Telecom Spectrum & its Auction: टेलिकॉम स्पेक्ट्रम क्या है तथा इसकी नीलामी से क्या आशय है?

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हाल ही में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दूरसंचार से संबंधित अहम फैसला लिया गया, पिछले महीने 15 तारीख (15 June 2022) को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई इस मीटिंग में 5G सेवाओं की शुरुआत के लिए दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunication) के स्पेक्ट्रम नीलामी प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। देश में 5G की शुरुआत के लिए टेलिकॉम कंपनियाँ लंबे समय से 5G स्पेक्ट्रम नीलामी का इंतजार कर रही थी।

दूरसंचार कंपनियों के लिए अपने ग्राहकों को कॉलिंग/डेटा जैसी सेवाएं प्रदान करने की दिशा में टेलिकॉम स्पेक्ट्रम एक मूलभूत आवश्यकता है, जिसे विभिन्न देशों की सरकारें टेलिकॉम सेवाएं देने वाली इन कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से बेचती हैं। प्रौद्योगिकी से जुड़े आज के इस लेख में विस्तार से समझेंगे टेलिकॉम स्पेक्ट्रम तथा इसकी नीलामी प्रक्रिया के बारे में, जानेंगे टेलिकॉम कंपनियों के लिए स्पेक्ट्रम खरीदना क्यों आवश्यक है? स्पेक्ट्रम की नीलामी क्यों की जाती है तथा इससे जुड़ी तमाम महत्वपूर्ण बातें।

टेलीकॉम स्पेक्ट्रम (Telecom Spectrum) क्या है?

टेलिकॉम स्पेक्ट्रम से पहले सामान्य स्पेक्ट्रम शब्द को समझना आवश्यक है, स्पेक्ट्रम शब्द किसी क्रम या श्रंखला (Range of a Particular type of Thing) को संदर्भित करता है। अब बात करते हैं टेलिकॉम स्पेक्ट्रम (Telecom Spectrum) की, हमारी सम्पूर्ण डिजिटल दुनियाँ का आधार विद्युतचुम्बकीय तरंगें (Electromagnetic Waves) हैं इन्हीं तरंगों के माध्यम से डिजिटल दुनियाँ में विभिन्न उपकरण एक दूसरे से कम्युनिकेशन कर पाते हैं। रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, रडार, जीपीएस जैसे अनेकों अनेक उपकरण डेटा का ट्रांसफर करने के लिए इन्हीं तरंगों का इस्तेमाल करते हैं।

विद्युत चुंबकीय तरंगों को आवृत्ती (Frequency) के आधार पर सात विभिन्न प्रकार की तरंगों में विभाजित किया गया है, जिसमें रेडियो तरंगें, माइक्रो तरंगें, इन्फ्रारेड तरंगें, दृश्य प्रकाश, पराबैगनी किरणें, एक्स किरणें तथा गामा किरणें शामिल है, इस प्रकार ये तरंगें भी एक स्पेक्ट्रम का निर्माण करती हैं। विद्युतचुम्बकीय तरंगों के प्रत्येक प्रकार का व्यवहार उसकी आवृत्ती के कारण भिन्न होता है। किसी तरंग की आवृत्ति से आशय प्रति इकाई समय में उस तरंग द्वारा किए गए दोलनों (Oscillation) की संख्या से है, इसकी युनिट हर्ट्ज (Hz) होती है।

electromagnetic Spectrum
विद्युतचुम्बकीय तरंगों का स्पेक्ट्रम

विद्युतचुम्बकीय तरंगों का वह भाग, जिसकी आवृत्ती 3 kHz से 300 GHz के मध्य होती है को रेडियो तरंगों (Radio Waves) के रूप में जाना जाता है। रेडियों तरंगों का इस्तेमाल रेडियो एवं टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग, मोबाइल दूरसंचार, जीपीएस उपकरणों, एयर ट्रेफिक कंट्रोल आदि में किया जाता है। प्रत्येक देश की सरकारें रेडियो तरंगों के एक निश्चित भाग को आम लोगों के इस्तेमाल के लिए निर्धारित करती हैं, जबकि रेडियो तरंगों का अधिकांश हिस्सा सरकारों द्वारा रक्षा तथा अन्य कार्यों के लिए उपयोग में लाया जाता है। रेडियों तरंगों का वह भाग, जिसे सरकारों द्वारा मोबाइल दूरसंचार के लिए आवंटित किया जाता है उस हिस्से को टेलिकॉम स्पेक्ट्रम (Telecom Spectrum) कहा जाता है।

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स्पेक्ट्रम पर सरकारों का नियंत्रण

