दुनियाँ ने 20वीं शताब्दी में दो भयानक विश्वयुद्ध देखे हैं, जिन्होंने न सिर्फ पश्चिम के कई देशों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से तबाह किया बल्कि इसका राजनीतिक प्रभाव पूरी दुनियाँ पर पड़ा। हालाँकि पश्चिमी देशों की साम्राज्यवादी प्रतिद्वंदिता विश्वयुद्ध का मुख्य कारण रही, किंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी संगठन (United Nation in Hindi) के न होने ने भी युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के महत्व को समझते हुए वैश्विक स्तर पर शांति, सुरक्षा तथा आर्थिक विकास हेतु एक संगठन की नींव रखी गई। नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में, आज इस लेख के माध्यम से हम चर्चा करेंगे संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation in Hindi) की, जानेंगे इसके विभिन्न अंगों तथा कार्यों को साथ ही देखेंगे भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ में क्या भूमिका है।
संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation)
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के उद्देश्य को हमनें ऊपर संक्षेप में समझा। इसकी स्थापना दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात 24 अक्टूबर 1945 को की गई। हालाँकि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के कहने पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन (राष्ट्रसंघ या लीग ऑफ़ नेशन्स) की स्थापना की गई थी, किन्तु उसका क्रियान्वयन न होने के कारण वह दूसरे विश्वयुद्ध को रोकने में विफल रहा। इसके अतिरिक्त लीग ऑफ़ नेशन्स का सुझाव देने वाला देश अमेरिका स्वयं उसका सदस्य नहीं बना, जिसके चलते विभिन्न देशों ने इस संगठन को गंभीरता से नहीं लिया।
संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है एक अंतर-राष्ट्रीय संगठन है, इसके वर्तमान में 193 सदस्य देश हैं। United Nation की स्थापना के मुख्य उद्देश्यों में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर वैश्विक शांति तथा सुरक्षा स्थापित करने के साथ साथ आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय समस्याओं का समाधान तथा इन क्षेत्रों का विकास करना है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंग (Various Bodies Of UNO)
संयुक्त राष्ट्र संघ छः विभिन्न अंगों या निकायों से मिलकर बना है, जिन्हें इसकी स्थापना के समय संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत स्थापित किया गया। इन अंगों में संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, न्यास परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं संयुक्त राष्ट्र सचिवालय शामिल हैं। आइए इन निकायों के कार्यों पर एक नज़र डालते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly)
संयुक्त राष्ट्र की महासभा एक लोकतान्त्रिक निकाय है, इसे अंतर्राष्ट्रीय संसद या पार्लियामेंट के तौर पर समझा जा सकता है। महासभा में सभी 193 राष्ट्रों का समान प्रतिनिधित्व होता है, जो इसे सार्वभौमिक प्रतिनिधित्व वाला संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र निकाय बनाता है। महासभा संयुक्त राष्ट्र का मुख्य नीति निर्धारण अंग है। प्रत्येक वर्ष सितंबर से दिसंबर के मध्य संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक महासभा न्यूयॉर्क में स्थित महासभा हॉल में आयोजित की जाती है, जिसमें कई राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं और संबोधित करते हैं।
सभा में महत्वपूर्ण प्रश्नों जैसे कि शांति और सुरक्षा, नए सदस्यों के प्रवेश तथा सदस्यों का निष्कासन, बजटीय मामले, सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों का चयन, सामाजिक एवं आर्थिक परिषद के सदस्यों का निर्वाचन आदि पर चर्चा एवं निर्णय लिए जाते हैं। महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय सभा में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से लिए जाते हैं, जबकि अन्य प्रश्नों पर निर्णय साधारण बहुमत से होते हैं। इसके अतिरिक्त महासभा हर साल एक वर्ष के कार्यकाल के लिए एक महासभा अध्यक्ष का चुनाव भी करती है।
गौरतलब है की महासभा द्वारा विभिन्न राष्ट्रों के लिए पारित प्रस्ताव केवल सलहकारी होते हैं, महासभा दुनियाँ के राष्ट्रों के लिए विधि का निर्माण नहीं करती। महासभा में विभिन्न कार्यों हेतु अलग अलग समितियाँ बनाई गई हैं जिनके माध्यम से कार्य किया जाता है। उदाहरण के तौर पर आर्थिक एवं वित्तीय समिति, सामाजिक, मानवीय एवं सांकृतिक समिति, निःशस्त्रीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, कानूनी समिति आदि।
भारत की विजय लक्ष्मीपंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्षा थी। जो सितंबर 1953 से सितंबर 1954 के दौरान महासभा के अध्यक्ष पद पर रही।
