दिन-प्रतिदिन तकनीकी के क्षेत्र में हो रहे विकास ने विभिन्न क्षेत्रों में आमूल-चूल परिवर्तन तो किए ही हैं, इसके साथ ही मानव जीवन को बेहतर अनुभव प्रदान कर उसे एक नए आयाम में ले जाने का कार्य भी किया है। प्रौद्योगिकी के विकास को देखें तो रेडियो, मोबाइल फोन, नौवहन प्रणाली, इंटरनेट से लेकर इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकी इसके महत्वपूर्ण आविष्कार हैं।
हम प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के ग्राफिक्स जैसे वीडियो, फ़ोटो आदि के रूप में हजारों मेगाबाइट डेटा का इस्तेमाल करते हैं, जो इंटरनेट के द्वारा दुनियाँ के विभिन्न हिस्सों से हम तक पहुँचता है। इन ग्राफिक्स की मदद से हम दुनियाँ के किसी एक हिस्से में होने के बावजूद दुनियाँ के किसी अन्य हिस्से के बारे में जानकारी जुटा सकते हैं अथवा वहाँ की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, मौसम आदि को समझ सकते हैं।
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समय के साथ तकनीकी के क्षेत्र में हुए विकास ने ग्राफिक्स को केवल देखने एवं सुनने के बजाए उन्हें महसूस करने की प्रणाली को विकसित किया है। नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका जानकारी जोन में, आज इस लेख में हम चर्चा करेंगे तकनीकी के एक नए स्वरूप वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality in Hindi) के बारे में, जानेंगे यह क्या है, किस प्रकार कार्य करता है तथा मानव जीवन के लिए यह किस तरह उपयोगी है।
क्या है वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality)
वर्चुअल रियलिटी प्रौद्योगिकी का एक ऐसा विकसित रूप है, जो कुछ विशेष हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर्स की मदद से किसी व्यक्ति को एक खास वातावरण में होने की अनुभूति कराता है। इसके नाम को देखें तो यह वर्चुअल अर्थात आभासी तथा रियलिटी अर्थात वास्तविकता से मिलकर बना है अतः यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके द्वारा एक ऐसे परिवेश को तैयार किया जाता है, जो आभासी है किन्तु वास्तविक महसूस होता है।
हमारे शरीर में पाँच भिन्न ज्ञानेंद्रियाँ हैं, जो हमें बाह्य वातावरण की जानकारी प्रदान करती हैं। हमारा मस्तिष्क इनसे प्राप्त जानकारी के अनुरूप कार्य करता है। इन सब में हमारी दृष्टि मस्तिष्क को सबसे अधिक जानकारी प्रदान करती है एवं इसके बाद श्रवण, स्पर्श और अन्य इंद्रियां आती हैं।
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पारंपरिक मीडिया जैसे टेलीविजन आदि में दृश्य एवं श्रवण इंद्रियों का इस्तेमाल होता है तथा दिखाई देने वाले दृश्य सामान्यतः द्वि-विमीय होते थे, जबकि वर्चुअल रियलिटी में त्रि-विमीय छवि का इस्तेमाल होता है, जिसे व्यक्ति कुछ खास उपकरणों जैसे VR हेडसेट्स आदि की सहायता से देख सकता है। इस प्रकार कोई छवि एक छविमात्र न रहकर एक परिवेश में परिवर्तित हो जाती है, साथ ही वर्चुअल रियलिटी तकनीक में दृष्टि के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण इंद्रियों (जैसे गंध एवं स्पर्श की अनुभूति) को भी उत्तेजित किया जाता है, ताकि मानव मस्तिष्क को पूर्ण रूप से किसी वातावरण विशेष में होने का आभास कराया जा सके।
कैसे कार्य करता है?
वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality in Hindi) कंप्यूटर जनित त्रि-विमीय वातावरण को संदर्भित करता है। इसकी कार्यप्रणाली के मुख्यतः दो आधार हैं, पहला कंप्यूटर की सहायता से किसी त्रि-विमीय ग्राफिक्स का निर्माण करना एवं दूसरा किन्हीं खास उपकरणों कि सहायता से इस त्रि-विमीय परिवेश का अनुभव करना। इन आवश्यक उपकरणों में VR हेडसेट, हेड ट्रैकिंग, कंट्रोलर, हैंड ट्रैकिंग, वॉइस, ऑन-डिवाइस बटन या ट्रैकपैड इत्यादि शामिल होते हैं।
त्रि-विमीय वीडियो को एचडीएमआई केबल के माध्यम से कंप्यूटर से हेडसेट में भेजा जाता है, जहाँ उपयोगकर्ता ग्राफिक्स को तीनों विमाओं में देखता है और उस परिवेश में होने का अनुभव करता है। उक्त उपकरणों में लगे विभिन्न प्रकार के सेंसर्स उपयोगकर्ता की सभी गतिविधियों, प्रतिक्रियाओं यहाँ तक कि, पलक झपकने को ट्रैक करते हैं तथा आवश्यक ग्राफिक्स व्यक्ति को डिस्प्ले में प्रदर्शित किया जाता है।
वर्चुअल रियलिटी का इतिहास (History Of Virtual Reality)
अत्याधुनिक प्रतीत होने वाली इस तकनीक का इतिहास देखें तो यह बहुत पुराना है, किन्तु पिछले कुछ वर्षों में इसकी गुणवत्ता में कई सुधार हुए है। यदि डिजिटल दुनियाँ को किनारे कर केवल वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality) के उद्देश्य को देखें तो इसकी शुरुआत 19वीं सदी में समझी जा सकती है, जब सर्वप्रथम 360-डिग्री चित्रकारी (Panoramic paintings) सामने आई। इन चित्रों का उद्देश्य दर्शकों को एक ऐसा दृश पेश करना था, जिससे उनकी सम्पूर्ण दृष्टि में केवल वही चित्र समाहित हो और दर्शक उस वातावरण में होना अनुभव कर सके।
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चित्रकारी के उलट डिजिटल दुनियाँ में इसकी शुरुआत 20वीं शताब्दी के मध्य में हुई। 1960 के दशक में अमेरिकी सिनेमैटोग्राफर Morton Leonard Heilig ने सेंसोरमा विकसित किया। यह मशीन इमर्सिव, मल्टी-सेंसरी तकनीक के शुरुआती ज्ञात उदाहरणों में से एक है। 1962 में Morton Heilig द्वारा पेश की गई यह तकनीक शुरुआती वर्चुअल रियलिटी (VR) प्रणालियों में मानी जाती है।

सेंसोरमा एक थिएटर कैबिनेट था, जो केवल दृष्टि और ध्वनि ही नहीं, बल्कि मानव शरीर की सभी इंद्रियों को उत्तेजित कर सकता था। इसमें स्टीरियो स्पीकर, एक स्टीरियोस्कोपिक 3D डिस्प्ले, पंखे, गंध उत्पन्न करने के लिए उपकरण और एक वाइब्रेटिंग कुर्सी शामिल थी। सेंसरमा का उद्देश्य दर्शक को पूरी तरह से फिल्म के वातावरण में डुबो देना था, ताकि दर्शक स्वयं को उस परिवेश में अनुभव कर सके।
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इसके अतिरिक्त Morton Heilig ने 1960 में वर्तमान VR प्रणाली का महत्वपूर्ण उपकरण हेड-माउंटेड डिस्प्ले डिवाइस का भी पेटेंट कराया, जिसे टेली स्फीयर मास्क कहा जाता था। इसके पश्चात कई आविष्कारकों नें उनके इस मूल उपकरण पर कार्य किया तथा इसके उन्नत रूप विकसित किए।
Morton Heilig के पश्चात 1965 में एक अन्य आविष्कारक, Ivan Edward Sutherland ने “द अल्टीमेट डिस्प्ले” का आविष्कार किया, जो एक हेड-माउंटेड डिवाइस था। इसे उन्होंने “एक आभासी दुनिया कि खिड़की” के रूप में प्रस्तुत किया। दस साल बाद, अमेरिकी सेना और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) में प्रशिक्षण के लिए वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality) का उपयोग किया गया, और धीरे-धीरे समय के साथ विकसित होती इस तकनीकी का उन्नत रूप हम सभी के सामने है।
