जीवन में हम रोज विज्ञान से किसी न किसी रूप में रूबरू होते रहते हैं, इस बात में कोई दो राय नहीं है, कि विज्ञान हमारे चारों तरफ मौजूद है। प्रत्येक घटना के पीछे के विज्ञान को समझ कर ही नए-नए आविष्कार संभव हो पाए हैं। नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में यहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था जैसे विषयों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी आप तक साझा करते हैं। आज इस लेख के माध्यम से जानेंगे दैनिक जीवन में हमारे द्वारा अनुभव करी जाने वाली एवं साधारण सी प्रतीत होने वाली घटना इंद्रधनुष (Rainbow in Hindi) की तथा समझेंगे इसके पीछे के विज्ञान को।
इंद्रधनुष (Rainbow)
अक्सर बारिश के बाद धूप निकलने पर हमें आसमान में विभिन्न रंगों की एक अर्धवृत्तकार या धनुष के समान आकृति दिखाई देती है। इसे इंद्रधनुष कहा जाता है। यह एक प्रकाशीय घटना है, जो बारिश के बाद आसमान में मौजूद पानी की बूंदों पर सूर्य का प्रकाश पड़ने के कारण दिखाई देती है। इंद्रधनुष के रंग प्रकाश किरणों के अपवर्तन और आंतरिक परावर्तन के कारण दिखाई देते हैं, जो वर्षा की बूंदों में प्रवेश करती हैं। इंद्रधनुष (Rainbow in Hindi) के बनने के पीछे के विज्ञान को समझने से पूर्व प्रकाश की प्रकृति अथवा इसके गुणधर्मों को समझ लेना आवश्यक है।
प्रकाश का अपवर्तन
प्रकाश जब एक माध्यम जैसे हवा से दूसरे माध्यम जैसे पानी या काँच आदि में प्रवेश करता है तो दूसरे माध्यम में प्रवेश करने पर प्रकाश की किरण या तो अभिलम्ब (दोनों माध्यमों को पृथक करने वाले पृष्ठ पर खींचा काल्पनिक लंब) की ओर झुक जाती है (यदि प्रकाश विरल मध्यम से सघन मध्यम में गति कर रहा हो) या अभिलम्ब से दूर हट जाती है (यदि प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश कर रहा हो), यह घटना प्रकाश का अपवर्तन कहलाती है। चूँकि प्रकाश की चाल अलग अलग माध्यमों में भिन्न-भिन्न होती है, जिस कारण प्रकाश किरणें अलग अलग माध्यमों में उक्त विचलन दिखाती हैं।
सफेद प्रकाश के घटक
सूर्य से आने वाला प्रकाश हमें सफेद रंग का दिखाई देता है, किन्तु यह केवल एक रंग का प्रकाश न होकर सात अलग-अलग रंगों का मिश्रण होता है, जिनकी अपनी भिन्न-भिन्न तरंगदैर्ध्य होती है। इंद्रधनुष की स्थिति में सूर्य से आने वाला सफेद प्रकाश आसमान में मौजूद पानी की बूंदों से टकराकर अलग अलग रंगों में विभाजित हो जाता है तथा हमें सफेद प्रकाश के स्थान पर विभिन्न रंग दिखाई देते हैं। ठीक उसी प्रकार, जैसे किसी प्रिज़्म से निकलने वाला प्रकाश अलग अलग रंगों में विभाजित होता हुआ दिखाई देता है। इंद्रधनुष की स्थिति में पानी की बूदें प्रिज्म का कार्य करती हैं।
श्वेत प्रकाश का सात रंगों में विभाजित होना प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहलाता है। सर्वप्रथम 1665 में न्यूटन ने बताया कि श्वेत प्रकाश सात रंगों का मिश्रण है।
क्यों होता है प्रकाश का वर्ण विक्षेपण?
