आपने अक्सर दो देशों के मध्य सीमा विवाद की खबरें देखी या सुनी होंगी, कई देश हैं जिनके मध्य सीमा विवाद सदियों से चल रहे हैं, भारत स्वयं इसका उदाहरण है। किन्तु हालिया मामला दो देशों के सीमा विवाद का नहीं बल्कि भारत के भीतर ही दो राज्यों के मध्य उत्पन्न हुए सीमा विवाद का है जिसने पिछले कई दिनों से हिंसक रूप ले लिया है।
हम बात कर रहे हैं पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम और मिजोरम के मध्य उत्पन्न हुए सीमा विवाद की जिसमें अब तक कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि कई घायल हैं। इस लेख में नजर डालेंगे इन दोनों राज्यों की एतिहासिक पृष्ठभूमि पर तथा जानने का प्रयास करेंगे उन कारणों को जिनके चलते यह विवाद पैदा हुआ है।
असम-मिज़ोरम विवाद
हाल ही में उत्तर-पूर्व के दो राज्य असम तथा मिज़ोरम के सीमावर्ती इलाकों में हिंसा की खबरें सामने आई हैं, जिसमें असम के 6 पुलिसकर्मियों समेत कुल 7 लोग अपनी जान गवां चुके हैं तथा 50 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है। क्षेत्र में आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई करने वाले ट्रकों सहित अन्य वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध जारी है। तनाव को देखते हुए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के बड़ी संख्या में जवान राष्ट्रीय राजमार्ग 306 पर तैनात हैं।
मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा के अनुसार इस झड़प की शुरुआत असम पुलिस द्वारा मिजोरम पुलिस की एक चौकी पर कब्जा कर की गई, जिसके बाद असम पुलिस ने स्थानीय लोगों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज किया। वहीं असम के अनुसार सीमा पर अतिक्रमण को हटाने की कोशिश की जा रही थी, जिसके परिणामस्वरूप विवाद हिंसक हो गया। इस सीमा विवाद के चलते दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री सोशियल मीडिया पर आमने-सामने हैं। दोनों नें प्रधानमंत्री कार्यालय एवं ग्रह मंत्रालय से पूरे प्रकरण में दखल की माँग की है।
इसके अतिरिक्त दोनों राज्यों ने एक दूसरे के खिलाफ समन जारी किया है, जबकि दोनों ने ही एक दूसरे के समन को मानने से इनकार कर दिया। इस घटना के चलते मिज़ोरम ने असम के मुख्यमंत्री एवं कई शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ FIR दायर की है। FIR में हत्या के प्रयास समेत आईपीसी की कई अन्य गम्भीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। हालाँकि केंद्रीय गृहमंत्री के दखल के बाद दोनों मुख्यमंत्री वार्ता के ज़रिए विवाद सुलझाने हेतु सहमत हुए हैं।
पूर्व में भी हो चुकी हैं हिंसक झड़पें
दोनों राज्यों के मध्य हुई हिंसक घटना कोई नई नहीं है। इससे पहले साल 2018 तथा पिछले साल 2020 में पुनः सीमा पर विवाद देखने को मिला, जिसमें लैलापुर गांव (असम) के निवासी मिजोरम के वैरेंगते के पास के इलाकों के निवासियों के साथ भिड़ गए। इस झड़प के कुछ दिन पहले भी करीमगंज (असम) और ममित (मिजोरम) जिलों की सीमा पर इसी तरह की हिंसा हुई थी।
दोनों राज्यों के मध्य चल रहे विवाद को समझने के लिए आवश्यक है कि, उत्तर-पूर्व के इस क्षेत्र के इतिहास एवं भूगोल तथा देश की आजादी से पहले एवं आजादी के पश्चात हुए सीमांकन अथवा राज्यों के पुनर्गठन पर एक नज़र डाली जाए, ताकि दो राज्यों के मध्य हो रहे विवाद की जड़ को समझा जा सके।