वर्चुअल रियलिटी के प्रकार
वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality) का वर्गीकरण इसके अनुभव के आधार पर किया गया है। इस आधार पर इसे तीन विभिन्न प्रकारों, जिनमें नॉन-इमर्सिव, सेमी-इमर्सिव और फुली-इमर्सिव सिमुलेशन शामिल हैं। इन तीनों प्रकारों की बेहतर समझ प्राप्त करने के लिए, आइए विभिन्न प्रकार के वर्चुअल रियलिटी को विस्तार से समझते हैं।

Non-immersive
इमर्सिव अर्थात किसी माहौल में पूर्ण रूप से ध्यानमग्न हो जाना अथवा डूब जाना, अतः Non-Immersive वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality) एक ऐसे आभासी अनुभव को संदर्भित करता है, जिसमें व्यक्ति ऐसे किसी वर्चुअल वातावरण में पूर्ण रूप से ध्यानमग्न नहीं हो पाता, दूसरे शब्दों में व्यक्ति वास्तविकता से स्वयं को अलग नहीं कर पाता। इसमें सॉफ्टवेयर के भीतर कुछ पात्रों या गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकता है, किन्तु उस परिवेश में होने का अनुभव प्राप्त नहीं किया जा सकता। सामान्य वीडियो गेम्स को नॉन-इमर्सिव वर्चुअल रियलिटी का उदाहरण समझा जा सकता है।
Fully-Immersive
जैसा कि, इसके नाम से पता चलता है यह वर्तमान वर्चुअल रियलिटी का सबसे उन्नत रूप है। नॉन-इमर्सिव वर्चुअल रियलिटी के विपरीत, यह एक यथार्थवादी आभासी अनुभव सुनिश्चित करता है। इसमें व्यक्ति को ऐसा प्रतीत होता है, मानो वह स्वयं आभासी दुनियाँ में भौतिक रूप से मौजूद है और वहाँ होने वाली घटनाएं उसके साथ घटित हो रही हैं। यह आभासी वास्तविकता का एक अत्यधिक महँगा रूप भी है, जिसमें सेंस डिटेक्टर्स के साथ हेलमेट, दस्ताने और बॉडी कनेक्टर जैसे तमाम उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। ये उपकरण एक शक्तिशाली कंप्यूटर से जुड़े होते हैं।
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इसके उदाहरण की बात करें तो वर्चुअल शूटर गेमिंग ज़ोन एक बेहतर उदाहरण हो सकता है, जहाँ उपयोगकर्ता एक छोटे से कमरे में सभी आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित होंगे तथा हेलमेट के माध्यम से एक आभासी दुनियाँ देख एवं महसूस कर रहे होंगे, जैसे शत्रुओं का सामना, खेल के भीतर दौड़ना, कूदना, शत्रु को गोली मारना इत्यादि।
Semi-Immersive
सेमी-इमर्सिव Non-Immersive तथा Fully-Immersive वर्चुअल रियलिटी के मध्य का अनुभव है। इस प्रकार कि वर्चुअल रियलिटी का मुख्य रूप से शैक्षिक एवं प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है। नॉन-इमर्सिव वर्चुअल रियलिटी सिस्टम कंप्यूटर, डिस्प्ले तथा अन्य इनपुट डिवाइस जैसे कीबोर्ड, माउस और कंट्रोलर आदि पर निर्भर करते हैं।
इसमें उपयोगकर्ता आभासी त्रि-विमीय वातावरण का अनुभव तो करता है, किन्तु Fully-Immersive VR के विपरीत वास्तविक दुनियाँ अथवा आसपास के दृश्यों, ध्वनि, गंध आदि के साथ-साथ भौतिक वस्तुओं से जुड़ा रहता है। flight simulator इस प्रकार के VR का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

बेहतर वर्चुअल रियलिटी हेतु आवश्यक तत्व
