद जब ये दोनों देश स्वतंत्र हो गये तो इस क्षेत्र के लिए तनाव अपने चरम पर पहुँच गया। साल 1992 में दोनों के मध्य युद्ध शुरू हुआ जो लगभग दो साल तक चला।
युद्ध में लाखों लोग बेघर हुए तथा दोनों देशों के 30 हज़ार से अधिक लोग मारे गए। अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के बाद दोनों देशों में युद्ध विराम की घोषणा हुई किन्तु तब तक आर्मेनिया नागोर्नो-कराबाख का अधिकांश हिस्सा अपने कब्जे में ले चुका था। हाँलकी आर्मेनिया का इस क्षेत्र पर प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है किन्तु आर्मेनिया नागोर्नो-कराबाख के अर्मेनियाई समर्थक अलगाववादी नेताओं को पूरा समर्थन देता है तथा वे ही इस प्रांत का शासन चलाते हैं।
युद्ध विराम की घोषणा तो हो गयी किन्तु अज़रबैजान इस क्षेत्र को छोड़ने के लिए कभी तैयार नहीं हुआ। समय समय पर दोनों देशों द्वारा युद्ध विराम का उल्लंघन किया गया तथा एक दूसरे पर इसकी शुरूआत करने तथा एक दूसरे को भड़काने का आरोप लगाते रहे हैं। इससे पूर्व 2016 में दोनों देशों के मध्य हिंसा हुई जिसे फोर डे वॉर के नाम से भी जाना जाता है। इस संघर्ष में 100 से अधिक लोग मारे गए।
हालिया संघर्ष
हाल ही में दोनों देशों के मध्य पुनः युद्ध जैसे हालात है। युध्द विराम का उल्लंघन किसने किया इस पर दोनों देश एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। आर्मेनिया के अनुसार संघर्ष विराम के उल्लंघन की शुरुआत 16 जुलाई को हुई तथा अजरबैजान द्वारा की गई गोलीबारी में आर्मेनिया के कुछ नागरिक मारे गए। इसके बाद जबाबी कार्यवाही में आर्मेनिया ने भी अज़रबैजान के 2 हेलीकॉप्टर तथा कुछ टैंकों को नष्ट किया है। इसके पक्ष में आर्मेनिया द्वारा एक वीडियो भी जारी किया गया। उधर अज़रबैजान इसका खंडन करता है किन्तु दोनों के मध्य तनाव जारी है। अब तक दर्जनों लोग इस संघर्ष में मारे जा चुके हैं।
अंतर्राष्ट्रीय रुख
इस तनाव में अन्य देशों के रुख की बात करें तो लगभग सभी देश जैसे फ्रांस, अमेरिका, ईरान आदि दोनों देशों को शांति स्थापित करने की सलाह दे रहें हैं। वहीं तुर्की का कहना है कि वह अज़रबैजान का समर्थन करता है तथा उसे हर प्रकार की आवश्यक मदद करने को भी तैयार है। हाँलाकि रूस दोनों देशों में शांति के पक्ष में है किंतु रूस के आर्मेनिया से संबंध अज़रबैजान की तुलना में मजबूत हैं।
भारत की बात करें तो भारत के दोनों देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध हैं जहाँ कश्मीर मुद्दे में आर्मेनिया भारत का समर्थन करता रहा है, वहीं भारत के महत्वकांक्षी रोड परियोजना (North-South Transportation Corridor) जो रूस तथा ईरान के चाबहार से होती हुई मुंबई को जोड़ती है वह अज़रबैजान से होकर गुजरती है। अतः दोनों देशों के मध्य तनाव खत्म हो यह भारत के भी हित में है।
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