सुरक्षा परिषद (UN Security Council)
अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत सुरक्षा परिषद की स्थापना की गई है। इसमें कुल 15 सदस्य (5 स्थायी तथा 10 अस्थायी सदस्य) होते हैं, प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है। चार्टर के तहत सभी सदस्य राष्ट्र परिषद के निर्णयों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेती है।
सुरक्षा परिषद की किसी भी कार्यवाही हेतु 15 में से न्यूनतम 9 सदस्यों (5 स्थाई तथा 4 अस्थाई सदस्य) की मंजूरी होना आवश्यक होता है। गौरतलब है कि सभी स्थाई सदस्यों का कार्यवाही के पक्ष में होना अनिवार्य है। सुरक्षा परिषद किसी राष्ट्र पर प्रतिबंध लगा सकती है अथवा अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने या बहाल करने के लिए बल के उपयोग को भी अधिकृत कर सकती है।
आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council)
संयुक्त राष्ट्र चार्टर 1945 के अनुसार राष्ट्र संघ के छह मुख्य अंगों में से एक के रूप में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की स्थापना की गई। यह संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय मुद्दों पर समन्वय (Coordination), नीति समीक्षा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों के क्रियान्वयन के लिए प्रमुख निकाय है।
यह संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय क्षेत्रों में कार्यरत विशेष सहायक एजेंसियों जैसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), संयुक्त राष्ट्र संघ शैक्षिक वैज्ञानिक सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) आदि तथा अन्य विशेषज्ञ निकायों की निगरानी के लिए भी केंद्रीय तंत्र के रूप में कार्य करता है। परिषद की संरचना को देखें तो यह 45 सदस्यीय निकाय है, जिसमें 18 सदस्य प्रत्येक तीन वर्षों के लिए निर्वाचित किए जाते हैं।
न्यास परिषद (Trusteeship Council)
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात उपनिवेशवाद धीरे धीरे समाप्ति की कगार पर आ गया, किन्तु 11 ऐसे क्षेत्र जो तात्कालीन उवनिवेशवादी ताकतों के प्रभुत्व में थे, दूसरे शब्दों में जहाँ स्वशासन नहीं था उनके पर्यवेक्षण के लिए एक न्यास की स्थापना की गई। न्यास का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति स्थापित कर ऐसे क्षेत्रों की जनता के हितों की बिना किसी भेदभाव के रक्षा करना था। साल 1994 तक, सभी न्यास क्षेत्रों ने स्वशासन या स्वतंत्रता प्राप्त कर ली परिणामस्वरूप परिषद ने 1 नवंबर 1994 को अपने ऑपरेशन को निलंबित कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक निकाय है। इसका मुख्यालय नीदरलैंड के हेग शहर में है। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एकमात्र है, जो न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) में स्थित नहीं है। इसकी स्थापना का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय राजनीति अथवा राष्ट्रों के मध्य वैधानिक विवादों जैसे सीमा विवाद आदि को सुलझाना है। सामान्यतः इसके निर्णय सलहकारी होते हैं किन्तु यदि न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय सुरक्षा परिषद द्वारा स्वीकृत कर दिया जाए तो इसे बाध्यकारी बनाया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल 15 न्यायाधीश होते हैं। एक समय में किसी देश का अधिकतम एक ही न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है। इन न्यायाधीशों का कार्यकाल 9 वर्षों का होता है। वर्तमान में उक्त 15 न्यायाधीशों में एक भारतीय न्यायाधीश दलबीर भण्डारी भी शामिल हैं, उन्हें साल 2017 में पुनः अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 2018-2027 के कार्यकाल के लिए न्यायाधीश के तौर पर चुना गया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एवं महासभा ने भारत के समर्थन में भारी मतदान किया। उन्हें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 वोट और संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 में से 183 वोट मिले। यह वैश्विक पटल पर भारत की बढ़ती भागीदारी को प्रदर्शित करता है।
सचिवालय (Secretariat)
सचिवालय संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रशासनिक निकाय है। यहाँ महासचिव समेत संयुक्त राष्ट्र के हज़ारों अंतर्राष्ट्रीय कर्मचारी महासभा तथा अन्य प्रमुख निकायों से संबंधित दिन-प्रतिदिन के अनिवार्य प्रशासनिक कार्यों को पूरा करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का महासचिव संगठन का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है, जिसे सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा पाँच साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है।
