Futures And Options in Hindi: फ्यूचर एवं ऑप्शन (Futures & Options) ट्रेडिंग क्या होती है?तथा फ्यूचर एवं ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करें?

Futures And Options in Hindi: एक दौर था जब शेयर बाजार में निवेश केवल एक वर्ग विशेष तक सीमित था, किंतु वर्तमान में इंटरनेट तथा स्मार्टफोन की लोगों तक पहुँच ने एक सामान्य व्यक्ति को भी शेयर बाज़ार में निवेश करने का अवसर दिया है। शेयर बाज़ार में अलग-अलग तरीके से निवेश किया जा सकता है, जिनमें कुछ निवेश कम जोखिम भरे हैं, जबकि कुछ में जोखिम एवं लाभ दोनों की संभावनाएं अधिक रहती हैं।

आज इस लेख में हम शेयर बाज़ार में निवेश करने के ऐसे ही एक तरीके के बारे में जानेंगे, जिसके विषय में अधिकांश लोगों को पर्याप्त जानकारी नहीं होती तथा वे निवेश के इन तरीकों से बचते हैं। हम यहाँ बात कर रहे हैं फ्यूचर्स और ऑप्शंस (Futures and Options in Hindi) की, समझेंगे शेयर बाजार में फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग या F&O क्या है? फ्यूचर्स और ऑप्शंस में क्या अंतर है? फ्यूचर ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करें? फ्यूचर्स या ऑप्शन ट्रेडिंग में कौन सा बेहतर है? क्या फ्यूचर एवं ऑप्शन ट्रेडिंग से पैसा कमाया जा सकता है? F&O सामान्य निवेश से कैसे भिन्न हैं, इनमें निवेश करने पर जोखिम कितना है तथा आप किस प्रकार F&O ट्रेडिंग से पैसा कमा सकते हैं?

शेयर बाजार में फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग क्या होती है?

शेयर बाजार में फ्यूचर एवं ऑप्शन दो प्रमुख Derivatives Instruments हैं, जहाँ कोई व्यक्ति किसी Underlying Asset जैसे स्टॉक्स आदि को पहले से निर्धारित कीमत पर खरीदता अथवा बेचता है। सामान्य शब्दों में समझें तो Futures & Options एक प्रकार का Contract या अनुबंध होता है जिसमें बाद की किसी तारीख में पहले से निर्धारित मूल्य पर किसी Asset का व्यापार किया जाता है। इस तरह के Contract भविष्य में किसी प्रकार के बाजार जोखिम से बचाव करने के लिए किये जाते हैं।

डेरिवेटिव (Derivatives) क्या होते हैं?

फ्यूचर तथा ऑप्शन (Futures and Options in Hindi) ट्रेडिंग को अच्छे से समझने के लिए जिस बाज़ार में ये उत्पाद खरीदे एवं बेचे जाते हैं उसके बारे में जान लेना आवश्यक है। ये दोनों डेरिवेटिव मार्केट के उत्पाद हैं। डेरिवेटिव उत्पाद ऐसे वित्तीय उपकरण (Financial Instruments) होते हैं, जिनका अपना कोई मूल्य नहीं होता बल्कि उनका मूल्य किसी अन्य वस्तु से निर्धारित होता है।

उदाहरण के तौर पर हमारे द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले बैंक नोट का अपना कोई मूल्य नहीं है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किसी भी नोट को एक मूल्य प्रदान किया गया है। यहाँ बैंक नोट एक ऐसा उत्पाद है, जिसका मूल्य रिजर्व बैंक द्वारा तय या Derive किया गया है।