पूर्वोत्तर भारत का इतिहास
उत्तर-पूर्व का क्षेत्र भू-राजनैतिक दृष्टि से हमेशा ही भारत का हिस्सा रहा है। इस क्षेत्र के इतिहास को देखें तो यहाँ कामरूप अथवा प्राग्ज्योतिष-कामरूप के नाम से एक प्रारंभिक राज्य की स्थापना हुई। यह एतिहासिक दृष्टिकोण से असम का पहला राज्य समझा जाता है। प्राचीन काल में ये राज्य वर्तमान पूर्वोत्तर भारत के लगभग अधिकांश भाग में फ़ैला हुआ था। यह साम्राज्य 12वीं शताब्दी आते-आते समाप्ति की कगार पर आ गया। इसके बाद के साम्राज्यों में 16वीं शताब्दी में स्थापित अहोम साम्राज्य प्रमुख है। इन्होंने कामरूप साम्राज्य की राजनीतिक और क्षेत्रीय विरासत को ग्रहण किया।
19वीं सदी की शुरुआत में, पूर्वोत्तर पर शासन करने वाले अहोम तथा मणिपुर राज्यों पर बर्मा (वर्तमान म्यांमार) ने आक्रमण कर कब्जा कर लिया। 1817 से 1819 के बीच असम पर तीन बर्मी आक्रमण हुए, जिसके दौरान अहोम और मणिपुर राज्य बर्मा के नियंत्रण में चले गए। इसके पश्चात 1824 से 1826 में अंग्रेजों ने बर्मा के साथ पहला आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा, जो अंग्रेजों की जीत में समाप्त हुआ तथा यह क्षेत्र ब्रिटिश हुकूमत के अधीन आ गया और इस दौरान उत्तर-पूर्व के इस क्षेत्र को बंगाल प्रांत का हिस्सा बनाया गया।
ब्रिटिश काल में राज्यों का वर्गीकरण
देश की आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने भारत का जो भौगोलिक सीमांकन किया उसमें भाषाई एवं सांस्कृतिक समरूपता का कोई ध्यान दिए बिना अपने स्वार्थ एवं आर्थिक हितों को ध्यान में रखा गया। परिणामस्वरूप तात्कालीन अनेक राज्य बहु-सांस्कृतिक एवं बहु-भाषी थे। भाषा संस्कृति का एक अभिन्न घटक है, इसका लोगों के भावों, विचारों एवं रीति रिवाजों पर गहरा असर होता है। इसी कारण आज़ादी मिलने के पश्चात देश में भाषा एवं सांस्कृतिक दृष्टि के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग उठने लगी।
आजादी के बाद राज्यों का गठन
सन् 1949 में राज्यों का वर्गीकरण चार समूहों यथा क, ख, ग तथा घ में किया गया। समूह “क” के अंतर्गत वे राज्य शामिल थे, जिन्हें 1935 के भारत शासन अधिनियम में प्रान्त कहा गया था।
ब्रिटिश सरकार द्वारा इन प्रान्तों के लिए गवर्नर की नियुक्ति की जाती थी। समूह “ख” में बड़े आकार की देशी रियासतों को शामिल किया गया। समूह “ग” के अंतर्गत छोटी रियासतें थी, जो ब्रिटिश शासन के दौरान चीफ कमिश्नर द्वारा शासित होती थी। अंत में समूह “घ” विदेशों से अर्जित राज्य क्षेत्र के लिए रखा गया। प्रारंभ में इसमें केवल एक राज्य अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह था यद्यपि यह कोई अर्जित क्षेत्र नहीं था।
उपरोक्त वर्गीकरण तर्क संगत नहीं था, बल्कि यह कहना चाहिए कि इसमें आज़ादी से पूर्व की स्थितियाँ बरकरार थी। प्रारंभ में इस वर्गीकरण के पीछे का तर्क था कि आजादी के बाद यदि राज्यों की सीमाओं में व्यापक परिवर्तन किया गया तो इससे तत्काल कई गंभीर प्रशासनिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, जिससे तात्कालीन शासन निपटने में असमर्थ था। फलतः इस वर्गीकरण के बाद भी राज्यों के पुनर्गठन की माँग जस की तस बनी रही।