रेडियों तरंगों अथवा टेलिकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी के संबंध में आपने “बैंड (Band)” शब्द सुना होगा। स्पेक्ट्रम की नीलामी से पहले जानते हैं बैंड क्या हैं और इसकी आवश्यकता क्यों होती है? जैसा कि, हमनें ऊपर जाना प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जिसका इस्तेमाल कम्युनिकेशन के लिए किया जा रहा है वह रेडियो तरंगों का इस्तेमाल करता है और इस प्रकार के उपकरण हमारे चारों और मौजूद हैं।

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ऐसे में यदि रेडियो स्पेक्ट्रम को नियंत्रित नहीं किया गया तो कोई व्यक्ति किसी भी आवृत्ती (Frequency) पर सूचनाओं को प्रसारित कर सकता है, जिससे पूरी संचार व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न होगा, विभिन्न प्रकार के संचार उपकरण निर्माताओं के पास उपकरणों को बनाने के लिए कोई मानक आवृत्ती सीमा नहीं होगी तथा सरकारों के लिए भी विभिन्न खुफिया कम्युनिकेशन करना मुश्किल होगा। इसे बिना यातायात प्रबंधन के संचालित होने वाले यातायात के तौर पर समझा जा सकता है, जो अंततः अव्यवस्था का कारण बनेगा।

ऐसा ना हो इस उद्देश्य से सरकारें रेडियो स्पेक्ट्रम को विभिन्न बैंड में विभाजित करती है तथा प्रत्येक बैंड को एक विशेष प्रकार के क्षेत्र को आवंटित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर हमारे द्वारा सुने जाने वाले सभी FM चैनल 88MHz से 108MHz की आवृत्ती के मध्य संचालित होते हैं। वहीं टेलीकॉम स्पेक्ट्रम की बात करें तो यह 800MHz से 2300MHz के मध्य फैला हुआ है। इस नियंत्रित आवंटन से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि, मोबाइल दूरसंचार तथा रेडियो ब्रॉडकास्टिंग दोनों बिना किसी व्यवधान के स्वतंत्र रूप से संचालित हो सकते हैं।

टेलिकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी (Auction of Telecom Spectrum)

साल 2008 में हुए 2G स्पेक्ट्रम घोटाले से पूरा देश वाकिफ़ है, जिसमें देश को तकरीबन 1.76 लाख करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ इस घोटाले ने ही टेलिकॉम स्पेक्ट्रम तथा इसकी नीलामी जैसी शब्दावलियों को लोगों की जुबान तक लाया। बहरहाल यहाँ हम समझने की कोशिश करते हैं कि, स्पेक्ट्रम की नीलामी से क्या आशय है तथा इसका क्या महत्व है। किसी भी देश के सभी संसाधनों की तरह उस देश की एयरवेव (Communication Spectrum) भी सरकार की संपत्ति होती है, सरकारों द्वारा की जाने वाली अन्य नीलामियों की भाँति रेडियो स्पेक्ट्रम भी नीलम किया जाता है।

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सर्वप्रथम सरकार दूरसंचार (Telecommunication) के लिए किसी निश्चित आवृत्ती की तरंग बैंड का निर्धारण करती है, उदाहरण के लिए देश में 2G मोबाइल नेटवर्क की शुरुआत के उद्देश्य से 90 के दशक में सर्वप्रथम टेलिकॉम स्पेक्ट्रम के पहले बैंड के रूप में 900 MHz बैंड (890 से 915 MHz अपलिंक के लिए / 935 से 960 MHz डाउनलिंक के लिए) की नीलामी करी गई। इसके अलावा भारत में शुरू होने वाली आगामी 5G सेवाओं के लिए 3.3 गीगा हर्ट्ज से 3.6 गीगा हर्ट्ज आवृत्ती वाली तरंगों का निर्धारण किया गया है।

अपलिंक और डाउनलिंक क्रमशः आपके द्वारा टेलिकॉम कंपनी को भेजे गए डेटा (वॉयस, या कोई अन्य सिग्नल) तथा टेलिकॉम कंपनी द्वारा आपको भेजे गए डेटा को संदर्भित करते हैं। संचार सेवाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए दूरसंचार कंपनियाँ इन दोनों उद्देश्यों के लिए अलग-अलग आवृत्ती सीमा की तरंगों का इस्तेमाल करती हैं।