राष्ट्र संघ के अनुसार महासचिव संगठन के आदर्शों का प्रतीक तथा दुनियाँ के सभी लोगों विशेष रूप से गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए एक वकील है। संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों को अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर भर्ती किया जाता है, जो दुनियाँ भर में स्थित विभिन्न कार्य स्थलों एवं शांति अभियानों में अपनी सेवाएं देते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य
राष्ट्र संघ की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा के उद्देश्य से भले ही की गई हो, किन्तु समय के साथ कई अन्य चुनौतियाँ दुनियाँ के सामने उभर कर आई हैं, जिनमें पर्यावरणीय समस्याएं जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग, जातिवाद, असहिष्णुता, असमानता, गरीबी, भुखमरी, सशस्त्र संघर्ष एवं अन्य बीमारियाँ आदि शामिल हैं। अतः समय के साथ राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी भूमिका को समझते हुए अलग अलग संस्थाओं की स्थापना कर आर्थिक, सामाजिक, अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा आदि के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए हैं, जिन्हें हम आगे समझने का प्रयास करेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना जिस चार्टर के तहत की गई उसका पहला अनुच्छेद विश्व शांति के लिए उत्पन्न होने वाले खतरों को रोकना तथा उन्हें समाप्त करना संघ की स्थापना का मूल कार्य बताता है। शांति तथा सुरक्षा के संबंध में संघ की सुरक्षा परिषद निर्णायक भूमिका निभाती है। विश्व शांति सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्र संघ के पास कुछ शक्तियां भी हैं, जैसे किसी आक्रामक राष्ट्र को दंडित करना, सुरक्षा परिषद के द्वारा सैन्य बलों की तैनाती करना आदि।
इसके अलावा राष्ट्र संघ ने वैश्विक स्तर पर निःशस्त्रीकरण को प्रभावी रूप से लागू कराने तथा परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण इस्तेमाल सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी स्थापना के बाद से कई विवाद जैसे कश्मीर विवाद, कोरिया संकट, ईरान विवाद, स्वेज संकट आदि संयुक्त राष्ट्र के समक्ष आए हैं। वैश्विक शांति स्थापित करने के उद्देश्य से राष्ट्र संघ द्वारा निम्नलिखित कार्यक्रम भी जारी किए गए हैं।
पीस कीपिंग
यह राष्ट्र संघ की एक फोर्स है, जिसका प्रयोग किन्ही दो देशों के मध्य संघर्ष की स्थिति में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाता है। हालाँकि ये राष्ट्र संघ के सशस्त्र बल हैं किन्तु इनके द्वारा हथियारों का प्रयोग केवल आत्मरक्षा में किया जाता है। पिछले दो दशकों में यह फोर्स कई विन्यासों में तैनात की गई है। राष्ट्र संघ के अनुसार वर्तमान में तीन महाद्वीपों पर 13 संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान तैनात किए गए हैं।
पीस मेकिंग
इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा साल 2006 में शुरू किया गया। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 33 के अनुसार कोई भी ऐसा विवाद, जिसके जारी रहने से अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा होने की संभावना है, उसे सर्वप्रथम बातचीत, मध्यस्थता, सुलह, न्यायिक समझौतों अथवा क्षेत्रीय एजेंसियों या व्यवस्थाओं द्वारा सुलझाने का प्रयास किया जाएगा। चार्टर में अन्य लोगों के साथ-साथ विवादों के शांतिपूर्ण समाधान में महासचिव, सुरक्षा परिषद और महासभा की भूमिका की परिकल्पना भी की गई है।
आर्थिक विकास
इतिहास में एक मजबूत सेना किसी देश के शक्तिशाली होने का प्रमाण हुआ करती थी, किन्तु वर्तमान सदी में इसकी जगह बहुत हद तक अर्थव्यवस्था ने ले ली है। वर्तमान दौर में किसी देश की अर्थव्यवस्था उसके शक्तिशाली होने का प्रतीक बन चुकी है। आर्थिक प्रतिबंधों के माध्यम से बिना हथियार उठाए किसी देश को दंडित किया जा सकता है। आर्थिक विकास की महत्वता को देखते हुए राष्ट्र संघ (United Nation in Hindi) का भी इस क्षेत्र की ओर ध्यान देना अहम हो जाता है, खासकर ऐसे देशों के जो वर्तमान में विकास के दौर से गुजर रहें हैं अथवा अविकसित हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आर्थिक क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों के अंतर्गत विकासशील देशों को विकसित देशों द्वारा वरीयता व्यापार की सुविधा देना, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों तथा विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्तीय एवं मौद्रिक सहयोग मुहैया कराना आदि शामिल हैं, जिनका विकासशील देशों को निश्चित तौर पर लाभ मिला है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विभिन्न कोषों की भी स्थापना की गई है, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कॉर्पोरेशन (IFC) तथा अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठन (IDA) प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त बच्चों की भलाई के उद्देश्य से एक अलग कोष यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रन एमर्जेन्सी फंड (UNICHEF) की स्थापना की गई है। अविकसित देशों में भुखमरी से लड़ने के लिए संघ द्वारा कृषि एवं खाध संगठन (FAO) बनाया गया है, ताकि ऐसे देशों में खाद्य सामग्री पहुँचाई जा सके।
संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक कार्य
मानवीय स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बच्चों, शरणार्थियों, महिलाओं आदि का कल्याण राष्ट्र संघ के सामाजिक कार्यों का उदाहरण है। विकासशील तथा अविकसित देशों में स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने तथा कई बीमारियों जैसे एड्स, टीबी, मलेरिया आदि के उन्मूलन के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण, शैक्षणिक स्तर में वृद्धि एवं वैज्ञानिक अनुसंधान तथा ज्ञान को प्रोत्साहित करने हेतु यूनेस्को (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization) की स्थापना की गई है।
राष्ट्र संघ द्वारा संयुक्त राष्ट्र विकास परिषद (UNDP) के माध्यम से विकासशील देशों में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों के तहत सतत विकास लक्ष्य या Sustainable Development Goals प्रमुख हैं, जिन्हें वैश्विक लक्ष्यों के रूप में भी जाना जाता है। इन लक्ष्यों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा गरीबी को समाप्त करने, पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने तथा वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर शांति और समृद्धि को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से साल 2015 में अपनाया गया था। सतत विकास लक्ष्य तहत कुल 17 लक्ष्यों को रखा गया है।
मानवाधिकारों की रक्षा
विश्व में शांति स्थापित करने के साथ साथ राष्ट्र संघ दुनियाँ में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए भी कार्य करता है। 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र स्वीकार किया गया। साल 1993 में मानवाधिकारों का वियना पत्र जारी किया गया और एक मानवाधिकार उच्चायुक्त का गठन किया गया। 2002 में मानवाधिकारों का उल्लंघन जैसे मानव नरसंहार आदि के दोषी व्यक्तियों को दंडित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की भी स्थापना की गई। 2006 में मानवाधिकार उच्चायोग के स्थान पर मानवाधिकार परिषद का गठन किया गया, जो वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के संबंध में कार्य करती है।
पर्यावरणीय समस्याएं
20वीं शताब्दी के मध्य के बाद से जैसे जैसे औद्योगीकरण में वृद्धि हुई है इसका सीधा प्रभाव पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर भी दिखाई दिया है। पर्यावरणीय समस्याएं सम्पूर्ण मानव अस्तित्व के लिए एक खतरा हैं, अतः राष्ट्र संघ इन समस्याओं से निपटने के लिए भी पूर्णतः प्रतिबद्ध है। वर्ष 1992 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) की शुरुआत की गई, जो वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए पहला कदम था।
वर्तमान में UNFCCC की लगभग-सार्वभौमिक सदस्यता है। 197 देश उक्त कन्वेंशन के पक्षकार हैं। कन्वेंशन का उद्देश्य जलवायु प्रणाली के साथ “खतरनाक” मानवीय हस्तक्षेप को रोकना है। इसके अतिरिक्त क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता आदि पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम हैं।
भारत एवं संयुक्त राष्ट्र संघ
भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है। अक्टूबर 1945 में 51 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को स्वीकार किया, जिनमें भारत भी शामिल था। भारत सदैव संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation in Hindi) की नीतियों तथा लक्ष्यों को हासिल करने हेतु प्रतिबद्ध रहा है। भारत ने राष्ट्र संघ के मंच से समय-समय पर कई वैश्विक चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, परमाणु हथियारों का प्रयोग तथा नस्लवाद आदि को उजागर किया है, जो भारत का दुनियाँ के प्रति एक सकारात्मक रवैये को दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त हाल ही में भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में दो वर्षों के कार्यकाल हेतु निर्विरोध चुना गया है। इससे पूर्व भी भारत को 1950, 1967, 1972, 1977, 1984, 1991 तथा 2011 में UNSC के एक अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था।
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