राज्यों के पुनर्गठन की उठती माँगों को देखते हुए अगस्त 1953 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राज्य पुनर्गठन आयोग गठित किया, जिसने अक्टूबर 1955 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके पश्चात 1 नवम्बर 1956 को संसद द्वारा पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू किया गया। इसमें पहले से चली आ रही क, ख, ग तथा घ समूह की व्यवस्था को समाप्त कर कुल 14 राज्यों तथा 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया।
आजादी के बाद पूर्वोत्तर राज्यों का गठन
देश की आजादी के समय, पूर्वोत्तर क्षेत्र में केवल असम, मणिपुर और त्रिपुरा की रियासतें शामिल थी। अन्य राज्य असम के बड़े क्षेत्र का हिस्सा हैं, बाद में वे अलग हो गए और उन्हें स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिया गया। सन 1962 में नागालैंड राज्य अधिनियम द्वारा नागालैंड को असम से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाया गया, जो 1 दिसंबर 1963 से प्रभाव में आया। इससे पहले यह असम राज्य के तहत छठी अनुसूची के अंतर्गत एक जनजातीय क्षेत्र था।
सन 1971 में पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम के तहत मणिपुर, त्रिपुरा तथा मेघालय को राज्यों की सूची में शामिल किया गया। गौरतलब है कि इससे पूर्व मणिपुर एवं त्रिपुरा केंद्र शासित प्रदेश थे जबकि मेघालय असम का ही एक हिस्सा था। इसके अतिरिक्त इसी अधिनियम के तहत असम से अरुणाचल प्रदेश तथा मिज़ोरम का गठन कर उन्हें संघ शासित क्षेत्र का दर्जा दिया गया।
इसके पश्चात सन 1974 में 35वें संविधान संशोधन द्वार सिक्किम को भारतीय संघ में जोड़ा गया तथा 36वें संविधान संशोधन के माध्यम से 1975 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। 1986 में मिज़ोरम राज्य अधिनियम द्वारा मिज़ोरम को तथा अरुणाचल प्रदेश राज्य अधिनियम द्वारा अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया, जो फरवरी 1987 से लागू हुआ। इस प्रकार समय-समय पर हुए बदलावों द्वारा उत्तर पूर्व को 7 राज्यों में विभाजित किया गया, जो वर्तमान में हमारे सामने है।
दोनों राज्यों के मध्य विवाद का कारण
असम तथा मिज़ोरम के मध्य लगभग 165 किलोमीटर की सीमा है, जिसमें असम के तीन जिले कछार, हैलाकांडी तथा करीमगंज मिज़ोरम के कोलासिब तथा ममित जिलों के साथ सीमा साझा करते हैं। इस सीमा पर समय-समय पर टकराव होते रहता है, जिससे जान-माल समेत लोगों की संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचता है। इस विवाद की जड़ों को खोजा जाए तो ये जड़ें ब्रिटिश कालीन दो अधिसूचनाओं जो क्रमशः सन 1875 तथा 1933 में जारी की गई की देन है।
सन 1824 से 1826 के दौरान हुए एंग्लो बर्मा युद्ध में अंग्रेजों ने असम पर कब्ज़ा किया तथा इस क्षेत्र में प्रशासनिक सुधारों का हवाला देते हुए 1873 में बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन एक्ट पास किया। इसके पीछे अंग्रेजों का उद्देश्य स्थानीय जनजातियों एवं उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना था, परंतु इतिहासकार मानते हैं कि यह नीति अंग्रेज़ पूर्वोत्तर के संसाधनों का दोहन कर अपने आर्थिक हितों को साधने के लिए लाए थे।
