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भारत-चीन इतिहास
भारत एवं चीन के इतिहास की बात करें तो दोनों देश विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक हैं। आदिकाल से ही भारत एवं चीन के मध्य धार्मिक तथा सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। बौद्ध धर्म के प्रचारकों द्वारा इस धर्म का प्रचार करने के लिए अनेक देशों की यात्राएं की गई जिनमें चीन भी मुख्य रूप से शामिल था।
बौद्ध धर्म के प्रचार के फलस्वरूप चीनी लोग बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने भारत आया करते थे तब पूरी दुनियाँ में केवल दो विश्वविद्यालय नालंदा एवं तक्षशिला ही शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्र थे। इसी के साथ प्राचीनकाल से ही भारत – चीन के व्यापारिक सम्बंध भी स्थापित होने लगे। कालांतर में दोनों देश यूरोपीय उपनिवेशवाद का शिकार भी हुए हाँलाकि चीन साम्राज्यवादी शक्तियों से भारत जितना प्रभावित नहीं हुआ फिर भी 20वीं शताब्दी के मध्य के बाद से ही दोनों देश आधुनिक रूप में उभरे।
आधुनिक भारत चीन संबंध (India China Political Relation – in Hindi)
ब्रटिश शासन के अंत हो जाने के बाद 1947 में भारत आज़ाद हुआ तथा एक संप्रभु राष्ट्र बनकर उभरा तथा चीन में भी 1949 में हुई क्रांति के फलस्वरूप आधुनिक साम्यवादी चीनी सरकार की स्थापना हुई। कई गैर साम्यवादी देशों के अप्रसन्न होने के बावजूद भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय देते हुए चीन की साम्यवादी सरकार को मान्यता दी तथा राष्ट्र संघ में चीन के प्रतिनिधित्व का भी भारत ने निरंतर समर्थन किया। इसके बावजूद यदि आज़ादी के बाद से देखा जाए तो भारत चीन के घनिष्ठ संबंध कभी भी स्थापित नहीं हो पाए हाँलाकि भारत द्वारा समय समय पर इस क्षेत्र में प्रयास किये गए किन्तु वे विफल ही रहे।
आज़ादी से युद्ध तक का इतिहास
दोनों देशों की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो भारत चीन के साथ कुल 3,200 किलोमीटर की सीमा साझा करता है जो जम्मू कश्मीर, हिमांचल, उत्तराखंड, सिक्किम तथा अरुणांचल से लगी हुई है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से चीन की राष्ट्रवादी सरकार का तिब्बत पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो गया। इन परिस्थितियों को देखते हुए तिब्बत ने खुद को स्वायत्त प्रदेश घोषित कर दिया। विश्वयुद्ध के पश्चात चीन में ग्रह युद्ध शुरू हुआ तथा साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई।
इस सरकार की मंशा तिब्बत पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की थी, जिसके चलते चीन ने सन 1950 में तिब्बत में आक्रमण जैसी कार्यवाही शुरू कर दी परिणामस्वरूप चीन तिब्बत के मध्य एक समझौता हुआ और उसे तिब्बत की विदेश नीति तय करने, तिब्बत में चीनी सेनाएं तैनात करने जैसे अधिकार मिल गए। भारत चीन की इस कार्यवाही से सहमत नहीं था। दोनों देशों के मध्य शांति स्थापित करनें के उद्देश्य से साल 1954 में पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जैसा कि नाम से स्पष्ट है इसके तहत निम्न पाँच शर्तें रखी गयी
- एक दूसरे की संप्रभुता तथा अखंडता का सम्मान करना।
- एक दूसरे पर आक्रमण न करना
- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
- परस्पर सहयोग एवं लाभ को बढ़ावा देना
- शांतिपूर्ण सहअस्तित्व
इस समझौते के बाद भारत नें तिब्बत पर चीन के प्रभुत्व को स्वीकार किया, दोनों देशों के रिश्तों में थोड़ी स्थिरता आई तथा हिंदी-चीनी भाई-भाई जैसे नारे लगने लगे। पंचशील समझौते के केवल दो साल बाद 1956 में चीन ने तिब्बत को शिनजियांग से जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जिसकी जानकारी भारत को 1959 में हुई ये सड़क अक्साई चीन से होकर गुजरती थी जिसे भारत अपना हिस्सा मानता रहा था।
भारत ने चीन के इस कदम का विरोध किया इसी साल 1959 में तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह हुआ जिसे दबाने के लिए चीन ने सेना का सहारा लिया तथा तिब्बती लोग दलाई लामा सहित शरणार्थी बनकर भारत आ गए। भारत के उन्हें शरण देने से चीन काफ़ी आक्रोशित हुआ और उसने भारत पर तिब्बत में विद्रोह भड़काने का आरोप लगाया। इससे एक वर्ष पहले 1958 में भी चीन की एक पत्रिका में चीन का विवादास्पद मानचित्र छपा जिसके अनुसार भारत के 48,000 वर्ग मील ( 36,000 उत्तर पूर्व तथा 12,000 उत्तर पश्चिम) के क्षेत्र को चीन ने अपना भाग बता दिया।