साल 2016 में हुए विमुद्रीकरण से हम सब वाकिफ़ हैं, 8 नवंबर की रात को सरकार ने 500 तथा 1000 के पुराने नोट बंद करने का निर्णय लिया, इसके बाद से वे केवल कागज़ का एक टुकड़ा मात्र रह गए। इसके अतिरिक्त यदि सिक्कों की बात करें तो वह डेरिवेटिव उत्पाद नहीं है, क्योंकि उनकी निर्धारित कीमत जिस धातु से वे बने हैं उससे है। डेरिवेटिव अपनी कीमत को उसमें अंतर्निहित परिसंपत्तियों/Underlying Assets जैसे किसी कमोडिटी, स्टॉक, बॉन्ड और मुद्राओं आदि से प्राप्त करते हैं।

डेरिवेटिव उत्पादों के प्रकार

डेरिवेटिव उत्पाद मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं।

  • Forward Contracts
  • Futures Contract
  • Swap Contracts
  • Options Contracts

Forward Contracts

फॉरवर्ड अनुबंध (Forward Contract) किन्हीं दो व्यक्तियों (बायर और सैलर) द्वारा आपस में किया गया एक समझौता है, जिसमें दोनों के मध्य भविष्य में किसी उत्पाद को समझौते में निर्धारित कीमत तथा तारीख पर खरीदने/बेचने का अनुबंध होता है। इसका इस्तेमाल किसी उत्पाद की कीमत में आने वाले उतार-चढ़ाव से बचने के लिए किया जाता है।

इसे एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं, मान लें कोई किसान टमाटर का उत्पादन करता है, जिसकी फसल एक महीने बाद बाज़ार में बिकने के लिए तैयार होगी, वहीं टमाटर की वर्तमान कीमत 50 रुपये प्रति किलो है। किसान को इस बात की आशंका है, कि एक महीने बाद जब उसकी फसल तैयार होगी तब फसल का मूल्य 50 रुपये से कम रहेगा, जबकि एक कैचप बनाने वाली कंपनी को लगता है टमाटर के भाव में आने वाले दिनों में बढ़ोत्तरी हो सकती है।

ऐसे में किसान एवं कंपनी दोनों एक समझौता करते हैं, जिसमें यह तय किया जाता है कि एक महीने के बाद फसल के दाम चाहे कुछ भी हों, किसान कंपनी को 50 रुपयों के भाव पर अपनी फसल देगा। ऐसा करने से किसान भविष्य में फसल के दाम गिरने तथा कंपनी फसल के दाम बढ़ने की चिंता से मुक्त हो जाते हैं।

हालाँकि इस प्रकार के अनुबंधों में दोनों पक्षों के बीच कोई नियामक संस्था नहीं होती, जिस कारण किसी एक पक्ष के समझौते से मुकरने की अधिक संभावना रहती है। नियामक की भूमिका न होने के कारण ऐसे अनुबंध बहुत हद तक बदलाव करने योग्य भी होते हैं।

Swap Contracts

स्वैप अनुबंध/Swap Contracts एक ऐसा समझौता है, जिसमें दो पक्ष अपनी देयताओं (Liabilities) अथवा नकदी (Cash Flow) को एक्सचेंज करते हैं। स्वैप अनुबंध फ्यूचर एवं ऑप्शन की भाँति स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड नहीं किये जाते बल्कि ये ओवर-द-काउंटर प्रकृति के अनुबंध होते हैं, जिन्हें सामान्यतः वित्तीय संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। इस अनुबंध के अंतर्गत ब्याज दरों का विनिमय, करेंसी का विनिमय आदि किया जाता है।

ब्याज दर विनिमय में दो पक्षों द्वारा लिए गए ऋण की ब्याज दरों को एक्सचेंज कर लिया जाता है। इसके अतिरिक्त करेंसी स्वैप का इस्तेमाल मुद्राओं के एक्सचेंज रेट में आने वाले उतार-चढ़ाव से बचने के लिए किया जाता है। ऐसे अनुबंध कई सरकारें भी अन्य देशों के साथ करती हैं, ताकि भुगतान संतुलन घाटे की स्थिति में घरेलू मुद्रा के अवमूल्यन को रोका जा सके।