बहरहाल इसी अधिनियम के तहत ब्रिटिश सरकार ने 1875 में एक अधिसूचना के ज़रिए तात्कालीन असम के कई क्षेत्रों, जिनमें कामरूप, शिवसागर, लखीमपुर, गारो पहाड़ियाँ, खासी एवं जयंतिया पहाड़ियाँ, नागा पहाड़ियाँ आदि शामिल थी, में इनर लाइन परमिट की व्यवस्था की गई। इसके तहत किसी भी बाहरी व्यक्ति के इन क्षेत्रों में बिना परमिट के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया गया।
इस अधिसूचना ने कछार के मैदान (असम) तथा लुसाई हिल्स (मिज़ोरम) के मध्य सीमांकन किया। इसके पश्चात सन् 1933 में जारी अधिसूचना के माध्यम से अंग्रेजों ने संस्कृति, भाषा और आदिवासी क्षेत्रों के आधार पर पूर्वोत्तर में सीमांकन किया। इसके चलते लुसाई हिल्स, कछार और मणिपुर को अलग करने वाली एक नई सीमा बनाई गई।
मिज़ोरम का मानना है कि 1933 के इस सीमांकन के दौरान असम तथा ब्रिटिश अधिकारियों ने सीमा का निर्धारण किया, जबकि मिज़ोरम से इस विषय में किसी प्रकार का विचार विमर्श नहीं किया गया। उक्त दो सीमांकनों के चलते असम तथा मिज़ोरम के मध्य अनेक ऐसे स्थान हैं (लगभग 500 वर्ग मील) जो विवादास्पद बने हुए हैं। असम 1933 की अधिसूचना का समर्थन करता है, जबकि मिज़ोरम 1875 में हुए सीमांकन को मानते हुए उक्त 500 वर्ग मील ज़मीन पर अपना दावा करता है।
असम का अन्य राज्यों से विवाद
मिज़ोरम एक अकेला राज्य नहीं जिसका असम से सीमा को लेकर विवाद है। मिज़ोरम (Assam-Mizoram Border Dispute in Hindi) के अतिरिक्त नागालैंड, मेघालय तथा अरुणांचाल प्रदेश से भी असम के सीमा विवाद हैं। चूँकि अधिकांश पूर्वोत्तर राज्य कभी न कभी असम का भाग रहे हैं अतः इन राज्यों से सीमा विवाद होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है।
असम-अरुणांचाल सीमा विवाद : असम, अरुणाचल प्रदेश के साथ लगभग 804 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। 1987 में बनाए गए अरुणाचल प्रदेश राज्य का दावा है कि पारंपरिक रूप से इसके निवासियों की कुछ भूमि असम को दे दी गई है। सीमा विवाद के लिए गठित एक समिति ने सिफारिश की थी कि, इन क्षेत्रों को असम से अरुणाचल में शामिल किया जाए। इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्य सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। सीमाओं से स्थानीय हिंसा की भी कुछ घटनाएं सामने आई हैं।
असम-नागालैंड सीमा विवाद : 1963 में नागालैंड के गठन के बाद से दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद चल रहा है। दोनों राज्य असम के गोलाघाट जिले के मैदानी इलाकों के पास एक छोटे से गांव मेरापानी पर अपना दावा करते हैं। 1960 के दशक से इस क्षेत्र में कई बार हिंसक झड़पों की खबरें आती रही हैं। मिज़ोरम के साथ हो रहे विवाद को देखते हुए असम ने हाल ही में पूर्वी मोर्चे पर भी गतिरोध दूर करने के लिए नागालैंड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
असम-मेघालय सीमा विवाद : असम मेघालय के साथ 884 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। इस विवाद का मुख्य कारण 1969 का असम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम है, जिसे मेघालय स्वीकार करने से इनकार करता रहा है। वर्तमान में दोनों के मध्य तकरीबन 12 विवादास्पद क्षेत्र हैं, जो 2,765 वर्ग किमी के क्षेत्रफल को कवर करते हैं।