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राज्यों का पुनर्गठन
जैसा कि, आप जानते हैं आज़ादी के समय भारत आज के भारत के रूप में नहीं था बल्कि ये 565 अलग-अलग देशी रियासतों तथा ब्रिटिश सरकार के अधीन आने वाले क्षेत्रों से मिलकर बना था। देश की आजादी के बाद इन सभी रियासतों का भारत में विलय कर इसे एक भारत का स्वरूप दिया गया, जिसमें तत्कालीन ग्रह मंत्री सरदार पटेल का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
किन्तु एक भारत के निर्माण के पश्चात भी देश की शक्ल वर्तमान भारत जैसी नहीं थी यह चार बड़े समूहों (क, ख, ग, तथा घ) में विभाजित किया गया था। समय के साथ भाषा के आधार पर स्वतंत्र राज्यों की माँग विशेषकर दक्षिण से जोर पकड़ने लगी तथा इसके तहत 1948 में भारत सरकार ने एस के श्रीधर समिति का गठन किया, जिसने अपनी सिफारिशों में राज्यों के गठन का आधार भाषीय कारक के बजाए प्रशासनिक सुविधा को बताया जिसके परिणामस्वरूप भाषायी आधार पर अलग राज्य की माँग कर रहे लोगों में असंतोष का माहौल व्याप्त हुआ।
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1953 में सरकार को भाषा के आधार पर तेलगु भाषी राज्य आंध्र प्रदेश को मद्रास से अलग करना पड़ा। इस पुनर्गठन के पक्ष में एक लंबा आंदोलन हुआ था, जिसमें 56 दिन की भूख हड़ताल के बाद एक कांग्रेसी कार्यकर्ता श्रीरामुलु का निधन हो गया। आंध्र प्रदेश के गठन के बाद अन्य प्रांतों में भी भाषा के आधार पर अलग राज्य के गठन की माँग उठने लगी। इसे देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तीन सदस्यीय राज्य पुनर्गठन समिति की स्थापना की जिसका अध्यक्ष फ़ज़ल अली को बनाया गया।
आयोग की सिफारिशों के अनुसार राज्यों की चार श्रेणियों को समाप्त कर दिया गया तथा 16 राज्यों एवं 3 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन हुआ। इसके पश्चात समय के साथ राज्यों का पुनर्गठन किया गया तथा जम्मू कश्मीर के हालिया पुनर्गठन तथा दमन एवं दीव तथा दादरा नगर हवेली को एक केंद्र शासित प्रदेश (Union Territories) में बदलने के पश्चात वर्तमान में देश में कुल 28 राज्य एवं 8 केंद्र शासित प्रदेश मौजूद हैं।
केंद्र-शासित प्रदेश (Union Territories in Hindi)
संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसमें राज्य, केंद्र शासित प्रदेश तथा भविष्य में भारत द्वारा अर्जित किये गए क्षेत्र शामिल हैं। भारत में वर्तमान में कुल 28 राज्य 8 केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं, जबकि भारत द्वारा अर्जित किये गए क्षेत्रों की संख्या शून्य है।
भारत देश राज्यों का एक संघ है तथा सभी राज्य इस संघीय व्यवस्था के सदस्य हैं। राज्य तथा संघ (केंद्र) के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है। किन्तु यदि केंद्र शासित-प्रदेशों की बात करें तो यह संघीय व्यवस्था से भिन्न हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जो सीधे तौर पर केंद्र सरकार के नियंत्रण में हैं।
राज्यों एवं केंद्र के मध्य शक्तियों का विभाजन संविधान की सातवीं अनुसूचि में किया गया है। इसमें तीन सूचियाँ हैं: 1) संघ सूची, 2) राज्य सूची और 3) समवर्ती सूची। राज्य सूची से संबंधित विषयों पर राज्य सरकारों को कानून बनाने का अधिकार है। संघ सूची में ऐसे विषय शामिल हैं जिनमें केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है वहीं समवर्ती सूची में शामिल विषयों के संबंध में राज्य एवं केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं।
केंद्र शासित प्रदेशों का गठन
वर्ष 1874 में कुछ अनुसूचित जिले बनाए गए, जिन्हें बाद में आयुक्तिय क्षेत्रों के नाम से जाना जाने लगा। स्वतंत्रता के बाद ये क्षेत्र भाग “ग” तथा “घ” के अंतर्गत शामिल किए गए तथा राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत इन्हें केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) का दर्जा दिया गया। गौरतलब है कि, तब इस श्रेणी में कई राज्य शामिल थे, जिन्हें समय समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। जैसे हिमाचल प्रदेश को सन 1971 में, मिजोरम को 1987 में, मणिपुर तथा त्रिपुरा को 1972 में , गोवा को 1987 में पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
हालिया बदलाव
हालिया बदलाव की बात करें तो साल 2019 में अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू एवं कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 पेश किया तथा 9 अगस्त को इसे राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दे दी गई। इसके परिणामस्वरूप जम्मू कश्मीर राज्य का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों यथा जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख में कर दिया गया। इस विधेयक के पारित होने के पश्चात जमू कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा भी समाप्त कर दिया गया।
केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन
संविधान में अनुच्छेद 239 से 241 तक केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) के बारे में बताया गया है। भारत के दूसरे राज्य जो केंद्र शासित नहीं हैं उनमें राज्यों की अपनी चुनी हुई सरकारें हैं जो राज्य की शासन व्यवस्था के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं केन्द्र शासित प्रदेशों में सीधे-सीधे भारत सरकार का शासन होता है। ऐसे क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए प्रशासक के माध्यम से किया जाता है। इन क्षेत्रों में संसद किसी भी विषय से संबंधित कानून बना सकती है।
