प्रकृति के चार मौलिक बल (Four Fundamental Forces in Hindi)

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बल (Force)

इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन मिलकर किसी पदार्थ के परमाणु बनाते हैं, दो परमाणु मिलकर अणु का निर्माण करते हैं, इसके अतिरिक्त पृथ्वी तथा अन्य ग्रह सौर मंडल में अपनी-अपनी कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं। किन्तु प्रकृति में ऐसा क्या है जो किसी परमाणु के नाभिक से लेकर बड़े बड़े ग्रहों तक को बांधे रखता है? ये प्रकृति में पाए जाने वाले अलग अलग बल हैं।

बल एक ऐसी भौतिक राशि है जो किसी वस्तु की स्थिति में परिवर्तन करने का प्रयत्न करती है। स्थिति में परिवर्तन से आशय किसी गतिमान वस्तु को स्थिर करने तथा स्थिर वस्तु को गतिमान करने से है। प्रकृति में अनुभव किए जाने वाले सभी बल मुख्य रूप से चार मूलभूत बलों (Four Fundamental Forces in Nature in Hindi) के ही प्रकार हैं।

चार मूलभूत बल

प्रकृति में निम्न चार बल मुख्य रूप से कार्य करते हैं।

  1. गुरुत्वाकर्षण बल
  2. विद्युतचुम्बकीय बल
  3. प्रबल नाभिकीय बल
  4. कमज़ोर नाभिकीय बल

गुरुत्वाकर्षण बल

गुरुत्वाकर्षण बल से हम सभी अच्छी तरह से वाकिफ हैं तथा अपने दैनिक जीवन में इसे महसूस भी करते हैं। आसमान से जमीन पर गिरती वस्तु इस बल के प्रभाव का ही उदाहरण है, ऐसा होता है क्योंकि धरती प्रत्येक वस्तु को गुरुत्वाकर्षण बल के कारण अपने केंद्र की ओर खींचती है। गुरुत्वाकर्षण बल की खोज 1687 में ब्रिटिश वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन ने की जब उन्होंने एक सेब को पेड़ से नीचे गिरते देखा।

ब्रह्मांड में मौजूद कोई भी दो पिंड एक दूसरे पर एक आकर्षण का बल आरोपित करते हैं, जिसे गुरुत्वाकर्षण बल कहा जाता है। किन्हीं दो पिंडों के मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल नीचे दिए गए सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है, जहाँ m1 एवं m2 दोनों पिंडों का द्रव्यमान, r उन दोनों के मध्य की दूरी है और G गुरुत्वाकर्षण नियतांक है जिसका मान 6.674 30 x 10-11 m3 kg-1 s-2 होता है।

जैसा की सूत्र से ज्ञात होता है, गुरुत्वाकर्षण बल पिंडों के द्रव्यमान पर निर्भर करता है तथा F=द्रव्यमान×त्वरण द्वारा हमें पता है, जिस वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होगा वह एक निश्चित बल लगाने पर अधिक विस्थापित होगी। यही कारण है, कि हमारे द्वारा भी पृथ्वी पर समान गुरुत्वाकर्षण बल आरोपित किये जाने के बावजूद केवल हम पृथ्वी की ओर खिंचे चले जाते हैं, जबकि पृथ्वी अपनी जगह पर स्थिर मालूम पड़ती है।

यहाँ यह प्रश्न उठना भी स्वाभाविक है, यदि गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में हल्की वस्तु भारी वस्तु की ओर आकर्षित होती है, तो हमसे बहुत हल्की वस्तुएं हमारी ओर आकर्षित क्यों नहीं होती? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे द्वारा अन्य वस्तुओं पर लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल बहुत नगण्य होता है, जिसकी गणना आप ऊपर दिए सूत्र से भी कर सकते हैं। लिहाजा हमें बल का प्रभाव दिखाई नहीं देता।

गुरुत्वाकर्षण बल के ही कारण पृथ्वी पर वायुमंडल मौजूद है, कोई भी वस्तु पृथ्वी की सतह पर बनी रहती है तथा ग्रह सौरमंडल में अपनी-अपनी कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं। इसके बावजूद यह प्रकृति में अन्य बलों की तुलना में सबसे कमजोर है।

विद्युतचुम्बकीय बल

विद्युतचुम्बकीय बल वह बल है, जो दो आवेशित कणों के मध्य लगता है। समान आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं, जबकि विपरीत आवेश आकर्षित। इस बल को भी हम अपने दैनिक जीवन में अनुभव करते हैं। किसी पदार्थ के परमाणु में स्थित इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन इसी बल के कारण परमाणु में बने रहते हैं तथा विभिन्न पदार्थों का निर्माण होता है। दैनिक जीवन में अनुभव किये जाने वाला घर्षण तथा तनाव इसी के उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त किसी ठोस को निश्चित आकर प्रदान करने के लिए भी यही बल जिम्मेदार है।

परमाणु में नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाता इलेक्ट्रॉन

प्रबल नाभिकीय बल

विद्युतचुम्बकीय बल में हमनें बताया कि समान आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं, जबकि विपरीत आवेश आकर्षित, बावजूद इसके परमाणु के नाभिक में समान आवेश होने पर भी सभी प्रोटॉन परमाणु के केंद्र में एक साथ रहते हैं। ये प्रबल नाभिकीय बलों के कारण ही संभव हो पाता है। प्रबल नाभिकीय बल अत्यंत कम दूरी 10-15  मीटर में मौजूद किन्हीं दो कणों के मध्य कार्य करता है। यह बल आवेश पर निर्भर नहीं करता। हालाँकि ये बहुत कम दूरी पर लागू होते हैं लेकिन ये बल ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली हैं।

strong nuclear force
प्रबल नाभिकीय बलों के प्रभाव में एक साथ प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन

कमज़ोर नाभिकीय बल

कमज़ोर नाभिकीय बल अत्यंत कम दूरी प्रोटोन के व्यास के 0.1% या लगभग 10-16 मीटर पर लागू होते हैं। ये बल सामान्यतः किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ के बीटा क्षय के लिए जिम्मेदार होते हैं। इस बल के प्रभाव से किसी परमाणु के नाभिक में स्थित न्यूट्रॉन, प्रोटॉन में परिवर्तित हो जाता है। जिसके फलस्वरूप एक इलेक्ट्रॉन जिसे बीटा कण कहा जाता है उत्सर्जित होता है। चूँकि न्यूट्रॉन एक अनावेशित कण है अतः उसके प्रोटॉन (धनावेशित कण) में परिवर्तित होने के कारण आवेश संरक्षण के नियम के अनुसार एक ऋणावेशित कण या इलेक्ट्रॉन या बीटा कण भी उत्सर्जित होता है।

बीटा क्षय

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