एक बेहतर वर्चुअल रियलिटी को अनुभव करने हेतु कुछ आवश्यक तत्व हैं, जिन्हें हम यहाँ समझने का प्रयास करेंगे। कंप्यूटर वैज्ञानिक Jonathan Steuer के अनुसार इमर्सन के दो प्रमुख घटक हैं, Depth of Information एवं Breadth of Information, सूचना की गहराई से आशय किसी आभासी वातावरण में रूबरू होते समय उपयोगकर्ता को प्राप्त होने वाले डेटा की मात्रा और गुणवत्ता से है। उदाहरण के तौर पर यह डिस्प्ले का रिज़ॉल्यूशन, परिवेश के ग्राफिक्स की जटिलता, सिस्टम के ऑडियो आउटपुट आदि हो सकते हैं।
अगला तत्व Breadth of Information मानव संवेदना को उत्तेजित करने वाले कारकों के विषय में है। इसके प्रभावी होने के लिए, मानव संवेदना को उत्तेजित करने वाले कारकों जैसे गंध, स्पर्श आदि का इस्तेमाल आवश्यक है। इसके अलावा ऐसे किसी वर्चुअल वातावरण में, जिससे कोई उपयोगकर्ता जुड़ा हुआ है, में प्रदर्शित सभी वस्तुएं वास्तविक आकार की होनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि आभासी वातावरण में किसी कमरे में एक मेज मौजूद है, तो उपयोगकर्ता को उसका वास्तविक आकार दिखाई देना चाहिए तथा व्यक्ति प्रत्येक कोण से मेज को देखने में सक्षम होना चाहिए।
वर्चुअल रियलिटी का विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयोग (Applications Of Virtual Reality)
वर्चुअल रियलिटी के अनुप्रयोगों की बात करें तो यह कई क्षेत्रों में उपयोगी साबित होगा। हमारे मस्तिष्क में वास्तविकता की धारणा बनाने वाले सभी कारक हमारी इंद्रियों पर निर्भर करते हैं। अतः यदि कंप्यूटर जनित जानकारी द्वारा मानव इंद्रियों को मेन्युप्लेट किया जा सके, तो हम इसका इस्तेमाल ऐसी परिस्थितियों में कर सकते हैं, जहाँ सामान्यतः कोई परीक्षण कर पाना या तो संभव नहीं है या खतरनाक है।
यह तकनीक किसी मानव परिकल्पना को एक आभासी रूप दे सकने में भी सक्षम है, जिससे उद्योगों, शिक्षा, स्वास्थ्य, नवाचार आदि में इसका कई तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त वर्चुअल रियलिटी का निम्नलिखित क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
शिक्षा के क्षेत्र में
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है, कि हम किसी विषय विशेष को समझने में जितनी अधिक इंद्रियों का इस्तेमाल करते हैं, उतने ही बेहतर ढंग से उस विषय को समझ पाते हैं। अतः इसमें कोई दो राय नहीं है कि, वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality) शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है। यह छात्रों को ऐसे परिवेश या स्थान में होने का अनुभव करवा सकती है, जहाँ पहुँच पाना अथवा तत्काल पहुँच पाना संभव नहीं है।
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उदाहरण के तौर पर वर्चुअल रियलिटी की सहायता से प्राचीन सभ्यताओं एवं उनके विकास को आसानी से समझाया जा सकता है। अंतरिक्ष विज्ञान के संबंध में एक बेहतर समझ विकसित कि जा सकती है, पृथ्वी के केंद्र से लेकर वायुमंडल की विभन्न परतों को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में
वर्चुअल रियलिटी का एक अन्य महत्वपूर्ण उपयोग स्वास्थ्य क्षेत्र में किया जा सकता है। इसकी सहायता से डॉक्टर, नर्स समेत समस्त मेडिकल स्टाफ़ एक बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकता है। OssoVR और ImmersiveTouch जैसी कंपनियाँ शल्य चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने के लिए वर्चुअल रियलिटी तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। हार्वर्ड द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई है कि, इस तकनीक (Virtual Reality) से प्रशिक्षित डॉक्टरों का प्रदर्शन पारंपरिक तरीकों कि तुलना में 200% से अधिक था।
