FIR किसे कहते हैं?
आपने अक्सर समाचारों, फिल्मों इत्यादि में FIR के बारे में सुना होगा। यह किसी भी अपराध के किये जाने की प्रथम सूचना होती है जिसे पीड़ित अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पुलिस थाने में दर्ज कराया जाता है। शिकायत को बोलकर या लिखित किसी भी रूप में दर्ज कराया जा सकता है।
पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी (Officer in Charge) की यह जिम्मेदारी होती है की वह शिकायतकर्ता की शिकायत लिखे अथवा लिखवाए। शिकायत FIR रजिस्टर में दर्ज होने के बाद शिकायत की एक कॉपी शिकायतकर्ता को भी दी जाती है, जिसमें घटित अपराध की जानकारी होती है। इसके बाद उस अपराध पर जाँच अथवा आगे की कार्यवाही की जाती है।
सामान्यतः अपराधों को दो श्रेणियों में रखा गया है, जिसमें संज्ञेय (Cognizable) तथा असंज्ञेय (Non-Cognizable) अपराध शामिल हैं। संज्ञेय अपराध की स्थिति में पुलिस FIR रजिस्टर में शिकायतकर्ता की शिकायत दर्ज करती है। जबकि किसी असंज्ञेय अपराध की स्थिति में उसे NCR (Non-Cognizable Report) रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। असंज्ञेय अपराधों की स्थिति में कोई व्यक्ति सीधे प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट को शिकायत कर सकता है।
जीरो FIR क्या होती है?
किसी अपराध की FIR, अपराध घटित होने वाले क्षेत्र से संबंधित पुलिस थाने के अलावा किसी अन्य पुलिस थाने में भी करवाई जा सकती है, इस थाने द्वारा लिखी गयी FIR की प्रति घटनास्थल से संबंधित थाने को भेज दी जाती है। इस प्रकार की शिकायतों को ही जीरो FIR कहा जाता है। साधारण शब्दों में जब कोई व्यक्ति घटनास्थान वाले पुलिस थाने के अलावा किसी अन्य थाने में शिकायत दर्ज करवाता है तो ऐसी शिकायत या FIR को जीरो FIR कहते हैं।
जब पुलिस किसी शिकायतकर्ता की FIR दर्ज करती है तो उस FIR से संबंधित एक FIR संख्या भी दर्ज की जाती है, किन्तु घटनास्थल से संबंधित थाना क्षेत्र के अतिरिक्त कहीं अन्य लिखी गयी शिकायत में कोई FIR संख्या नहीं लिखी जाती इसी कारण इसे जीरो FIR कहा जाता है।
FIR न लिखने के संबंध में प्रावधान
यदि कोई पुलिस थाना किसी शिकायतकर्ता की FIR लिखने से मना करता है तो शिकायतकर्ता सीधे संबंधित Superintendent of police (SP) को इसकी शिकायत लिखित रूप में कर सकता है। इसके अलावा यदि FIR दर्ज किए जाने के बाद शिकायतकर्ता को लगता है कि जाँच अधिकारी जाँच में सहयोग नहीं कर रहा है अथवा आरोपी को संरक्षण दे रहा है तो ऐसी स्थिति में शिकायतकर्ता के पास कुछ विकल्प मौजूद हैं।
Criminal Procedure Code (CrPC) की धारा 172 के तहत किसी मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी को उस मामले से संबंधित एक डायरी रखना अनिवार्य है। उस अधिकारी द्वारा की गई प्रत्येक कार्यवाही को दिन-प्रतिदिन उस डायरी में लिखा जाता है अतः शिकायतकर्ता संबंधित SP अथवा DCP कार्यालय से सूचना के अधिकार का प्रयोग करते हुए जाँच में हुई प्रगति के बारे में सूचना ले सकता है। इसके अतिरिक्त शिकायतकर्ता मामले की जाँच में हुई प्रगति की जानकारी के लिए न्यायालय में भी आवेदन कर सकता हैं।
Very good information.
Thank you Ramesh.