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प्रकाश एवं उसकी प्रकृति
प्रकाश से हम सभी वाकिफ हैं किसी भी वस्तु के दिखाई देने के लिए प्रकाश आवश्यक होता है। प्रकाश के संबंध में प्राचीन काल से ये समझा गया कि यह तरंगों के रूप में गति करता है। किन्तु 1905 में जर्मन वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने एक प्रयोग से सिद्ध किया कि कुछ परिस्थितियों में प्रकाश तरंग की भाँति व्यवहार नहीं करता है। हाँलाकि प्रकाश की द्वैध प्रकृति के बारे में 1887 में हर्ट्ज ने भी बताया था किंतु तब इसकी सही व्याख्या नहीं की जा सकी।
आइंस्टीन ने अपने प्रयोग के दौरान जब धातु की एक प्लेट पर प्रकाश को डाला तो उसमें से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगे जिन्हें विद्युत धारा के रूप में मापा भी गया। इस प्रयोग की व्याख्या करते हुए आइंस्टीन ने बताया की प्रकाश कणों के रूप में गति करता है ये कण ऊर्जा के छोटे छोटे पैकेट के रूप में मौजूद होते हैं जिन्हें फोटॉन कहा जाता है।
ये फ़ोटॉन धातु से टकराकर अपनी ऊर्जा किसी इलेक्ट्रॉन को दे देते हैं यदि यह ऊर्जा देहली ऊर्जा या Threshold Energy (न्यूनतम ऊर्जा जो धातु से किसी इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक होती है) के बराबर या उससे अधिक हो तो इलेक्ट्रॉन धातु से बाहर निकल जाते हैं। इस प्रक्रिया को फोटो इलेक्ट्रिक प्रभाव नाम दिया गया।
प्रकाश की कण प्रकृति के पक्ष में तर्क
फोटो इलेक्ट्रिक प्रभाव (Application of Photoelectric effect) को प्रकाश की तरंग प्रकृति के आधार पर समझा पाना मुश्किल था। तरंग सिद्धांत के अनुसार किसी तरंग द्वारा ऊर्जा का स्थानांतरण सतत (Continuous) रूप से होता है। अतः यदि इलेक्ट्रॉन की देहली ऊर्जा से कम ऊर्जा की तरंग को धातु पर डाला जाए तो वह धातु में स्थित किसी इलेक्ट्रॉन को लगातार ऊर्जा देती रहेगी तथा एक समय के बाद जब तरंग द्वारा दी गई ऊर्जा इलेक्ट्रॉन की देहली ऊर्जा के बराबर हो जाएगी तो इलेक्ट्रॉन धातु से बाहर निकल जाएगा।
किन्तु प्रयोगों में पाया गया की लंबे समय तक कम ऊर्जा की तरंग धातु पर डालने पर भी इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं हुए। अतः इस बात की पुष्टि हुई कि प्रकाश कण के रूप में भी व्यवहार करता है। फोटो इलेक्ट्रिक प्रभाव में किसी धातु पर पड़ने वाली विकिरण तरंग रूप में न होकर कण रूप में होती है। इस खोज के लिए अल्बर्ट आइंस्टीन को साल 1923 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
फोटो सेल
फ़ोटो सेल एक युक्ति है जिसकी सहायता से प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। फ़ोटो सेल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
फ़ोटो उत्सर्जक सेल
यह काँच की एक ट्यूब से बना होता है जिसके भीतर से हवा को निकाल दिया जाता है। ट्यूब के भीतर दो टर्मिनल धनात्मक (संग्राहक) तथा ऋणात्मक (उत्सर्जक) मौजूद होते हैं। ऋणात्मक टर्मिनल प्रकाश के प्रति किसी संवेदनशील धातु का बना होता है। जब प्रकाश काँच की ट्यूब से होता हुआ उत्सर्जक पर पड़ता है तो उसमें से फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव (Application of Photoelectric effect) के कारण इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं जो धनात्मक टर्मिनल की ओर आकर्षित हो जाते हैं तथा परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है।
फ़ोटो वोल्टाइक सेल
यह एक ऐसी युक्ति है जिसमें एक p-n जंक्शन डायोड का प्रयोग किया जाता है। बता दें कि p-n जंक्शन डायोड p (धनावेश बहुल) तथा n(इलेक्ट्रॉन बहुल) प्रकार के अर्द्धचालकों से मिलकर बना होता है। जब p तथा n प्रकार के अर्द्धचालक मिलते हैं तो p से धनावेश n की ओर तथा n से ऋणावेश p अर्द्धचालक की ओर स्थानांतरित होते हैं।
यह स्थानांतरण केवल कुछ समय के लिए ही होता है इसके बाद चित्र में दर्शाए अनुसार दोनों अर्द्धचालकों के जंक्शन के आस पास एक Depletion region का निर्माण होता है जहाँ आवेशित कणों का अभाव होता है, दूसरे शब्दों में धनावेश तथा ऋणावेश मिलकर इस क्षेत्र को उदासीन अथवा अनावेशित कर देते हैं।
