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गति (Motion)
गति अर्थात किसी वस्तु का चलायमान अवस्था में होना। दूसरे शब्दों में यदि समय के साथ किसी वस्तु के स्थान में परिवर्तन होता हो तो उस वस्तु को गति अवस्था में समझा जाएगा। इसी से संबंधित तीन नियम (Laws of Motion Explained in Hindi) 1687 में ब्रिटिश वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन ने दिये। आइये समझते हैं इन तीन नियमों को।
गति का प्रथम नियम
न्यूटन के गति के प्रथम नियम के अनुसार कोई भी वस्तु अपनी विराम अवस्था या एकसमान गति अवस्था में बनी रहती है जब तक कि उसपे कोई असंतुलित बाह्य बल न लगाया जाए। वस्तुओं की अपनी मूल अवस्था में बने रहने के गुण को जड़त्व कहा जाता है। इसलिये इस नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।
हम अपने दैनिक जीवन में इसे अनुभव करते हैं। किसी गाड़ी के अचानक ब्रेक लगने पर हम आगे की ओर गिरते हैं ऐसा जड़त्व के कारण होता है। चूँकि ब्रेक न लगने तक हम गाड़ी के साथ गति अवस्था में होते हैं किंतु ब्रेक लगते है गाड़ी रुक जाती है जबकि हमारा शरीर गति में ही रहने का प्रयत्न करता है और हम आगे की ओर गिर जाते हैं। इसी प्रकार किसी गाड़ी के अचानक चलने पर हम पीछे की ओर गिर पड़ते हैं। प्रत्येक वस्तु का जड़त्व उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है अर्थात किसी अधिक द्रव्यमान की वस्तु की मूल स्थिति में परिवर्तन करने के लिए अधिक बाह्य बल लगाना पड़ेगा।
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संवेग
गति के दूसरे नियम को समझने से पहले जानते हैं संवेग या Momentum को। एक कम द्रव्यमान की गोली को यदि बंदूक द्वारा अत्यधिक वेग से छोड़ने पर वह किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकती है जबकि उसी द्रव्यमान के किसी पत्थर को कम वेग से किसी व्यक्ति की तरफ फेंका जाए तो व्यक्ति केवल चोटिल होगा।
इसी प्रकार 1 मीटर प्रति सेकेंड की गति से आ रहा कोई ट्रक उतनी ही गति से आ रही किसी साइकिल की तुलना में किसी व्यक्ति से टकराने पर उसे अधिक चोट पहुँचाएगा। इन दोनों उदाहरणों से हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किसी वस्तु का प्रभाव उसके वेग तथा द्रव्यमान पर निर्भर करता है। अतः कोई भौतिक राशि है जो इन दोनों से संबंधित है इसे संवेग कहते हैं। किसी वस्तु का संवेग हम उस वस्तु की गति तथा द्रव्यमान का गुणा कर ज्ञात करते हैं।
संवेग = वस्तु का द्रव्यमान × वस्तु की गति
गति का द्वितीय नियम
किसी वस्तु पर बाह्य असंतुलित बल लगाने पर उसके वेग में परिवर्तन होता है और वेग में परिवर्तन से संवेग में भी परिवर्तन होता है। अतः हम कह सकते हैं किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर उस वस्तु पर लगाए गए बल के समानुपाती होती है यही गति का द्वितीय नियम है। किसी गेंद को कैच करने पर कोई क्रिकेट खिलाड़ी अपने हाथों को पीछे कर लेता है।
ऐसा करने से गेंद का वेग धीरे धीरे शून्य होता है और संवेग में परिवर्तन की दर कम हो जाती है लिहाज़ा गेंद को रोकने के लिए कम बल की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत यदि हाथों को पीछे न किया जाए तो गेंद का वेग सीधे शून्य हो जाएगा और संवेग में परिवर्तन की दर उच्च होगी परिणामस्वरूप गेंद को रोकने के लिए अधिक बल लगाना पड़ेगा ऐसी स्थिति में खिलाड़ी के हाथों में चोट भी लग सकती है।
गति का तृतीय नियम
अधिकांशतः गति के तृतीय नियम की अधूरी या गलत व्यख्या की जाती है जिससे इस नियम को लेकर कई संदेह प्रकट होते हैं। आइये जानते हैं यह नियम क्या कहता है? गति के तृतीय नियम के अनुसार जब एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर कोई बल लगती है तो दूसरी वस्तु भी पहले वस्तु पर उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाती है। ये बल कभी भी किसी एक वस्तु पर कार्य नहीं करते बल्कि दोनों वस्तुओं पर लगते हैं इस प्रकार ये बल सदैव युग्म में कार्य करते हैं। इस नियम को क्रिया प्रतिक्रिया का नियम भी कहा जाता है।
उदाहरण की बात करें तो जब हम किसी सड़क पर पैदल चलते हैं तो हम सड़क पर पीछे की ओर बल लगाते हैं परिणामस्वरूप सड़क भी उतना ही बल आगे की ओर लगाती है और हम आगे को बढ़ते हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि हाँलाकि ये बल परिमाण में समान हैं किंतु वस्तु का त्वरण उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है। जितना अधिक वस्तु का द्रव्यमान होगा उसमें उतना ही कम त्वरण उत्पन्न होगा। चूँकि पृथ्वी की तुलना में हमारा द्रव्यमान नगण्य है अतः हम जब पैरों से पृथ्वी पर पीछे की ओर बल लगाते हैं तो आगे की ओर त्वरित हो जाते हैं।
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