Futures Contract

फ्यूचर अनुबंध किन्हीं दो व्यक्तियों के मध्य किया गया एक समझौता है, जिसमें भविष्य में किसी उत्पाद की खरीद या बिक्री उसकी वर्तमान कीमत पर तय की जाती है। यह फॉरवर्ड अनुबंध के ही समान है, दोनों में मुख्य अंतर की बात करें तो फॉरवर्ड अनुबंध के विपरीत इसमें दोनों पक्षों के मध्य एक नियामक संस्था होती है। इसके अतिरिक्त जहाँ फॉरवर्ड अनुबंध अहस्तांतरणीय होते हैं वहीं फ्यूचर अनुबंधों को उनकी अवधि से पूर्व भी किसी अन्य व्यक्ति को बेचा जा सकता है।

Options Contract

ऑप्शन किन्हीं दो पक्षों के मध्य होने वाला एक समझौता है, जिसके अनुसार अनुबंध खरीदने वाला व्यक्ति उस अनुबंध से संबंधित उत्पाद को खरीदने अथवा बेचने का अधिकार रखता है, जबकि इसमें उसे उत्पाद को खरीदने या बेचने की बाध्यता नहीं होती। वहीं ऑप्शन अनुबंध बेचने वाला व्यक्ति अनुबंध से संबंधित उत्पाद को खरीदने या बेचने के लिए बाध्यकारी होता है।

Futures Trading क्या होती है?

जिस प्रकार हम अलग-अलग वित्तीय उपकरणों जैसे बॉन्ड, शेयर, डिबेंचर्स आदि में निवेश करते हैं, उसी प्रकार डेरिवेटिव उत्पादों में भी निवेश किया जाता है। शेयर बाज़ार में होने वाली फ्यूचर एवं ऑप्शन ट्रेडिंग (Futures and Options in Hindi) ऐसा ही निवेश है। Future Trading में फ्यूचर अनुबंध की प्रक्रिया अपनाई जाती है तथा स्टॉक एक्सचेंज मध्यस्थ की भूमिका में कार्य करते हैं, ताकि निवेशकों के हितों का संरक्षण किया जा सके।

फॉरवर्ड अनुबंध में हमनें फसल के उदाहरण को लिया, शेयर बाज़ार में फसल के विपरीत किसी कंपनी के फ्यूचर अनुबंध खरीदे या बेचे जाते हैं। शेयर मार्केट में फ्यूचर ट्रेडिंग किस प्रकार की जाती है इसे पुनः एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं। मान लें किसी व्यक्ति A को लगता है कंपनी XYZ, जिसका वर्तमान में एक शेयर 100 रुपये का है, के दाम एक महीने बाद 150 हो जाएंगे तथा व्यक्ति B जो उस कंपनी का शेयरधारक है, ठीक इसके विपरीत अनुमान लगाता है।

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ऐसे में दोनों एक समझौते पर सहमत होते हैं, जिसके अनुसार यह तय किया जाता है कि एक महीने बाद B अपने XYZ कंपनी के शेयर A को शेयर की वर्तमान कीमत (100 रुपये) पर बेचेगा, भले ही उस समय XYZ के दाम कुछ भी हो। हालाँकि समझौते के अनुसार A को शेयर एक महीने बाद प्राप्त होंगे, किन्तु उसे B को भुगतान समझौते के दौरान ही करना होगा।

गौरतलब है कि अनुबंध की शर्तों का सही तरीके से पालन हो यह सुनिश्चित करने की लिए स्टॉक एक्सचेंज मध्यस्थ की भूमिका में मौजूद रहता है। एक महीने पश्चात A अनुबंध पत्र को B को सौंपता है तथा बदले में B उसे XYZ कंपनी के शेयर देता है। चूँकि एक महीने के बाद A अथवा B में से किसी एक का अनुमान गलत साबित होगा और उसे नुकसान उठान पड़ेगा।

