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हाइपरलूप तकनीक
हाइपरलूप विद्युत चुम्बकीय शक्ति पर आधारित भू-परिवहन की एक तकनीक है जिसकी सहायता से लगभग 600 से 700 मील प्रति घण्टे की रफ्तार से यात्रा कर पाना संभव हो सकेगा। यह तकनीक वर्तमान में विकास के दौर से गुज़र रही है। परिवहन के क्षेत्र में क्रांति लाने वाली यह तकनीक टेस्ला तथा स्पेस एक्स के फाउंडर एलन मस्क की देन है।
कैसे करता है कार्य?
परिवहन के इस प्रकार में भूमि के अंदर या मेट्रो रेल की तर्ज पर भूमि के ऊपर खंभो की सहायता से एक पारदर्शी ट्यूब बिछाई जाती है। इसी ट्यूब के भीतर एक कैप्सूल रूपी पॉड में सफर किया जाता है। चूँकि परिवहन की गति के कम होने में हवा द्वारा उत्पन्न घर्षण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है अतः परिवहन की इस तकनीक में घर्षण को न्यूनतम करने की दिशा में कार्य किया गया है।
हाइपरलूप (Hyperloop Transportation in Hindi) में इस्तेमाल होने वाली ट्यूब के अंदर से लगभग सारी हवा को बाहर निकाल दिया जाता है जिससे इस ट्यूब में घर्षण न्यूनतम हो जाता है। किसी हवाई जहाज़ के अधिक ऊंचाई पर उड़ने का कारण घर्षण को कम करना ही है। चूँकि अधिक ऊँचाई पर हवा के कण मौजूद नहीं होते अतः घर्षण का प्रभाव न्यूनतम होता है तथा कम समय में अधिक दूरी तय करना संभव हो पाता है।
Hyperloop Transportation के लाभ
- हाइपरलूप परिवहन की सहायता से यातायात को सुगम बनाया जा सकेगा। सड़कों में जाम लगना सड़क दुर्घटना जैसे हादसों में कमी आएगी।
- धन एवं समय की बचत करने में यह तकनीक वरदान साबित होगी।
- इस तकनीक के कारण यातायात साधनों द्वारा होने वाले ध्वनि एवं वायु प्रदूषण में बहुत हद तक कमी आएगी।
- अधिक लंबी दूरी कम समय में कर पाने की दिशा में यह तकनीक महत्वपूर्ण योगदान देगी।
- किसी हाई स्पीड रेल को बनाने की तुलना में यह काफ़ी हद तक सस्ती होगी।
भारत की स्थिति
आइये अब जानते हैं इस तकनीक में भारत की क्या स्थिति है। हाल में ही लंदन स्थित वर्जिन ग्रुप ने हाइपरलूप परिवहन के क्षेत्र में कार्य करने के लिए महाराष्ट्र सरकार के साथ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए है। जिसका उद्देश्य मुंबई एवं पुणे के बीच के परिवहन को आसान बनाना है। इस तकनीक के आ जाने के बाद इन दो शहरों के बीच की दूरी को 20 मिनट में तय किया जा सकेगा जिसे वर्तमान में तय करने में लगभग 3.5 घण्टों का समय लगता है।
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