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क्या है SLV?
किसी भी देश की संचार व्यवस्था तथा सुरक्षा को मजबूत करने में विभिन्न मानव निर्मित उपग्रहों की अहम भूमिका होती है, किन्तु ऐसे उपग्रहों को अंतरिक्ष की अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित करना किसी चुनौती से कम नहीं है, जिसके लिए ऐसे दक्ष वाहनों की आवश्यकता होती है, जो सुरक्षित तरीके से इन उपग्रहों को अंतरिक्ष तक ले जा सके। SLV अर्थात Satellite Launch Vehicles एक ऐसी ही युक्ति है, जिसकी सहायता से किसी सेटेलाइट या उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। यह सामान्यतः एक रॉकेट के समान होता है। इसके प्रकारों की बात करें तो SLV के मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार हैं।
Satellite Launch Vehicle (SLV-3)
SLV-3 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) द्वारा निर्मित पहला रॉकेट था, जिसे 1970 के शुरुआती दौर में अंतरिक्ष में भारत के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए तैयार किया गया। SLV-3 की क्षमता की बात करें तो इसमें 4 चरणों वाला ठोस ईंधन युक्त इंजन लगा होता है, जो 400 किलोमीटर की ऊँचाई तक उड़ने तथा लगभग 40 किलोग्राम का भार ले जाने में सक्षम था।
अगस्त 1979 में इसका पहला परीक्षण किया गया, जो विफल रहा तत्पश्चात SLV-3 का पहला सफल परीक्षण जुलाई 1980 में किया गया तथा इसके द्वारा भारत निर्मित उपग्रह रोहिणी को अंतरिक्ष मे छोड़ा गया। कुल चार परीक्षणों के बाद इसे 1983 में उपयोग से बाहर कर दिया गया।
Augmented Satellite Launch Vehicle (ASLV)
SLV-3 के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान द्वारा SLV-3 से अधिक शक्तिशाली रॉकेट ASLV का निर्माण किया गया। इसमें पाँच चरणों वाला ठोस ईंधन युक्त इंजन का प्रयोग किया गया, जो 400 किलोमीटर की ऊँचाई तक लगभग 150 किलोग्राम भार के उपग्रह को ले जाने में सक्षम था। इसका पहला परीक्षण 24 मार्च 1987 को किया गया। गौरतलब है कि, 1994 के पश्चात ISRO इसका प्रयोग नहीं करता।
Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV)
PSLV इसरो द्वारा बनाया गया शक्तिशाली रॉकेट है, जिसका प्रयोग वर्तमान में भी उपग्रहों के प्रक्षेपण में किया जा रहा है। पूर्व के दोनों रॉकेट केवल भू-स्थिर कक्षा में ही उपग्रहों को स्थापित करने में सक्षम थे, जबकि PSLV किसी उपग्रह को सूर्य समकालिक कक्षा तक ले जाने में सक्षम है। इसके निर्माण के समय इस प्रकार का रॉकेट केवल रूस के पास उपलब्ध था।
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इसकी संरचना की बात करें तो इसमें एक चार चरणों वाले ठोस एवं द्रव ईंधन युक्त इंजन का प्रयोग किया जाता है, जिसमें पहले तथा तीसरे चरण में ठोस, जबकि दूसरे एवं अंतिम चरण में द्रव ईंधन का इस्तेमाल होता है। इसका पहला सफल परीक्षण 15 अक्टूबर 1994 को किया गया। इसके बाद सन जून 2016 में इस रॉकेट ने एक साथ 20 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर इतिहास रच दिया। इस यान के तीन प्रकार हैं।
PSLV G : यह इस यान का मुख्य संस्करण है इसमें चार चरणों वाले ठोस तथा द्रव ईंधन युक्त इंजन के साथ 6 अतिरिक्त बूस्टर लगे होते हैं। इसकी सहायता से 1550 किलोग्राम के भार युक्त उपग्रह को 600 किलोमीटर तक की ऊँचाई पर सूर्य समकालिक कक्षा में स्थापित किया जा सकता है।
PSLV CA : PSLV G के विपरीत इसमें कोई बूस्टर नहीं लगा होता। इस प्रकार के यान में इंजन का पहला चरण सबसे शक्तिशाली होता है। यह लगभग 1100 किलोग्राम तक के भार युक्त उपग्रहों को 600 किलोमीटर ऊपर सूर्य संतुल्यकालिक कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है।
PSLV XL : यह PSLV यान का सबसे उन्नत संस्करण है। इसमें भी इंजन के अलावा 6 अतिरिक्त बूस्टर लगे होते हैं किंतु ये PSLV G की तुलना में अधिक शक्तिशाली होते हैं। यह 1750 किलोग्राम तक के भार को 600 किलोमीटर की ऊँचाई पर सूर्य संतुल्यकालिक कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है साथ ही 1450 किलोग्राम तक के भार को GTO में स्थापित करने में भी सक्षम है, चंद्रयान मंगलयान जैसे उपग्रह इसी यान द्वारा प्रक्षेपित किये गए हैं।
Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV)
GSLV इसरो द्वारा निर्मित एक तीन चरणों वाले इंजन युक्त एक प्रक्षेपण यान है। इसका प्रयोग अत्यधिक भारी उपग्रहों जिनका वजन सामान्यतः 2 टन से अधिक होता है को प्रक्षेपित कर GTO में स्थापित करने में किया जाता है। गौरतलब है कि, अधिक महत्वपूर्ण उपग्रह 2 टन से अधिक भारी होते हैं इसलिए इस प्रक्षेपण यान की अंतरिक्ष अनुसंधान में बहुत महत्वता है।
संरचना की बात करें तो यह एक 3 चरणों वाला इंजन है, जिसमें पहले चरण में ठोस एवं दूसरे चरण में द्रव ईंधन होता है चूँकि इतने वजनी उपग्रहों को GTO में स्थापित करने हेतु अंतिम चरण में अधिक बल की आवश्यकता होती है अतः इस चरण के लिए क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया जाता है।
Small Satellite Launch Vehicle (SSLV)
SSLV अर्थात स्माल सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल (Satellite Launch Vehicles in Hindi) यह प्रक्षेपण यान अभी निर्माणाधीन स्थिति में है। चूँकि किसी बहुत हल्के उपग्रह को प्रक्षेपित करने के लिए भी हमें PSLV का सहारा लेना पड़ता है, जिसमें किसी उपग्रह को प्रक्षेपित करने का खर्च अत्यधिक होता है अतः इसी कारण इसरो एक ऐसे यान को निर्मित करने पर कार्य कर रहा है जो मुख्यतः छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपण में काम में लिया जा सके जिस कारण काफी कम लागत में किसी हल्के एवं छोटे उपग्रह को लांच किया जा सके।
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