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रेडियोसक्रियता
आप जानते हैं किसी पदार्थ के परमाणु मुख्यतः इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से मिलकर बने होते हैं। जिसमें प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन परमाणु के केंद्र या नाभिक में मजबूत नाभिकीय बलों के प्रभाव में बंधे होते हैं जबकि इलेक्ट्रॉन विभिन्न कक्षाओं में नाभिक की परिक्रमा करते हैं। नाभिक का आकार बढ़ने के साथ नाभिक में मौजूद प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन की संख्या बढ़ने लगती है। जिसके चलते वह तत्व स्थिर अवस्था में नहीं रह पाता।
ऐसे तत्व विकिरण उत्सर्जित कर हल्के तथा स्थिर तत्वों में बदल जाते हैं। ये विकिरण अल्फा, बीटा तथा गामा तीन प्रकार की होती हैं। किसी भी रेडियोसक्रिय तत्व का विघटन समान दर से होता है इस पर भौतिक तथा रासायनिक क्रियाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कोई भी रेडियोसक्रिय तत्व जितने समय में विघटित होकर आधा शेष बचता है उस काल को उस तत्व की अर्ध आयु कहा जाता है।
तत्व की अस्थिरता
किसी नाभिक की अस्थिरता के मुख्यतः दो कारण होते हैं पहला नाभिक का बहुत बड़ा आकर एवं दूसरा न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन का अनुपात सामान्य से भिन्न होना। नाभिक का बड़ा आकार अल्फा कणों के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार होता है वहीं न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन का सामान्य से भिन्न अनुपात बीटा कणों के उत्सर्जन का कारण बनता है। न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन का सामान्य अनुपात छोटे तत्वों के लिए 1 : 1 तथा भारी तत्वों के लिए 1.5 : 1 होता है।
अल्फा कणों का उत्सर्जन
परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन प्रबल नाभिकीय बलों के कारण बंधे रहते हैं। ये बल अत्यंत कम 10-15 मीटर की दूरी पर लागू होते हैं। नाभिक का आकार बढ़ने के कारण नाभिक में मौजूद दो प्रोटॉन के मध्य की दूरी बढ़ने लगती है लिहाज़ा उनके मध्य विद्युतचुम्बकीय बल, प्रबल नाभिकीय बल की तुलना में अधिक प्रभावी हो जाता है।
इस स्थिति में नाभिक स्थिर नहीं रह पाता तथा एक अल्फा कण (2 प्रोटॉन तथा 2 न्यूट्रॉन) जो की हीलियम का नाभिक है को उत्सर्जित करता है। इस अभिक्रिया में तत्व के परमाणु क्रमांक (नाभिक में प्रोटॉनों की संख्या) में 2 की कमी तथा परमाणु भार (नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन की संख्या) में 4 की कमी होती है।
बीटा विकिरण
ऐसे हल्के तत्व जिनके परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या प्रोटॉन की तुलना में अधिक हो जाती है उनमें अतिरिक्त न्यूट्रॉन प्रोटॉन में बदल जाता हैं तथा दोनों के अनुपात को सामान्य बनाने अथवा नाभिक को स्थिर बनाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया में एक इलेक्ट्रॉन या बीटा कण उत्सर्जित होता है तथा तत्व के परमाणु क्रमांक में एक की वृद्दि होती है जबकि परमाणु भार अपरिवर्तित रहता है।
इसके अतिरिक्त ऐसे तत्व जिनके नाभिक में प्रोटॉन न्यूट्रॉन की तुलना में अधिक होते हैं उनमें न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन के अनुपात को सामान्य रखने के लिए प्रोटॉन न्यूट्रॉन में बदल जाते हैं तथा एक पॉज़िट्रान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का धनावेशित कण) उत्सर्जित होता है। इस प्रक्रिया में परमाणु भार अपरिवर्तित रहता है जबकि परमाणु क्रमांक में एक की कमी होती है। ये दोनों घटनाएं बीटा उत्सर्जन कहलाती हैं।
गामा उत्सर्जन
अल्फा तथा बीटा उत्सर्जन के विपरीत गामा उत्सर्जन विद्युतचुम्बकीय तरंगे हैं इनके उत्सर्जन से तत्व के परमाणु भार एवं द्रव्यमान में कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अल्फा अथवा बीटा उत्सर्जन के बाद नया नाभिक उत्तेजित अवस्था में होता है तथा सामान्य अवस्था में जाने पर अतिरिक्त ऊर्जा को फोटॉन या गामा किरणों के माध्यम से उत्सर्जित करता है।
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