नीलाम किए जाने वाले बैंड के निर्धारण (जैसे 890 से 915 MHz) के पश्चात स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रक्रिया शुरू की जाती है तथा किसी आवृत्ती सीमा (जैसे 890 से 894 MHz) के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाली टेलिकॉम कंपनी स्पेक्ट्रम के उस हिस्से को खरीद लेती है। एक बार स्पेक्ट्रम खरीदने के पश्चात टेलिकॉम कंपनी का उक्त आवृत्ती सीमा की रेडियो तरंगों पर अधिकार हो जाता है तथा जिस अवधि के लिए स्पेक्ट्रम नीलाम किया गया है उस दौरान केवल उसे खरीदने वाली कंपनी ही उस आवृत्ती सीमा का इस्तेमाल ग्राहकों को मोबाइल सेवा उपलब्ध करवाने हेतु कर सकती है।

टेलिकॉम सर्किल (Telecom Circle)

ऊपर बताई गई नीलामी प्रक्रिया भौगोलिक रूप से राष्ट्रीय स्तर की नहीं होती है, अपितु देश को विभिन्न टेलिकॉम ज़ोन अथवा सर्किल में विभाजित किया गया है। वर्तमान में इनकी कुल संख्या 22 है, टेलिकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रत्येक सर्किल के लिए अलग से की जाती है, उदाहरण के लिए 890 से 894 MHz की आवृत्ती सीमा की नीलामी प्रत्येक सर्किल के लिए पृथक रूप से करी जाएगी। पिछले कुछ वर्षों तक आपको अपने गृह राज्य से किसी दूसरे राज्य में जाने पर कॉलिंग/एसएमएस के लिए रोमिंग (Roaming) के तौर पर अतिरिक्त शुल्क देना होता था आइए जानते हैं यह क्यों लिया जाता था।

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इसे एक उदाहरण के तौर पर समझने की कोशिश करते हैं, मान लें रिलायंस जिओ के पास तमिलनाडु सर्किल में 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड के तहत कोई भी स्पेक्ट्रम नहीं है इस स्थिति में उक्त सर्किल में, जिओ को अपनी सेवाएं प्रदान करने के लिए दूसरे टेलिकॉम ऑपरेटर्स से सेवा लेनी पड़ेगी, जिसके लिए अंततः उपभोक्ता से रोमिंग चार्ज के नाम पर अतिरक्त शुल्क लिया जाएगा। गौरतलब है कि, वर्तमान में सभी टेलिकॉम कंपनियों द्वारा रोमिंग शुल्क को समाप्त कर दिया गया है।

नीलामी में आवृत्ती की महत्वता (Importance of Frequency)

यहाँ तक हम टेलिकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी के बारे में समझ चुके हैं, अब चर्चा करते हैं स्पेक्ट्रम खरीदने के दौरान टेलिकॉम कंपनियों के लिए तरंगों की आवृत्ती (Frequency) कितनी महत्वपूर्ण होती है दूसरे शब्दों में 890 से 894 MHz तथा 895 से 900 MHz में कौन सा स्पेक्ट्रम अधिक महत्वपूर्ण होगा, जबकि दोनों स्पेक्ट्रम 900 MHz बैंड के अंतर्गत आते हैं।

Telecom Spectrum and its Auction

किसी भी विद्युतचुम्बकीय तरंग की आवृत्ति जितनी अधिक होगी, तरंग को प्रसारित करने के लिए उतनी ही अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी, इसके विपरीत कम आवृत्ती की तरंगें प्रसारित होने के लिए कम ऊर्जा का इस्तेमाल करती हैं लिहाज़ा अधिक दूरी तक गति करने में सक्षम होती हैं। ये तरंगें इनके मार्ग में आने वाले अवरोधों जैसे इमारतें, पेड़ इत्यादि से प्रभावित नहीं होती हैं और बेहतर कवरेज प्रदान करती हैं।

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हालाँकि कम आवृत्ती की तरंगों के नकारात्मक पहलू भी हैं, बड़ी आवृत्ती की तरंगों के मुकाबले इनकी डेटा ट्रांसफर की गति (Speed) कम होती है। टेलिकॉम कंपनियों की बात करें तो वे अधिक कवरेज की दिशा में काम करती हैं, ताकि उन्हें संसाधनों (टावर, बेस स्टेशन इत्यादि) पर कम खर्च करना पड़े और उनका यूजर बेस भी प्रभावित ना हो अतः नीलामी के दौरान स्पेक्ट्रम में उस निचली आवृत्ती वाली तरंगों की अधिक माँग रहती है, जो टेलिकॉम कंपनियों द्वारा ऑफर की जाने वाली सेवाओं (कॉलिंग/डेटा/एसएमएस) को संचालित करने के लिए पर्याप्त हो।

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