Futures and Options in Hindi

फॉरवर्ड अनुबंध के विपरीत फ्यूचर अनुबंध में A के पास यह विकल्प भी मौजूद रहता है, कि वो अनुबंध पत्र को किसी तीसरे व्यक्ति C को हस्तांतरित कर दे इस स्थिति में एक महीने बाद A के बजाए C, B से शेयर प्राप्त करेगा। शेयर बाज़ार में फ्यूचर अनुबंध तीन अवधियों के लिए बेचे जाते हैं, जिनमें Current Month अथवा वर्तमान महिना, Near Month अर्थात अगला महिना तथा Far Month अर्थात अगले महीने के बाद वाले महीने का अनुबंध शामिल है। प्रत्येक अनुबंध महीने के आखिरी गुरुवार (छुट्टियों के अतिरक्त) को समाप्त होता है।

आइए अब फ्यूचर ट्रेडिंग से जुड़ी कुछ अन्य बातों को समझते हैं। इसमें किसी कंपनी के शेयर को एक निश्चित संख्या अथवा लॉट में ही खरीदा जाता है। फ्यूचर अनुबंध में व्यक्ति (क्रेता) समझौते में उल्लेखित उत्पाद को खरीदने के लिए बाध्यकारी होता है। किसी कंपनी के फ्यूचर अनुबंध को कंपनी का नाम, अनुबंध की वैधता तथा अनुबंध का संक्षिप्त नाम (FUT) से दर्शाया जाता है। जैसे RELIANCE OCT FUT रिलायंस कंपनी के अक्टूबर माह के फ्यूचर अनुबंध को दर्शाता है।

Futures Trading सामान्य निवेश से कैसे अलग है?

हमनें ऊपर फ्यूचर ट्रेडिंग तथा इसकी कार्यप्रणाली को समझा, ऐसे में यह प्रश्न उठना लाज़मी है, यदि व्यक्ति A को लगता है, एक महीने पश्चात XYZ के शेयर की कीमत 50 रुपये की वृद्धि के साथ 150 हो जाएगी तो व्यक्ति A सीधे बाज़ार से XYZ कंपनी के शेयर क्यों नहीं खरीदता? सीधे तौर पर शेयर न खरीद कर किसी कंपनी का फ्यूचर अनुबंध को खरीदने के दो मुख्य कारण हैं।

पहला कारण : बाज़ार से सीधे शेयर खरीदने के लिए A के पास पर्याप्त धनराशि का उपलब्ध होना जरूरी है, जबकि उसी कंपनी का फ्यूचर अनुबंध व्यक्ति केवल कुछ कीमत देकर खरीद सकता है। इसका कारण व्यक्ति को ब्रोकर द्वारा दिया जाने वाला उधार या Leverage होता है। अधिकांश ब्रोकर अपने ग्राहकों को फ्यूचर ट्रेडिंग में कुल कीमत का 80 से 90 फीसदी तक उधार उपलब्ध करवाते हैं। ग्राहकों को यह सुविधा देकर ब्रोकर उन्हें ट्रेड करने के लिए आकर्षित करते हैं, ताकि प्रत्येक ट्रेड पर सेवा तथा अन्य शुल्कों के रूप में उनकी कमाई हो सके।

दूसरा कारण : सामान्य शेयरों में निवेश करने से प्राप्त हुए मुनाफे पर किसी व्यक्ति को कैपिटल गेन टैक्स देना होता है, जबकि फ्यूचर तथा ऑप्शन जैसे विकल्पों से प्राप्त मुनाफे को व्यक्ति की आय में शामिल किया जाता है, जिसमें व्यक्ति को आयकर की अलग अलग दरों के अनुसार कर का भुगतान करना होता है। चूँकि आयकर पर व्यक्ति अधिकतम 6.5 लाख (5 लाख + 1.5 लाख निवेश द्वारा) तक की आय में छूट प्राप्त कर सकता है, अतः सीधे शेयर न खरीदकर फ्यूचर अनुबंध लेना कर बचाने के लिहाज से भी एक अच्छा चुनाव है।

ऑप्शन ट्रेडिंग (Options Trading) क्या होती है?

