Foreign Exchange Reserves Explained in Hindi: विदेशी मुद्रा भंडार क्या होता है और किसी देश को इसकी क्या जरूरत है?

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Foreign Exchange Reserves Explained in Hindi: आपने अक्सर सोशल मीडिया, समाचारों इत्यादि में किसी देश के घटते, बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) के बारे में सुना होगा, आज इस लेख में विस्तार से समझेंगे विदेशी मुद्रा भंडार क्या है (What is Foreign Exchange Reserves), किसी देश के लिए यह क्यों जरूरी है तथा इसके घटने और बढ़ने से किसी देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है।

विदेशी मुद्रा भंडार क्या है (What is Foreign Exchange Reserves)

विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा रिजर्व में रखे गए विदेशी मुद्रा एसेट्स हैं, इनमें विदेशी मुद्रा (अमेरिकी डॉलर, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन), विभिन्न देश की सरकारों द्वारा जारी बॉन्ड, ट्रेजरी बिल, IMF की मुद्रा स्पेशल ड्राइंग राइट (SDR), सोना आदि शामिल होते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार अथवा फॉरेक्स रिजर्व की आवश्यकता वैश्विक देनदारियों को चुकाने, मौद्रिक नीति के बेहतर क्रियान्वयन आदि में होती है।

विदेशी मुद्रा भंडार क्यों जरूरी है?

जब भी हमें देश के भीतर किसी प्रकार की खरीदारी करनी हो तो हमें भुगतान (Payment) करने के लिए रुपये की आवश्यकता होती है, किन्तु जब यही खरीदारी हम किसी अन्य देश में करते हैं तो वहाँ हमें भुगतान करने के लिए उस देश की मुद्रा या करेंसी की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार विभिन्न देशों को भी दुनिया के अन्य देशों के साथ व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा की जरूरत होती है, जिसे वे रिजर्व के रूप में रखते हैं।

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दुनियाँ में अलग-अलग देशों की कुल मिलाकर करीब 180 मुद्राएं हैं, किन्तु इनमें से कोई देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार में किस विदेशी मुद्रा को रिजर्व के रूप में रखेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि, वह देश किन-किन देशों के साथ अधिक व्यापार करता है या किन-किन देशों की मुद्राओं की उसे अधिक आवश्यकता पड़ती है।

उदाहरण के लिए यदि कोई देश अपने कुल वैश्विक व्यापार का 80 फीसदी व्यापार केवल भारत से करता हो तो वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार में भारतीय रुपये को रिजर्व के तौर पर शामिल करेगा और भारत से होने वाले आयात के भुगतान के लिए उसका इस्तेमाल करेगा।

वर्तमान दौर में अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक तथा लोकप्रिय मुद्रा है, जिसे दुनियाँ के लगभग सभी देश भुगतान के लिए न केवल स्वीकार करते हैं बल्कि प्राथमिकता भी देते हैं। विश्व भर में अमेरिकी डॉलर की बढ़ती मांग का ही नतीजा है कि, लगभग सभी देशों के फॉरेक्स रिजर्व का बहुत बड़ा हिस्सा डॉलर के रूप में होता है। डॉलर के अलावा कुछ अन्य मुद्राओं, जिनका वैश्विक व्यापार में अधिक इस्तेमाल होता है उनमें यूरो तथा ब्रिटिश पाउंड शामिल हैं।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कितना है?

वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के बढ़ते कद के कारण भारतीय रुपया भी धीरे-धीरे एक वैश्विक मुद्रा बनने की ओर अग्रसर है। वर्तमान में जर्मनी, UK समेत तकरीबन 18 देशों ने भारत के साथ रुपये में व्यापार करने पर सहमति दिखाई है। भारतीय व्यापारियों को अब इन देशों के साथ ट्रेड करने के लिए डॉलर या किसी अन्य विदेशी मुद्रा की आवश्यकता नहीं होगी बल्कि वे भारतीय रुपये में भी आसानी से व्यापार कर सकेंगे।

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हालांकि भारतीय रुपये को अब एक वैश्विक पहचान मिलने लगी है बावजूद इसके भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है। विदेशी मुद्रा खासकर अमेरिकी डॉलर में होने वाला देश का सबसे बड़ा खर्च कच्चे तेल का आयात है, चूंकि भारत क्रूड ऑयल में आत्मनिर्भर नहीं है और अपनी जरूरत का तकरीबन 80 से 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है लिहाजा भारत को इसका भुगतान करने के लिए अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 578 बिलियन डॉलर के करीब है। दुनियाँ में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार चीन के पास है जो करीब 3.3 ट्रिलियन डॉलर का है। इसके बाद 1.25 ट्रिलियन डॉलर के साथ जापान दूसरे, 899 मिलियन डॉलर के साथ स्विजरलैंड तीसरे, 593 मिलियन डॉलर के साथ रूस चौथे तथा 578 मिलियन डॉलर के साथ भारत पांचवें स्थान पर है।

आरबीआई के पास कहाँ से आती है विदेशी मुद्रा?

देश में विदेशी मुद्रा का प्रवाह किस प्रकार होता है इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। मान लें कि, भारत की कोई कंपनी घड़ियाँ बनाकर विभिन्न देशों में इनका निर्यात करती है और पेमेंट केवल अमेरिकी डॉलर में ही स्वीकार करती है। चूंकि कंपनी को भारत में अपने संचालन (कर्मचारियों के वेतन, कच्चे माल का भुगतान आदि) के लिए भारतीय रुपये की आवश्यकता है अतः कंपनी द्वारा अर्जित विदेशी मुद्रा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास चली जाती है बदले में आरबीआई कंपनी को इतनी ही कीमत की घरेलू मुद्रा (रुपया) दे देता है।

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वहीं आयात की स्थिति में इसका उल्टा होता है, उदाहरण के लिए यदि कोई भारतीय व्यापारी अमेरिका की किसी कंपनी से कोई उत्पाद आयात करता है तो उसे इसका भुगतान डॉलर में करना होगा और इस स्थिति में भारतीय व्यापारी आरबीआई से भारतीय रुपये के बदले डॉलर प्राप्त करेगा। इस प्रकार किसी भी देश का निर्यात उस देश में विदेशी मुद्रा लेकर आता है, जबकि देश में होने वाला आयात विदेशी मुद्रा को कम करता है।

आयात निर्यात के अलावा पर्यटन, मेडिकल टूरिज़्म, शिक्षा, रेमिटेन्स, विदेशी निवेश से प्राप्त रिटर्न, गिफ्ट, डोनेशन समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनके द्वारा भारत में विदेशी मुद्रा आती है अथवा भारत से बाहर जाती है। हालांकि किसी विदेशी मुद्रा तथा रुपये का एक्सचेंज रेट डिमांड और सप्लाई द्वारा तय होता है, किन्तु विदेशी मुद्रा तथा भारतीय रुपये के एक्सचेंज रेट में संतुलन बना रहे इस दिशा में रिजर्व बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और विदेशी मुद्रा की मांग के अनुसार बाजार में इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करता है।

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