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इसके अतिरिक्त संसद विधि द्वारा ऐसे क्षेत्रों में उच्च न्यायालय की व्यवस्था भी कर सकती है या ऐसे क्षेत्रों को किसी अन्य निकटवर्ती राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन कर सकती है। वर्तमान में दिल्ली एवं जम्मू कश्मीर ऐसे केंद्र शासित प्रदेश (What is Union Territories in Hindi) हैं जहां अपना उच्च न्यायालय स्थित है।
केंद्र शासित प्रदेश बनाने के कारण
भौगोलिक कारण : इसके अंतर्गत भारत की मुख्य भूमि से अलग होना, जनसंख्या और क्षेत्रफल के लिहाज़ से अत्यधिक छोटा होना (ताकि उन्हें अलग राज्य का दर्जा देना मुश्किल हो) शामिल है। इसलिए ऐसे क्षेत्रों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाता है। अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप इसके उदाहरण हैं।
सांस्कृतिक कारण : किसी क्षेत्र की ख़ास सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए भी उसे किसी राज्य में मिलाने के बजाए केंद्र शासित प्रदेश (Union Territories) घोषित कर दिया जाता है। दमन एवं दीव, दादरा नगर हवेली और पुडुचेरी इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त राजनैतिक कारण भी किसी क्षेत्र के केंद्र शासित प्रदेश (What is Union Territories in Hindi) बनने में मुख्य कारण होते है। जम्मू-कश्मीर इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है।
दिल्ली एवं पुडुचेरी
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239(A) को मूल रूप से 14वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1962 द्वारा लाया गया था, जिसके अंतर्गत केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया, साथ ही हिमांचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा तथा पुदुचेरी केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभाओं एवं मंत्रिपरिषद की स्थापना की गई।
इसके पश्चात 1991 में हुए संविधान संशोधन के तहत संविधान में अनुच्छेद 239AA को जोड़ा गया तथा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) दिल्ली का नाम दिया गया तथा यहाँ विधानसभा एवं मंत्रिमंडल की स्थापना की गई। इससे पुर्व दिल्ली में महानगरीय परिषद तथा कार्यकारी परिषद मौजूद थी। दोनों केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) में मंत्रिमंडल को राज्य सूची (लोक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि को छोड़कर) एवं समवर्ती सूची के विषयों में कानून बनाने की शक्ति दी गई।
हालांकि विधानसभा बनाने से यह आशय नहीं है कि राष्ट्रपति या संसद का ऐसे क्षेत्रों में नियंत्रण कम हो गया है। विधानसभा होने के बावजूद ऐसे क्षेत्रों के लिए राष्ट्रपति अथवा संसद विधि बना सकती है। इसके अतिरिक्त संसद द्वारा किसी भी विषय पर बनाई गई विधि विधानसभा द्वारा बनाई गई विधि से अधिक प्रभावी होती है।
दिल्ली-केंद्र विवाद
2015 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई आम आदमी पार्टी सरकार तथा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के मध्य कई विषयों पर टकराव के मुद्दे समय-समय पर सामने आते रहेते हैं। आम आदमी पार्टी सत्ता में आने के बाद से ही उप-राज्यपाल तथा केंद्र सरकार पर उसे काम न करने देने के आरोप लगाती आई है।
दिल्ली सरकार के अनुसार उप-राज्यपाल उनके दैनिक प्रसाशनिक कार्यों में रुकावट उत्पन्न करते हैं, जिससे दिल्ली वासियों के लिए बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में समस्या आती है। हालाँकि ऐसे कई उदाहरण भी हैं जब उप-राज्यपाल द्वारा दिल्ली सरकार के निर्णयों पर अनावश्यक रोक लगाई गई।
साल 2018 में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुँचा तथा फरवरी 2019 में न्यायालय ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली के लिए कानून बनाने तथा अन्य प्रशासनिक निर्णय लेने का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को होना चाहिए, अतः उसके द्वारा लिए गए निर्णयों के लिए उप-राज्यपाल से मंजूरी लेना आवश्यक नहीं है। हालांकि लोक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि से संबंधित मुद्दे उप-राज्यपाल के पास यथावत रहेंगे।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक 2021
पिछले दिनों (मार्च 2021) केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को दर किनार करते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक, (GNCTD) बिल 2021 पारित किया है, जो 1991 के मूल कानून में संशोधन करता है। इसके तहत दिल्ली सरकार को राज्य में कोई भी योजना या फैसला लागू करने से पहले उसका प्रस्ताव दिल्ली के उप-राज्यपाल को भेजना होगा, दिल्ली सरकार को विधायिका से जुड़े फैसलों पर LG से 15 दिन पहले और प्रशासनिक मामलों पर करीब 7 दिन पहले मंजूरी लेनी होगी।
उप-राज्यपाल की ओर से पास होने के बाद ही दिल्ली सरकार उस योजना को लागू कर सकेगी। यह कानून दिल्ली में उप-राज्यपाल की शक्तियों में वृद्धि करता है तथा इस संशोधन के बाद से दिल्ली में उप-राज्यपाल ही सरकार होंगे। केंद्र द्वारा पारित इस कानून को दिल्ली सरकार तथा कई विपक्षी दलों ने लोकतंत्र के खिलाफ बताया है।
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