शेयर बाज़ार में ऑप्शन ट्रेडिंग (Futures and Options in Hindi) दो प्रकार की होती है, जिनमें कॉल ऑप्शन एवं पुट ऑप्शन शामिल हैं। इन दो तरीकों की ट्रेडिंग में किसी व्यक्ति के पास चार अलग-अलग विकल्प होते हैं, जिन्हें हमने नीचे विस्तार से समझाया है। किसी कंपनी के ऑप्शन अनुबंध को कंपनी का नाम, अनुबंध की वैधता, स्ट्राइक प्राइज (वह कीमत जिस पर अनुबंध के अनुसार कोई उत्पाद खरीदा या बेचा जाएगा) तथा कॉल एवं पुट के संकेत से दर्शाया जाता है। जैसे RELIANCE OCT 1300 PE / RELIANCE OCT 1300 CE रिलायंस के अक्टूबर माह के पुट एवं कॉल ऑप्शन अनुबंध को दर्शाते हैं।

कॉल ऑप्शन खरीदना

कॉल ऑप्शन सामान्यतः किसी व्यक्ति द्वारा उस स्थिति में खरीदा जाता है, जब उसे किसी कंपनी के शेयर की कीमत आने वाले समय में बढ़ने की उम्मीद होती है। आइए इसे A एवं B के उदाहरण को जारी रखते हुए समझते हैं, इस स्थिति में व्यक्ति A तथा B के मध्य एक समझौता होता है, जिसके तहत व्यक्ति B, A को विकल्प देता है, यदि A वर्तमान में कुछ धनराशि प्रीमियम के तौर पर B के पास जमा करा दे, तो B एक महीने के अंत में A को XYZ के शेयर वर्तमान भाव (100 रुपये) पर बेचेगा तथा A के पास एक महीने पश्चात शेयर खरीदने अथवा न खरीदने का विकल्प भी रहेगा।

एक महीने पश्चात यदि A का अनुमान सही रहता है और शेयर की कीमत 150 रुपये हो जाती है तो A अनुबंध के अनुसार B से शेयर खरीद लेगा, किन्तु यदि शेयर का दाम 100 से कम रहा तो A अनुबंध से बाहर आ सकता है। इस स्थिति में उसे केवल पूर्व में जमा किये गए शुल्क या प्रीमियम का नुकसान होगा। यहाँ 100 वहीं स्ट्राइक प्राइज है जिसकी चर्चा हमनें ऑप्शन अनुबंध के संकेत में करी है।

कॉल ऑप्शन बेचना

कॉल ऑप्शन किसी व्यक्ति द्वारा ऐसी स्थिति में बेचा जाता है जब उसे किसी कंपनी के शेयर की कीमत में गिरावट होने की संभावना नजर आती है। कॉल ऑप्शन बेचने वाला व्यक्ति अनुबंध की वैधता की समाप्ति पर शेयर बेचने के लिए बाध्यकारी होता है।

पुट ऑप्शन खरीदना

कॉल ऑप्शन के विपरीत पुट ऑप्शन सामान्यतः किसी व्यक्ति द्वारा तब खरीदा जाता है, जब उसके पास किसी कंपनी के शेयर मौजूद हों तथा उसे आने वाले समय में उस कंपनी के शेयरों कीमत में गिरावट का अंदेशा हो। यह ट्रेड सामान्यतः नुकसान से बचने के लिए किया जाता है, दूसरे शब्दों में इसे बीमा के तौर पर भी समझा जा सकता है।

आइए समझते हैं यह ट्रेड किस प्रकार होता है। मान लें व्यक्ति B को लगता है XYZ के दाम आने वाले एक महीने में 100 रुपये से नीचे रहेंगे, इस स्थिति में B व्यक्ति A से एक पुट ऑप्शन अनुबंध खरीदता है, जिसके अनुसार यह तय किया जाता है, कि एक महीने बाद B व्यक्ति A को वर्तमान कीमत पर XYZ के शेयर बेचेगा। इसके लिए B व्यक्ति A को एक प्रीमियम का भुगतान भी करता है।