चीन के इस रुख से साफ अंदाजा लगाया जा सकता था की उसने पंचशील के सिद्धांतों को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं था। साल 1959 के बाद से भारत चीन के रिश्ते तनावपूर्ण होने शुरू हो गए। अक्टूबर 1959 में चीन ने भारत के कुछ सैनिकों की सीमा पार कर हत्या कर दी तथा कुछ सैनिकों को बंदी बना लिया। 1960 में दोनों देशों के संबंधों को ठीक करने हेतु प्रधानमंत्री स्तर की बातचीत भी हुई किन्तु यह प्रयास विफल रहा। चीन के इस रुख से भारत में चीन के खिलाफ रोष व्याप्त था।
इसी को देखते हुए भारत ने फॉरवर्ड पॉलिसी के तहत लद्दाख तथा North East Frontier Agency (वर्तमान अरुणांचाल) में 1961 के अंत तक लगभग 50 चौकियाँ स्थापित कर ली। इस प्रतिक्रिया से चीन बौखला उठा तथा उसने भारत पर सैन्य कार्यवाही करने की घोषणा की, इसी घोषणा के तहत साल 1962 के जुलाई महीने में चीन ने भारत की एक पुलिस चौकी पर हमला कर दिया तथा पुलिसकर्मियों को बंदी बना लिया गया। यह पुलिस चौकी गलवान घाटी में मौजूद थी। इसी के साथ युद्ध की शुरुआत हुई जो 20 अक्टूबर से 21 नवम्बर 1962 तक चला। इस युद्ध मे चीन विजयी हुआ तथा उसने लद्दाख में स्थित अक्साई चीन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
युद्धोत्तर संबंध
युद्ध के बाद चीन भारत के 25,000 वर्ग मील भूमि पर अपना अवैध अधिकार कर चुका था। इसके बाद सन 1963 में चीन ने पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया जिससे भारत विरोधी दोनों देश एक साथ आ गए, जिसके चलते 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में चीन ने पाकिस्तान को हर संभव सहायता प्रदान की।
1967 में एक बार फिर चीन ने नाथुला दर्रे में भारतीय चौकी पर आक्रमण किया हाँलकी अन्तराष्ट्रीय दबाव के चलते चीन को नाथुला से पीछे हटना पड़ा। इसके बाद 1971 में बांग्लादेश में भारत द्वारा की गई कार्यवाही में भी चीन ने भारत के साथ शत्रुता का परिचय देते हुए पाकिस्तान को सहयोग किया। 1975 में सिक्किम के भारत मे विलय हो जाने के चलते भी चीन का रोष उग्र हो गया तथा उसने भारत पर सिक्किम को हड़प लेने और साम्राज्यवादी होना का आरोप लगाया।
साल 1998 में भारत द्वारा किये गए परमाणु परीक्षण तथा परमाणु शस्त्र संपन्न देश बन जाने के कारण भी चीन क्रोधित हो उठा तथा उसने माँग की, कि भारत अपने परमाणु अस्त्रों को नष्ट करे। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में भी चीन ने भारत के इस परीक्षण की निंदा की और भारत को CTBT (comprehensive Nuclear test ban treaty) पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालता रहा।
भारत चीन हालिया संबंध
चीन ने अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की नीति भारत से लगभग एक दशक पूर्व अपना ली थी, नतीज़न अब तक चीन में उद्योग फलने फूलने लगे थे तथा उत्पादन भी अधिक मात्रा में होने लगा था अतः चीन ने भारत को एक बाजार के रूप में देखा और आर्थिक फायदों के लिए राजनीतिक मुद्दों पर कम ज़ोर देने लगा फलस्वरूप 2004 आते आते चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा मान लिया।। हालाँकि चीन सीमाओं के बारे मे चर्चा करने से हमेशा बचता रहा फिर भी दोनों देशों के रिश्तों में थोड़ी स्थिरता आई।
2017 में पुनः डोकलाम जो की भूटान का हिस्सा है तथा भारत और चीन की सीमा से लगा हुआ है, में भारत चीन सीमा विवाद सामने आया। इसके अतिरिक्त भारत चीन के मध्य तनाव का ताजा मामला जून 2020 में सामनें आया है, जिसके अनुसार चीनी सेना अवैध रूप से कश्मीर स्थित गलवान घाटी को पार कर भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो गयी तथा सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के मध्य हिंसक झड़प हुई फलस्वरूप हमारे 21 जवान शाहिद हो गए तथा चीनी सेना को भी अपने लगभग 43 सैनिक गँवाने पड़े। हाँलकी घुसपैठ का भारत द्वारा कड़े विरोध के बाद चीनी सैनिकों को LAC से पीछे हटना पड़ा, किन्तु दोनों देशों के मध्य तनाव अभी भी बना हुआ है।
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