जब प्रकाश इस क्षेत्र में पड़ता है तो यहाँ मौजूद अनावेशित कण आवेशित कणों (धनावेश तथा ऋणावेश) में बदल जाते हैं। ये आवेशित कण तत्पश्चात विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में गति करने लगते हैं और इस गति से परिपथ में विद्युत का प्रवाह होने लगता है।
फ़ोटो कंडक्टिव सेल
यह सेल एक खास प्रकार के अर्द्धचालक पदार्थ से मिलकर बना होता है, जिसमें प्रकाश पड़ने पर पदार्थ के प्रतिरोध में कमी आती है। जब प्रकाश अर्द्धचालक पदार्थ पर पड़ता है तो वह पदार्थ के अनावेशित कणों को धनावेशित एवं ऋणावेशित कणों में विभक्त कर देता जब ये आवेशित कण गति करते हैं तो इससे पदार्थ में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है तथा पदार्थ का प्रतिरोध घटने लगता है।
फोटो इलेक्ट्रिक प्रभाव के अनुप्रयोग
फ़ोटो इलेक्ट्रिक प्रभाव का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में किया जाता है। इसके प्रमुख अनुप्रयोगों में फ़ोटो सेल, फोटो मल्टीप्लायर आदि हैं। कुछ प्रमुख अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं।
सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इसमें फ़ोटो वोल्टाइक सेल की सहायता से सूर्य से प्राप्त प्रकाश ऊर्जा को विद्युत उर्ज़ा में परिवर्तित किया जाता है। सौर ऊर्जा का प्रयोग घरों, दफ्तरों, हवाई अड्डों आदि समेत अंतरिक्ष में भी विद्युत की आपूर्ति हेतु इस्तेमाल किया जा रहा है।
बर्गलर अलार्म
बैंकों आदि में लगे बर्गलर अलार्म में फ़ोटो उत्सर्जक सेल का प्रयोग किया जाता है। सामान्य स्थिति में किसी प्रकाश स्रोत से निकलने वाला प्रकाश लगातार फ़ोटो सेल पर पड़ता रहता है। सेल के उत्सर्जक से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं जो संग्राहक द्वारा प्राप्त किए जाते हैं और परिपथ में विद्युत प्रवाहित होती रहती है।
किन्तु जब कोई व्यक्ति चोरी करने के लिए बैंक में मौजूद लॉकर रूम में घुसने का प्रयत्न करता है तो वह प्रकाश स्रोत एवं फोटो सेल के मध्य आ जाता है तथा किसी अवरोध की भाँति कार्य करता है। फ़ोटो सेल तक प्रकाश नहीं पहुँच पाता और परिपथ में विद्युत प्रवाहित होना बंद हो जाता है जिसकी प्रतिक्रिया में बैंक में लगा अलार्म बजने लगता है।
स्मोक डिटेक्टर
स्मोक डिटेक्टर फायर अलार्म का एक प्रकार है। इसमें भी फ़ोटो सेल का इस्तेमाल किया जाता है। घरों अथवा सार्वजनिक भवनों में विभिन्न स्थानों पर लगे स्मोक डिटेक्टर धुएं को डिटेक्ट करते हैं। आग लगने की स्थिति में आग से निकलने वाला धुआँ इन स्मोक डिटेक्टर्स तक पहुँचता है तथा इनमें लगे प्रकाश स्रोत तथा फ़ोटो सेल के मध्य अवरोध का कार्य करता है इस प्रकार उत्सर्जक पर पड़ने वाले प्रकाश की तीव्रता पहले से कम हो जाती है।
जिस प्रकार सर्दियों में कोहरे के कारण सूर्य का प्रकाश हम तक नहीं पहुँच पाता। प्रकाश की तीव्रता में आए इस परिवर्तन के फलस्वरूप फ़ोटो सेल द्वारा बनने वाली विद्युत धारा में भी कमी आती है तथा इसकी प्रतिक्रिया में भवन में मौजूद अलार्म बजने लगता है।
स्ट्रीट लाइट
फ़ोटो सेल का उपयोग स्ट्रीट लाइट्स में उनके स्वतः खुलने तथा बंद होने के लिए किया जाता है। इस युक्ति में फोटो कंडक्टिव सेल का प्रयोग किया जाता है। स्ट्रीट लाइट्स में फ़ोटो कंडक्टिव सेल के साथ एक स्विच लगा होता है जब एक खास तीव्रता का प्रकाश सेल पर पड़ता है तब सेल में धारा प्रवाहित होने लगती है और सेल से जुड़ा स्विच बंद हो जाता है, इसी कारण जब सुबह सूर्योदय होता है तब स्ट्रीट लाइट्स स्वतः बंद हो जाती है।
इसके अतिरिक्त फोटो सेल का उपयोग स्वचालित दरवाजों में, अन्य स्वचलित उपकरणों जैसे सोप डिस्पेंसर आदि में, फोटो कॉपी मशीनों में, प्रकाश की तीव्रता मापने में, किसी फैक्ट्री में बनने वाले उत्पादों की गणना करने में, फोटो मल्टीप्लायर आदि में प्रयोग किया जाता है।
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