यदि एक माह पश्चात शेयर की कीमत 100 रुपये से अधिक रही तो B के पास विकल्प है की वह अनुबंध की शर्तों को न मानते हुए उससे बाहर निकल जाए, वहीं यदि B का अनुमान सही साबित हुआ तथा शेयर की कीमत 100 रुपये से नीचे चली गई तो B समझौते के अनुसार अपने शेयर A को 100 रुपयों में बेच देगा तथा शेयर में आई गिरावट से बच जाएगा।

पुट ऑप्शन बेचाना

पुट ऑप्शन ऐसे व्यक्ति द्वारा बेचा जाता है, जिसे आने वाले समय में किसी शेयर के दाम में वृद्धि होने का अंदेशा हो। पुट ऑप्शन बेचने वाला व्यक्ति शेयर खरीदने के लिए बाध्यकारी होता है।

कॉल एवं पुट ऑप्शन खरीदने वाले व्यक्ति की हानि सीमित (केवल प्रीमियम) होती है तथा लाभ असीमित हो सकता है। वहीं कॉल एवं पुट ऑप्शन बेचने वाले की बात करें, तो उसका लाभ तो सीमित (केवल प्रीमियम) होता है, जबकि हानि असीमित होती है। हालाँकि यहाँ विक्रेता को सीधे तौर पर हानि नहीं हो रही है, बल्कि हानि से आशय अनुबंध न करने पर उसे हो सकने वाले मुनाफ़े से है। अतः यह कहा जा सकता है कि ऑप्शन अनुबंध बेचने वाले व्यक्ति का जोखिम अनुबंध खरीदने वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक होता है।

Futures & Options ट्रेडिंग में कितना रिस्क है?

Future & Option ट्रेडिंग किसी कंपनी के शयरों को खरीदने से कहीं अधिक जोखिम भरा होता है इसके कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  • Futures & Options ट्रेडिंग में शेयर अथवा कोई भी Underlying Asset मनचाही Quantity के विपरीत केवल निर्धारित संख्या या लॉट में ही खरीदा जा सकता है, जिसके चलते यहाँ सामान्य निवेश से अधिक नुकसान होने का जोखिम बना रहता है।
  • जैसा कि, हमनें ऊपर बताया Futures & Options की स्थिति में केवल निर्धारित लॉट में ही ट्रेडिंग करना संभव है, ऐसे में कई बार एक लॉट की कीमत बहुत अधिक हो जाती है जो एक आम ट्रेडर के पास नहीं होती अतः कोई सामान्य ट्रेडर भी Futures & Options ट्रेडिंग कर सके इसके लिए ब्रोकरेज फर्म द्वारा Leverage या उधार भी उपलब्ध करवाया जाता है, इस स्थिति में यदि व्यक्ति को नुकसान होता है तो उसकी निवेश की गई रकम तो डूबती ही है साथ में उस पर भरी भरकम कर्ज भी चढ़ता है।

Futures & Options ट्रेडिंग कैसे करें?

फ्यूचर एवं ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए एक डीमैट एकाउंट की आवश्यकता होती है जिसे किसी भी ब्रोकरेज फर्म जैसे जीरोधा के साथ खुलवाया जा सकता है। इसके बाद ब्रोकर द्वारा उपलब्ध करवाए गए ट्रेडिंग एकाउंट के मध्यम से आप मनचाही कंपनी के Futures & Options Contract खरीद सकते हैं।

Futures and Options in Hindi

सारांश

Futures & Options ट्रेडिंग एक प्रकार का Contract होता है जिसमें वर्तमान कीमत पर भविष्य में किसी Asset जैसे स्टॉक्स आदि को खरीदा अथवा बेचा जाता है। ये दोनों डेरिवेटिव उत्पाद हैं अर्थात इनकी कीमत इनमें अंतर्निहित ऐसेट जैसे किसी कमोडिटी, स्टॉक, बॉन्ड या मुद्रा आदि से निर्धारित होती है।

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