आइये जानते हैं प्रकाश के अलग अलग रंगों में विभाजन किस प्रकार होता है। जैसा कि हमनें जाना सूर्य का प्रकाश सात अलग अलग रंगों से मिलकर बना होता है तथा इन सभी रंगों की तरंगदैर्ध्य एक दूसरे से अलग होती है। अलग अलग तरंगदैर्ध्य होने के चलते सभी रंगों की अलग-अलग माध्यमों में चाल भी भिन्न होती है।
निर्वात एवं किसी अन्य माध्यम में प्रकाश की चाल में जितना अधिक अंतर होगा, उस माध्यम में सफेद प्रकाश के वर्ण विक्षेपण की संभावना भी उतनी अधिक होगी। उदाहरण के तौर पर काँच में प्रकाश की चाल, निर्वात में प्रकाश की चाल का लगभग 66 फीसदी रह जाती है, जिस कारण काँच में प्रकाश का वर्ण विक्षेपण आसानी से हो जाता है, जबकि वायु की स्थिति में प्रकाश की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल के लगभग समान होती है और हमें वायु में सूर्य का प्रकाश श्वेत रूप में दिखाई देता है।
सामान्य काँच में विक्षेपण क्यों नहीं होता?
हमनें ऊपर काँच में प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण की बात कही, किन्तु सामान्यतः हमें किसी काँच के टुकड़े से निकलने वाला प्रकाश अलग-अलग रंगों के स्पेक्ट्रम में दिखाई नहीं पड़ता है। ऐसे में यह प्रश्न उठना लाज़मी है, यदि सफेद प्रकाश किसी अन्य माध्यम में जाने पर विभिन्न रंगों में विभक्त हो जाता है, तो हमें केवल प्रिज़्म में ही सात रंगों का स्पेक्ट्रम क्यों दिखाई देता है, जबकि किसी काँच के टुकड़े के साथ ऐसा नहीं होता।
किसी सामान्य काँच के टुकड़े में भी प्रकाश का विक्षेपण होता है, किन्तु वह हमें दिखाई नहीं देता। आइए जानते हैं कैसे? जब सफेद प्रकाश की किरण किसी काँच के टुकड़े में प्रवेश करती है, तो माध्यम में परिवर्तन होने के चलते विभिन्न रंग अभिलम्ब से अलग अलग कोण बनाते हुए विचलित हो जाते हैं और काँच के भीतर प्रकाश अलग-अलग रंगों में विभाजित हो जाता है।
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काँच के टुकड़े की विपरीत भुजाएं एक दूसरे के समांतर होती है, इसके चलते काँच के पहले पृष्ठ से भीतर प्रवेश करने वाली किरण (Incident Ray) तथा दूसरे पृष्ठ से बाहर निकलने वाले अलग अलग रंग एक दूसरे के समांतर बाहर निकलते हैं। चूँकि विभिन्न रंगों की इन किरणों के मध्य की दूरी नगण्य होती है, जिसके चलते ये रंग एक दूसरे के ऊपर परि-व्याप्त (Overlap) हो जाते हैं और हमें बाहर निकलने वाला प्रकाश पुनः सफेद रंग का दिखाई देता है।
वहीं प्रिज्म की बात करें तो प्रिज्म द्वारा प्रकाश के विक्षेपण के पीछे प्रिज़्म की ज्यामिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रिज्म के विपरीत पृष्ठ एक दूसरे के समांतर नहीं होते, जिस कारण प्रिज्म के पहले पृष्ठ से होने वाले प्रकाश का विक्षेपण दूसरे पृष्ठ से और अधिक बड़ जाता है एवं हमें विभिन्न रंगों का स्पेक्ट्रम दिखाई देता है।
कैसे बनता है इंद्रधनुष?
