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थ्री-पेरेंट बेबी
थ्री-पेरेंट बेबी (Three Parent baby in Hindi) अर्थात वह संतान जिसमें आनुवांशिक पदार्थ (DNA) का अधिकांश भाग उसके मौलिक माता-पिता का होता है जबकि कुछ भाग किसी अन्य महिला से प्राप्त होता है। साधारण शब्दों में एक ऐसी संतान जिसकी उत्पत्ति में एक पिता तथा दो माताओं की भूमिका होती है। इन तीनों परिजनों की भूमिका को हम लेख में आगे समझेंगे।
कोशिका एवं माइटोकोन्ड्रिया
कोशिका जीवन की आधारभूत एवं क्रियात्मक इकाई है। समस्त जीवों का शरीर कोशिकाओं से ही मिलकर बना होता है। जीवन की सभी उपापचयी (Metabolic) क्रियाएं कोशिका में ही सम्पन्न होती हैं। कोशिका विभिन्न कोशिकांगों से मिलकर बनी होती है, जिनमें कुछ प्रमुख कोशिकांग केन्द्रक, माइटोकॉन्ड्रिया, राइबोसोम्स, लायसोसोम्स, गॉल्जिकाय, अंतर्द्रवी जालिका आदि हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका में ऊर्जा का उत्पादन करता है जिस कारण इसे कोशिका का पावर हाउस भी कहा जाता है। किसी कोशिका में उपस्थित केन्द्रक के अतिरिक्त माइटोकॉन्ड्रिया में भी आनुवंशिक पदार्थ (DNA) पाया जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया में हमारे पूरे डीएनए का करीब 0.0005% डीएनए मौजूद होता है।
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प्रजनन (Reproduction)
प्रजनन के दौरान होने वाली निषेचन (Fertilization) की प्रक्रिया में जब अंड कोशिका (Egg cell) एवं शुक्राणु (Sperm cell) मिलते हैं तो शुक्राणु से केवल केन्द्रक अंड कोशिका में प्रवेश करके भ्रूण का निर्माण करता है। दूसरे शब्दों में जो भ्रूण कोशिका है उसमें केन्द्रक के अलावा समस्त कोशिकांग अंडकोश के ही होते हैं। इस प्रकार किसी भी जीव की कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित आनुवंशिक पदार्थ (DNA) उसे उसके माता-पिता दोनों से परंतु माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित डीएनए उसे विशुद्ध रूप से उसकी माँ से प्राप्त होता है।
अब यदि किसी भी महिला के माइटोकॉन्ड्रिया में विकार हों तो वह विकार उससे उनकी संतान में जाकर कई गंभीर अनुवांशिक रोग उत्पन्न कर सकते हैं तथा ऐसे नवजात की बचपन में ही मृत्यु भी हो सकती है। इन रोगों में तंत्रिका संबंधी बीमारियां, छोटा कद, पेट और पाचन संबंधी समस्याएं, हृदय संबधी बीमारी आदि शामिल हैं। इन्हीं विकारों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने से रोकने के लिए थ्री-पेरेंट बेबी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
थ्री-पेरेंट बेबी तकनीक की कार्यप्रणाली
उपरोक्त आधारभूत समझ के बाद इस तकनीक की कार्यप्रणाली को समझते हैं। इस प्रक्रिया में मूल महिला (जिसका माइटोकॉन्ड्रिया विकार युक्त है) कि अंडकोशिका से केन्द्रक को किसी अन्य दाता (Donor) महिला (जिसका माइटोकॉन्ड्रिया विकार रहित है) की केन्द्रक रहित अंडकोशिका में प्रवेश कराया जाता है। प्राप्त अंडकोशिका में केन्द्रक मूल महिला का जबकि माइटोकॉन्ड्रिया तथा अन्य कोशिकांग दूसरी स्वस्थ दाता (Donor) महिला के होते हैं। इसके पश्चात इस कोशिका का निषेचन मूल पुरुष से प्राप्त शुक्राणुओं से कराया जाता है एवं प्राप्त भ्रूण को मूल महिला के गर्भाशय में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है।
इस प्रकार प्राप्त संतान की कोशिका के केंद्रक का आनुवंशिक पदार्थ (DNA) उसे उनके मौलिक माता-पिता से मिला है परंतु माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित DNA उसे अन्य स्वस्थ दाता महिला से प्राप्त हुआ है। यही कारण है कि उत्पन्न संतान को थ्री-पेरेंट बेबी कहा जाता है।
विशेषताएं एवं सावधानियाँ
इस प्रक्रिया द्वारा विकार युक्त माइटोकॉन्ड्रिया से उत्पन्न अनुवांशिक रोगों जैसे Muscular dystrophy, Leigh syndrome आदि का उपचार सफलता पूर्वक किया जा सकता है एवं इस तरह के विकारों को दूसरी पीढ़ी में जाने से रोका जा सकता है। चूँकि यह प्रक्रिया पूर्णतः प्राकृतिक नहीं है तथा मानवीय हस्तक्षेप से युक्त है अतः इस बात की भी संभावना रहती है कि उत्पन्न संतान में भविष्य में कोई अन्य अवांछित अनुवांशिक परिवर्तनों के चलते नए रोग उत्पन्न हो जाए। इसलिए इस तकनीक से उत्पन्न संतान को हमेशा चिकित्सकीय निगरानी में रखा जाता है।
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