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यह तकनीक किसी जटिल शल्य चिकित्सा को असल में करने के पूर्व ही एक आभासी वातावरण में करने का विकल्प देती है, ताकि ऐसी किसी चिकित्सा से उत्पन्न हो सकने वाली जटिलताओं को पूर्व में ही पहचाना जा सके। इसके अतिरिक्त यह तकनीक इंसान को आभासी रूप से मानव शरीर के भीतर प्रवेश करने की सुविधा देती है, जिससे किसी भी जटिल अंग के विषय में एक विस्तृत अध्ययन किया जा सकता है।
रक्षा क्षेत्र में
चिकित्सा क्षेत्र कि तरह रक्षा क्षेत्र में भी प्रशिक्षण हेतु VR तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तकनीक द्वारा उन्नत हथियारों का प्रयोग, लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल, विभिन्न मौसमी एवं भौगोलिक दशाओं में सैनिकों का प्रशिक्षण तथा युद्ध की स्थिति में उन्नत रणनीति बनाने का कार्य आसानी से किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त वर्चुअल रियलिटी की सहायता से विभिन्न विषम परिस्थितियाँ जैसे युद्ध आदि उत्पन्न कर ऐसी किसी परिस्थिति से निपटने के लिए सेना को तैयार भी किया जा सकता है। अमेरिका तथा ब्रिटेन जैसे विकसित देश इस तकनीक का रक्षा क्षेत्र में इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
मनोरंजन में
हमनें ऊपर वर्चुअल रियलिटी के इतिहास को जाना, इसकी शुरुआत सर्वप्रथम फिल्म के क्षेत्र में ही की गई थी, ताकि दर्शकों को केवल दर्शक न बनाकर किसी फिल्म का किरदार बनाया जा सके। किसी भी फिल्म का उद्देश्य दर्शकों को भावनात्मक रूप से कहानी में जोड़ना होता है और वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality in Hindi) यह कार्य बहुत बेहतर ढंग से कर सकने में सक्षम है। वर्तमान दौर में इस तकनीक का फिल्मों में उन्नत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि दर्शकों को एक बेहतर अनुभव प्रदान किया जा सके। इसकी सहायता से विभिन्न साइंस फिक्शन फिल्में बनाई जा रही हैं।
खेलों में
ऐसे सभी क्षेत्र जहाँ प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण कारक है उन क्षेत्रों में वर्चुअल रियलिटी की सहायता से आमूल-चूल परिवर्तन लाए जा सकते हैं। खेल भी इन्हीं में एक हैं, इसकी सहायता से खिलाड़ियों को उन्नत प्रशिक्षण दिया जा सकता है। इसके अलावा यह दर्शकों को भी किसी खेल का बेहतर अनुभव करा सकने में उपयोगी है।
वर्चुअल रियलिटी के नुकसान (Disadvantages of Virtual Reality)
फायदे एवं नुकसान किसी भी प्रौद्योगिकी के दो पहलू हैं, मानव सभ्यता के लिए आवश्यक यह है कि, हम किसी भी प्रौद्योगिकी का एक संतुलित रूप में इस्तेमाल करें ताकि किसी भी तकनीकी के नुकसानों से बचा जा सके। हमनें विभिन्न क्षेत्रों में वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality in Hindi) के अनुप्रयोगों को ऊपर समझा किन्तु इसके नकारात्मक प्रभावों पर भी प्रकाश डालना आवश्यक है।
चूँकि यह एक आभासी दुनियाँ है अतः इसके अधिक इस्तेमाल से (खासकर शिक्षा के क्षेत्र में) उपयोगकर्ताओं में मानवों के प्रति संवेदनशीलता में कमी आएगी तथा इस आभासी दुनियाँ की आदत हो जाना भी मानव समाज के लिए नुकसानदायक है। इसके अतिरिक्त अन्य नुकसानों में आभासी दुनियाँ का लचीला न होना, अत्यधिक महँगा होना आदि भी शामिल हैं।
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