हमनें प्रकाश के अपवर्तन एवं विक्षेपण को समझा, इंद्रधनुष की स्थिति में भी यही प्रकाशीय घटना घटित होती है। आसमान में मौजूद अधिकांश वर्षा की बूंदें गोलाकार होती हैं और यही गोलाकार आकृति प्रिज़्म की भाँति प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण अथवा इंद्रधनुष के दिखाई देने का कारण बनती है। जब प्रकाश आसमान में मौजूद पानी की बूंद में प्रवेश करता है तो अपवर्तन के परिणामस्वरूप प्रकाश का विक्षेपण होता है तथा पानी की बूंद के भीतर प्रकाश अलग अलग रंगों में विभाजित हो जाता है।
ये अलग अलग रंग पानी की बूंद के विपरीत हिस्से से टकराते हैं, यहाँ इनका कुछ भाग अपवर्तित हो जाता है जबकि अधिकांश भाग परावर्तित होकर पानी की बूंद से बाहर निकलता है, इस स्थिति में ये रंग पहले से और अधिक विक्षेपित हो जाते हैं और हमें अलग अलग रंगों का एक स्पेक्ट्रम दिखाई पड़ता है।
द्वितीयक इंद्रधनुष
कभी कभी आसमान में एक के बजाए दो इंद्रधनुष दिखाई पड़ते हैं। जो प्राथमिक इन्द्रधनुष (Primary Rainbow in Hindi) की तुलना में काफी कम चमकदार होता है और इसके रंगों का क्रम भी प्राथमिक इंद्रधनुष के विपरीत होता है। द्वितीयक इंद्रधनुष को प्राथमिक धनुष के बाहर देखा जाता है।
द्वितीयक इंद्रधनुष (Secondary Rainbow in Hindi) उस स्थिति में बनता है, जब वर्षा की बूंद में प्रवेश करने वाला प्रकाश एक (जैसा कि प्राथमिक इंद्रधनुष की स्थिति में होता है) के बजाय दो बार आंतरिक परावर्तन की घटना से गुजरता है। चूँकि दूसरी बार परावर्तन होने से प्रकाश की तीव्रता और भी कम हो जाती है, इसलिए ये इंद्रधनुष प्राथमिक इंद्रधनुष की तरह उज्ज्वल नहीं दिखाई देते हैं।
इंद्रधनुष के बनने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ
आसमान में पानी की बूंदें होने के बाद भी प्रत्येक परिस्थिति में इंद्रधनुष नहीं दिखाई देता, इस प्रकाशीय घटना के दिखाई देने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का बनना आवश्यक है।
- सूर्य घटना देखने वाले व्यक्ति के ठीक पीछे होना चाहिए।
- सूर्य को आकाश में क्षितिज से 42° से कम कोण पर होना चाहिए। आकाश में सूर्य क्षितिज के जितना करीब होगा, इंद्रधनुष का चाप उतना ही अधिक दिखाई देगा।
- बारिश, कोहरा अथवा पानी की बूंदों का कोई अन्य स्रोत दर्शक के सामने होना चाहिए
रंगों के स्पेक्ट्रम का दिखाई देना
इंद्रधनुष बनने की स्थिति में आसमान में किसी स्थान विशेष में मौजूद वर्षा की बूंदों से सभी रंग बाहर निकलते हैं, किन्तु इसके बावजूद हमें इंद्रधनुष में किसी एक क्षेत्र में केवल एक ही रंग अथवा अलग अलग रंगों की पट्टियाँ दिखाई देती हैं। आंतरिक परावर्तन के बाद नीले रंग की किरण पानी की बूंद से 40 डिग्री का कोण बनाते हुए बाहर निकलती है, जबकि लाल रंग की किरण 42 डिग्री के कोण से बाहर निकलती है।
अतः जब हम इंद्रधनुष की ओर देखते हैं, तो सबसे ऊपरी हिस्से से केवल लाल रंग ही हमारी आँखों तक पहुँच पाता है और हमें उस क्षेत्र में केवल लाल रंग दिखाई पड़ता है, वहीं नीले रंग में इसके विपरीत होता है और नीला रंग इंद्रधनुष के आखिर में दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त द्वितीयक इंद्रधनुष में लाल रंग की किरण 42 डिग्री के बजाय 50 डिग्री के कोण पर बूंद से बाहर निकलती है और नीले रंग की किरणें 53 डिग्री के कोण पर बाहर निकलती है, जिस कारण द्वितीयक इंद्रधनुष (Rainbow in Hindi) में रंगों का क्रम उल्टा दिखाई देता है।
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