इसमें कोई दो राय नहीं है, की इस गृह पर जीवन प्रकृति की ही देन है, किन्तु कभी-कभी हमें प्रकृति का रौद्र रूप भी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देखने को मिलता है। हालाँकि कई परिस्थितियों में इन आपदाओं के लिए मानव स्वयं भी जिम्मेदार है। तकनीकी के विकास, बढ़ते उद्योग तथा अर्थव्यवस्थाओं ने प्रकृति से छेड़छाड़ करने में जरा सा भी संकोच नहीं किया है। नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में, आज इस लेख में बात करेंगे ऐसी ही एक प्राकृतिक आपदा, क्लाउडबर्स्ट या बादल फटने (Cloudburst in Hindi) की, समझेंगे यह क्या है, कैसे सामान्य बारिश से भिन्न है तथा इसके होने के पीछे प्राकृतिक एवं मानवजनीत क्या-क्या कारण हैं।
बादल फटना एवं इसका कारण?
बादल फटना किसी क्षेत्र में एक निश्चित समयावधि के दौरान अत्यधिक तीव्र वर्षा का होना है, यह वर्षा अधिकांशतः पर्वतीय क्षेत्रों में होती है, क्योंकि बादल फटने के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ इन्हीं क्षेत्रों में अधिक बनती हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसी वर्षा, जो सामान्यतः 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में हुई हो तथा जिसकी गिरावट दर 100 मिमी (4.94 इंच) प्रति घंटे के बराबर या उससे अधिक है, उसे बादल फटने की घटना से जोड़ा जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में बादल फटने की घटनाएं मानसून के दौरान अधिक होती हैं, इस समय नमी युक्त हवाएं बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर से होती हुई हिमालयी क्षेत्र की ओर बढ़ती हैं।
बादलों के फटने का मुख्य कारण किसी स्थान विशेष पर बादलों के घनत्व अथवा उस क्षेत्र की सापेक्षिक आर्द्रता में अत्यधिक वृद्धि होना है। साधारणतः पहाड़ की चोटीयों पर कम दबाव क्षेत्र बनने के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है। कम दबाव के ये क्षेत्र नीचे की हवा तथा बादलों को ऊपर की तरफ आकर्षित करता है। आसमान में मौजूद बादल बरसने के बजाए हवाओं के बहाव में ऊपर की ओर गति करने लगते हैं तथा कम दबाव वाले क्षेत्र में एकत्रित होने लगते हैं।
एक समय के बाद जब इस क्षेत्र में बादलों का घनत्व अत्यधिक बढ़ जाता है तो ऐसी स्थिति में ये बादल अपने ही भार के चलते तीव्रता से बरसने लगते हैं। यह प्रक्रिया बादल फटना कहलाती है। ये वर्षा बहुत छोटे क्षेत्र में तथा बहुत कम समय के लिए होती है। कुछ स्थितियों में एक घंटे में 5 इंच (लगभग 13 सेंटीमीटर) तक बारिश हो सकती है।
ग्लोबल वॉर्मिंग भी है कारण
जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वॉर्मिंग भी बादल फटने की घटना का एक अहम कारण है। कई शोधकर्ता इस बात को मानते हैं, कि जलवायु परिवर्तन के चलते बादल फटने की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई है। हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की बढ़ती आवृत्ती के पीछे भी वैज्ञानिकों का मानना है, कि इस क्षेत्र में अधिक बादल फटने की घटनाओं के पीछे हिमालयी क्षेत्र में दशकीय तापमान वृद्धि का वैश्विक तापमान वृद्धि की दर से अधिक होना है, जिसके चलते इस क्षेत्र की सापेक्षिक आर्द्रता में वृद्धि होती है।
बादल फटने का पूर्वानुमान
समय के साथ प्रद्योगिकी काफी हद तक विकसित हो चुकी है, मौसम से जुड़ी तमान जानकारी हमें इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त हो जाती है। हालाँकि सामान्य परिस्थिति में बादल फटने (Cloudburst in Hindi) की घटना का पूर्वानुमान लगा पाना कुछ हद तक कठिन था, किन्तु डॉप्लर वैदर रडार की मदद से इसका सटीकता से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। ये रडार लगातार बादलों के घनत्व को जाँचते रहते हैं, जिससे किसी स्थान विशेष पर बादलों के जमाव या उनके घने होने का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वर्तमान में देश भर में मौसम से संबंधित 25 से अधिक रडार विभिन्न स्थानों पर कार्यरत हैं, तटीय क्षेत्रों में चक्रवात एक प्रमुख मौसमी समस्या रहती है, जिसकी निगरानी इन रडारों द्वारा की जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं के चलते हिमांचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी इन्हें स्थापित किया जा रहा है। उत्तराखंड में वर्तमान में एक रडार, जो कि नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर में लगाया गया है कार्यरत है, जबकि दो अन्य रडार लगाने का कार्य जारी है। हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न स्थानों पर रडार की मौजूदगी से समय रहते स्थानीय क्षेत्रवासियों को आपदा की चेतावनी दी जा सकती है।
बादल फटने के कारण नुकसान
पर्वतीय राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में मानसून के दौरान अक्सर बादल फटने की घटनाएं सामने आती हैं। अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समान बादल फटने (Cloudburst in Hindi) और इससे जुड़ी आपदाएं जैसे बाड़, भूस्खलन, मड फ़्लो आदि भी हर साल कई लोगों को जीवन, संपत्ति तथा आजीविका के लिहाज से खासा प्रभावित करते हैं। हालाँकि ये घटनाएं प्रतिवर्ष सामने आती हैं किन्तु, साल 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आई आपदा इसका भयावह रूप था, जिसमें तकरीबन 6,000 से अधिक लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।
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